इंटरसेक्शनल महिलाओं के लिए ऑर्गैज़म की परिभाषा बदलने वाली महिला: बेट्टी डॉडसन

महिलाओं के लिए ऑर्गैज़म की परिभाषा बदलने वाली महिला: बेट्टी डॉडसन

समाज में जहां महिलाओं के यौनिकता को कठोर नियमों से बांधा गया और अपराधबोध से ढका गया, डॉडसन की मास्टरबेशन, ऑर्गैज़म और आत्मप्रेम पर चर्चाएं क्रांतिकारी मानी गईं।

बेट्टी डॉडसन का जन्म 1929 में अमेरिका के विचिटा, कंसास में हुआ। एक रूढ़िवादी परिवार में पली-बढ़ीं डॉडसन ने बचपन से ही चित्रकला में रुचि दिखाई और 18 की उम्र में फैशन इलस्ट्रेटर के रूप में काम शुरू किया। 1950 में न्यूयॉर्क जाकर उन्होंने आर्ट स्टूडेंट्स लीग में फिगर ड्राइंग सीखी और एक चित्रकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनके शुरुआती वर्षों में कामुक कला के ज़रिए उन्होंने महिलाओं के यौनिकता को चित्रित किया, हालांकि यह कला मुख्यधारा में स्वीकार नहीं की गई। उनकी कामुक कला को मुख्यधारा में अधिक स्थान नहीं मिला। लेकिन, उन्होंने पारंपरिक तकनीकों को साहसिक रूप से महिला यौन अभिव्यक्ति के चित्रण के साथ जोड़ा।

जैसे-जैसे वह शहर के रचनात्मक और वैकल्पिक सांस्कृतिक वातावरण में गहरी उतरती गईं, उन्होंने महिलाओं पर थोपे गए कठोर सामाजिक मानकों पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए। एक ऐसे समय में जब इस तरह की चित्रकारी को अक्सर सेंसर कर दिया जाता था, उनकी प्रदर्शित कलाकृतियां मानवीय शरीर का निर्भीक उत्सव थीं। बाद में उनकी कला और यौन शिक्षा एक-दूसरे से जुड़ गईं। उन्होंने अपनी रचनात्मकता के ज़रिए महिला शरीर और यौनिकता को समझने और उसे सहज रूप से अपनाने की कोशिश की।

पुरुष-प्रधान कला जगत से टकराव

उन्होंने एक विज्ञापन में काम कर रहे व्यक्ति से शादी की, लेकिन उनका तलाक भी हो गया। 20वीं सदी के बीच के अमेरिका में, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, तलाक एक बड़ा कलंक माना जाता था। कामुक विषयों पर केंद्रित एक कलाकार के रूप में डॉडसन का करियर साल 1960-70 के दशक के पुरुष-प्रधान कला जगत से टकराव में रहा, जहां उनकी कला को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे अश्लीलता की श्रेणी में रखा गया। इसके अलावा, उनका प्रतिनिधानात्मक (रियलिस्टिक) चित्रण उस दौर के अमूर्त (एब्सट्रैक्ट) कला प्रवृत्तियों से मेल नहीं खाता था, जिससे उनकी पहचान सीमित हो गई। जब उनका कला करियर अस्थिर होने लगा, तो उन्होंने स्वतंत्र रूप से अंतर्वस्त्र इलस्ट्रेटर के रूप में काम किया। यह काम उन्हें रचनात्मक रूप से संतोषजनक नहीं लगा। लेकिन जीविका चलाने के लिए आवश्यक था। अंतर्वस्त्र विज्ञापनों के अलावा, उन्होंने बच्चों की किताबों के लिए चित्र बनाए और 1960 के दशक में एस्क्वायर और प्लेबॉय जैसी पत्रिकाओं के लिए भी काम किया। हालांकि बाद में उन्होंने प्लेबॉय की आलोचना की, यह कहते हुए कि पत्रिका महिलाओं को ऑब्जेक्टिफ़ाई करती थी।

व्यक्तिगत संघर्ष और यौनिकता से जुड़ी शर्म से मुक्ति

तस्वीर साभार: Etsy

1960 के दशक के मध्य में तलाक के बाद, उन्होंने ‘सेक्शुअल आत्म-खोज’ की यात्रा शुरू की। एक ऐसा प्रयास जिससे वह उन सुखों को समझने और दोबारा पाने की कोशिश कर रही थीं, जिन्हें लंबे समय तक नकारा या दबाया गया था। व्यक्तिगत रूप से तलाक के बाद, सामाजिक आलोचना का सामना करने के अनुभव ने उनके अंदर यौन स्वतंत्रता के प्रति आजीवन समर्पण की भावना पैदा की, जो आगे चलकर उनके जीवन का केंद्रीय उद्देश्य बन गया। बेट्टी डॉडसन के व्यक्तिगत संघर्षों ने आखिरकार उन्हें बॉडीसेक्स नामक कार्यशालाओं की श्रृंखला बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसने महिलाओं की यौनिकता को देखने और अनुभव करने के तरीके को नए सिरे से परिभाषित किया। इन कार्यशालाओं में डॉडसन ने कहानी कहने की तकनीक का उपयोग करके महिलाओं को यौनिकता से जुड़ी शर्म से मुक्त होने में मदद की। ये सत्र महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और गैर-आलोचनात्मक जगह देते थे, जहां वे अपने शरीर को सहजता से खोज सकती थीं और किसी अपराधबोध के बिना ऑर्गैज़म को अपना सकती थीं।

महिलाओं के यौनिकता से परे ऑर्गैज़म तक

डॉडसन के इस नए अवधारणा में क्लिटोरिस उत्तेजना, एक हिटाची मैजिक वैंड (वाइब्रेटर), योनि प्रवेश के लिए एक विशिष्ट धातु का रेस्टिंग डिल्डो, कांशस ब्रीदिंग, और पेल्विक गति को शामिल किया गया—जो आत्मसंतोष को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए थे। वैज्ञानिक शोधों ने उनकी इस विधि को मान्यता दी है, जिसमें पाया गया कि पहले कभी ओर्गैज़्म न प्राप्त कर पाने वाली 93 फीसद महिलाओं ने उनकी तकनीक को अपनाकर इसे अनुभव किया है। महिलाओं को अपने शरीर को समझने और प्रेम करने की शिक्षा देकर, डॉडसन ने उन्हें उन सामाजिक ताकतों का विरोध करने के लिए सशक्त किया जो महिला यौनिकता को नियंत्रित करने की कोशिश करती हैं। अनेक महिलाओं को ये बचपन से सिखाया जाता था, कि खुदको छूना, ये  छिपाने योग्य या यहां तक कि निंदनीय काम है। डॉडसन ने महसूस किया कि यह शर्म यौन स्वतंत्रता की सबसे बड़ी बाधाओं में से एक थी।

तस्वीर साभार: The New York Times

अपने अतीत का सामना करके और अपनी इच्छाओं को पूरी तरह से अपनाकर, उन्होंने अनगिनत महिलाओं के लिए एक उदाहरण स्थापित किया। उनकी कार्यशालाएं केवल तकनीकों को सीखने तक सीमित नहीं थीं; वे एक पूरी उम्र के दमन को तोड़ने और गरिमा और एजेंसी को दोबारा पाने की प्रक्रिया थीं। आत्मसंतोष से जुड़े भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक लाभों पर उनकी खुली बातचीत उन महिलाओं के साथ गहराई से जुड़ी, जो पारंपरिक यौन शिक्षा से खुदको को लंबे समय से उपेक्षित और अलग-थलग महसूस कर रही थीं। डॉडसन का मानना था कि मास्टरबेशन कोई एकांत में किया जाने वाला शर्मनाक काम नहीं है, बल्कि यह आत्म-देखभाल (सेल्फ-केयर) का एक स्वाभाविक और सशक्त रूप है। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उन्होंने महिलाओं को यह समझाने का प्रयास किया कि उनके शरीर केवल बाहरी नियंत्रण का साधन नहीं हैं, बल्कि आनंद और शक्ति के स्रोत हैं।

मास्टरबेशन, ऑर्गैज़म और आत्म-प्रेम पर खुली चर्चाएं

तस्वीर साभार: The New York Times

एक ऐसे समाज में जहां महिलाओं के यौनिकता को कठोर नियमों से बांधा गया था और अपराधबोध से ढका गया था, डॉडसन की मास्टरबेशन, ऑर्गैज़म और आत्म-प्रेम पर खुली चर्चाएं क्रांतिकारी और खतरनाक मानी गईं। पितृसत्तात्मक मूल्यों में डूबे तत्कालीन अमेरिका की मुख्यधारा में लंबे समय तक यही माना गया था कि सेक्स केवल शादी के भीतर और बच्चे पैदा करने के उद्देश्य से ही होना चाहिए। इस संकीर्ण दायरे से बाहर जाने वाली किसी भी चीज़ को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था। सामाजिक मान्यताओं और पितृसत्तात्मक संस्थानों से संघर्ष के अलावा, डॉडसन की यात्रा एक व्यक्तिगत लड़ाई भी थी। यह उस शर्म के खिलाफ़ लड़ाई थी, जिसे सांस्कृतिक दमन ने महिलाओं के भीतर गहराई तक जड़ें जमाने दी थीं। अपने साक्षात्कारों में, उन्होंने अक्सर उन अपराधबोध और आत्मसंदेह के अनुभवों को साझा किया, जिनका सामना उन्होंने अपने सेक्शुअल अवेर्नेस के शुरुआती सालों में किया था।

नारीवादी चर्चाओं में डॉडसन और संघर्ष

डॉडसन की बॉडीसेक्स कार्यशालाएं 1970 के दशक में नारीवादी हलकों में विवाद का विषय बनीं। कुछ ने उन्हें यौन मुक्ति का प्रतीक माना, तो कुछ ने अशोभनीय कहा। उनके वुल्वा स्लाइड शो और वाइब्रेटर प्रदर्शन को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलीं। लिबरेटिंग मास्टर्बेशन(1973) को मुख्यधारा ने ठुकरा दिया और सेक्स फॉर वन(1987) को सेंसर किया गया। उनकी कार्यशालाएं यौन शिक्षा को विवाह और मातृत्व से बाहर ले जाकर सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देती थीं। विकलांग और हाशिए के समुदायों के लिए उनकी पहुंच सीमित रही, फिर भी उन्होंने पितृसत्ता के खिलाफ लड़ाई जारी रखी। उनकी किताबें आत्मप्रेम और यौन स्वतंत्रता पर ज़ोर देती हैं और आज भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हैं।

वित्तीय अस्थिरता और संस्थागत सेंसरशिप

डॉडसन ने किताबों और कार्यशालाओं के ज़रिए धन जुटाकर अपनी सक्रियता जारी रखी, हालांकि उन्हें आर्थिक अस्थिरता और संस्थागत सेंसरशिप का सामना करना पड़ा। महिलाओं को उनके शरीर के बारे में शिक्षित करने के प्रयासों में उन्हें मीडिया, नौकरशाही और सामाजिक रूढ़ियों से टकराना पड़ा। 1980 के दशक में उन्होंने वाइब्रेटर को ‘मसाजर’ बताकर और शैक्षिक सामग्री के साथ बेचने की रणनीति अपनाई। अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में कला ज़ब्त होने पर उन्होंने अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन के साथ मिलकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। उनका मानना था कि शरीर को समझना एक राजनीतिक काम है। उनका प्रसिद्ध कथन ‘बेहतर ऑर्गैज़म, बेहतर दुनिया’ यौन स्वतंत्रता और सामाजिक मुक्ति को जोड़ता है। उन्होंने आत्म-सुख को आत्म-प्रेम और पितृसत्ता के खिलाफ प्रतिरोध का रूप बताया। बाद में उन्होंने अपनी कार्यशालाओं में होमोसेक्शुअल और नॉन-बाइनरी प्रतिभागियों को शामिल किया, हालांकि ट्रांस अनुभवों को देर से जगह देने की बात स्वीकार की। 1980-90 के दशक में उन्होंने एलजीबीटीक्यू+ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सुरक्षित यौन संबंधों और यौन अधिकारों पर काम किया।

यौनिकता, शारीरिक स्वास्थ्य और यौन अभिव्यक्ति पर लेखन  

अपने 70वें और 80वें दशक में डॉडसन ने वृद्ध महिलाओं की यौनिकता, शारीरिक स्वास्थ्य और यौन अभिव्यक्ति पर खुलकर लिखा। उन्होंने वाइब्रेटर को न सिर्फ आनंद, बल्कि स्वास्थ्य का साधन बताया और मेनोपॉज़, हार्मोन बदलाव व यौन सक्रियता पर चुप्पी तोड़ी। उन्होंने सौंदर्य उद्योग, पोर्न और पूंजीवाद के जरिए महिलाओं के शोषण की आलोचना की और यौन स्वतंत्रता को आर्थिक स्वतंत्रता से जोड़ा। वियतनाम युद्ध में विरोध जताया, सेक्स वर्कर्स और पोर्न कलाकारों के अनुभवों को मुख्यधारा में लाईं। साल 1990 के दशक में यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और जापान में बॉडीसेक्स कार्यशालाएं आयोजित कीं। इंटरनेट के शुरुआती उपयोग से यौन शिक्षा को डिजिटल रूप से आगे बढ़ाया।

तस्वीर साभार: The New York Times

उन्होंने पर्यावरणीय संकट को यौन स्वास्थ्य से जोड़ा और इको-सेक्सुअल पहलों का समर्थन किया। कोविड-19 के दौरान बॉडीसेक्स को ज़ूम पर ले गईं। बेट्टी डॉडसन ने यौन शिक्षा, नारीवाद और कला के क्षेत्र में एक दूरदर्शी भूमिका निभाई। उन्होंने सेक्स-पॉजिटिव नारीवाद की नींव रखी, जो यौन स्वतंत्रता को महिलाओं के सशक्तिकरण से जोड़ता है। उनके सिद्धांत आज भी यौन शिक्षा, साहित्य, और सेक्स टॉयज़ के बाज़ार में दिखते हैं। वैज्ञानिक शोधों ने उनकी पद्धति को प्रभावी बताया है, जो महिलाओं में ऑर्गैज़म की दर बढ़ाने और यौन दमन से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने में मदद करती है। उनका योगदान आज भी वैश्विक स्तर पर एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

बेट्टी डॉडसन की विरासत

बेट्टी डॉडसन का प्रभाव केवल पुस्तकों और कार्यशालाओं तक सीमित नहीं रहा। वे कई डॉक्युमेंट्री, टीवी शो और साक्षात्कारों में नजर आईं, जहां उनकी बेबाक शैली ने महिलाओं की यौनता, हस्तमैथुन और संतुष्टि पर बातचीत को सामान्य बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनके लेखन और कलाकृतियां NYU की फेल्स लाइब्रेरी में संग्रहित हैं। बॉडीसेक्स और द पैशनेट लाइफ जैसी फिल्में उनके प्रभाव को दर्शाती हैं। सेक्स एजुकेटर एनी स्प्रिंकल, कैरल क्वीन और डॉ. रूथ वेस्टहाइमर उन्हें अपना मार्गदर्शक मानती हैं। उन्होंने आवर बॉडीज, अवरसेल्व्स जैसी क्रांतिकारी किताब को भी प्रेरित किया। आज भी यौन स्वतंत्रता और सेक्स-पॉजिटिव नारीवाद की बहसों में उनके विचार प्रासंगिक बने हुए हैं।

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