1970 के दशक में जब पश्चिमी देशों में नारीवाद का आंदोलन तेज हो रहा था, उसी समय एक और आंदोलन धीरे-धीरे उभर रहा था। यह आंदोलन सेक्स वर्कर्स के अधिकारों का आंदोलन था। इस आंदोलन की एक प्रमुख नेता मार्गो सेंट जेम्स थीं, जिनका पूरा नाम था मार्गरेट जीन मार्गो सेंट जेम्स है। मार्गो एक प्रमुख अमेरिकी नारीवादी, सेक्स वर्कर, और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने वाली सबसे पहली और प्रभावशाली हस्तियों में से एक मानी जाती हैं। उनका जीवन साहस, संघर्ष और परिवर्तन का प्रतीक है। उनका जन्म 12 सितंबर 1937 में बेलिंगहैम, वाशिंगटन अमेरिका में हुआ था। मार्गो एक कैथोलिक परिवार में जन्मीं और पली-बढ़ीं। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा बेलिंगहैम हाई स्कूल में पूरी की। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने शादी कर ली, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक नहीं चल सका।
कैसे उन्होंने अन्याय को आंदोलन में बदला
मार्गो साल 1960 के दशक में सैन फ्रांसिस्को चली गईं। वहां जाकर वे जल्दी ही बीटनिक कला-प्रेमी समुदाय से जुड़ गई। वे अपने घर में अक्सर बड़े-बड़े मेलजोल के कार्यक्रम रखती थीं, जहां मशहूर कलाकार जैसे फ्रैंक ज़प्पा भी आते थे। धीरे-धीरे पुलिस को इन बैठकों पर शक होने लगा और साल 1962 में मार्गो को गिरफ्तार कर लिया गया। उनपर सेक्स वर्क का झूठा आरोप लगाया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके घर में कई लोग आया-जाया करते थे। अदालत में मार्गो ने बताया कि उन्होंने पैसे लेकर कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाए, लेकिन अदालत ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया। उन्हें दोषी ठहराकर थोड़े समय के लिए जेल भेज दिया गया। लेकिन, इस अनुभव ने उन्हें भीतर तक झकझोर दिया। उन्होंने कहा कि एक बार जब औरत पर सेक्स वर्कर का ‘लेबल’ लग जाता है, तो समाज उसे कभी नहीं भूलता। इसके बाद, इस अन्याय के खिलाफ़ कुछ करने के लिए उन्होंने लॉ स्कूल में दाखिला लिया।
सेंट जेम्स एक प्रमुख अमेरिकी नारीवादी, सेक्स वर्कर, और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वे सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली सबसे पहली और प्रभावशाली हस्तियों में से एक मानी जाती हैं।
उन्होंने अपनी सजा के खिलाफ़ अपील की और बाद में कैलिफोर्निया की पहली महिला निजी जांचकर्ताओं में से एक बन गईं। उनकी पिछली सजा की वजह से उन्हें कई अच्छी नौकरियां नहीं मिल पाईं। इसके चलते उन्हें अपना खर्च चलाने के लिए कई तरह की छोटी-मोटी नौकरियां करनी पड़ीं, जैसे कि वैलेट पार्किंग करना, होस्टेस की नौकरी करना, और बाद में उन्होंने इस पहचान को हथियार बनाते हुए सेक्स वर्क भी किया। इसी समय मार्गो ने खुद को एक नारीवादी के रूप में पहचानना शुरू किया। उन्होंने यह समझा कि सेक्स वर्क भी एक तरह का श्रम है, और उन्होंने सेक्स वर्क से जुड़े लोगों के लिए अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना शुरू किया। यह वो दौर था जब उनका नारीवादी सोच और एक्टिविज्म मजबूत होता गया।
सेक्स वर्क को एक ‘काम’ समझना

मार्गो ने साल 1973 में सैन फ्रांसिस्को में एक संगठन की शुरुआत की, जिसका नाम था कोयोट (कॉल ऑफ़ यॉर ओल्ड टायर्ड एथिक्स)। इस संगठन को उन्होंने जेनिफर जेम्स, जोकि सिएटल में मानवविज्ञान की प्रोफेसर थीं, के साथ मिलकर शुरू किया। कोयोट को शुरुआत में ग्लाइड मेमोरियल चर्च से मदद मिली थी, जो एलजीबीटीक्यू+ आंदोलन का भी समर्थन करता था। इस चर्च ने साल 1974 में नेशनल हुकर्स कन्वेंशन यानी सेक्स वर्कर्स का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित करवाया और हर साल यह आयोजन होता था। इसी सम्मेलन से बाद में हुकर्स बॉल नाम की एक बड़ी वार्षिक पार्टी की शुरुआत हुई, जिसका नेतृत्व मार्गो ने साल 1978 तक किया। डेविड टैलबोट की किताब सीज़न ऑफ़ द विच के मुताबिक, 1978 में हुकर्स बॉल में लगभग 20,000 लोग शामिल हुए थे।
धीरे-धीरे पुलिस को इन बैठकों पर शक होने लगा और साल 1962 में मार्गो को गिरफ्तार कर लिया गया। उनपर सेक्स वर्क का झूठा आरोप लगाया गया, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके घर में कई लोग आया-जाया करते थे।
कोयोट संगठन का साफ़ मकसद था कि सेक्स वर्क को अपराध नहीं, बल्कि एक तरह का काम (श्रम) माना जाए। इसके ज़रिए वे यह मांग कर रही थीं कि सेक्स वर्कर्स को भी बाकी काम करने वालों की तरह कानूनी अधिकार, सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए। इसके अलावा वह टेंडरलॉइन में अपनी सेवाएं दे रहीं सेक्स वर्कर्स की सामाजिक और चिकित्सक सेवाओं के लिए सेंट जेम्स इनफर्मरी क्लीनिक की स्थापना की। कोयोट की स्थापना सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रही। इसकी गूंज फ्रांस, भारत और कई अन्य देशों तक पहुंची, जहां सेक्स वर्कर अपने हक के लिए आवाज़ उठाने लगे। मार्गो का सबसे बड़ा योगदान यही था कि उन्होंने सेक्स वर्क को श्रम के रूप में स्थापित करने का रास्ता दिखाया। मार्गो ने राजनीति में भी कदम रखा। उन्होंने सैन फ्रांसिस्को में चुनाव भी लड़ा ताकि वह सीधे सत्ता में आकर सेक्स वर्कर्स के लिए कानून बना सकें। हालांकि वह चुनाव नहीं जीत पाईं, लेकिन उनकी कोशिशों ने सेक्स वर्क को लेकर एक बड़ी बहस शुरू कर दी।
भारत में आंदोलन की गूंज

कोलकाता के सोनागाछी इलाके में, जो एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है, 1990 के दशक में एक संगठित आंदोलन ने जन्म लिया। यहां एक कमिटी तैयार हुई- दुर्बार महिला समन्वय कमेटी। इस संगठन सेक्स वर्कर्स ने खुद बनाया, और इसकी मांगें कोयोट जैसी ही थीं स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग सुविधाएं, और कानूनी सुरक्षा। संगठन महिलाओं के अधिकार, सेक्स वर्कर्स के अधिकार, मानव तस्करी के खिलाफ़ अभियान और एड्स की रोकथाम जैसे मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। भारत में, डीएमएससी ने न केवल एचआईवी रोकथाम के क्षेत्र में काम किया, बल्कि सेक्स वर्कर्स के लिए सहकारी बैंक, मुफ्त चिकित्सा केंद्र और स्कूल भी शुरू किए। मार्गो का बतौर नारीवादी मानना था कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर उन्हें और अधिक पुलिस नियंत्रण में धकेला जाता है। उनका कहना था कि गिरफ्तारी कोई सुरक्षा नहीं है। हमें हथकड़ियों के बिना सुरक्षा चाहिए। सेक्स वर्क का काम करने वालों को बचाने की जो नैतिकता है, वह अक्सर उनकी आवाज़ों को चुप कर देती है।
मार्गो का बतौर नारीवादी मानना था कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर उन्हें और अधिक पुलिस नियंत्रण में धकेला जाता है। उनका कहना था कि गिरफ्तारी कोई सुरक्षा नहीं है। हमें हथकड़ियों के बिना सुरक्षा चाहिए।
भारत में वीएएमपी (वेश्या अन्याय मुक्ति परिषद) नामक संगठन ने नाटकों और मंचन के माध्यम से सेक्स वर्कर्स की कहानियां समाज के सामने रखीं। इन कहानियों में वे अपनी पीड़ा, संघर्ष और आत्मसम्मान को बताती हैं। महाराष्ट्र और उत्तर कर्नाटक में सेक्स वर्क से जुड़ी लगभग 5,000 महिलाओं का यह एक सामूहिक संगठन है। साल 1990 से यह समूह सेक्स वर्कर्स के स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से जुड़े मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। यह स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सशक्त सेक्स वर्कर्स कलेक्टिव का आदर्श उदाहरण माना जाता है। खास बात यह है कि वीएएमपी न केवल सेक्स वर्क में शामिल अपने समुदाय के साथ काम करता है, बल्कि क्षेत्र में परिवहन और प्रवासी श्रमिकों के साथ भी जुड़ा हुआ है।
सेक्स वर्कर्स का आज भी जारी है संघर्ष

मार्गो सेंट जेम्स का निधन 83 साल की उम्र में 11 जनवरी 2021 को हुआ। उनका आंदोलन आज भी जीवित है। आज जब नैतिकता, कानून और नारीवाद की नई व्याख्याएं हो रही हैं, तब मार्गो की आवाज़ उनके संगठनों, जीवनी के माध्यम से समाज में गूंजती है। इतने काम और लड़ाइयों के बावजूद आज भी, दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों में सेक्स वर्क अभी भी अपराध माना जाता है, और सेक्स वर्कर्स की आवाज़ मुख्यधारा में दब जाती हैं। उन्होंने ऐसे सवाल उठाए जो असहज लेकिन ज़रूरी थे। उन्होंने सेक्स वर्क को समाज के हाशिए से उठाकर सार्वजनिक मंच पर खड़ा किया, और उन्हें हक़ दिलाने की लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। मार्गो ने जब इनके अधिकारों के बारे में बात की, उस समय लोग इस काम को अपराध और शर्म से जोड़ते थे। उन्होंने इस सोच को बदलने की कोशिश की और एक ऐसा आंदोलन शुरू किया, जिसने दुनिया भर में बहुत सी महिलाओं की आवाज़ उठाई। उन्होंने यह बताया कि सेक्स वर्क भी एक काम है और इसमें काम करने वाले लोगों को भी अधिकार, इज़्जत और सुरक्षा मिलनी चाहिए, जैसे हर दूसरे कामकाजी को मिलती है।
उन्होंने सेक्स वर्क को समाज के हाशिए से उठाकर सार्वजनिक मंच पर खड़ा किया, और उन्हें हक़ दिलाने की लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। मार्गो ने जब इनके अधिकारों के बारे में बात की, उस समय लोग इस काम को अपराध और शर्म से जोड़ते थे।
उनका संघर्ष सिर्फ यह काम करने वालों के लिए नहीं था, बल्कि उस सामाजिक ढांचे के खिलाफ था जो महिलाओं की आज़ादी और उनके अपने फैसले करने के अधिकार को रोकता है। भारत जैसे देश में, महिला समन्वय समितियां और वीएएमपी जैसे समूहों पर मार्गो के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने यह बताया कि महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर पुलिस या कानून का दखल असल में उन्हें और खतरे में डालता है। आज जब हम लैंगिक समानता, काम के अधिकार और मानव गरिमा जैसे मुद्दों पर बात करते हैं, तो मार्गो की सोच और भी महत्वपूर्ण लगती है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि बदलाव केवल कानून बनाने से नहीं, बल्कि सोच, संगठन और लगातार प्रयास करने से आता है। उन्होंने हाशिये पर स्थित लोगों की आवाज़ों को न सिर्फ सुना, बल्कि उन्हें नेतृत्व करने की ताकत भी दी। यही मार्गो की सबसे बड़ी महानता है।