जब भारत की सांस्कृतिक धरोहरों की बात होती है, तो आगरा का ताजमहल दुनिया भर में जाना जाता है। यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं, लेकिन उसी शहर की गलियों में एक और कहानी जन्म लेती है मज़दूरी, श्रम और शोषण की कहानी। बहुत कम लोगों को यह पता है कि आगरा न केवल एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है, बल्कि यह भारत के सबसे बड़े जूता निर्माण केंद्रों में से एक है। शहर में हज़ारों छोटी-बड़ी फैक्ट्री, वर्कशॉप और घरेलू इकाईयां हैं जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे काम करते हैं। यह इकाईयां हर महीने लाखों जूते तैयार करती है, जो भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में निर्यात होते हैं। फिल्मिंगइंडो में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, आगरा भारत में जूते बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है। यह देश में बेचे जाने वाले जूतों की कुल मांग का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा अकेले पूरा करता है।
भारत से विदेशों में भेजे जाने वाले जूतों में इसका 28 फीसद हिस्सा होता है। यहां का जूता कारोबार हर साल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा का होता है। यहां हर साल करीब 470 करोड़ रुपये के जूते बनाए जाते हैं। आगरा से जूते लेने वालों देशों में अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस, कनाडा, नीदरलैंड, साउथ अफ्रीका और स्पेन शामिल है। सीएलई के अनुसार आगरा में हर दिन लगभग 2,00,000 जोड़ी जूते बनाए जाते हैं। यहां का जूता बाजार ग्राहकों को जूतों के कई तरह के विकल्प देता है। यहां करीब 5,000 जूते की दुकानें हैं। यहां की लगभग 60 फीसद आबादी की रोज़ी-रोटी जूते के काम से जुड़ी है, खासकर हाथ से बनाए जाने वाले देशी जूतों पर। यह आंकड़े आगरा को भारतीय फुटवियर सेक्टर की रीढ़ साबित करते हैं। लेकिन, इस उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति कितनी भयावह है, इसपर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है।
भारत से विदेशों में भेजे जाने वाले जूतों में इसका 28 फीसद हिस्सा होता है। यहां का जूता कारोबार हर साल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा का होता है। यहां हर साल करीब 470 करोड़ रुपये के जूते बनाए जाते हैं।
अस्थायी रोजगार और कम बेतन की समस्या

जगदीशपुरा की रहने वाली संजन जो बाहरवीं कक्षा में पढ़ती है, पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने परिवार की मदद के लिए जूते सिलने का काम भी करती है। बह बताती हैं, “यहां जूते पीस रेट पर लाए जाते हैं, जिसमें एक जोड़ी जूते सिलने का मात्र 6 रुपये मिलता है। मैं स्कूल से लौटते ही जूते सिलने बैठ जाती हूं।“ संजन दिन में 8-10 घंटे बैठकर काम करती है, जिससे वह रोज़ाना 100 से 150 रुपये तक कमा लेती है। इस तरह वह न केवल अपनी पढ़ाई जारी रखती है बल्कि परिवार का आर्थिक सहयोग भी करती है। उसके अलावा, दलित बस्ती की अन्य महिलाओं ने भी अपने संघर्ष और रोज़गार से जुड़ी चुनौतियों को साझा किया। बातचीत में यह बात सामने आई कि आगरा में ज्यादातर महिलाएं, पुरुष और बच्चे भी इसी काम में जुड़े हुए हैं।
इनमें से अधिकतर दलित समुदाय के लोग हैं, जबकि कुछ मुस्लिम समुदाय के लोग भी जूते सिलने का काम करते हैं। महिलाओं ने बताया कि घर के कामकाज निपटाने के बाद जो भी समय बचता है, उसमें वे जूते सिलने का काम करती हैं। लेकिन इस मेहनत के बदले उन्हें मजदूरी बहुत कम मिलती है और काम में काफी समय लगता है। लगातार लंबे समय तक काम करने से आंखों पर असर पड़ता है, जिससे चश्मा लगाना पड़ता है और सिर दर्द की भी शिकायत रहती है। जूता उद्योग करीब 20 लाख लोगों को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है। इनमें से लगभग 75,000 लोग रजिस्टर्ड कंपनियों में काम करते हैं, जबकि करीब 1,25,000 लोग ऐसी फैक्ट्रियों या वर्कशॉप में काम करते हैं जो पंजीकृत नहीं है। काम मिलना यहां कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन काम की सुरक्षा और स्थिरता का अभाव है। इन श्रमिकों के पास न तो सुरक्षित कार्यस्थल है और न ही स्थायी रोजगार। न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती। यदि ये लोग बीमार हो जाते हैं, तो काम रुक जाता है और आय का साधन खत्म हो जाता है।
यहां जूते पीस रेट पर लाए जाते हैं, जिसमें एक जोड़ी जूते सिलने का मात्र 6 रुपये मिलता है। मैं स्कूल से लौटते ही जूते सिलने बैठ जाती हूं।“ संजन दिन में 8-10 घंटे बैठकर काम करती है, जिससे वह रोज़ाना 100 से 150 रुपये तक कमा लेती है।
दलित और मुस्लिम महिलाओं का श्रम और भेदभाव
फैक्टरी मे काम करने वाले श्रमिक प्रतिदिन 8 से 12 घंटे तक काम करते हैं । कम मजदूरी के कारण श्रमिकों को एक जोड़ी के हिसाब से दिए जाने वाले पैसों पर निर्भर रहना पड़ता है, जहां उनकी आय उनके दैनिक काम पर निर्भर करती है। आगरा के फुटवियर उद्योग में श्रमिकों की मासिक आय 5000 रुपये से 9000 रुपये के बीच होती है। इन्हें साल में 365 दिन काम करना पड़ता है क्योंकि इन्हें कोई साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलती। ठेका प्रणाली के कारण किसी प्रकार की नौकरी की सुरक्षा नहीं मिलती । कार्यस्थलों पर प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध नहीं होती। श्रमिकों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। कोई बीमा योजना या स्वास्थ्य देखभाल की सुविधा भी श्रमिकों को नहीं दी जाती।
आईडीएसएन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में चमड़ा बनाने के काम से जुड़ी सप्लाई चेन में काम करने वाली दलित महिलाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उन्हें उनके काम की सही मजदूरी नहीं मिलती । अक्सर उनके साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें सुरक्षित कामकाजी जगह नहीं मिलती और कई बार उन्हें यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत में जानवरों की खाल से जुड़ा काम ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर रह रहे समुदाय के लोगों को करना पड़ता है क्योंकि आज भी इस काम को अशुद्ध और अपवित्र माना जाता है । आईडीएसएन रिपोर्ट में बताया गया है कि आज भी यह काम ज़्यादातर दलित और मुस्लिम महिलाएं ही कर रही हैं।
आगरा के फुटवियर उद्योग में श्रमिकों की मासिक आय 5000 रुपये से 9000 रुपये के बीच होती है । इन्हें साल में 365 दिन काम करना पड़ता है क्योंकि इन्हें कोई साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलती ।
श्रमिकों के स्वास्थ्य पर प्रभाव और सुरक्षा की कमी
आगरा के जूता निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के स्वास्थ्य पर जो प्रभाव पड़ते हैं, वे गंभीर और चिंताजनक हैं। चमड़ा और जूता बनाने के काम में इस्तेमाल होने वाले विभिन्न रसायनों जैसे क्रोम, अमोनिया, सल्फ्यूरिक एसिड और अन्य केमिकल्स का लगातार संपर्क श्रमिकों के स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होता है। सेज जर्नल्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक क्रोमियम , जो चमड़े को टैन करने के लिए इस्तेमाल होता है, एक विषैला पदार्थ है। लंबे समय तक इसके संपर्क में आने से त्वचा पर गंभीर जलन, फफोले, एलर्जी और संक्रमण हो सकते हैं। इसके अलावा, क्रोम के कारण फेफड़ों और गुर्दे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कई मामलों में, चमड़ा टैनिंग से जुड़े केमिकल्स के कारण सांस संबंधी बीमारियां जैसे अस्थमा, और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं। अमोनिया और सल्फ्यूरिक एसिड के लगातार संपर्क में आने पर नाक, गले और फेफड़ों की झिल्ली प्रभावित होती है, जिससे सांस लेने में दिक्कत और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। जूता बनाने में लंबे घंटों तक एक ही स्थिति में बैठकर काम करना पड़ता है। इस वजह से श्रमिकों को मांसपेशियों में लगातार दर्द, कमर और रीढ़ की हड्डी में दर्द की समस्याएं होने लगती हैं। खासकर महिलाएं जो अक्सर घर के काम के बाद ये काम करती हैं, उन्हें थकान, सिरदर्द, और आंखों में लगातार जलन जैसी समस्याएं भी होती हैं।
सेज जर्नल्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक क्रोमियम , जो चमड़े को टैन करने के लिए इस्तेमाल होता है, एक विषैला पदार्थ है। लंबे समय तक इसके संपर्क में आने से त्वचा पर गंभीर जलन, फफोले, एलर्जी और संक्रमण हो सकते हैं। इसके अलावा, क्रोम के कारण फेफड़ों और गुर्दे पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
बाल श्रम की समस्या और शिक्षा का संकट

जूता उद्योग में बच्चे भी समान रूप से काम करते हैं जो एक बड़ी समस्या है । कई बार आर्थिक और सामाजिक स्थिति के कारण बच्चे मजबूरी में इस उधयोग में काम करते हैं । इससे उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है और उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। संजन जैसे कई बच्चे जो पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करते हैं, वे इस दुविधा में फंसे रहते हैं कि क्या वे अपने सपनों को पूरा कर पाएंगे । बाल श्रम की समस्या पूरी दुनिया में एक चुनौती है और यह बच्चों को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर प्रभावित करती है । रिसर्च गेट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में लगभग 1.2 करोड़ बच्चे 10 से 8 साल की उम्र के करीब हैं। इसके बावजूद, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार दुनिया में लगभग 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक के रूप में काम करते हैं। भारत की 2011 के सेंसस के मुताबिक, 5 से 14 साल की उम्र के करीब 10.1 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। बाल श्रम से बच्चों का शैक्षिक, मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है, इसलिए इसे रोकना बेहद जरूरी है।
आगरा की पहचान ताजमहल और पर्यटन के लिए होती है, वहीं यहां के जूता उद्योग में काम करने वाले दलित, मुस्लिम और गरीब वर्ग के श्रमिकों की कहानी अनसुनी रह जाती है। यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है, लेकिन श्रमिकों को उचित मजदूरी, सुरक्षित कार्यस्थल, स्वास्थ्य सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती। खासकर महिलाओं और बच्चों के साथ भेदभाव, शोषण और बाल श्रम की समस्या यहां आम है। इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब सरकार, उद्योग चलाने वाले और नागरिक समाज मिलकर श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करें । उनकी सुरक्षा और शिक्षा सुनिश्चित करें और बाल श्रम को पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रभावी कदम उठाएं।

