इंटरसेक्शनल ‘विकलांगता प्राइड मंथ’: सम्मान और समावेशिता की ओर एक कदम

‘विकलांगता प्राइड मंथ’: सम्मान और समावेशिता की ओर एक कदम

विकलांगता प्राइड मंथ इस सोच को बढ़ावा देता है कि विकलांगता कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि यह इंसान के शरीर और प्राकृतिक विविधता का हिस्सा है।

जुलाई महीना मॉनसून के अलावा एक और खास बात के लिए जाना जाता है। इस महीने को ‘विकलांगता प्राइड मंथ’ के रूप में मनाते हैं। भारत में विकलांगता को आज भी अक्सर दया और सहानुभूति के रूप में देखा जाता है। ऐसे में विकलांगता प्राइड मंथ जैसे आयोजन सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव करने वाला आंदोलन बन जाता है। यह इसलिए मनाया जाता है ताकि विकलांग व्यक्तियों की पहचान, आत्मसम्मान और अधिकारों को मान्यता दी जा सके। यह महीना हमें यह सोचने का मौका देता है कि क्या हमारे स्कूल, ऑफिस, अस्पताल और सड़कें सभी लोगों के लिए बराबर सुरक्षित और पहुंच योग्य हैं? क्या हम विकलांग व्यक्तियों की बातों को गंभीरता से सुनते हैं? क्या हम उन्हें वह सम्मान देते हैं जिसके वो हकदार हैं? जहां एक ओर देश के संविधान और कानून विकलांग नागरिकों को बराबरी का दर्जा देते हैं, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर भेदभाव, पहुंच की कमी और सामाजिक भेदभाव उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बने हुए हैं। ऐसे में यह महीना उन लोगों को एक उम्मीद और हिम्मत देता है जो हर रोज सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं। 

 विकलांगता प्राइड मंथ का इतिहास और शुरुआत 

तस्वीर साभार : Disability Pridepa

साल 1990 के बाद हर साल जुलाई महीने को  विकलांग प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाने लगा। इसकी शुरुआत जुलाई 1990 में ऐतिहासिक अमेरिकन डिसेबिलिटी ऐक्ट (एडीए ) के पारित होने के मद्देनजर संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। यह कानून विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, नौकरी, सार्वजनिक स्थानों और परिवहन जैसी सुविधाओं में बराबरी का अधिकार देता है या समाज को समावेशी बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। 12 मार्च 1990 को हजारों की संख्या में लोगों ने व्हाइट हाउस से लेकर अमेरिका की राजधानी तक मार्च निकाला और कांग्रेस से अमेरिकन डिसेबिलिटी ऐक्ट पारित करने की मांग की। 

साल 1990 के बाद हर साल जुलाई महीने को  विकलांगता प्राइड मंथ के रूप में मनाया जाने लगा।  इसकी शुरुआत जुलाई 1990 में ऐतिहासिक अमेरिकन डिसेबिलिटी ऐक्ट (एडीए ) के पारित होने के उपलक्ष्य में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी।

आठ साल की जेनिफर कीलन शैफिन्स और लगभग 60 दूसरे कार्यकर्ताओं ने अपनी व्हीलचेयर या सहारा देने वाले उपकरणों को एक तरफ रखकर, अमेरिका की संसद की सीढ़ियों पर चढ़कर प्रदर्शन किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि लोग देख सकें कि सार्वजनिक जगहें विकलांग व्यक्तियों के लिए कितनी मुश्किल होती हैं। इसके बाद पुलिस ने इस प्रदर्शन के लिए 104 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिनमें से कई लोग ऐसे भी थे जो अपनी व्हीलचेयर पर थे। 26 जुलाई 1990 को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने अमेरिकन डिसेबिलिटी ऐक्ट पर हस्ताक्षर कर कानून बना दिया और उसी के बाद से हर साल जुलाई महीने को ‘विकलांगता प्राइड मंथ’ के रूप में मनाया जाता है। 

विकलांगता प्राइड मंथ क्यों मनाया जाता है?

तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

‘प्राइड’ यानी अपनी पहचान पर गर्व महसूस करना, चाहे वह पहचान समाज में आम हो या हाशिए पर रखी गई हो। विकलांगता प्राइड मंथ इसी सोच को बढ़ावा देता है कि विकलांगता कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि यह इंसान के शरीर और मन की प्राकृतिक विविधता का हिस्सा है। यह महीना विकलांगता के बारे में बातचीत करने, विकलांग व्यक्तियों के जीवन के अनुभवों को जानने और समाज की रूढ़िवादी धारणाओं को बदलने का एक नया मौका देता है। ताकि हर एक इंसान एक दूसरे के अनुभवों को उस इंसान की नजर से देख पाए जो इस भेदभाव को रोजाना सहन करते हैं।

विकलांगता प्राइड मंथ इसी सोच को बढ़ावा देता है कि विकलांगता कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि यह इंसान के शरीर और प्राकृतिक विविधता का हिस्सा है।

इसका मुख्य उदेश्य विकलांग होने पर गर्व महसुस करना और अपने आप को सहज रूप से किसी के सामने बिना छुपाये, खुल कर और बिना डरे अपनी ज़िंदगी को जीना हैं। यह विकलांग व्यक्तियों की आवाज़ों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करता है उनकी कहानियां, नेतृत्व और संघर्ष को मान्यता देता है। यह हमें विविधता का जश्न मनाना सिखाता है, न कि उसे छिपाना या सुधारना। यह उन लोगों को जागरूक करने में अहम भूमिका निभाता है जो विकलांग समुदाय का हिस्सा नहीं हैं। इससे लोगों को यह समझने में मदद मिलती है कि वह किस तरह से इन व्यक्तियों का सहयोग कर सकते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि कमी व्यक्ति में नहीं, व्यवस्था में है और हमें उस व्यवस्था को बदलना है।

भारत में विकलांगता को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण

तस्वीर साभार : The Hindu

भारत में अभी भी विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और जरूरतों के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इसी वजह से डिसेबिलिटी प्राइड मंथ को लेकर भी यहां ज्यादा जागरूकता नहीं है। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 2.68 करोड़ विकलांग लोग थे, जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21फीसद  हैं, जो बढ़कर 2.68 करोड़ हो गई है। इन लोगों में 56फीसद  पुरुष और 44 फीसद महिलाएं थीं। करीब 69 फीसदी  विकलांग लोग गांवों में रहते हैं, जहां बुनियादी सुविधाएं आसानी से नहीं मिल पातीं। इसलिए गांवों में रहने वाले विकलांग व्यक्तियों को और ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई लोग विकलांगता को आज भी अभिशाप या दुर्भाग्य की तरह देखते हैं, जिससे इस समुदाय के व्यक्तियों को भेदभाव और अकेलेपन का सामना करना पड़ता है। विकलांग महिलाओं की स्थिति और भी मुश्किल होती है।

कई लोग विकलांगता को आज भी अभिशाप या दुर्भाग्य की तरह देखते हैं, जिससे इस समुदाय के व्यक्तियों को भेदभाव और अकेलेपन का सामना करना पड़ता है। विकलांग महिलाओं की स्थिति और भी मुश्किल होती है। क्योंकि उन्हें लिंग और विकलांगता, दोनों कारणों से दोगुना भेदभाव और हिंसा झेलनी पड़ती है।

क्योंकि उन्हें जेंडर और विकलांगता, दोनों कारणों से भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है। गांवों में तो कई बार विकलांगता को छिपाने की कोशिश की जाती है क्योंकि माना जाता है कि इससे शादी में रूकावट आ सकती है। भारत के कई ग्रामीण इलाकों में आज भी शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण विकलांग बच्चों को घर पर ही रखा जाता है। उन्हें अक्सर स्कूल या सामाजिक कार्यक्रमों में भेजा ही नहीं जाता है, जिससे उन्हें बाकी बच्चों की तरह सीखने और घुलने-मिलने का मौका नहीं मिल पाता है। कुछ परिवार तो समाज की बातों के डर से बच्चे की विकलांगता को छिपाते हैं, जिससे उन्हें सही समय पर इलाज, मदद या जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पातीं।

बुनियादी ढांचा और नीतिगत चुनौतियां 

तस्वीर साभार : Business Standard

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सुगम्य भारत अभियान की शुरुआत भारत सरकार के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी ) ने 3 दिसंबर 2015 में की थी। इसका मकसद था कि देश में विकलांग व्यक्तियों के लिए स्कूल, ऑफिस, अस्पताल, बस स्टॉप, रेलवे स्टेशन जैसी जगहें आसान और सुरक्षित बनें, ताकि वे बिना किसी परेशानी के इन सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकें। लेकिन इसके लागू होने की प्रक्रिया उतनी तेज नहीं रही, जितनी होनी चाहिए थी। शुरुआत में तय की गई समय-सीमा को बढ़ाकर पहले 14 जून, 2022 और फिर मार्च 2024 तक कर दिया गया था। सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, शिक्षा और रोजगार में सुगमता एक बड़ी बाधा बनी हुई है। सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों सहित कई इमारतें सुगम्य नहीं हैं, जिससे इन व्यक्तियों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भागीदारी सीमित हो जाती है। इसके अलावा, इनके लिए रोजगार के अवसर कम हैं, और जो उपलब्ध हैं, वे अक्सर पर्याप्त सहायता या सुविधा प्रदान नहीं करते हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार, विकलांग व्यक्तियों  में बेरोजगारी दर 65 फीसद  तक पहुंच गई है। 

सार्वजनिक स्थानों, परिवहन, शिक्षा और रोजगार में सुगमता एक बड़ी बाधा बनी हुई है। सरकारी कार्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों सहित कई इमारतें सुगम्य नहीं हैं, जिससे इन व्यक्तियों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भागीदारी सीमित हो जाती है।

विकलांगता पर मानसिकता में बदलाव की ज़रूरत

इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि हम जागरूकता और शिक्षा पर ज़ोर दें। ऐसे अभियान चलाए जाएं जो यह समझाएं कि विकलांगता कोई शर्म की बात नहीं है, बल्कि इंसानी विविधता का एक सामान्य हिस्सा है। इससे समाज में फैली गलत धारणाओं और भेदभाव को खत्म करने में मदद मिलेगी। जरूरी है कि सरकार ऐसी सुविधाओं पर पैसा खर्च करें जो सच में इन व्यक्तियों के लिए सुगम और उपयोगी हों। ऐसे कार्यस्थल बनाए जाने चाहिए जो विकलांग व्यक्तियों को काम करने का मौका दें और उन्हें वह सभी ज़रूरी सुविधाएं मिलें जिनकी उन्हें जरूरत है। इससे वे सम्मान के साथ काम कर पाएंगे और अपनी योग्यता दिखा सकेंगे। 

ऐसी मदद और सहारा देने वाली व्यवस्था होनी चाहिए जो विकलांग लोगों और उनके परिवारों को हिम्मत और ताकत दें। इससे उनमें गर्व और अपनापन महसूस करने की भावना बढ़ेगी, और वे समाज में आत्मविश्वास से जी सकेंगे।विकलांग प्राइड मंथ हमें यह याद दिलाता है कि हर इंसान को बराबरी, सम्मान और अपनापन मिलना चाहिए। यह महीना हमें सोचने का मौका देता है कि क्या हमारे स्कूल, ऑफिस और सड़कें सच में सभी के लिए आसान और सुरक्षित हैं। विकलांगता कोई शर्म की बात नहीं है, यह इंसान की खास पहचान है। अगर हम मिलकर सोच और सिस्टम दोनों को बदलने की कोशिश करें तो एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहां हर कोई खुले दिल से अपनी ज़िंदगी जी सकेगा। 

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