स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य प्रसव के बाद पीरियड्स और यौन स्वास्थ्य पर बातचीत क्यों जरूरी है?

प्रसव के बाद पीरियड्स और यौन स्वास्थ्य पर बातचीत क्यों जरूरी है?

शिशु को किस प्रकार से स्तनपान कराया जा रहा है, यह पीरियड्स के दोबारा शुरू होने को प्रभावित करता है। जो माँएं बच्चों को बोतल से दूध पिलाती हैं, या स्तनपान और बोतल दोनों से दूध पिलाने का काम करती हैं, उन्हें बच्चे के जन्म देने के पांच सप्ताह बाद ही पीरियड्स शुरू हो सकता है।

प्रसव महिलाओं की गर्भावस्था का सबसे आखिरी लेकिन एक महत्वपूर्ण चरण है। अक्सर देखा गया है कि प्रसव के बाद महिलाओं को विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनका समय पर उपचार जरूरी होता है। हालांकि, कई बार इन समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रसव के बाद महिलाओं की देखभाल की दर पांच प्रतिशत से भी कम है, जबकि अधिकांश मातृ मृत्यु इसी अवधि में होती है। विशेषज्ञों के अनुसार, प्रसव के बाद 42 दिनों तक विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। यदि इस दौरान उचित ध्यान न दिया जाए, तो महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

प्रसव के बाद शरीर में कई बदलाव होते हैं, जिनमें शारीरिक कमजोरी, हार्मोनल परिवर्तन और मानसिक तनाव और अवसाद शामिल हैं। इसलिए, नवजात शिशु की देखभाल के साथ-साथ माँओं की सेहत का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए और चिकित्सकीय परामर्श लेना अत्यंत जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान जो सबसे महत्वपूर्ण बलदाव आता है, वो है पीरियड्स का बंद होना। इसलिए, प्रसव के बाद महिलाओं का अपने पहले पीरियड्स को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। गर्भावस्था के दौरान लगभग नौ महीने तक पीरियड्स नहीं होते। इसलिए प्रवास के बाद, चिंता जायज़ है कि आखिर कब तक पीरियड्स शुरू होंगे या उसका अनुभव कैसा होगा। विशेषज्ञों के अनुसार यह अवधि हर महिला के लिए भिन्न होती है और इसका अनुभव भी अलग हो सकता है।

प्रसव के बाद शरीर में कई बदलाव होते हैं, जिनमें शारीरिक कमजोरी, हार्मोनल परिवर्तन और मानसिक तनाव और अवसाद शामिल हैं। इसलिए, नवजात शिशु की देखभाल के साथ-साथ माँओं की सेहत का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए और चिकित्सकीय परामर्श लेना अत्यंत जरूरी है।

स्तनपान पर निर्भर करता है प्रसव के बाद पीरियड्स

तस्वीर साभार: Canva

प्रसव के बाद पीरियड्स का फिर से शुरू होना, मुख्य रूप से स्तनपान पर निर्भर करता है। शिशु को किस प्रकार से स्तनपान कराया जा रहा है, यह पीरियड्स के दोबारा शुरू होने को प्रभावित करता है। जो माँएं बच्चों को बोतल से दूध पिलाती हैं, या स्तनपान और बोतल दोनों से दूध पिलाने का काम करती हैं, उन्हें बच्चे के जन्म देने के पांच सप्ताह बाद ही पीरियड्स शुरू हो सकता है। वहीं, यदि माँ अपने शिशु को पूरी तरह से स्तनपान कराती हैं, बिना बोतल, डमी (पैसिफायर), या किसी अन्य आहार की मदद लिए बिना काम चलाती हैं, तो उनका पीरियड्स आम तौर तब तक शुरू नहीं हो होता, जब तक वे स्तनपान बंद नहीं कर देतीं या बच्चे को ठोस आहार देना शुरू नहीं करतीं। इसका कारण यह है कि स्तनपान के दौरान पैदा होने वाले हार्मोन उन हार्मोनों के निर्माण को रोक सकते हैं जो पीरियड्स को नियंत्रित करते हैं।

प्रसव के बाद पीरियड्स का समय अलग-अलग हो सकता है  

प्रसव के बाद पीरियड्स का समय हर महिला के लिए अलग होता है। यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि वे अपने शिशु को कैसे दूध पिला रही हैं और उनके शरीर में हार्मोनल बदलाव किस प्रकार से हो रहे हैं। यदि पीरियड्स में देरी हो रही हो या कोई असामान्यता लगे, तो डॉक्टर से परामर्श लेना जरूरी होता है।प्रसव के बाद पीरियड्स का शुरू होना हर महिला के लिए समान नहीं होता। पीरियड्स और स्तनपान के बीच का संबंध पूरी तरह से हार्मोनल परिवर्तन के कारण होता है। प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन, जो स्तन में दूध उत्पादन को बढ़ावा देता है, प्रजनन हार्मोनों को दबा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, शरीर अंडोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) करने में असमर्थ हो जाता है और पीरियड्स रुक सकता है।

प्रसव के बाद पीरियड्स का फिर से शुरू होना, मुख्य रूप से स्तनपान पर निर्भर करता है। शिशु को किस प्रकार से स्तनपान कराया जा रहा है, यह पीरियड्स के दोबारा शुरू होने को प्रभावित करता है। जो माँएं बच्चों को बोतल से दूध पिलाती हैं, या स्तनपान और बोतल दोनों से दूध पिलाने का काम करती हैं, उन्हें बच्चे के जन्म देने के पांच सप्ताह बाद ही पीरियड्स शुरू हो सकता है।

यदि प्रसव के बाद पीरियड्स शुरू हो जाता है, तो यह स्तन के दूध की मात्रा और गुणवत्ता को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है। हार्मोनल बदलावों के कारण ब्रेस्टमिल्क के स्वाद में परिवर्तन हो सकता है, जिससे माँ और शिशु दोनों को फर्क महसूस हो सकता है। पीरियड्स के दौरान कुछ महिलाओं को दूध की आपूर्ति में कमी का भी अनुभव हो सकता है। हालांकि, हर महिला के लिए ये बदलाव अलग-अलग होते हैं और सभी को एक जैसी समस्याएं नहीं होतीं। प्रसव के बाद महिलाओं को कई तरह की शारीरिक और हार्मोनल चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। इसलिए, प्रसव के तुरंत बाद सही देखभाल और उपचार अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

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यह सवाल उठता है कि प्रसव के बाद की देखभाल सेवाओं तक सभी महिलाओं की पहुंच कैसे सुनिश्चित की जाए। विकसित देशों में प्रसव के बाद की देखभाल, मातृत्व सेवाओं का एक अनिवार्य हिस्सा होती है। लेकिन विकासशील देशों में ऐसी सुविधाएं बेहद सीमित हैं, जिससे महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान शरीर में कई परिवर्तन होते हैं, जो महिलाओं के पीरियड्स और यौन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने और उचित देखभाल सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं को सही समय पर सही चिकित्सा और मानसिक सहयोग मिल सके।

प्रसव के बाद यौन स्वास्थ्य पर असर 

आमतौर पर देखा जाता है कि प्रसव के बाद महिलाओं के जीवन में कई प्रकार के बदलाव आते हैं। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन कई बार यह शारीरिक और मानसिक चुनौतियों के साथ आती है। प्रसव के बाद जीवनशैली में परिवर्तन होता है, जिसे अपनाना आवश्यक होता है। इस दौरान महिलाओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। खासकर, यौन संबंधों को लेकर कई महिलाओं में चिंता बनी रहती है। अक्सर यह सवाल उठता है कि प्रसव के बाद दोबारा यौन संबंध कब बनाया जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है। लेकिन, यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रसव किस प्रकार हुआ है और महिला की रिकवरी की प्रक्रिया कैसी चल रही है। प्रसव के बाद महिलाओं में थकान होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि कोई असहजता या दर्द महसूस हो रहा है, तो उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। आमतौर पर प्रसव के बाद लगभग छह सप्ताह तक रक्तस्राव जारी रहता है। साथ ही इसमें अनियमितता जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। ये महिलाओं के यौन स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

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इसलिए, शरीर को पूरी तरह ठीक होने के लिए पर्याप्त समय देना जरूरी है। प्रसव के बाद पीरियड्स की शुरुआत और यौन संबंधों को लेकर हर महिला का अनुभव अलग होता है। कई महिलाओं को इस दौरान मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है। गर्भावस्था एक जटिल प्रक्रिया है, जिसके हर चरण में उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, गर्भावस्था के दौरान की देखभाल पर कम ध्यान दिया जाता है और केवल प्रसव के बाद की देखभाल को प्राथमिकता दी जाती है। वहीं, प्रसव के बाद उचित उपचार न मिलने या महिलाओं को घरेलू कामों से आराम न मिल पाने के कारण जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि प्रसव के बाद महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए उचित देखभाल, पोषण और आराम दिया जाए।

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