इंटरसेक्शनलजाति मैनुअल स्कैवेंजिंग पर सार्वजनिक सुनवाई: न्याय की पुकार और सरकार की खामोशी

मैनुअल स्कैवेंजिंग पर सार्वजनिक सुनवाई: न्याय की पुकार और सरकार की खामोशी

रिपोर्ट के मुताबिक आनंद विहार के 24 वर्षीय सेक्योरिटी गार्ड को बिना किसी सुरक्षा उपकरण और प्रशिक्षण के नाले के चैंबर की सफाई करने के लिए मजबूर किया गया था। 21 फीट गहरे चैंबर में बेहोश पाए जाने के बाद युवक की मौत हो गई। उनके परिवार को उनकी मौत के बाद न कोई सहायता मिली और न ही मामले की जांच की गई।

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक अपमानजनक और खतरनाक काम है, जिसे देश में 1993 और और फिर 2013 में कानूनन प्रतिबंधित किया गया है। इसके बावजूद जातिवादी व्यवस्था के कारण यह प्रथा आज भी जारी है। इस काम में दलित समुदाय सबसे अधिक प्रभावित है, जो बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई कर अपनी जान जोखिम में डालते हैं। यह प्रथा सतत विकास लक्ष्य-8 (सम्मानजनक कार्य और आर्थिक वृद्धि) की प्राप्ति में बाधक है। दिसंबर 2024 में ‘दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच’ (DASAM) ने मैनुअल स्कैवेंजिंग पर एक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की। ‘फ्रॉम द डेप्थ्स ऑफ नेग्लेक्ट: ए पब्लिक हियरिंग फॉर सीवर वर्कर राइट्स’ शीर्षक से हुई इस सुनवाई में कई संगठनों ने भाग लिया। रिपोर्ट में दिल्ली के आनंद विहार, रोहिणी, नोएडा, सुल्तानपुरी, सरिता विहार, फ़रीदाबाद और सरोजिनी नगर में सैनिटेशन कर्मचारियों की मौतों की बढ़ती घटनाओं को उजागर किया गया।

सरकार की जवाबदेही की कमी

इस जन सुनवाई में मैनुअल स्कैवेंजिंग के काम में सुधार के जरूरी बड़े मुद्दों और बाधाओं को सामने लाया गया। रिपोर्ट के अनुसार, इसमें होने वाली मौत के मामले अक्सर कम रिपोर्ट किए जाते हैं। साथ ही, होने वाली मौत की जांच कम होते हैं और पारदर्शी नहीं होते। मौत से जुड़ी जानकारियों, नियुक्तिकर्ताओं और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही की जरूरी जानकारियों का खुलासा नहीं किया जाता है। मैनुअल स्कैवेंजिंग करते हुए मरने वाले श्रमिकों को अक्सर आधिकारिक तौर पर मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, जिससे उनके परिवार उचित मुआवजे से भी वंचित रह जाते हैं। इस काम की प्रकृति के कारण ख़राब होते स्वास्थ्य जैसी स्थिति कर्मचारियों को सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिये पर जीने को मजबूर करती है। इसके कारण वे अक्सर सिस्टम की मार खाते रहते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इसमें होने वाली मौत के मामले अक्सर कम रिपोर्ट किए जाते हैं। साथ ही, होने वाली मौत की जांच कम होते हैं और पारदर्शी नहीं होते। मौत से जुड़ी जानकारियों, नियुक्तिकर्ताओं और सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही की जरूरी जानकारियों का खुलासा नहीं किया जाता है।

जातिवादी व्यवस्था और मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा

तस्वीर साभार: Maktoobmedia.com

हालांकि दिल्ली जल बोर्ड जैसी सरकारी एजेंसियां ​​अक्सर मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रमुख नियुक्तिकर्ता होती हैं, उनका रोजगार निजी ठेकेदारों द्वारा कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर किया जाता है। ऐसे में उन्हें कई सामाजिक लाभ से वंचित कर दिया जाता है और जहां बिना कोई स्थिरता प्रदान किए बिना उन्हें मनमाने ढंग से बर्खास्त करने की सम्भावना बनी रहती है। बार-बार देर से भुगतान, शोषणकारी प्रथाएं, असुरक्षित स्थितियां और न्याय पाने के लिए लगातार संघर्ष की परिस्थितियों से उनकी वित्तीय तनाव और भी बढ़ गया है। जाति की संस्कृति से शुरू हुआ सोशल स्टिग्मा उनके अस्तित्व के साथ गहराई से जुड़ा रहता है। यह सोशल स्टिग्मा इन समुदायों को सैनिटेशन का कार्य में जबरन धकेलते हैं और उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी कार्य से जोड़े रखते हैं। सार्वजनिक सुनवाई की रिपोर्ट में मैनुअल स्कैवेंजिंग के काम में लगे लोगों के परिवारों और कॉन्ट्रैक्ट पर सीवर श्रमिकों से विस्तृत बयान एकत्र किए गए थे।

पीड़ितों के परिवारों के बयान और अनुभव

रिपोर्ट के मुताबिक आनंद विहार के 24 वर्षीय सेक्योरिटी गार्ड को बिना किसी सुरक्षा उपकरण और प्रशिक्षण के नाले के चैंबर की सफाई करने के लिए मजबूर किया गया था। 21 फीट गहरे चैंबर में बेहोश पाए जाने के बाद युवक की मौत हो गई। उनके परिवार को उनकी मौत के बाद न कोई सहायता मिली और न ही मामले की जांच की गई। उनकी मौत के बाद उनकी गर्भवती पत्नी के पास कोई वित्त साधन नहीं रहा। उनका मानना ​​है कि उसकी मौत लापरवाही के वजह से हुई और इसलिए वे पूरी जांच और न्याय की मांग कर रहे हैं। फरीदाबाद के दो भाइयों की माँ ने बयान दिया कि फरीदाबाद में सीवर टैंक की सफाई करते समय उसके दोनों बेटों की एक ही दुर्घटना में मौत हो गई। अब उनका कोई सहारा नहीं बचा। उन्हें कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली। अब वह लोगों के घरों में काम करके अपना गुजारा कर रही है।

हालांकि दिल्ली जल बोर्ड जैसी सरकारी एजेंसियां ​​अक्सर मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रमुख नियुक्तिकर्ता होती हैं, उनका रोजगार निजी ठेकेदारों द्वारा कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर किया जाता है। ऐसे में उन्हें कई सामाजिक लाभ से वंचित कर दिया जाता है और जहां बिना कोई स्थिरता प्रदान किए बिना उन्हें मनमाने ढंग से बर्खास्त करने की सम्भावना बनी रहती है।

वहीं भाग्य विहार के व्यक्ति को 2019 में सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैसों के संपर्क में आने के बाद लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने घेर लिया था। हादसे के दौरान तीन अन्य कर्मचारियों की मौके पर ही मौत हो गई थी। बिना किसी उपकरण के, उस व्यक्ति को मजबूरन सेप्टिक टैंक में उतरना पड़ा। खराब होती स्वास्थ्य संबंधी स्थिति के कारण साल 2024 में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद उनके परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। वहीं कड़कड़डूमा के एक व्यक्ति एक अन्य मैनुअल स्कैवेंजर को बचाने की कोशिश करते समय ज़हरीले धुएं से गंभीर रूप से चपेट में आ गए और जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई। उन्हें और अन्य लोगों को कथित तौर पर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा नियुक्त एक निजी ठेकेदार ने काम पर रखा था। हालांकि डीडीए ने इस बात से इनकार किया है। उनके परिवार को अधिकारियों से कोई सहायता नहीं मिली है।

कान्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मैनुअल स्कैवेंजर के अनुभव

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

दिल्ली के एक युवक ने दिल्ली जल बोर्ड में 15 साल तक काम किया। उन्हें बिना किसी नोटिस के निकाल दिया गया और ढाई महीने तक उनको कोई वेतन भी नहीं दिया गया। इसके बाद इस मुद्दे को दूसरे विभाग में स्थानांतरित कर दिया गया। वह सीवर सफाई विभाग में वापस से नौकरी करना चाहते हैं। वहीं दिल्ली के ही दूसरे व्यति जो सीवर कर्मचारी हैं, कान्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। उन्हें दिल्ली जल बोर्ड ने नौकरी से निकाल दिया था, जिसके बाद उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। अब वह संघर्ष कर रहे हैं और उनकी मांग है कि कान्ट्रैक्ट पर काम कर रहे सभी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन के साथ परमानेंन्ट किया जाए। एक अन्य केस में एक व्यक्ति 11 साल से कान्ट्रैक्ट पर सेनिटेशन कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे थे। उन्हें भी दिल्ली जल बोर्ड ने नौकरी से बर्खास्त कर दिया है। वह वेतन न मिलने के कारण संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें अपनी नौकरी वापस चाहिए और साथ ही वेतन। इसी तरह, दिल्ली के अन्य युवक बताते हैं कि 10 साल तक उन्होंने कान्ट्रैक्ट पर सीवर कर्मचारी के तौर पर काम किया था। उन्हें बिना किसी नोटिस के नौकरी से निकाल दिया गया। अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए वे नौकरी और न्यूनतम वेतन तलाश रहे हैं।

भाग्य विहार के व्यक्ति को 2019 में सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैसों के संपर्क में आने के बाद लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं ने घेर लिया था। हादसे के दौरान तीन अन्य कर्मचारियों की मौके पर ही मौत हो गई थी।

नियुक्तिकर्ताओं को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराने की मांग

ऊपर दिए सभी केसों का ब्योरा खतरनाक स्थितियों, सुरक्षा उपकरणों की कमी और सरकार और निजी संस्थाओं की लगातार लापरवाही को उजागर करते हैं। इन बयानों के आधार पर जूरी सदस्यों ने इससे जुड़ी टिप्पणियों और सिफारिशों की एक सूची तैयार की। उन्होंने तुरंत कार्रवाई की मांग की, जिसमें कर्मचारियों की मौत और आघात के लिए नियुक्तिकर्ताओं को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराना, समय पर और पर्याप्त मुआवजा सुनिश्चित करना, हाशिए के समूहों के प्रतिनिधित्व वाली एक निगरानी समिति का गठन और सीवर सफाई का मशीनीकरण शामिल है। इन सिफारिशों में कान्ट्रैक्ट कर्मियों को परमानेंन्ट कर्मचारी बनाने, न्यूनतम मजदूरी प्रदान करने और सफाई काम के आस-पास सोशल स्टिग्मा का अंत करने की भी मांग की गई है। जुलाई 2024 को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री ने कहा था कि पिछले पांच सालों में देश में मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा से जुड़ी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है।

तस्वीर साभार: Hindustan Times

यहां मैनुअल सफाई कर्मियों के पुनर्वास के लिए स्वरोजगार योजना (SRMS) के बारे में बात करना जरूरी है, जिसके बजट आवंटन में बड़े उतार-चढ़ाव देखा गया है। साल 2019-20 में इसके बजट 99.93 करोड़ रुपये से घटकर 2020-21 में 30 करोड़ किया गया था। साल 2022-23 में इसे बढ़ाकर 70 करोड़ रुपये और फिर पूरी तरह समाप्त कर दिया गया था। साल 2023 में SRMS की जगह  ‘नेशनल एक्शन फॉर मैकेनाइज्ड सैनिटेशन इकोसिस्टम’ (NAMASTE) ने ले ली। इसे साल 2023-26 तक यानी तीन वर्षों के लिए 349.73 करोड़ रुपये के बजट आवंटन के साथ योजनाबद्ध की गई है। राजनीतिक शब्दजाल के तहत, इसमें सफाई कर्मचारियों के सशक्तिकरण के लिए उपलब्ध मौजूदा धन को प्रभावी रूप से निजी उद्यमों को सब्सिडी प्रदान करने के लिए निर्धारित किया है। हालांकि इस बजट का उपयोग चिंताजनक रूप से कम रहा है। इस योजना के तहत, वित्त वर्ष 2023-24 में 97.41 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। लेकिन केवल 30.06 करोड़ रुपये का उपयोग किया गया। वित्त वर्ष 2024-25 में 116.94 करोड़ रुपये आवंटित किए गए लेकिन केवल 50 करोड़ रुपये का ही उपयोग किया गया।

वहीं दिल्ली के ही दूसरे व्यति जो सीवर कर्मचारी हैं, कान्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। उन्हें दिल्ली जल बोर्ड ने नौकरी से निकाल दिया था, जिसके बाद उनके पास आय का कोई साधन नहीं है। अब वह संघर्ष कर रहे हैं और उनकी मांग है कि कान्ट्रैक्ट पर काम कर रहे सभी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन के साथ परमानेंन्ट किया जाए।

मैनुअल स्कैवेंजर्स का पुनर्वास

मैनुअल स्कैवेंजर्स एक्ट, 2013 के तहत सैनिटेशन काम के मशीनीकरण और मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के संबंध में बहुत कुछ कहा जाता है। जब भी मौत की खबरें आती हैं, तो मशीनीकरण की घोषणाएं ध्यान का केंद्र बन जाती हैं। फिर भी यह बुनियादी मानवाधिकार और मानवता को दरकिनार कर देता है। NHRC ने जनवरी 2025 में मैनुअल स्कैवेंजर्स के अधिकारों और सम्मान पर एक ओपन हाउस चर्चा की मेजबानी की है। ऋण व्यवस्था, जागरूकता और रोबोटिक्स की चर्चाओं के बीच, गणमान्य व्यक्तियों के समूह ने जमीनी स्तर के संगठनों के साथ जुड़ने की जरूरत बयान की। जन सुनवाई के दौरान इस बात पर आम सहमति बनी थी कि ऐसी गतिविधियों की तत्काल जरूरत को समझा जाए और सैनिटेशन कर्मचारियों की दुर्दशा को प्रत्यक्ष रूप से सामने लाया जाए।

मैनुअल स्कैवेंजिंग जैसी अमानवीय प्रथा केवल जातिवादी व्यवस्था की गहरी जड़ें ही नहीं दिखाती, बल्कि सरकारी असंवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को भी उजागर करती है। ‘दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच’ की जन सुनवाई और पीड़ित परिवारों की गवाही से स्पष्ट है कि मैनुअल स्कैवेंजर्स के अधिकारों और पुनर्वास की दिशा में मौजूदा कानूनों और योजनाओं का क्रियान्वयन बेहद लचर है। चाहे वह SRMS योजना का विफलता भरा बजट प्रबंधन हो या नमस्ते योजना का अधूरा कार्यान्वयन, हर कदम पर मैनुअल स्कैवेंजर्स के जीवन और अधिकारों के साथ अन्याय हुआ है। जरूरत है कि सरकार और प्रशासन मैनुअल स्कैवेंजिंग से जुड़ी मौतों की जिम्मेदारी लें और दोषी नियुक्तिकर्ताओं को आपराधिक रूप से उत्तरदायी ठहराएं। साथ ही, कान्ट्रैक्ट की आड़ में श्रमिकों के शोषण पर रोक लगाते हुए उन्हें स्थायी कर्मचारी के रूप में मान्यता दी जाए। मशीनीकरण और पुनर्वास योजनाओं को जमीनी हकीकत से जोड़ते हुए, बजट आवंटन और खर्च में पारदर्शिता की भी तत्काल जरूरत है।

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