समाज ऑनर किलिंग: जाति और इज़्ज़त की आड़ में काम करता पितृसत्तात्मक समाज की सच्चाई

ऑनर किलिंग: जाति और इज़्ज़त की आड़ में काम करता पितृसत्तात्मक समाज की सच्चाई

बिहार के दरभंगा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (डीएमसीएच ) में  बीएससी नर्सिंग सेकेंड सेमेस्टर के छात्र राहुल कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। आरोपी कोई और नहीं उसकी पत्नी का ही पिता था। जो बेटी के अंतरजातीय विवाह करने पर नाराज था।

आज कहने को तो भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लेकिन यह लोकतंत्र आखिर किसके लिए है? जिस तरह हाशिये पर जी रहे लोगों का दमन लगातार जारी है, यह हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। बिहार के दरभंगा में जिस दलित लड़के को होस्टल के परिसर में ही मार दिया गया वो भी इसी देश का नागरिक था, जिसका कोई अपराध नहीं था। उस युवक को सिर्फ़ उसकी जाति के कारण हत्या कर दी गयी क्योंकि उसने अंतरजातीय या तथाकथित ‘ऊँची’ जाति की लड़की से विवाह किया था। यह घटना दर्दनाक रूप से याद दिलाती है कि हमारे समाज में जातिवाद का ज़हर आज भी गहरे तक पैठा हुआ है।

महिलाओं की पसंद को पितृसत्तात्मक सोच अब भी इज्ज़त का मुद्दा मानती है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जब तक समाज से जातिवाद, भेदभाव और महिला की पसंद पर रोक खत्म नहीं होगी, तब तक असली लोकतंत्र सिर्फ किताबों और भाषणों तक सीमित रहेगा। ऐसी घटनाएं केवल एक व्यक्ति या परिवार का नुकसान नहीं करतीं, बल्कि पूरे समाज की नैतिकता, संवेदनशीलता और लोकतांत्रिक ढांचे पर चोट करती हैं। जब किसी की जान उसकी जाति, धर्म या पसंद की वजह से ली जाती है, तो यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सचमुच  एक बराबरी वाले समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर अब भी उन्हीं पुरानी सोच की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। 

जब किसी की जान उसकी जाति, धर्म या पसंद की वजह से ली जाती है, तो यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम सचमुच  एक बराबरी वाले समाज की ओर बढ़ रहे हैं, या फिर अब भी उन्हीं पुरानी सोच की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। 

क्या है पूरा मामला ?

तस्वीर साभारः NewsClick

टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक, बीते दिनों बिहार के दरभंगा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (डीएमसीएच) में बीएससी नर्सिंग सेकेंड सेमेस्टर के छात्र की हत्या कर दी गई। आरोपी कोई और नहीं उसकी पत्नी का ही पिता था, जो बेटी के लव मैरिज (अंतरजातीय विवाह) करने पर नाराज था। वह हॉस्टल की ऊपरी मंजिल पर रहता था, जबकि लड़की उसी हॉस्टल के ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी। उसे कॉलेज में फर्स्ट सेमेस्टर में पढ़ने वाली लड़की से प्रेम हुआ और चार महीने पहले दोनों ने कोर्ट में जाकर शादी कर ली। 

रिपोर्ट मुताबिक पुलिस ने बताया कि लड़की के पिता कॉलेज परिसर में पहुंचे और कई छात्रों के सामने उसको पिस्तौल से गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। वह लगातार मीडिया के सामने बता रही हैं कि उनकी आंखों के सामने ही उनके पिता ने इनके पति को गोली मार दी, जैसे ही पिस्तौल की आवाज़ गूंजी, हॉस्टल में अफरा-तफ़री मच गई। विद्यार्थियों ने तुरंत आरोपी को पकड़ लिया और उसकी जमकर पिटाई कर दी। बाद में पुलिस आई और आरोपी को  हिरासत में लेकर डीएमसीएच के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों ने उसकी हालत गंभीर बताई। घटना के बाद कॉलेज और हॉस्टल के विद्यार्थियों में भारी गुस्सा फैल गया। आक्रोशित या  गुस्से में विद्यार्थियों ने इमरजेंसी विभाग के बाहर प्रदर्शन किया और सुरक्षा व्यवस्था पर कई  सवाल उठाए। 

बीते दिनों बिहार के दरभंगा मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (डीएमसीएच) में बीएससी नर्सिंग सेकेंड सेमेस्टर के छात्र की हत्या कर दी गई। आरोपी कोई और नहीं उसकी पत्नी का ही पिता था, जो बेटी के लव मैरिज (अंतरजातीय विवाह) करने पर नाराज था।

महिला की आवाज़ को दबाने वाले ट्रोल्स

तस्वीर साभारः ALJAZEERA

बीते दिनों सोशल मीडिया में इस घटना से जुड़े हुए कई वीडियो वायरल हुए, जिनमें लड़की अपने पति की हत्या की साजिश में शामिल सभी लोगों को सजा दिलाने की मांग कर रही हैं। कुछ लोग उसे न्याय दिलाने के पक्ष में बात कर रहे हैं, लेकिन इन वीडियो पर आने वाले ज्यादातर कमेंट बेहद चौंकाने वाले और नफरत से भरे हैं। कई लोग उसको गलत ठहरा रहे हैं और उसके पिता की सराहना कर रहे हैं। वहीं कई लोग यह तक लिख रहे हैं कि ऐसी बेटी को जीने का कोई अधिकार नहीं है।  इससे ये साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि हमारा समाज किस हद तक महिला विरोधी और जातिवादी है। सोशल मीडिया पर ऐसे अमानवीय, महिला-विरोधी और गैर-कानूनी सोच वाले कमेंट्स की बाढ़ सी आ गई। यह साफ दिखाता है कि हमारे समाज में अब भी गहरी जातिवादी सोच और महिलाओं की आज़ादी के प्रति नफरत मौजूद है। पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले समाज में अगर कोई महिला अपने फैसले पर डटी रहे, तो उसे गुनहगार मान लिया जाता है।

आज लड़की के किसी सवाल का जवाब इस समाज और व्यवस्था के पास नहीं है। हत्या से मौत का जश्न मनाते ये लोग न संविधान को मानते हैं और न ही मानवता को। महात्मा गांधी अंतरजातीय विवाह के बहुत बड़े समर्थक थे उन्होंने संकल्प लिया था कि वे सिर्फ अंतर्जातीय विवाह में शामिल होंगे। आज समाज के कट्टरपंथी लोग नहीं देखते कि बड़े-बड़े नेता , उद्योगपति , सारे सत्ताधारी लोगों की बेटियों की शादी जब अन्य जाति या धर्म मे होता है। तब कोई कट्टरपंथी उनसे सवाल करने की हिम्मत नहीं करते। वहीं कमजोर वर्ग के लिए धर्म और जाति जैसे कई बंधन बहुत सख्त और मुश्किल हो जाते हैं, जो उन्हें अपनी आज़ादी से जीने नहीं देते।

हमारे समाज में अब भी गहरी जातिवादी सोच और महिलाओं की आज़ादी के प्रति नफरत मौजूद है। पितृसत्तात्मक मानसिकता वाले समाज में अगर कोई महिला अपने फैसले पर डटी रहे, तो उसे गुनहगार मान लिया जाता है।

जाति और धर्म के नाम पर ऑनर किलिंग

तस्वीर साभार : The Guardian

ऑनर किलिंग हमेशा जाति और धर्म के कारण होता आ रहा है। समाज में हर तरह की असमानता औऱ भेदभाव हमेशा महिलाओं से ही जाकर जुड़ता है। जातिगत भेदभाव और नफरत ही ऑनर किलिंग में मुख्य भूमिका में होते है। भारत में यह पहली घटना नहीं है। आमतौर पर आए दिन इस तरह की कई  घटनाएं सामने आती रहती हैं। ऐसा ही एक मामला जुलाई 2025 तमिलनाडु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर की हत्या का सामने आया बीबीसी के मुताबिक, कविन नाम के युवक की हत्या उसकी मां के सामने कर दी गई और इसका कारण यह था, कि कविन तथाकथित उच्च जाति की लड़की से प्यार करता था। लेकिन जातिगत नफ़रत की वजह से लड़की के परिवार वाले यह स्वीकार नहीं कर पाए कि उनकी बेटी किसी अन्य समुदाय के युवक से प्रेम करती है। इसलिए उसे मार दिया गया। कविन के परिजनों ने लड़की के माता-पिता की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर तिरुचेंदूर–थूथुकुडी हाईवे चौराहे पर प्रदर्शन किया। ताकि उन्हें न्याय मिल सके।

द वायर के मुताबिक, एक नई सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022 में अनुसूचित जाति (एससी) समुदायों के खिलाफ लगभग 98 फीसदी अपराध 13 राज्यों से रिपोर्ट किए गए थे, जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश सबसे आगे थे। अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ हुए अत्याचार रोकने के लिए एक कानून है, जिसे “अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम” या पीओए अधिनियम कहते हैं। इस कानून के तहत साल 2022 की रिपोर्ट से पता चलता है कि देश के 13 राज्यों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों के खिलाफ अपराध ज्यादा हुए। लगभग 99 ऐसे मामले वहां दर्ज किए गए। वहीं, अनुसूचित जाति (एससी) के लोगों के खिलाफ अपराधों की संख्या बहुत ज्यादा है। 

पीओए अधिनियम के तहत एससी समुदाय के खिलाफ 52,766 मामले दर्ज हुए। लेकिन जुलाई में केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने जो आंकड़े दिए थे, उनमें ये संख्या 57,571 बताई गई थी। यानी रिपोर्ट और मंत्री के आंकड़ों में लगभग 4,805 मामलों का फर्क या अंतर है।

जबकि नई रिपोर्ट में बताया गया कि पीओए अधिनियम के तहत एससी समुदाय के खिलाफ 52,766 मामले दर्ज हुए। लेकिन जुलाई में केंद्रीय सामाजिक न्याय राज्य मंत्री रामदास अठावले ने जो आंकड़े दिए थे, उनमें ये संख्या 57,571 बताई गई थी। यानी रिपोर्ट और मंत्री के आंकड़ों में लगभग 4,805 मामलों का फर्क या अंतर है। इन आंकड़ों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जातिगत अपराध इतने ज्यादा हैं कि इंटरनेट पर उनकी लंबी सूची भरी पड़ी है। यही हाल महिलाओं के खिलाफ अपराध का भी है। आज के समय में तो सामाजिक न्याय जैसा शब्द अपना असली मतलब ही खो चुका है। भारत में लोकतंत्र केवल एक संवैधानिक शब्द भर रह गया है, जबकि उसका असली मतलब बराबरी, आज़ादी  और न्याय समाज के एक बड़े हिस्से के लिए अब भी अधूरा सपना है। बिहार के दरभंगा और तमिलनाडु में इंजीनियर की हत्या जैसे मामलों से साफ है कि ऑनर किलिंग महज कुछ अलग-अलग घटनाएं नहीं हैं, बल्कि जातिवादी, पितृसत्तात्मक और महिला-विरोधी मानसिकता की गहरी जड़ें हमारे समाज में अब भी मौजूद हैं।

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

यह मानसिकता महिला की पसंद और आज़ादी को इज्जत के नाम पर कुचल देती है। जब समाज का एक बड़ा हिस्सा अपराध को इज्जत बचाने का तरीका मानने लगे, तो यह लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों के लिए गंभीर खतरा है। आंकड़े बताते हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और कानून होने के बावजूद, सजा की दर बेहद कम है। यह कानून की कमज़ोरी ही नहीं, बल्कि राज्य और समाज दोनों की असफलता है। इसलिए ज़रूरत केवल कानून बनाने की नहीं, बल्कि उन्हें सख्ती से लागू करने की है। इसके साथ-साथ हमें शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार के माध्यम से जातिवाद और पितृसत्ता की जड़ों को कमजोर करना होगा। क्योंकि समानता और स्वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक का है चाहे उसकी जाति, धर्म या जेंडर कुछ भी हो तब तक असली लोकतंत्र केवल किताबों, भाषणों और चुनावी वादों में ही कैद रहेगा। असल लोकतंत्र वही होगा, जिसमें किसी की जान उसकी पसंद, जाति या धर्म की वजह से न छीनी जाए और हर व्यक्ति बिना डर और भेदभाव के अपने जीवन के फैसले ले सके। तभी भारत सचमुच एक समानता और न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक राष्ट्र बन पाएगा।

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