मृणालिनी विक्रम साराभाई एक भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, कोरियोग्राफर थीं। उनका नाम भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रमुख हस्तियों में से गिना जाता हैं। देश और दुनिया में नाम कमाने वाला मृणालिनी साराभाई अपने नृत्य शैली के ज़रिये सामाजिक मुद्दों को उजागर करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने भरतनाट्यम, कथकली और मोहिनीयट्टम में प्रशिक्षण हासिल करने के बाद कोरियोग्राफी और नृत्य प्रशिक्षण में लंबे समय तक काम किया। देश में शास्त्रीय नृत्य शैली को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने परफॉर्मिंग आर्ट एकेडमी की स्थापना की।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
मृणालिनी का जन्म 11 मई 1918 को वर्तमान केरल में एक तमिल ब्राह्मण पिता और मलयाली नायर माँ के यहां हुआ था। उनके पिता सुब्बारामा स्वामीनाथन एक प्रतिष्ठित वकील थे, जिन्होंने हार्वर्ड और लंदन विश्वविद्यालयों से डिग्री हासिल की थी। वे मद्रास हाई कोर्ट में आपराधिक कानून की प्रैक्टिस किया करते थे और बाद में मद्रास लॉ कॉलेज के प्राचार्य बने। उनकी माता ए.वी. अम्मुकुट्टी, जिन्हें अम्मू स्वामीनाथन के नाम से जाना जाता था, एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और बाद में राजनीति में आने के बाद सांसद बनीं। उनकी बड़ी बहन लक्ष्मी सहगल, सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज के ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ की सेनापति थीं। उनके बड़े भाई गोविंद स्वामीनाथन एक बैरिस्टर थे, जो मद्रास में संवैधानिक, आपराधिक, दीवानी और कंपनी कानून के विशेषज्ञ के रूप में प्रैक्टिस करते थे और मद्रास राज्य (अब तमिलनाडु) के अटॉर्नी जनरल रहे।
साल 1985 में अपनी प्रस्तुति गंगा के माध्यम से उन्होंने गंगा नदी के प्रदूषण की समस्या को दर्शाया। मृणालिनी ने अपने नृत्य प्रस्तुतियों में पारंपरिक वस्त्रों और हस्तशिल्प का भी उपयोग किया ताकि स्वदेशी शिल्प और कला का प्रचार-प्रसार हो सके।
मृणालिनी ने दो वर्षों तक स्विट्जरलैंड के एक बोर्डिंग स्कूल में शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने डैलक्रोज़ स्कूल से पश्चिमी नृत्य तकनीक की प्रारंभिक शिक्षा ली। इसके बाद, मृणालिनी ने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के मार्गदर्शन में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्हें अपने जीवन का वास्तविक उद्देश्य समझ में आया और उन्होंने नृत्य को अपने करियर के रूप में अपनाने का निर्णय लिया। इसके बाद उन्होंने कुछ समय के लिए अमेरिका जाकर अमेरिकन एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स में दाखिला लिया। भारत लौटने के बाद उन्होंने भरतनाट्यम में प्रशिक्षण प्रसिद्ध गुरु मीनाक्षीसुंदरम पिल्लई से प्राप्त किया, कथकली नृत्य-नाटक का प्रशिक्षण महान गुरु थकाझी कुंचु कुरुप से लिया औरमोहिनीअट्टम का गहन प्रशिक्षण प्राप्त किया।
परिवार और काम
मृणालिनी की मुलाकात प्रसिद्ध भौतिकविद् और खगोलशास्त्री विक्रम साराभाई से ऊटी में हुई थी, और दोनों का साल 1942 में विवाह हुआ। उनके दो बच्चे हुए- पुत्र कार्तिकेय और पुत्री मल्लिका। मल्लिका ने अपनी माँ के पदचिह्नों पर चलते हुए नृत्य और रंगमंच की दुनिया में ख्याति प्राप्त की। परिवार बढ़ने के बावजूद मृणालिनी ने अपने जुनून और करियर को कभी पीछे नहीं रखा। जब वे दक्षिण भारत से अपने पति के साथ अहमदाबाद, गुजरात आईं, तो उन्हें वहां दक्षिण भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों को स्वीकार कराने में कई सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जहां भी उन्हें आमंत्रण मिलता, वहां नृत्य प्रस्तुत करती रहीं। बाद में, उन्होंने 1949 में अहमदाबाद में दर्पणा अकादमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की स्थापना की, जहां उन्होंने छात्रों को शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा दी। यह सफ़र भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में एक बड़ी सफलता बन गया। मृणालिनी साराभाई को गुजरात में प्यार से सब ‘अम्मा’ कहकर बुलाने लगे थे।
नृत्य और सामाजिक कामों में योगदान
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मृणालिनी साराभाई अपनी नृत्य प्रस्तुतियों के माध्यम से सामाजिक मुद्दों को प्रभावशाली और विचारशील ढंग से उजागर करने के लिए जानी जाती थीं। उन्होंने दहेज के मुद्दे पर विशेष रूप से समाज में संदेश देने का काम किया। अपने नृत्य के माध्यम से इस सामाजिक कुप्रथा को दर्शाने का काम किया। उस समय ऐसे मुद्दों पर कोई गीत उपलब्ध नहीं थे, इसलिए उन्होंने केवल संगीत का उपयोग किया, क्योंकि उनके अनुसार संगीत के माध्यम से भावनाएं अधिक प्रभावशाली और आसानी से दर्शकों तक पहुंच सकती थीं। बतौर कलाकार उन्होंने समाज में होने वाली हर कुरीति असहिष्णुता, जाति-आधारित भेदभाव और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया। उन्होंने इन विषयों को अपनी कोरियोग्राफ़ी के माध्यम से प्रस्तुत कर, दर्शकों तक सशक्त संदेश पहुंचाया। साल 1977 में उन्होंने अपनी प्रस्तुति चंडालिका के माध्यम से अस्पृश्यता का मुद्दा उठाया। अपनी कोरियोग्राफ़ी ताशेर देश (Kingdom of Cards) में उन्होंने कथकली के माध्यम से विभिन्न सामाजिक अन्यायों के खिलाफ एक सांकेतिक विरोध प्रदर्शित किया।
इसके अलावा, उन्होंने बलात्कार, आदिवासियों के प्रति भेदभाव और उत्पीड़न जैसे मुद्दों को भी अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से उजागर किया। साल 1985 में अपनी प्रस्तुति गंगा के माध्यम से उन्होंने गंगा नदी के प्रदूषण की समस्या को दर्शाया। मृणालिनी ने अपने नृत्य प्रस्तुतियों में पारंपरिक वस्त्रों और हस्तशिल्प का भी उपयोग किया ताकि स्वदेशी शिल्प और कला का प्रचार-प्रसार हो सके। मृणालिनी साराभाई ने 1949 में अहमदाबाद, गुजरात में दर्पणा अकादमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की स्थापना की। यह अकादमी भारतीय शास्त्रीय नृत्य, संगीत, रंगमंच और लोककला के प्रशिक्षण और संरक्षण का केंद्र बनी। इस अकादमी में भरतनाट्यम, कथकली, मोहिनीअट्टम और अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के साथ-साथ थिएटर और कला के अन्य रूपों का प्रशिक्षण दिया जाता है। दर्पणा अकादमी केवल नृत्य सिखाने तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर संवाद का एक माध्यम भी बनी। वर्तमान में दर्पणा अकादमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स मृणालिनी साराभाई की कला, दर्शन और सामाजिक प्रतिबद्धता की विरासत के रूप में खड़ी है।
पुरस्कार
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मृणालिनी ने तीन सौ से अधिक नृत्य-नाटकों की रचना और निर्देशन किया। उन्होंने कई उपन्यास, कविताएं, नाटक और बच्चों की कहानियां भी लिखीं। वे गुजरात राज्य हस्तशिल्प और हथकरघा विकास निगम लिमिटेड की अध्यक्ष रहीं। इसके अलावा, वे गांधीवादी सिद्धांतों के प्रचार के लिए समर्पित सर्वोदय इंटरनेशनल ट्रस्ट की ट्रस्टी और नेहरू फाउंडेशन फॉर डेवलपमेंट के अध्यक्ष पद पर भी रह चुकी थीं। मृणालिनी साराभाईः द वॉयस ऑफ हार्ट के नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी है। देश और दुनिया में मृणालिनी साराभाई को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। साल 1965 में भारत सरकार ने पद्मश्री और 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया। उन्हें 1997 में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, नॉर्विच, यूके से डॉक्टर ऑफ लेटर्स की मानद उपाधि प्रदान की गई। उन्हें फ्रांसीसी संस्था Archives Internationales de la Danse से पदक और डिप्लोमा मिला। साथ ही, मैक्सिकन सरकार ने उनकी कोरियोग्राफी के लिए गोल्ड मेडल प्रदान किया। उन्हें 1994 में नई दिल्ली स्थित संगीत नाटक अकादमी से फैलोशिप मिली, जो कला के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।
मृणालिनी साराभाई ने 1949 में अहमदाबाद, गुजरात में दर्पणा अकादमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स की स्थापना की। यह अकादमी भारतीय शास्त्रीय नृत्य, संगीत, रंगमंच और लोककला के प्रशिक्षण और संरक्षण का केंद्र बनी। इस अकादमी में भरतनाट्यम, कथकली, मोहिनीअट्टम और अन्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों के साथ-साथ थिएटर और कला के अन्य रूपों का प्रशिक्षण दिया जाता है।
साल 2012 में मृणालिनी साराभाई के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म “Mrinalini Sarabhai: The Artist and Her Art” रिलीज़ हुई। इसका निर्देशन यदवन चंद्रन ने किया था और पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट ने इसका निर्माण किया था। मृणालिनी साराभाई केरल सरकार के वार्षिक पुरस्कार निशागंधी पुरस्कारम की पहली प्राप्तकर्ता बनीं। यह पुरस्कार उन्हें 2013 में दिया गया। साल 2014 में धीरूभाई ठाकुर सव्यसाची सरस्वत पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 21 जनवरी 2016 में अहमदाबाद में उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। मृणालिनी साराभाई ने अपनी कला और सामाजिक प्रतिबद्धता के माध्यम से भारतीय संस्कृति और नृत्य को वैश्विक पहचान दिलाई।
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