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स्वास्थ्यमानसिक स्वास्थ्य क्या है एडीएचडी और कैसे करें खुदकी देखभाल?

क्या है एडीएचडी और कैसे करें खुदकी देखभाल?

सीडीसी के अनुसार महिलाओं में यह पुरुषों से कम माना जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह महिलाओं में नहीं पाया जाता है। महिलाओं में यह पुरुषों की अपेक्षा कम देखा गया है। इसका एक कारण यह भी है कि महिलाओं या किशोरियों को एक तय मानदंडों में रहने की उम्मीद की जाती है जिससे लक्षण नियंत्रण हो जाती है।

हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) एक न्यूरो डेवलपमेंटल स्थिति है, जिससे ध्यान भटकने, हाइपर एक्टिविटी, और
इम्पलसिवनेस के लक्षण देखे जा सकते हैं। यह एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो खासकर बच्चों में अधिक पाया जाता है। हेल्थ शॉट्स की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा यह दावा किया गया है कि इसके लक्षण वयस्कों में भी पाए जाते हैं। एडीएचडी किसी भी उम्र तक के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन प्रभावित करने के इसके लक्षण बचपन में ही दिखने शुरू हो जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) कहता है कि दुनियाभर में लगभग 3.1 फीसद व्यस्क एडीएचडी के साथ जीते हैं।

हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर से प्रभावित लोगों में समस्या:

  1. ध्यान केन्द्रित कर पाने में असमर्थ होते हैं
  2. कार्य को व्यवस्थित ढंग से कर पाने में दिक्कत
  3. निर्णय लेने के समय हमेशा द्वन्द में रहना
  4. समय का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पाना
  5. रात में जागना, सही नींद पाने में दिक्कत का सामना करना
  6. बहुत जल्दी प्रतिक्रिया देना
  7. बात बात पर भावुक हो जाना
  8. सामाजिक गतिविधियों से बचना
  9. धैर्य की कमी, तेज़ी से बातें करना चाहे व्यर्थ की बात हो
  10. संबंध जल्दी बना लेना लेकिन थोड़े समय के लिए, फिर उससे दूरी बना
    लेना

एडीएचडी के प्रकार


एडीएचडी को आम तौर पर तीन प्रकार से समझा जा सकता है-

  • असावधान
  • अतिसक्रिय-आवेगी
  • संयुक्त

इनअटैंटिव एडीएचडी

तस्वीर साभार: Psychology Today

इस प्रकार के डिसऑर्डर की पहचान चीजों के अधिक भूलने, एक ही जगह ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई व समय को सही ढंग से इस्तेमाल कर पाने में मुश्किल पैदा होने जैसी चीजों से किया जा सकता है। इसे अटेंशन डिफेसिट डिसऑर्डर (ADD) भी कहते हैं।

हाइपरएक्टिव-इम्पल्सिव एडीएचडी

इसमें धैर्य की कमी, शांत बैठे रहने में दिक्कत, बेवजह बातों के बीच में बोलना और बोलते समय जल्दी-जल्दी बोलना चाहे
बात बेतुकी भी हो, अत्यधिक आवेग में जल्दी से आ जाने जैसे लक्षण शामिल हैं।

कंबाइंड एडीएचडी

इस तरह के डिसऑर्डर में इनअटैंटिव और हाइपरएक्टिव- इम्पल्सिव दोनों का गुण विद्दमान होता है। समय-समय पर दोनों ही लक्षण सामने आ जाते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति की पूरी दिनचर्या उलटे-सीधे चलती है और हिसाब कर पाने में बहुत उलझा हुआ रहता है जिसके कारण चिड़चिड़ापन और आवेग बढ़ जाने की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है।

कैसे होता है एडीएचडी?

एक रिपोर्ट के अनुसार एडीएचडी का एक प्रमुख कारण जीन होता है, जो परिवार में पता चल सकता है यदि यह लक्षण माता पिता में हैं तो बच्चों में यह आने की सम्भावना अधिक होती है। यहाँ तक कि उनके मस्तिष्क की संरचना के कुछ हिस्से सामान्य होते हैं। माता के आहार पर भी निर्भर करता है बच्चे का स्वास्थ्य। एडीएचडी के होने के कारण में गर्भावस्था के दौरान शराब और किसी नशीले पदार्थ का सेवन, जन्म के बाद वजन का कम होना या फिर जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी भी हो सकती है। मानसिक दबाव जिसके कारण चिड़चिड़ापन पैदा हो जाता है। वातावरण की अहम् भूमिका हो सकती है जैसे परिवार में बचपन से ही घरेलू हिंसा देखना या तलाकशुदा माता पिता का बच्चा होना जिसके कारण मानसिक दबाव हो रहे हों। इस प्रकार के डिसऑर्डर में वातावरण की बहुत बड़ी भूमिका होती है।

महिलाओं में एडीएचडी और समस्याएं

तस्वीर साभार: Psychology Today

सीडीसी के अनुसार महिलाओं में यह पुरुषों से कम माना जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह महिलाओं में नहीं पाया जाता है। महिलाओं में यह पुरुषों की अपेक्षा कम देखा गया है। इसका एक कारण यह भी है कि महिलाओं या किशोरियों को एक तय मानदंडों में रहने की उम्मीद की जाती है जिससे लक्षण नियंत्रण हो जाती है। वे अक्सर अपनी भावनाओं को खुलकर नहीं बता पाती हैं और रेजिमेंटेड कॉपिंग मैकेनिज्म द्वारा इसके लक्षण को छिपाती हैं। ऐसा देखा गया है कि महिलाएं कभी-कभी घरेलू कामों में कम ध्यान दे पाती हैं जिससे उन्हें रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कठिनाई का सामना भी करना पड़ता है। चिड़चिड़ापन और आवेग में कई बार वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं और समाज में सक्रीय रूप से भागीदारी बहुत कम होती है जिससे यह कई बार पिछड़ती नज़र आती हैं या शिक्षा में भी कमज़ोर रह जाती हैं।

रिसर्च के अनुसार एडीएचडी जिन महिलाओं में पाया जाता है उनमें भावनाएं स्थिर नहीं रहती हैं। ऐसी महिलाएं दिनचर्या को सही ढंग से नहीं व्यवस्थित कर पाती हैं। ऑफिस और घर के कामों को संतुलित ढंग से कर पाने में उन्हें समस्या का सामना करना पड़ता है। दोहरे बोझ के नाते कभी-कभी उन्हें अपने काम को लेकर अधिक घबराहट होती है। ऐसी लड़कियों में बेचैनी बहुत जल्दी हो जाती है। शांत बैठने में दिक्कत होती है और बात करते समय बहुत जल्दी-जल्दी बोलती हैं। कहीं भी देर तक बैठे रहने में उन्हें अक्सर दिक्कत होती है और बैठे रहने पर वे पैर हिलाती रहती हैं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट अनुसार एडीएचडी की महिलाओं पर एक शोध किया गया, जिसमें कई परिणाम देखे गए। इसमें स्कूल छोड़ने की संभावना अधिक देखी गई, कम उम्र में ही यौनिक रूप से सक्रियता, व्यस्क के रूप में रोजगार में स्थिरता की समस्या, अधिक भावुकता और अपनेआप को क्षति पहुंचाने की प्रवृत्ति का ज्यादा दर पाया गया।

क्या एडीएचडी का उपचार हो सकता है

सबसे पहले इस डिसऑर्डर से संबंधित लक्षणों की जांच करा लेनी चाहिए जिसमें डॉक्टर थेरेपी और कुछ सामान्य परिक्षण करता है और इसका पता लगाता है। ऐसे लोगों को मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। थेरेपी (CBT) उनके लिए आरामदायक हो सकता है। अपने जीवनशैली में बदलाव लाकर, योग और व्यायाम का सहारा लेकर फायदा हो सकता है। पौष्टिक आहार भी सहायक हो सकता है। आतंरिक सुख के लिए इससे पॉजिटिव इम्पैक्ट पड़ता है। डॉक्टर के सलाह से उचित दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। उपचार का नियमित रूप से पालन धीरे-धीरे एडीएचडी के लक्षणों में सुधार ला सकता है। साथ ही साथ मेडिटेशन का ज़रूर सहारा लिया जा सकता है, जिससे स्थिरता हो सकती है। हालांकि डॉक्टर के संपर्क में नियमित रूप से बना रहना चाहिए।

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