इंटरसेक्शनलहिंसा पितृसत्ता और सामाजिक विफलता है बच्चियों के साथ होता यौन शोषण

पितृसत्ता और सामाजिक विफलता है बच्चियों के साथ होता यौन शोषण

रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर तीन में से एक महिला ने बचपन में यौन शोषण का सामना किया है। इसमें साफ होता है कि छोटी बच्चियों और किशोरियों के साथ होने वाली यौन शोषण के सन्दर्भ में देश की स्थिति गंभीर है।

हाल ही में बांदा में 3 साल की एक छोटी बच्ची के साथ उसके पड़ोस में रहने वाले युवक ने कथित तौर पर बलात्कार किया और उसे गंभीर हालत में जंगल में फेंक दिया। इस घटना के कुछ दिनों बाद ही बच्ची की मौत हो गई। बाद में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया। कुछ इसी तरह की घटना लखनऊ में हुई जहां माता-पिता के साथ फुटपाथ पर सो रही 3 साल की बच्ची को एक युवक उठाकर एकांत में ले गया और उसने उसके साथ बलात्कार किया। इस घटना का कथित आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारा गया। हम अखबारों में आए दिन ही इस किस्म की घटनाओं से दो-चार होते रहते हैं।

ये एकल घटनाएं नहीं हैं, बल्कि ये एक बढ़ते हुए और भयावह चलन की ओर इशारा करती हैं। हाल ही में लैन्सेट का एक अध्ययन जारी किया गया। इसमें अनुमान लगाया गया कि साल 1990 से लेकर 2023 तक 204 देशों में बच्चों के खिलाफ़ यौन शोषण कितना आम है। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर तीन में से एक महिला ने बचपन में यौन शोषण का सामना किया है। इसमें साफ होता है कि छोटी बच्चियों और किशोरियों के साथ होने वाली यौन शोषण के सन्दर्भ में देश की स्थिति गंभीर है।

लैन्सेट का एक अध्ययन जारी किया गया। इसमें अनुमान लगाया गया कि साल 1990 से लेकर 2023 तक 204 देशों में बच्चों के खिलाफ़ यौन शोषण कितना आम है। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर तीन में से एक महिला ने बचपन में यौन शोषण का सामना किया है।

बच्चियों का यौन शोषण और कारण 

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

साल 2024 में द इकोनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक आंकड़े दिखाते हैं कि साल 2016 से साल 2022 के बीच बच्चों के साथ बलात्कार की घटनाओं में 96 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई। इसके पीछे की एक वजह यह जरूर है कि अब लोग ऐसे मामलों की शिकायत को लेकर पहले से कहीं ज़्यादा जागरूक हुए हैं। पहले ऐसे मामले सामाजिक कलंक और डर की वजह से सामने नहीं आ पाते थे। दूसरी एक वजह यह है कि छोटी बच्चियों के साथ यौन हिंसा करना किसी वयस्क के साथ यौन हिंसा की तुलना में कई गुना ज़्यादा आसान होता है। कई बार वे विरोध करने में सक्षम नहीं होतीं। वहीं कई मामलों में सेक्शुअल एजुकेशन की कमी में बच्चों के साथ किसी करीबी का यौन हिंसा करना और आसान होता है। इतनी छोटी उम्र में बच्चों का यह समझना मुश्किल होता है कि उनके साथ क्या हुआ और अक्सर आरोपी बच्चों को घरवालों को न बताने के लिए डराते और धमकाते हैं।  

बच्चियों पर यौन हिंसा का प्रभाव  

यौन हिंसा का सामना चाहे कोई व्यक्ति किसी भी उम्र में करे, यह एक सदमे से भरा अनुभव होता है और इससे उबरने में सालों लग सकते हैं। कभी-कभी इसका प्रभाव आजीवन हो सकता है। बचपन में यौन हिंसा का सामना करने वाली लड़कियों के चुनौतियों को अगर समय पर संबोधित न किया जाए, तो उनका वयस्क जीवन मुश्किल हो सकता है। साइकोलॉजी टुडे में छपे एक लेख के अनुसार बचपन में यौन हिंसा का सामना करने वाले लोगों में आगे चलकर एंग्ज़ायटी, अवसाद और पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर होने की संभावना ज़्यादा होती है। ऐसे लोगों में आत्महत्या से मौत के प्रयास करने की गुंजाइश आम लोगों से ढाई गुना ज़्यादा होती है। इसके अलावा, वे आगे चलकर निजी रिश्तों में और रोमांटिक पार्टनर्स के साथ यौन संबंधों में ज़्यादा समस्याओं का सामना करते हैं। ऐसे बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। 

यह समझने की जरूरत है कि यौन हिंसा के साथ पावर डाइनैमिक्स, पितृसत्ता और सामाजिक मानदंड का आपस में गहरा संबंध है। ये सभी तत्व एक-दूसरे को मज़बूत करते हैं और एक ऐसी संरचना तैयार करते हैं, जहां यौन हिंसा न केवल होती है, बल्कि अक्सर सामान्य बता दी जाती है।

क्या हो सकते हैं समाधान 

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

यह समझने की जरूरत है कि यौन हिंसा के साथ पावर डाइनैमिक्स, पितृसत्ता और सामाजिक मानदंड का आपस में गहरा संबंध है। ये सभी तत्व एक-दूसरे को मज़बूत करते हैं और एक ऐसी संरचना तैयार करते हैं, जहां यौन हिंसा न केवल होती है, बल्कि अक्सर सामान्य बता दी जाती है। पितृसत्ता एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें पुरुषों को महिलाओं और हाशिये के समुदायों पर पर ज़्यादा अधिकार और नियंत्रण मिलता है। यह नियंत्रण केवल घर या समाज में नहीं, बल्कि कानून, शिक्षा, कामकाज और मीडिया में भी देखा जाता है। जब समाज का एक वर्ग हमेशा हावी रहता है, और बाकी को चुप रहने की सोशल कन्डिशनिंग की जाती है, तब यह पावर डाइनैमिक्स में असंतुलन पैदा करते हैं और यौन हिंसा का कारण बनता है। बलात्कार की घटनाएं समाज में गहरे पैठी लैंगिक असमानता को दिखाती है, जिनका हल आरोपियों को महज मौत की सज़ा सुनाना तो कतई नहीं है। 

बलात्कार को लेकर लोगों की मानसिकता में भी बदलाव की ज़रूरत है। आज भी न सिर्फ आम जनता बल्कि न्यायालयों में भी बलात्कार या यौन हिंसा के लिए जिम्मेदार महिला को ही ठहराए जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। कभी उनके कपड़ों, कभी चाल-चलन तो कभी देर रात बाहर निकलने को यौन हिंसा का कारण बताते हुए विक्टिम ब्लेमिंग की जाती है।

बलात्कार को लेकर लोगों की मानसिकता में भी बदलाव की ज़रूरत है। आज भी न सिर्फ आम जनता बल्कि न्यायालयों में भी बलात्कार या यौन हिंसा के लिए जिम्मेदार महिला को ही ठहराए जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। कभी उनके कपड़ों, कभी चाल-चलन तो कभी देर रात बाहर निकलने को यौन हिंसा का कारण बताते हुए विक्टिम ब्लेमिंग की जाती है। वहीं जब किसी जान-पहचान के व्यक्ति या रिश्तेदार किसी बच्ची के साथ यौन हिंसा करते हैं, तो परिवार के लोग उस मामले को दबाने की पुरजोर कोशिश करते हैं। महिलाएं और बच्चियां न तो घरों में सुरक्षित हैं और न ही घर से बाहर। जब तक पितृसत्ता, असमान सामाजिक मानदंड और शक्ति का असंतुलन मौजूद हैं, तब तक यौन हिंसा एक व्यापक सामाजिक समस्या बनी रहेगी। इसके समाधान के लिए न केवल कानून, बल्कि सामाजिक सोच, संस्थागत बदलाव और सामूहिक जागरूकता की भी आवश्यकता है।

इस तरह की घटनाओं में कमी आए इसके लिए हमें ऐसा समाज बनाने की ज़रूरत है जिसमें बच्चियों के साथ होने वाली यौन हिंसा पर खुलकर बात हो। स्कूलों में सेक्शुअल एजुकेशन की शुरुआत हो। साथ ही माता-पिता को भी इस बारे में तैयार किया जाए कि वे घर में इस मुद्दे पर बातचीत कैसे करें। अगर बच्चियों के साथ ऐसा कुछ हो तो वे अपने माता-पिता को भी खुलकर बता सकें ताकि अपराधियों पर समय पर कार्रवाई हो सके। हालांकि पहले की तुलना में ऐसे मामलों को लेकर चुप्पी कुछ हद तक टूटी है, लेकिन अभी हमें इस दिशा में और ज़्यादा प्रयास करने की ज़रूरत है। यौन हिंसा से बच्चों की सुरक्षा एक मानवाधिकार से जुड़ा मसला है। बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के साथ-साथ इसका सामना कर चुकी बच्चियों को उचित देख-रेख और परामर्श मुहैया करवाना भी ज़रूरी है।  

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