Skip to content
समाजख़बर ऑन-डिमांड घरेलू सेवाएं: गिग इकॉनमी में कब मिलेगी महिलाओं को सुरक्षा?

ऑन-डिमांड घरेलू सेवाएं: गिग इकॉनमी में कब मिलेगी महिलाओं को सुरक्षा?

साल 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑन-डिमांड घरेलू काम बढ़ने से उन श्रमिकों के खिलाफ़ भेदभाव और शोषण की समस्या और उजागर होती है, जो पहले से ही पारंपरिक घरेलू काम में असुरक्षित स्थिति में हैं। अर्बन कंपनी के विज्ञापन से ही यह साफ हो जाता है कि कैसे हजारों महिलाओं का अनौपचारिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भागीदारी के बावजूद, वह आसानी से ‘रिप्लेसिएबल’ हैं।

सोचिए जब आपकी घरेलू कामगार किसी कारण छुट्टी ले, या बीमार हो और आप अपने सारे कामों के बीच घर के काम मैनेज करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हों। इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनजर सेवा प्रदाता कंपनी अर्बन कंपनी और अब ब्रूम्स इंडिया ने 15 मिनट में इंस्टा घरेलू कामगार सेवा शुरू की है। अर्बन कंपनी ने यह सेवा ‘इंस्टा मेड’ के नाम से शुरू की थी लेकिन लेबर यूनियन की आलोचना के बाद, अब कंपनी ने इसे ‘इंस्टा हेल्प’ का नाम दे दिया है। 15 मिनट में इस इंस्टा सर्विस सेवा ने फिर से अनौपचारिक क्षेत्र के कामगार विशेषकर महिलाओं की उचित वेतन, सामाजिक और नौकरी की सुरक्षा पर बहस छेड़ दी है। 14 मार्च को, इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अर्बन कंपनी के काम करने के मॉडल की आलोचना की और इसे शोषणकारी बताया। यूनियन ने कर्मचारियों के लिए उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा, शोषण को रोकने के लिए विनियामक निगरानी और सुरक्षित काम की स्थितियों की मांग भी की।

साल 2018 की अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल कामकाजी महिलाओं में से लगभग 82 प्रतिशत अनौपचारिक क्षेत्र में केंद्रित हैं, जो घरेलू काम, घर से काम, कचरा बीनना, निर्माण, स्ट्रीट वेंडिंग आदि जैसे क्षेत्रों में काम करती हैं। मार्च 2023 तक ईश्रम राष्ट्रीय डेटाबेस से पता चलता है कि असंगठित क्षेत्र में कुल कार्यबल में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का योगदान अधिक है। आंकड़ों के अनुसार कुल 287 मिलियन पंजीकृत असंगठित श्रमिकों में से 52.7 प्रतिशत महिलाएं हैं। भारत में गिग इकॉनमी के तेजी से विकास और महिलाओं को कामकाजी कार्यबल में शामिल कर के इकॉनमी में बेहतरी के दावों के बावजूद गिग काम में भी वैसा ही लैंगिक भेदभाव और समस्याएं देखी गई है, जैसाकि पारंपरिक कामों में है।

लचीले समय के कारण सुविधा है, लेकिन जब बुकिंग आती है, तो हमें एक मिनट में उसे एक्सेप्ट करना होता है। शनिवार, रविवार भी लोड के कारण छुट्टी नहीं ले सकते। रेटिंग खराब होने या लगातार तीन बुकिंग कैन्सल होने पर अकाउंट ब्लॉक कर दिया जाता है, जो एक बड़ी समस्या है। कई बार हमें अपने इलाके से बहुत दूर बुकिंग दे दी जाती है जहां ट्रैवल करना भी मुश्किल होता है। लेकिन कंपनी इसके लिए अतिरिक्त खर्च नहीं उठाती।

अर्बन कंपनी का इंस्टा हेल्प और बढ़ता उपभोगतवाद

तस्वीर साभार: The New Indian Express

एनडीटीवी प्रॉफ़िट में छपी रिपोर्ट अनुसार अर्बन कंपनी बताती है कि वह एक भरोसेमंद और सुविधाजनक हाउस हेल्प सर्विस बनाने के उद्देश्य से इस इंस्टा मेड्स को लॉन्च किया है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका उद्देश्य अपने सेवा भागीदारों को स्थिर काम के अवसरों, 150-180 रुपये प्रति घंटे (20,000-25,000 रुपये प्रति माह) की आय और मुफ्त स्वास्थ्य बीमा और नौकरी पर जीवन और आकस्मिक बीमा जैसे लाभों के साथ सशक्त बनाना है। इस सेवा को एक महीने पहले अर्बन कंपनी ऐप पर लॉन्च किया गया था और यह वर्तमान में मुंबई में चुनिंदा स्थानों पर उपलब्ध है। कंपनी इस सेवा के शुरुआती चरणों में मिल रहे लोगों के आकर्षण का आकलन कर रही है ताकि सेवा के व्यापक रोलआउट की जांच की जा सके।

सेवाओं में बर्तन साफ ​​करना, झाड़ू लगाना, पोछा लगाना और खाना पकाने की तैयारी सहित सभी घरेलू काम शामिल हैं। इस सेवा को 49 रुपये प्रति घंटे की कीमत पर बुक किया जा सकता है। भारत में क्विक कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है, जहां खाने से शुरू कर दवाइयां और ग्रोसरी तक तुरंत पहुंच से लोग भागते-दौड़ते जीवन में कहीं न कहीं चैन की सांस ले रहे हैं। लेकिन, जहां आज प्रमुख ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लोगों को ऐसे सर्विस मुहैया कराने के अतिरिक्त पैसे ले रहे हैं, वहीं गिग वर्कर्स को भी शोषण और असुरक्षित माहौल में काम करने का जोखिम उठाना पड़ रहा है। अर्बन कंपनी और ब्रूम्स इंडिया की तरह, स्नैबिट भी मिनटों में घरेलू मदद देते हुए ऑन-डिमांड घरेलू सेवाएं दे रहा है।  

भारत में क्विक कॉमर्स तेजी से बढ़ रहा है, जहां खाने से शुरू कर दवाइयां और ग्रोसरी तक तुरंत पहुंच से लोग भागते-दौड़ते जीवन में कहीं न कहीं चैन की सांस ले रहे हैं। लेकिन, जहां आज प्रमुख ऑनलाइन प्लेटफॉर्म लोगों को ऐसे सर्विस मुहैया कराने के अतिरिक्त पैसे ले रहे हैं, वहीं गिग वर्कर्स को भी शोषण और असुरक्षित माहौल में काम करने का जोखिम उठाना पड़ रहा है।

गिग इकॉनमी से क्या बढ़ रहा है महिला श्रम बल भागीदारी दर

भारत में महिलाओं की अनौपचारिक कार्यबल में ज्यादा शामिल होने की एक बड़ी वजह उच्च शिक्षा या तकनीकी शिक्षा की कमी और सामाजिक और पारिवारिक रूढ़िवाद है, जहां वे घर के अवैतनिक काम और अपने वैतनिक काम, दोनों का बोझ एक साथ उठाती हैं। खासकर, जब एक महिला माँ बनती है, तो उससे और भी ज्यादा उम्मीद की जाती है कि या वो काम नहीं करेंगी या कुछ ऐसा जहां वो बच्चे की जिम्मेदारी भी पूरी तरह उठा सके। गिग प्लेटफ़ॉर्म का लचीले काम का अवसर देना इन महिलाओं के लिए सुविधाजनक है, जहां वे अपने काम और घर की ज़िम्मेदारियों को बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं। इससे उन्हें अपने काम के घंटे खुद तय करने और किसी एक निश्चित स्थान पर निर्भर न रहने की सुविधा मिलती है।

तस्वीर साभार: Scroll.in

जैसे-जैसे गिग इकॉनमी का विस्तार हुआ, उम्मीद की गई कि भारत में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं नौकरी करने लगेंगी। इससे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने और समग्र रूप से रोजगार दर में सुधार होने की संभावना बनी। लेकिन, इससे देश में महिला श्रम बल भागीदारी (FLPR) में कोई प्रत्यक्ष बढ़ोतरी दर्ज नहीं हुई। विभिन्न शोध के मुताबिक गिग इकॉनमी महिला श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) को सीधे तौर पर बढ़ाने में कामयाब नहीं रहा है। पिछले दो दशकों से अधिक समय से, FLPR में लगातार गिरावट देखी गई है, जो 2000 के दशक की शुरुआत में 30 प्रतिशत से गिरकर 2018 में 26 प्रतिशत हो गई थी। साल 2017-18 में, शहरी स्व-नियोजित आबादी के लिए FLPR 34 प्रतिशत और शहरी आकस्मिक श्रमिकों के लिए 13 प्रतिशत थी, जबकि 2011-12 में यह 42 प्रतिशत और 14 प्रतिशत थी।

जैसे-जैसे गिग इकॉनमी का विस्तार हुआ, उम्मीद की गई कि भारत में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं नौकरी करने लगेंगी। इससे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने और समग्र रूप से रोजगार दर में सुधार होने की संभावना बनी। लेकिन, इससे देश में महिला श्रम बल भागीदारी (FLPR) में कोई प्रत्यक्ष बढ़ोतरी दर्ज नहीं हुई।

गिग इकॉनमी, महिला गिग वर्कर्स और असुरक्षा

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के साल 2018 में किए गए एक अध्ययन में, सर्वेक्षण में शामिल 35 प्रतिशत महिलाएं नौकरी की सुरक्षा की कमी और अनिश्चित रोजगार की स्थिति के कारण गिग इकॉनमी में शामिल होने में रुचि नहीं रखती थीं। वहीं, साल 2016 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑन-डिमांड घरेलू काम बढ़ने से उन श्रमिकों के खिलाफ़ भेदभाव और शोषण की समस्या और उजागर होती है, जो पहले से ही पारंपरिक घरेलू काम में असुरक्षित स्थिति में हैं। इससे कामगारों और नियोक्ताओं के बीच शक्ति का असमान संतुलन दिखाई देता है। अर्बन कंपनी के विज्ञापन से ही यह साफ हो जाता है कि कैसे हजारों महिलाओं का अनौपचारिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भागीदारी के बावजूद, वह आसानी से ‘रिप्लेसिएबल’ हैं। हाल ही में, कोलकाता में अर्बन कंपनी के ब्यूटी सेक्शन में लक्स को बंद करने के बाद, हजारों महिलाएं महीनों बेरोजगार थीं, जिन्हें बाद में दूसरे सेक्शन में लाने की कोशिश की गई।

तस्वीर साभार: Canva

बात समान वेतन की करें, तो टीम लीज़ एक एक अध्ययन अनुसार पुरुष और महिला डिलीवरी अधिकारियों के बीच मासिक वेतन में 8 से 10 प्रतिशत का अंतर पाया गया। कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 में रोजगार के दौरान ‘कर्मचारी’ का दौरा किया गया कोई भी स्थान शामिल है, जिसमें परिवहन भी शामिल है। इस अधिनियम के तहत, महिला कर्मचारी उत्पीड़क के खिलाफ़ औपचारिक जवाबदेही और उसके समाधान का दावा कर सकती हैं। लेकिन, चूंकि गिग प्लेटफ़ॉर्म गिग वर्कर्स को श्रमिक के बजाए ‘स्वतंत्र वर्कर/ कान्ट्रैकटर’ के रूप में परिभाषित किया जाता है, इसलिए यह अधिनियम उन्हें सुरक्षा नहीं देता है। इसी कारण उन्हें पेंशन, मातृत्व लाभ, बीमा आदि जैसे किसी भी सुरक्षात्मक उपाय के दायरे से अक्सर बाहर रखा जाता है।

अर्बन कंपनी के विज्ञापन से ही यह साफ हो जाता है कि कैसे हजारों महिलाओं का अनौपचारिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भागीदारी के बावजूद, वह आसानी से ‘रिप्लेसिएबल’ हैं। हाल ही में, कोलकाता में अर्बन कंपनी के ब्यूटी सेक्शन में लक्स को बंद करने के बाद, हजारों महिलाएं महीनों बेरोजगार थीं, जिन्हें बाद में दूसरे सेक्शन में लाने की कोशिश की गई।

अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक इन प्लेटफॉर्म के विषय में ईशिका मंडल (नाम बदला हुआ) जो कोलकाता के अर्बन कंपनी में काम करती हैं, कहती हैं, “लचीले समय के कारण सुविधा है, लेकिन जब बुकिंग आती है, तो हमें एक मिनट में उसे एक्सेप्ट करना होता है। शनिवार, रविवार भी लोड के कारण छुट्टी नहीं ले सकते। रेटिंग खराब होने या लगातार तीन बुकिंग कैन्सल होने पर अकाउंट ब्लॉक कर दिया जाता है, जो एक बड़ी समस्या है। कई बार हमें अपने इलाके से बहुत दूर बुकिंग दे दी जाती है जहां ट्रैवल करना भी मुश्किल होता है। लेकिन कंपनी इसके लिए अतिरिक्त खर्च नहीं उठाती।” साल 2020 में सामाजिक सुरक्षा संहिता ने गिग श्रमिकों को अपने दायरे में शामिल किया, जिसमें पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म श्रमिकों को मान्यता दी गई थी, और उन्हें सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने का प्रावधान किया गया था।

तस्वीर साभार: The Hindu

हालांकि, संहिता श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा योगदान करने की गुंजाइश देता है, लेकिन इसमें घरेलू कामगार शामिल नहीं हैं, जो एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें बड़ी संख्या में हाशिये के समुदायों की महिलाएं काम करती हैं। फेयरवर्क इंडिया 2020 रिपोर्ट के अनुसार देश में 11 सबसे लोकप्रिय प्लेटफॉर्म पर लगभग 3.03 मिलियन प्लेटफॉर्म कर्मचारी और कर्मचारी काम कर रहे हैं। हालांकि इसके लिए कोई जेंडर आधारित डेटा उपलब्ध नहीं है। टीमलीज सर्विसेज के 2018-2019 की रोजगार आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, डिलीवरी उद्योग में विभिन्न भूमिकाओं में लगभग 68,000 महिलाएं काम कर रही हैं।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन और वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के साल 2018 में किए गए एक अध्ययन में, सर्वेक्षण में शामिल 35 प्रतिशत महिलाएं नौकरी की सुरक्षा की कमी और अनिश्चित रोजगार की स्थिति के कारण गिग इकॉनमी में शामिल होने में रुचि नहीं रखती थीं। वहीं, साल 2016 के एक और अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑन-डिमांड घरेलू काम बढ़ने से उन श्रमिकों के खिलाफ़ भेदभाव और शोषण की समस्या और उजागर होती है, जो पहले से ही पारंपरिक घरेलू काम में असुरक्षित स्थिति में हैं।

गिग इकॉनमी में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के बावजूद, उनके काम की सुरक्षा, वेतन, और सामाजिक सुरक्षा की अनदेखी जारी है। लचीलेपन की सुविधा के बावजूद, वे कई शोषणकारी परिस्थितियों का सामना कर रही हैं, जिनमें भेदभाव, असमान वेतन, और अस्थिर रोजगार शामिल हैं। आज गिग इकॉनमी और उपभोक्तावाद एक-दूसरे के पूरक बन गए हैं। उपभोक्ताओं की तत्काल संतुष्टि की चाहत ने “इंस्टा हेल्प” जैसी सेवाओं को बढ़ावा दिया है, जहां मिनटों में घरेलू कामगार उपलब्ध कराए जाते हैं। हालांकि, इस तेजी से बढ़ते उपभोक्तावाद का खामियाजा गिग वर्कर्स को उठाना पड़ता है, जिन्हें कम वेतन, अस्थिर नौकरियां और कठोर कार्य शर्तों का सामना करना पड़ता है। जरूरी है कि नीतियों में सुधार कर गिग वर्कर्स को औपचारिक श्रमिकों की तरह कानूनी और सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए, जिससे वे सम्मानजनक और सुरक्षित कार्य वातावरण में काम कर सकें।

Leave a Reply

संबंधित लेख