अमृता प्रीतम की कहानी ‘जंगली बूटी’ प्रेम में पड़ने और उसकी वेदनाओं में तड़पने और उसके साथ ही प्रेम की संवेदना से अनभिज्ञता से जूझती एक भोली-भाली गांव में रहने वाली एक युवती की कहानी है। महिलाओं के लिए ये समाज इतना जकड़ा हुआ है कि खुद के भीतर जन्म लेनी वाली प्राकर्तिक संवेदनाओं को बहुत बार वो पहचान नहीं पातीं। वे समाज की बनी-बनायी परंपराओं और धारणाओं में इस कदर जकड़ी होती हैं कि अपनी इच्छा और चयन को अनदेखा करती रहती हैं। जंगली बूटी कहानी की नायिका अंगूरी एक ऐसी ही ग्रामीण युवती है, जिसे अपने पति के मित्र से प्रेम हो जाता है और उसे वो प्रेम किसी जंगली बूटी का असर लगता है।
लेखिका कहती हैं कि अंगूरी, मेरे पड़ोसियों के बहुत पुराने नौकर की नई बीवी है। यानी उसका पति पहले भी एक बार शादी कर चुका है, इसलिए उसे दुहाजू कहा जाता है। अगर जू का मतलब जून यानी समय या दौर मानें, तो इसका मतलब हुआ कि उसका पति दूसरी शादी के दौर में है और अंगूरी की अभी पहली शादी हुई है इसलिए वह नई हुई। दूसरी वजह ये है कि शादी के बाद अंगूरी को ससुराल आए यानी गौना हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं, और वो सारे महीने मिलकर भी एक साल पूरे नहीं बनेंगे ।
कहानी के संवाद भारतीय समाज के मर्दवादी व्यवस्था महिलाओं की स्थित को साफ दिखते हैं। आखिर उस एक ही काम को करने से कैसे एक महिला को पाप लगता है और पुरूष को नहीं लगता। अंगूरी के गांव में शादी के समय लड़कियां अपने पति को नहीं देखती , ये बात महज अंगूरी के गांव की बात नहीं लगभग भारतीय समाज में यही चलन है।
अंगोछा निचोड़ना एक अनोखा विवाह रिवाज
कहानी की नायिका है अंगूरी जिसकी बचपन में ही अपनी उम्र से बहुत बड़े पुरूष के साथ शादी कर दी गयी थी। अंगूरी के पति का नाम प्रभाती है जो शहर में चौकीदार की नौकरी करता है। जब प्रभाती की पहली पत्नी की मौत हुई और उसके अंतिम संस्कार के समय रस्में हो रही थीं, तब अंगूरी के पिता ने अपना अंगोछा निचोड़ दिया था यानी इशारा कर दिया था कि वे अपनी बेटी की शादी प्रभाती से करने को तैयार हैं। गांव में एक पुराना रिवाज है कि जब किसी आदमी की पत्नी मर जाती है, तो उसकी मौत के चौथे दिन अगर कोई व्यक्ति उसे नहाने के बाद का अंगोछा निचोड़ दे, तो इसका मतलब होता है कि वह अपनी बेटी की शादी उस आदमी से करना चाहता है।

इसी रिवाज के चलते अंगूरी के पिता ने चौथे दिन प्रभाती का अंगोछा निचोड़ दिया था, और फिर अंगूरी की शादी प्रभाती से हो गई। लेकिन गौना टाल दिया गया था क्योंकि अंगूरी की उम्र तब बहुत कम थी। पांच साल बाद गौना कराकर प्रभाती अंगूरी को लेकर शहर आता है। पहले तो मलिक लोग अंगूरी के आने का ऐतराज किये। लेकिन जब प्रभाती ने यह बात कही कि वह कोठरी के पीछे वाली कच्ची जगह को पोतकर अपना चूल्हा बनाएगी, अपना पकाएगी, अपना खाएगी तो उसके मालिक यह बात मान गये थे। गांव की दुनिया से निकल आयी अंगूरी उसी कोठरी में पड़ी रहती थी और मुहल्ले के पुरुषों से ही नहीं बल्कि महिलाओं के सामने भी घूंघट रखती थी।
महिलाओं के लिए ये समाज इतना जकड़ा हुआ है कि खुद के भीतर जन्म लेनी वाली प्राकर्तिक संवेदनाओं को बहुत बार वो पहचान नहीं पातीं। वे समाज की बनी-बनायी परंपराओं और धारणाओं में इस कदर जकड़ी होती हैं कि अपनी इच्छा और चयन को अनदेखा करती रहती हैं।
लेखिका कहती हैं कि फिर धीरे-धीरे उसका घूंघट झीना हो गया था। वह पैरों में चांदी की पायल पहनकर छनक-छनक करती मुहल्ले की रौनक बन गयी थी। एक पायल उसके पैरों ने पहनी होती, एक उसकी हंसी ने। चाहे वह दिन का ज्यादा समय अपनी कोठरी में ही रहती थी पर जब भी बाहर निकलती, एक रौनक़ उसके पैरों के साथ-साथ चलती थी।धीरे-धीरे गर्मियों के मौसम आने तक अंगूरी अपनी कोठरी से निकल कर बाहर बैठने लगती है और लेखिका से बातें करने लगती है। अंगूरी पढ़ाई को पाप और प्रेम को जंगली बूटी का प्रभाव मानती है। इस कहानी में लेखिका और अंगूरी के जो संवाद हैं वो बहुत दिलचस्प और कहानी के तारों को खोलते चले जाते हैं। वह एक बहुत ही छोटी और मासूम लड़की है, जो गांव में पली-बढ़ी है। वह इतनी भोली-भाली है कि उसे लगता है कि किताब पढ़ना गलत या पाप की बात है। जब लेखिका ने उससे पूछा तुम पढ़ोगी ? मेरे को पढ़ना नहीं आता। लेखिका कहती हैं कि सीख लो, तो वह कहती है न।
‘‘क्यों ?’’
‘‘औरतों को पाप लगता है पढ़ने से।’’
‘‘औरतों को पाप लगता है, मर्द को नहीं लगता ?’’
‘‘ना, मर्द को नहीं लगता ?’’
‘‘यह तुम्हें किसने कहा है ?”
‘‘मैं जानती हूं ।’’
“फिर तो मैं पढ़ती हूं मुझे पाप लगेगा?’’
‘‘सहर की औरत को पाप नहीं लगता, गांव की औरत को पाप लगता है।’’
प्रेम और पाप के बीच उलझी अंगूरी की दुनिया
कहानी के संवाद भारतीय समाज के मर्दवादी व्यवस्था महिलाओं की स्थित को साफ दिखते हैं। आखिर उस एक ही काम को करने से कैसे एक महिला को पाप लगता है और पुरूष को नहीं लगता। अंगूरी के गांव में शादी के समय लड़कियां अपने पति को नहीं देखती , ये बात महज अंगूरी के गांव की बात नहीं लगभग भारतीय समाज में यही चलन है। लेखिका जब इस बात को हैरान होकर देखती है तो अंगूरी उसे सहज करने के लिए कहती है कि जो लड़कियां प्रेम करती हैं, वे देखती हैं। लेखिका पूछती तुम्हारे गांव में लड़कियां प्रेम करती हैं? अंगूरी कहती है कि कुछ लड़कियां प्रेम कर लेती हैं।

ये प्रेम इस प्रक्रिया में होता है कि जब कोई आदमी किसी औरत को कुछ खिला देता है, तो औरत उस आदमी से प्रेम करने लगती है। अंगूरी प्रेम करने की इस बात को बड़े पाप की तरह देखती है। अंगूरी कहती है कि एक जंगली बूटी होती है। बस वही पान में डालकर या मिठाई में डाल कर खिला देता है और लड़की उससे प्रेम करने लग जाती है। फिर उसे वही अच्छा लगता है, दुनिया का और कुछ भी अच्छा नहीं लगता। अंगूरी का मानना है कि प्रेम हो जाने पर लड़कियां पागल हो जाती हैं और उस लड़के के साथ कहीं भी चली जाती हैं। वह लेखिका से अपनी एक सहेली का किस्सा बताती है कि उसे कैसे जंगली बूटी खाने से प्रेम हो गया था और कैसे वो दिन-रात रोती थी और कोई गीत गाती रहती थी।
अंगूरी की बचपन में ही अपनी उम्र से बहुत बड़े पुरूष के साथ शादी कर दी गयी थी। अंगूरी के पति का नाम प्रभाती है जो शहर में चौकीदार की नौकरी करता है। जब प्रभाती की पहली पत्नी की मौत हुई और उसके अंतिम संस्कार के समय रस्में हो रही थीं, तब अंगूरी के पिता ने अपना अंगोछा निचोड़ दिया था।
कहानी अपने शीर्षक तक तब पहुंचती है जब एकदिन भोली-भाली अंगूरी को भी प्रेम हो जाता है। समाज की संरचना में महिला इस कदर ढल जाती है कि अपने अंदर की प्राकर्तिक संवेदना को भी स्वीकार नहीं कर पाती। हर इंसान के अंदर प्रेम जन्म ले सकता है उसके लिए किसी भी तरह की अनिवार्यता नहीं होती। किशोरावस्था में प्यार बहुत गहरा और तेज होता है, क्योंकि उस समय दिल के जज़्बात बहुत मजबूत और गहरे होते हैं। सरल शब्दों में कहें तो, यह वो उम्र होती है जब प्यार बहुत खास और ज्यादा महसूस होता है।
अंगूरी के जीवन में आया ये पहला प्रेम था जिसने उसे विकल या परेशान कर दिया था। दरअसल अंगूरी को जिस रामतारा नाम के युवक से प्रेम होता है वो मुहल्ले का दूसरा चौकीदार था। वह रोज सुबह दूध लाकर अंगूरी की कोठरी में चाय बनाता था और तीनों अंगूरी ,प्रभाती और रामतारा मिलकर चाय पीते थे। रामतारा से अपने भीतर जन्मे अनुराग को अंगूरी नहीं पहचान रही है लेकिन उसके चले जाने के बाद एकदम उदास हो गई है। उसे लगता है कि रामतारा ने उसे वही जंगली बूटी चाय में मिलाकर पिला दी है। अंगूरी अब रो कर वही गीत गाती हैं जो उसकी सहेली गाती थी।लेखिका के पास जब अंगूरी आती है तो अपने पढ़ने की बात करती है। लेखिका छेड़ती है कि अब पाप नहीं लगेगा और हंसकर कहती है कि कहीं तुमने भी जंगली बूटी तो नहीं खा ली।
समाज ने महिला के संसार को इतना सीमित कर दिया है कि जब वह प्रेम में पड़ती है तो उसके लिए वही संसार बन जाता है। इस प्रेम नाम की संवेदना महिला जहां बहुत दुख दिए वहीं इसी संवेदना ने उसे बहुत हिम्मत और साहस भी दिया है। अंगूरी एक ग्रामीण लड़की है बचपन में ही उसकी शादी अपने बहुत बड़े आदमी से कर दी गई थी इसलिए प्रेम की निजी अनुभवों से भी वह अंजान है।
अधूरा प्रेम, अनजाना डर और अंगूरी की चुप होती आवाज़

कहानी का दृश्य बहुत मार्मिक हो जाता है जब मासूमियत से अंगूरी अपने प्रेम को जादू-टोने की तरह देखती है। वह लेखिका से अपना दुख कहते हुए रो पड़ती है। रोते हुए कहती है कि मैंने तो सिर्फ चाय पी थी, कसम लगे न कभी उसके हाथ से पान खाया, न मिठाई, सिर्फ चाय जाने उसने चाय में ही क्या डाल दिया और अंगूरी की बाकी आवाज़ आंसुओ में डूब गयी। समाज ने महिला के संसार को इतना सीमित कर दिया है कि जब वह प्रेम में पड़ती है तो उसके लिए वही संसार बन जाता है। इस प्रेम नाम की संवेदना महिला जहां बहुत दुख दिए वहीं इसी संवेदना ने उसे बहुत हिम्मत और साहस भी दिया है। अंगूरी एक ग्रामीण लड़की है बचपन में ही उसकी शादी अपने बहुत बड़े आदमी से कर दी गई थी इसलिए प्रेम की निजी अनुभवों से भी वह अंजान है। अंगूरी प्रेम के संवेगो से भरी हुई है उसे रामतारा की बहुत ज्यादा याद आ रही है लेकिन उसे लगता है कि रामतारा ने चाय में ही मिलाकर उसे जंगली बूटी खिला दी।
कहानी जंगली बूटी एक तंज भी उस समाज पर जिसने महिलाओं को उनकी इच्छा चयन और अधिकार से इतना दूर रखा । समाज की पुरानी परंपराओं और नियमों को ही वो जीवन का एकमात्र सत्य मानने लगती हैं। कहानी जैसे मुसकुराते हुए नायिका अंगूरी की पीड़ा को पन्नो पर दर्ज कर रही है। समाज में महिलाओं के यौनिक अधिकार के हनन की परम्परा , लड़कियों की शादी कर उनसे पीछा छुड़ाने की मानसिकता कितनी ही बेमेल शादियों का दुखद अनुभव है । अपनी उम्र से बहुत बड़े प्रभाती से विवाह करके किशोर अंगूरी शहर तो आ गई, लेकिन मनपसंद साथी की इच्छा भीतर दबी रह गई । मन का दुख कभी कभी न चाहने पर भी अनजाने रिश्तों में जकड़ देता है। इस कहानी में प्रेम में पड़ी महिला का दुख और प्रेम से उसकी अनभिज्ञता भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में एक महिला की स्थिति को बेहद सटीक दिखाता है। शिक्षा का अभाव ,वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव मनुष्य को कितने तरह का दुख दे सकता है कहानी बताती है।