यौन हिंसा एक गहरी सामाजिक और जटिल समस्या है, जो अक्सर शक्ति, जेंडर और नियंत्रण से जुड़ी होती है। जब यह हिंसा युद्ध, सशस्त्र संघर्ष या जातीय तनावों के दौरान होती है, तो इसे सिर्फ व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसे ही संघर्ष-संबंधी यौन हिंसा (सीआरएसवी) कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ऐसे मामलों में राजनीतिक, सैन्य या आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर नागरिकों को जानबूझकर निशाना बनाया जाता है। यह हिंसा सामाजिक ताने-बाने को तोड़ती है, विस्थापन बढ़ाती है और सशस्त्र गतिविधियों को बढ़ावा देती है। सीआरएसवी में बलात्कार, यौन दासता, जबरन विवाह, जबरन गर्भधारण या नसबंदी जैसे अपराध शामिल होते हैं। इस हिंसा से सबसे अधिक महिलाएं और लड़कियां प्रभावित होती हैं, खासकर वे जो पहले से ही हाशिए पर हैं। कई बार यह हिंसा आतंकी या गैर-राज्य सशस्त्र समूहों द्वारा जातीय, धार्मिक या लैंगिक पहचान के आधार पर की जाती है। संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में कमजोर कानून व्यवस्था भी न्याय की राह में बाधा बनती है।
क्या है सीआरएसवी का मकसद

दरअसल सीआरएसवी यौन हिंसा का वह रूप है जो संघर्ष और अस्थिरता के माहौल में फैलता है। यह हिंसा सिर्फ किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं होती, बल्कि पूरी की पूरी आबादी को नीचा दिखाने, डराने और नियंत्रित करने के लिए की जाती है। संघर्ष-संबंधी यौन हिंसा का मकसद लोगों को अपमानित करना, आत्मविश्वास तोड़ना और खासकर महिलाओं को समाज में कथित तौर पर असम्मान कर, अदृश्य बनाकर हिंसा का बदला लेना होता है। अक्सर यह हिंसा महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से अलग होने पर मजबूर करती है और उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया से दूर कर देती है। जैसे सामान्य हालातों में यौन हिंसा एक सामाजिक पितृसत्तात्मक व्यवस्था से जन्म लेती है, वैसे ही सीआरएसवी भी उस व्यवस्था का हिंसक और संगठित विस्तार है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ऐसे मामलों में राजनीतिक, सैन्य या आर्थिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर नागरिकों को जानबूझकर निशाना बनाया जाता है। यह हिंसा सामाजिक ताने-बाने को तोड़ती है, विस्थापन बढ़ाती है और सशस्त्र गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
इसमें महिलाएं, लड़कियां, ट्रांस, क्वीयर और विकलांग समुदाय के लोग विशेष रूप से प्रभावित होते हैं, क्योंकि वे पहले से ही सामाजिक और लैंगिक असमानताओं का सामना कर रहे होते हैं। सीआरएसवी एक ऐसा टूल बन जाता है, जिससे महिलाओं की ‘इज्जत’ को कथित तौर पर चोट पहुंचाकर दुश्मन समुदाय को तोड़ने की कोशिश की जाती है। यह सिर्फ यौन अपराध नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, जातीय और सामुदायिक पहचान पर हमला है। संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा, यौन हिंसा के दूसरे रूपों की तरह ही, सर्वाइवर को मानसिक, सामाजिक और शारीरिक रूप से गहरे ज़ख्म देती है। लेकिन इसकी गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब सर्वाइवर को न्याय, स्वास्थ्य सेवाएं और पुनर्वास सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हो पातीं।
संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा के पीछे के कारण और विभिन्न घटनाएं
सशस्त्र संघर्षों के दौरान यौन हिंसा को एक रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। विरोधी समुदाय को शर्मिंदा करने, उनकी कथित तौर पर ‘इज़्ज़त’ को नुकसान पहुंचाने और उनके मनोबल को तोड़ने के लिए यौन हिंसा को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया जाता है। सीआरएसवी की जड़ें पितृसत्ता में हैं, जहां महिलाओं और हाशिए पर मौजूद समुदायों को ‘संपत्ति या सम्मान का प्रतीक’ माना जाता है। इसलिए युद्ध के समय उन्हें टारगेट बनाकर पूरी जाति या समुदाय को अपमानित किया जाता है। संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में अक्सर न्यायिक और कानूनी संस्थान कमजोर या निष्क्रिय हो जाते हैं। इसका लाभ उठाकर अपराधी बिना किसी डर के यौन हिंसा को अंजाम देते हैं। कई बार सेना, अर्धसैनिक बल या विद्रोही समूह खुद इस हिंसा में शामिल होते हैं। इन संस्थानों के भीतर की मर्दवादी संस्कृति, सत्ता और नियंत्रण की मानसिकता यौन हिंसा को बढ़ावा देती है।
सीआरएसवी की जड़ें पितृसत्ता में हैं, जहां महिलाओं और हाशिए पर मौजूद समुदायों को ‘संपत्ति या सम्मान का प्रतीक’ माना जाता है। इसलिए युद्ध के समय उन्हें टारगेट बनाकर पूरी जाति या समुदाय को अपमानित किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय कानून अनुसंधान सोसायटी में छपे शोध में बताया गया है कि ‘कश्मीर मीडिया सर्विस’ की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 1989 से 2020 के बीच कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा 11,224 महिलाओं का बलात्कार किया गया। इनमें 11 साल की बच्चियों से लेकर 60 साल की बुज़ुर्ग महिलाएं तक शामिल थीं। यह आंकड़ा न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करता है कि लंबे समय से महिलाओं को संघर्षों और सैन्य कार्रवाई में दोहरा हिंसा और हाशिएकरण का सामना करना पड़ रहा है।
3 मई 2023 को भारत के मणिपुर राज्य में जातीय हिंसा की शुरुआत हुई, लेकिन इस संघर्ष की सबसे भयानक घटना दो महीने बाद तब सामने आई जब एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में दर्जनों पुरुष दो कुकी आदिवासी महिलाओं को बिना कपड़ों के सड़कों पर परेड कराते और उनके साथ यौन हिंसा करते हुए दिखाई दिए। इस घटना की सर्वाइवर की प्राथमिकी के अनुसार, युवती के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि दूसरी महिला को गंभीर शारीरिक और मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ा।

हालांकि यह घटना काफी पहले घटी थी लेकिन मणिपुर में इंटरनेट पर लगे प्रतिबंधों के कारण यह वीडियो दो महीने बाद सामने आया। इस घटना से समझ आता है कि कैसे संघर्ष से जुड़ी यौन हिंसा को महिलाओं को टारगेट करते हुए की जाती है। स्पष्ट है कि कैसे किसी समुदाय को निशाना बनाने के लिए महिलाओं के शरीर को सबसे आसान और प्रतीकात्मक ‘रणभूमि’ बना दिया जाता है। एक ऐसा हिन्सा-युक्त संदेश जो पूरी जाति या जनजाति को अपमानित करने के लिए इस्तेमाल होता है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में बताया गया कि जम्मू और कश्मीर में भारतीय पुलिस, सेना और खुफिया एजेंसियों ने आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान वहां कई बार यौन हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज़्यादा बलात्कार; तलाशी और दमन अभियानों के वक्त होते हैं। इन अभियानों में अक्सर पुरुषों को पहचान के नाम पर घर से बाहर खड़ा कर दिया जाता है, जबकि सुरक्षा बल उनके घरों की तलाशी लेते हैं। इस दौरान अक्सर महिलाओं को यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में महिलाओं के साथ सिर्फ इसलिए यौन हिंसा होती है क्योंकि वे उस इलाके में मौजूद होती हैं, जहां सुरक्षा अभियान चल रहा होता है। ह्यूमन राइट्स वॉच के मुताबिक सुरक्षा बल इन अभियानों के दौरान यौन हिंसा का इस्तेमाल लोगों को डराने, अपमानित करने और सामूहिक रूप से सज़ा देने के लिए करते हैं।
3 मई 2023 को भारत के मणिपुर राज्य में जातीय हिंसा की शुरुआत हुई, लेकिन इस संघर्ष की सबसे भयानक घटना दो महीने बाद तब सामने आई जब एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में दर्जनों पुरुष दो कुकी आदिवासी महिलाओं को बिना कपड़ों के सड़कों पर परेड कराते और उनके साथ यौन हिंसा करते हुए दिखाई दिए।
युद्ध और अशांति वाले इलाकों में यौन हिंसा

विद्रोही और आतंकी संगठन भी महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, खासकर तब जब वे सुरक्षा बलों की कार्रवाई का बदला लेना चाहते हैं। कई बार वे उन परिवारों की महिलाओं को टारगेट करते हैं जिनपर संदेह होता है कि उन्होंने सेना या पुलिस की किसी भी तरह से मदद की है। ऐसे मामलों में महिलाओं का अपहरण कर यौन हिंसा की जाती है और कई बार इससे पहले उनके परिवार के किसी सदस्य की हत्या कर तक दी जाती है। जब कोई महिला हिम्मत करके यौन हिंसा की शिकायत दर्ज कराती भी है, तब भी उसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई बार उसपर दबाव डाला जाता है कि वह मामला वापस ले लें। यदि मामला आगे बढ़ भी जाए, तो जांच में गंभीरता की कमी और कार्रवाई की धीमी रफ्तार के चलते दोषियों को सज़ा नहीं मिलती।
इससे सर्वाइवर का न्याय प्रणाली से विश्वास उठने लगता है और वे खुद को अकेला, असहाय और असुरक्षित महसूस करने लगती हैं। साल 2014 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद, यूक्रेनी नागरिकों के खिलाफ़ यौन हिंसा के कई मामले सामने आए। इन हमलों में महिलाओं, पुरुषों, बच्चों और बुज़ुर्गों को भी टारगेट किया गया। विशेष रूप से महिलाओं को सामूहिक बलात्कार, जबरन गर्भधारण और जबरन सेक्स वर्क जैसी अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
साल 2014 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद, यूक्रेनी नागरिकों के खिलाफ़ यौन हिंसा के कई मामले सामने आए। इन हमलों में महिलाओं, पुरुषों, बच्चों और बुज़ुर्गों को भी टारगेट किया गया। विशेष रूप से महिलाओं को सामूहिक बलात्कार, जबरन गर्भधारण और जबरन सेक्स वर्क जैसी अमानवीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
पूर्वी येरुशलम और इजरायल सहित कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र पर संयुक्त राष्ट्र स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय जांच आयोग के जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार 7 अक्टूबर 2023 के बाद से कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में इज़रायली सेना और सुरक्षा बलों द्वारा महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के साथ लैंगिक हिंसा के कई गंभीर मामले सामने आए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, इनका उद्देश्य फिलिस्तीनियों को डराना, दबाना और उनके आत्मनिर्णय के अधिकार को कमजोर करना है।
रिपोर्ट में सार्वजनिक रूप से नग्न करने, बलात्कार की धमकी, यौन हिंसा और जननांगों पर हिंसा को इज़रायली सेना की मानक प्रक्रिया बताई गई है। इसी तरह गाज़ा में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को भी टारगेट किया गया। दवाओं और उपकरणों की आपूर्ति रोकी गई, जिससे गर्भवती महिलाओं और लड़कियां बुरी तरह प्रभावित हुई। प्रसूति वार्डों और इन-विट्रो क्लिनिक पर हमलों ने महिलाओं के स्वास्थ्य, गरिमा और भविष्य की प्रजनन क्षमता पर गहरा असर डाला है। जानबूझकर रिहायशी इलाकों को निशाना बनाए जाने के कारण, यह युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध की श्रेणी में आता है।
साल 2023 में, संयुक्त राष्ट्र ने 21 ऐसी स्थितियों की पहचान की जहां संघर्ष, संघर्ष के बाद की परिस्थितियों या अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में संघर्ष-संबंधी यौन हिंसा की घटनाएं दर्ज की गईं।
नारीवादी विचारधारा और सीआरएसवी
नारीवादी आंदोलन और शोध ने यौन हिंसा को केवल एक व्यक्तिगत समस्या के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक, राजनीतिक और संरचनात्मक समस्या के रूप में देखा है। नारीवाद ने यह स्पष्ट किया है कि यौन हिंसा शक्ति और नियंत्रण का टूल है, जिसका इस्तेमाल विशेष रूप से पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं, ट्रांस और क्वीयर लोगों को डराने, नियंत्रित करने और हाशिए पर धकेलने के लिए किया जाता है। नारीवादी शोध में सर्वाइवरों की आवाज़ों को केंद्र में रखा गया है। इसमें यह ज़ोर दिया गया कि अनुभव की विश्वसनीयता को शक की निगाह से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उसे सामाजिक बदलाव के लिए दस्तावेज़ की तरह समझा जाना चाहिए। यही वजह है कि नारीवादी आंदोलन ‘बिलीव सर्वाइवर्स’ जैसे नारों को आगे लाया, ताकि यौन हिंसा का सामना करने वालों को शर्मिंदा करने की बजाय, उन्हें सुनने और समर्थन देने की संस्कृति बनाई जा सके।

युद्ध या अशांति के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा व्यक्तिगत घटनाए नहीं, बल्कि संगठित युद्ध नीति का हिस्सा है। इसे रोकने और सर्वाइवर को न्याय देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तुरंत और ठोस कार्रवाई की ज़रूरत है। साल 2023 में, संयुक्त राष्ट्र ने 21 ऐसी स्थितियों की पहचान की जहां संघर्ष, संघर्ष के बाद की परिस्थितियों या अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में संघर्ष-संबंधी यौन हिंसा की घटनाएं दर्ज की गईं। इन मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल घटनाओं में से लगभग 95 फीसद महिलाओं और लड़कियों ने यौन हिंसा का सामना किया जबकि इनमें 32 फीसद बच्चे थे।
पुरुषों और लड़कों के साथ हो रहे यौन हिंसा के 4 फीसद मामले सामने आए, और लगभग 0.6 फीसद घटनाएं एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के व्यक्तियों को टारगेट किया गया। आज जब दुनिया लोकतंत्र, मानवाधिकार और समानता की बातें कर रही है, तब संघर्ष और युद्ध की स्थितियों में यौन हिंसा को एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जाना गहरी चिंता का विषय है। ऐसे में ‘संघर्ष-जनित यौन हिंसा’ के खिलाफ़ वैश्विक स्तर पर एकजुट होकर ठोस कानून बनाने और उनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। केवल बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि सशक्त अंतरराष्ट्रीय नीति, जवाबदेही और न्याय के ज़रिए ही इस हिंसा को रोका जा सकता है।