इंटरसेक्शनलविकलांगता क्या सभी के लिए सुलभ है डिजिटल भारत?

क्या सभी के लिए सुलभ है डिजिटल भारत?

गेट्स फाउंडेशन के अनुसार यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के आर्थिक विकास को 20 से 33 फीसद तक बढ़ा सकता है और महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी इसकी अहम भूमिका है।

आज हमें बस, ट्रेन, मेट्रो, फ्लाइट, मूवी या कोई भी टिकट करना हो तो मोबाइल की एक क्लिक पर आसानी से कर सकते हैं। इसी तरह खाने से लेकर कपड़े तक कुछ भी मंगवाना हो या कहीं आना-जाना हो या फिर कोई पेमेंट करना हो, इन सब के लिए हम ज़्यादातर फ़ोन या कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं। यह कहा जा सकता है कि आज पूरी दुनिया डिजिटलाइजेशन की तरफ तेजी से बढ़ रही है और भविष्य में इसपर निर्भरता और भी ज़्यादा बढ़ने की संभावना है। आज के डिजिटल युग में संचार, सेवा और सुविधा तीनों ही तकनीक के माध्यम से आम जनता तक आसानी से पहुंच रही है।

ऐसे में ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ (DPI) की समावेशिता पर चर्चा करना जरूरी है। यह न सिर्फ़ सरकारी सेवाओं की पहुंच को आसान बनाता है, बल्कि काफ़ी हद तक इससे पारदर्शिता भी आती है। भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में सरकारी योजनाओं तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर एक सशक्त साधन बन रहा है। इसके अलावा पहले जहां निजी क्षेत्र की सेवाओं और उत्पादों की पहुंच सिर्फ़ शहरों तक थी, वहीं अब डिजिटल होने से इसे गांव कस्बों के दूरदराज़ वाले इलाकों तक भी पहुंचाना आसान हो गया है।

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure) ऐसा सुरक्षित डिजिटल सिस्टम है जो लोगों को आपस में जोड़ सके और सभी लोगों को सेवाएं देने में सक्षम हो।

क्या है डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर?

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Public Infrastructure) ऐसा सुरक्षित डिजिटल सिस्टम है जो लोगों को आपस में जोड़ सके और सभी लोगों को सेवाएं देने में सक्षम हो। साधारण शब्दों में एक ऐसी सुविधा या सेवा जो नागरिकों, व्यापारियों और सरकार के बीच पारदर्शी और कुशल नेटवर्किंग को बढ़ावा देती हों, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में शामिल हैं। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर वैसे तो कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है लेकिन यह दुनिया भर में चर्चा में तब आया जब 2023 में भारत की अध्यक्षता में G-20 देशों का सम्मेलन हुआ था। इसी सम्मेलन में इसे एक साझा डिजिटल सिस्टम के रूप में परिभाषित किया गया और इसके सुरक्षित, समावेशी, पारदर्शी और सभी के लिए आसानी से पहुंच सुनिश्चित करने को लेकर चर्चा की गई थी।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

डीपीआई के ख़ास उदाहरण के तौर पर यूक्रेन की प्रमुख ई-खरीद प्रणाली, प्रोज़ोरो (जिसका शाब्दिक अर्थ है- पारदर्शी) शामिल है, जिसके माध्यम से यूक्रेन सरकार ने हर साल लगभग 1 बिलियन डॉलर बचाया और ‘यूरोप के सबसे भ्रष्ट देश’ को डिजिटल खरीद सुधार के एक ‘आदर्श देश’ के रूप में बदलने में सफलता हासिल की। एस्टोनिया में 99 फीसद सरकारी सेवाएं ऑनलाइन मिलती हैं। इसी तरह ब्राज़ील ने Gov.br, Pix और ज़ाम्बिया ने स्मार्ट ज़ाम्बिया संस्थान डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के तौर पर विकसित किए हैं जो डीपीआई के ख़ास उदाहरण हैं।

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक ख़बर के अनुसार, 2024 तक भारत में होने वाले कुल डिजिटल पेमेंट्स का 83 फीसद यूपीआई के माध्यम से किया गया।

भारत में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर

भारत में डीपीआई के तौर पर आधार कार्ड ख़ासतौर पर उल्लेखनीय है। इसीलिए, देश में पहचान पत्र के तौर पर आधार कार्ड सबसे विश्वसनीय माना जाता है। इसी तरह डिजिटल पेमेंट ऑप्शन्स जैसे यूपीआई आज हमारी ज़रूरत बन चुका है। बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक ख़बर के अनुसार, 2024 तक भारत में होने वाले कुल डिजिटल पेमेंट्स का 83 फीसद यूपीआई के माध्यम से किया गया। इसी तरह अपने ज़रूरी दस्तावेज़ों को सुरक्षित रखने के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के तौर पर  बनाया गया डिजिलॉकर भी काफ़ी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इससे हर समय दस्तावेज़ों को भौतिक रूप से अपने पास रखने की ज़रूरत नहीं रही। इसकी एक ख़ासियत यह भी है कि ज़रूरत पड़ने पर इसे ऑनलाइन साझा भी किया जा सकता है। कोविड जैसी महामारी के समय कोविन ऐप ने भी टीकाकरण में अहम भूमिका निभाई। इसी तरह ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, भारत बिल पेमेंट सिस्टम, फास्टैग भारत में डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के उदाहरण हैं।

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों है ज़रूरी?

किसी भी देश के विकास के लिए डीपीआई अहम भूमिका निभा सकता है, ख़ासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के लिए तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है। गेट्स फाउंडेशन के अनुसार यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के आर्थिक विकास को 20 से 33 फीसद तक बढ़ा सकता है और महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी इसकी अहम भूमिका है। इसके अलावा फाउंडेशन के एक अनुमान के अनुसार डीपीआई पूंजी तक पहुंच सुनिश्चित करके लगभग 16 से 19 मिलियन माइक्रो और स्मॉल बिजनेस के विकास में भी योगदान दे सकता है।

किसी भी देश के विकास के लिए डीपीआई अहम भूमिका निभा सकता है, ख़ासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों के लिए तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है। गेट्स फाउंडेशन के अनुसार यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के आर्थिक विकास को 20 से 33 फीसद तक बढ़ा सकता है और महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने में भी इसकी अहम भूमिका है।

भारत में डिजिटल पहचान प्रणाली शुरू करने के 10 साल के आसपास होते-होते ऐसे वयस्कों की संख्या बढ़कर 78 फीसद हो गई जिनके पास अपना बैंक खाता था। महिलाओं के मामले में और भी ज़्यादा तेजी देखी गई इनकी संख्या 26 फीसद से बढ़कर 78 फीसद तक पहुंच गया। डिजिटल आईडी, ऑनलाइन पेमेंट, डाटा शेयरिंग, सामान और सेवाओं कि घर बैठे पहुंच दूरदराज़ के इलाकों की समावेशिता और सशक्तीकरण के लिए बेहद ज़रूरी हैं। पहचान, भुगतान और डेटा एक्सचेंज किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बुनियादी ढांचे के तौर पर काम करते हैं। 

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

डीपीआई समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर संयुक्त राष्ट्र के 2030 के लिए बनाए गए 17 सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने में भी सहायक साबित हो सकता है। डीपीआई सरकारी सेवाओं को आसान और पारदर्शी बनाता है जिससे भ्रष्टाचार कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा यह महिलाओं, बुजुर्गों और विकलांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक बन सकता है, जिससे इनका सशक्तीकरण, सामाजिक न्याय और समावेशिता को सुनिश्चित किया जा सके। स्क्रीन रीडर, ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड, ऑडियो विजुअल इन्फॉर्मेशन सिस्टम जैसी तकनीक के माध्यम से बुजुर्गों और विकलांगों के लिए सुविधाजनक सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं, जो इनकी आज़ादी और आत्मनिर्भरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं।

भारत में डिजिटल पहचान प्रणाली शुरू करने के 10 साल के आसपास होते-होते ऐसे वयस्कों की संख्या बढ़कर 78 फीसद हो गई जिनके पास अपना बैंक खाता था। महिलाओं के मामले में और भी ज़्यादा तेजी देखी गई इनकी संख्या 26 फीसद से बढ़कर 78 फीसद तक पहुंच गया।

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर और विकलांगता

जब भी डीपीआई की बात होती है अक्सर उसकी तेजी और क्षमता की चर्चा की जाती है, इस बीच विकलांग लोगों को इससे होने वाली परेशानियों के बारे में विमर्श कम ही देखा जाता है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर डीपीआई को सही तरीके से काम में लिया जाए तो यह विकलांग लोगों के लिए ज़िंदगी बदल देने वाला साबित हो सकता है लेकिन उनकी ख़ास ज़रूरतों को नज़रअंदाज किया जाता है तो यही बाधा भी बन सकता है। कोई भी विकास तब तक अधूरा है अगर वह सभी ख़ासकर हाशिए पर मौजूद लोगों को शामिल नहीं करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में से घर 6 में से 1 यानी लगभग 16 फीसद लोग किसी न किसी रूप में विकलांग हैं।

ऐसे में इनकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। ज़्यादातर डीपीआई प्लेटफ़ॉर्म्स स्वस्थ और डिजिटली साक्षर आबादी को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। ये वेबसाइट्स या ऐप्स स्क्रीन रीडर और कीबोर्ड नेविगेशन जैसे विकलांगों के लिए विकसित तकनीक के साथ मेल नहीं खाते। ऐसे में विकलांग लोगों के लिए ऐसी सुविधाओं का इस्तेमाल करना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इसके साथ ही विकलांग लोगों में ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में डिजिटल साक्षरता की कमी पाई जाती है। इसके अलावा आर्थिक तंगी की वजह से भी इनकी स्मार्टफोन, कम्प्यूटर और इंटरनेट तक पहुंच सीमित होती है जो डीपीआई के रास्ते में एक बड़ी चुनौती के तौर पर सामने आती है। 

ज़्यादातर डीपीआई प्लेटफ़ॉर्म्स स्वस्थ और डिजिटली साक्षर आबादी को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। ये वेबसाइट्स या ऐप्स स्क्रीन रीडर और कीबोर्ड नेविगेशन जैसे विकलांगों के लिए विकसित तकनीक के साथ मेल नहीं खाते।

डीपीआई को समावेशी कैसे बनाया जाए

तस्वीर साभार: Financial Express

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर को समावेशी और सुलभ बनाने के लिए इसको बनाते समय सिर्फ़ स्वस्थ और डिजिटली साक्षर लोगों को ही नहीं बल्कि विकलांग व्यक्तियों, बुजुर्गों और कम पढ़े-लिखे लोगों की ज़रूरतों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इसे एक्सेसिबल स्क्रीन रीडर, सब टाइटल्स, कीबोर्ड नेवीगेशन के साथ जोड़ने की ज़रूरत है, जिससे सभी तक पहुंच सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए डीपीआई को सभी वर्ग और समुदायों से बातचीत करके उनकी ज़रूरतों को ध्यान में रखकर अलग-अलग भाषाओं में विकसित किया जाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वंचित समुदायों जैसे विकलांग लोगों के लिए डिजिटल साक्षरता ट्रेनिंग की व्यवस्था करे, जिससे इसे समावेशी और सुलभ बनाने में सहायता मिल सके।

इसके अलावा प्राइवेसी और साइबर सुरक्षा पर भी ख़ास ध्यान देना चाहिए जिससे किसी भी तरह के दुरुपयोग बनने की आशंका कम कर इसे भरोसेमंद बनाया जा सके। इन सब के लिए निजी कंपनियों और ग़ैर सरकारी संगठनों की मदद भी ली जा सकती है। यह सिर्फ़ सुविधा और तकनीक ही नहीं बल्कि समानता, सशक्तीकरण और न्याय का एक ज़रिया भी बन सकता है। डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी इन चुनौतियों पर काम किया जाए तो यह भविष्य में क्रांतिकारी क़दम साबित हो सकता है, जो देश के प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाने के साथ ही देश के विकास में अहम भूमिका निभा सकता है।

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