समाजपर्यावरण पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय है इन महिला पर्यावरणविद् का काम

पर्यावरण संरक्षण के लिए उल्लेखनीय है इन महिला पर्यावरणविद् का काम

प्रकृति प्रेम और निर्भरता के चलते भारतीय महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया है। क्योंकि पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण महिलाओं के जीवन और रोज़मर्रा के काम में सीधा असर डालता है। हम यहां ऐसी ही पांच सशक्त भारतीय महिलाओं की बात करेंगे, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दिया है।

महिलाओं का पर्यावरण के साथ एक गहरा नाता है, क्योंकि महिलाएं अपने जीवन यापन और रोज़मर्रा के कामकाजों के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा निर्भर है। पुरुष प्रधान परिवार और समाज के चलते, घरेलू कामों में जैसे खाना पकाने के लिए ईंधन, पानी, और पशुओं के लिए चारा आदि चीज़ें महिलाओं को ही जुटानी पड़ती है, और यह सब उन्हें पर्यावरण से ही मिलता है, जिसके चलते वह पर्यावरण में अपने रोजमर्रा की ज़रूरतों और जीवन के लिए निर्भर रहतीं हैं। इस तरीके से महिलाएं प्राकृतिक संसाधनों की ज़रूरत और जीवन में महत्वता को ध्यान में रखकर बखूबी से उनको व्यवस्थित रखने में सक्रिय भूमिका निभाती है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट (1991) के अनुसार महिलाओं की प्राकृतिक संसाधनों जैसे मिट्टी, पानी, जंगल और प्राक्रतिक ऊर्जा को व्यवस्थित बनायें रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

वहीं दूसरी तरफ भारतीय सांस्कृतिक परंपराएं प्रकृति से जुड़े लोक पर्व भी महिलाओं को प्रकृति से सीधे जोड़ते है। इस सब के चलते महिलाएं प्रकृति की महत्वता को ज्यादा समझती है। इस प्रकृति प्रेम और निर्भरता के चलते भारतीय महिलाओं ने पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया है। क्योंकि पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण महिलाओं के जीवन और रोज़मर्रा के काम में सीधा असर डालता है। हम यहां ऐसी ही पांच सशक्त भारतीय महिलाओं की बात करेंगे, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दिया है।

सुगाथा कुमारी

तस्वीर साभारः Yahoo.com

सुगाथा कुमारी को एक प्रसिद्ध कवयित्री, सक्रिय पर्यावरण कार्यकर्ता और नारीवादी समाजिक कार्यकर्ता के रूप में देश और दुनिया भर में जाना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में कई पर्यावरण संरक्षण अभियानों और फेमिनिस्ट आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिनमें केरल राज्य में साइलेंट वैली बचाओ अभियान, कृष्णावनम आंदोलन जैसे पर्यावरण संरक्षण अभियान चला कर क्रान्तिकारी बदलाव लाए और इतना ही नहीं “अभया” नारीवादी जैसे समाजिक कार्यों को करके महिलाओं को एक सुरक्षित जीवन देने का भी काम किया। उनका पर्यावरण के क्षेत्र में सबसे अहम योगदान (1970-1983) का ‘’साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन’’ में है,‌ इसमें उन्होंने एक सक्रिय पर्यावरण प्रचारक और कार्यकर्ता के रूप में काम किया और सशक्त रूप से  इस आंदोलन का नेतृत्व भी किया था। उन्होंने  इस अभियान में “शांति घाटी बचाओ” (सेव साइलेंट वैली Save Silent Valley) का नारा भी दिया था। शांति घाटी को बचाने के लिए उन्होंने कई कविताएं भी लिखी जिन्होंने आंदोलन में लोगो को जागरूक बनाया, जिसमें उनके द्वारा मलयालम भाषा में लिखी गई कविता मरातिनु स्तुति (Marathinu Stuthi : ode to a Tree) साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन में लोगों का प्रेरणा गीत बनी।

साइलेंट वैली नेशनल पार्क, केरल राज्य के पलक्कड़ जिले में एक ट्रॉपिकल सदाबहार जंगल जो की विभिन्न प्रकार की जीव -जंतु और आदिवासी लोगों का घर है – उस समय केरल राज्य विद्युत बोर्ड (केएसईबी) द्वारा एक जलविद्युत बांध की मेजबानी के लिए प्रस्तावित किया गया था। लेकिन एक बड़ी संख्या में पर्यावरण कार्यकर्ताओं और आदिवासी लोगों ने इसको बचाने के लिए आवाज उठाई और सरकार के खिलाफ आंदोलन किया,  सुगाथा कुमारी के नेतृत्व में यह साइलेंट वैली  बचाओ अभियान सफल रहा, अंत में सरकार ने  15 नवंबर 1984 को इसे एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दे दिया गया और इसे संरक्षित पार्क बना दिया गया। प्रकृति प्रेम के चलते सुगाथा कुमारी ने अपनी ज्यादातर कविताएं मदर नेचर को लेकर लिखी, उन्हें अपनी कविता पथिरापुक्कल (flowers of midnight) के लिए 1968 में केरला साहित्य अकादमी अवार्ड दिया गया, वहीं रचना रत्रिमाझा ( Night Rain) के लिए 1978 में केंद्रीय साहित्य अकादमी अवार्ड मिला। उनको प्रक्रति से जुड़ी साहित्यिक कृतियों , पर्यावरण संरक्षण कार्यों और सामाजिक कार्यों  आदि के लिए 2006 में भारत सरकार की तरफ से पदम श्री से सम्मानित किया गया था।ऐसे उन्होंने अनगिनत अवार्ड अपने कार्यों के लिए हासिल किये थे। 23 दिसंबर 2020 में कोविड -19 के चलते उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन आज भी वह अपने पर्यावरण संरक्षण कार्यो और नारीवादी सामाजिक कार्यों आदि के लिए लोगों में एक प्रेरणा स्रोत है

राधा बहन भट्ट

तस्वीर साभारः Nature’s callVisit

    उत्तराखंड से आने वाली 91 वर्षीय राधा बहन भट्ट एक पर्यावरण समाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी और पहचानी जाती हैं। उन्होंने गांधीवादी विचारों के साथ 1957 के भूदान आंदोलन में भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना शुरू किया था। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए अपने जीवन में बहुत सारे काम किये , जिनमें उनका सबसे अहम् योगदान उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान 2008 में है, इसके लिए उन्होंने नदियों पर बनने वाले कई हाइड्रोक्लोरिक प्रोजेक्ट के खिलाफ अभियान चला‌ कर, गंगा और उसकी सहायक नदियों के बाहों को इस प्रोजेक्ट से होने वाले खतरे से लोगों को जागरूक करके, हिमालय क्षेत्रीय इलाको सुरक्षित किया था। जो कि इस प्रोजेक्ट के चलते नदियों के पानी के बाहों को कम कर सकता था। और जिससे पर्यावरण, जंगल, पानी, पेड़ पौधो और स्थानीय लोगों के जीवन में बुरा प्रभाव पड़ता। इसके चलते राधा बहन ने 2000 किलोमीटर की लंबी पद यात्रा करके, उत्तराखंड के लोगों के जल अधिकारों के लिए आवाज उठाई। इतना ही नहीं इन्होंने हिमालय क्षेत्र में पहाड़ की कटाई के खिलाफ भी आवाज उठाई और उन्होंने इस संघर्ष  से 50 से ज्यादा गांवों को लैंडस्लाइड जैसी खतरनाक प्राकृतिक आपदा से सुरक्षित किया।

    राधा बहन भट्ट को इन सभी साहसिक पर्यावरण संरक्षण कार्यो के लिए इंदिरा प्रियदर्शिनी एनवायरमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा जमनालाल बजाज पुरस्कार, गोदावरी गौरव, मुनि सतबल पुरस्कार और कुमाऊं गौरव पुरस्कार जैसे पुरस्कार भी उन्हें उनके सामाजिक और पर्यावरण संरक्षणों कार्यों के लिए मिले हैं। पर्यावरण संरक्षण कार्यो के अलावा राधा बहन भट्ट, बालिका शिक्षा और महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक कार्यों को गांधीवादी विचारधारा के साथ कर रही है। इस विचारधारा के कारण उन्हें पहाड़ की गांधी के नाम से भी जाना जाता है। और हाल ही में इस गणतंत्र दिवस में भारत सरकार ने उनका नाम पदम श्री के लिए चयनित किया है।

    अलमित्रा पटेल

    तस्वीर साभारः lndian Express

    अलमित्रा पटेल पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ लड़ने वाली एक भारतीय पर्यावरणविद् और पर्यावरण पॉलिसी अधिवक्ता है। उनका मुख्य काम पर्यावरण में कचरे से फैलने वाले प्रदूषण और गंदगी के लिए सरकार और लोगों को जागरूक करने का रहा है। कचरे की समस्या को लेकर उनका मानना है, कि कचरा जानवरों, जीवों, पक्षियों और इंसानों सबके लिए एक बड़ी समस्या है, और पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है। इस गंदगी और कचरे की समस्या से निपटने के लिए उन्होंने दो भारतीय स्वच्छता अभियानों में 1994 और 1995 के बीच सक्रिय रूप से काम किया और स्वच्छ अपशिष्ट प्रबंधन को लागू करने के लिए जनहित याचिका दायर की। जिसके लिए उनकी 1996 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए सुप्रीम कोर्ट समिति में नियुक्त हुई। अलमित्रा पटेल की देश के पहले नगर पालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम का ड्राफ्ट तैयार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है।इतना ही नहीं उन्होंने 1970 के दशक  में पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय रुप से जुड़ी जिसमें उन्होंने गिर शेरों को बचाने, उल्सूर झील के संरक्षण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भी काम किया है। सन 1959 अलमित्रा पटेल एमआईटी से स्नातक करने वाली पहली भारतीय महिला इंजीनियर हैं।

    राहीबाई सोमा पोपेरे

    तस्वीर साभारः YourStoryVisit

    आदिवासी महिला किसान राहीबाई सोमा पोपेरे 154 से अधिक किस्मों के देशी बीजों के संरक्षण की वजह से “सीड मदर” ऑफ़ इंडिया, “सीड वुमन”‌ और “बीज माता”,आदि नामों से जानी जाती है। 61 वर्षीय राहीबाई सोमा पोपरे महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले आदिवासी ब्लॉक के कोम्बले गांव के महादेव कोली आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती है। वह पारंपरिक खेती करने में अधिक जोर देती हैं, क्योंकि उनका मानना है कि रासायनिक खादों का फसलों में उपयोग पर्यावरण, मिट्टी और हमारे स्वास्थ्य सबके लिए हानिकारक है। उनके हिसाब से स्वदेशी बीजों के इस्तेमाल से होने वाली फैसले कम पानी और हवा के सहयोग मात्र से ही हो जाती है। उसके लिए कीटनाशको और रासायनिक उर्वरक खादों‌ के इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं होती है। लेकिन वही हाइब्रिड फसलों के लिए अधिक पानी और कीटनाशक की आवश्यकता होती है और जिससे खेत की मिट्टी और हमारे स्वास्थ्य दोनों पर बुरा असर हो सकता है।

    पारंपरिक तरीके से खेती और फसल उत्पादन को लेकर राहीबाई सोमा पोपेरे है, इस तरीके से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी काम करने में मदद मिलेगी और देशी किस्मों के बीजों को संरक्षण करने में भी। आदिवासी महिला किसान के इस योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2020 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। उनके इस अनूठे काम के लिए उन्हें 2018 में बीबीसी 100 वुमन और नारी सशक्तिकरण जैसे अवार्ड मिले है।

    लिसिप्रिया कंगुजम

    तस्वीर साभारः The News Mil

    लिसिप्रिया कंगुजम एक 14 वर्षीय भारतीय बाल पर्यावरण कार्यकर्ता है, जो भारत के मणिपुर राज्य से आती है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सम्मेलनों में भाग लिया है, इसी के चलते वो 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में भी सम्मिलित हुई थी। उन्होंने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए भी आवाज उठाई और सक्रिय रूप से एक बाल कार्यकर्ता के रूप में जागरूकता अभियान भी किये है। उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक अभियानों और कार्यों के लिए, 2019 में डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम चिल्ड्रन अवार्ड, अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार और इंडिया पीस प्राइज से भी सम्मानित किया गया है।

    स्रोत:

    1. (PDF) ROLE OF WOMEN IN ENVIRONMENT CONSERVATION
    2. The Hindu
    3. Women at the Forefront of Environmental Conservation
    4. (PDF) THE RELATIONSHIP BETWEEN WOMEN AND ENVIRONMENT AND THE ROLE OF WOMEN FOR ENVIRONMENTAL PROTECTION IN INDIA
    5. She For Success
    6. Gaon Connection
    7. BBC News
    8. Lisipria Kangjuam has addressed the United Nations Climate Conference – 2019, now landed on the road against the air pollution in Delhi | Dainik Bhaskar

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