समाजख़बर हरियाणा में शिक्षिका की हत्या: राज्य और प्रशासन की विफलता और पितृसत्तात्मक रवैये पर उठते सवाल

हरियाणा में शिक्षिका की हत्या: राज्य और प्रशासन की विफलता और पितृसत्तात्मक रवैये पर उठते सवाल

हरियाणा के भिवानी जिले में 19 साल की शिक्षिका की कथित हत्या ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया है। यह घटना दिखाती है कि आज भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।

हरियाणा के भिवानी जिले में 19 साल की शिक्षिका की कथित हत्या ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया है। उनकी कथित हत्या यह दिखाती है कि आज भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत दुख की बात नहीं है। यह समाज और प्रशासन में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कमज़ोरियों को भी उजागर करता है। यह मामला यह भी सामने लाता है कि जब भी किसी लड़की या महिला के साथ कुछ गलत होता है, तो समाज का एक बड़ा हिस्सा तुरंत उस पर ही सवाल खड़े कर देता है, वो कहां गई थी?, किससे बात कर रही थी?, क्या उसने परिवार को बताया था?

ऐसी प्रतिक्रिया अपराधी को कठघरे में खड़ा करने के बजाय सर्वाइवर को दोषी ठहराने का काम करती हैं। यही पितृसत्तात्मक सोच महिलाओं की आज़ादी और सुरक्षा दोनों को कमजोर करती है। यह मामला प्रशासन की लापरवाही पर भी सवाल खड़े करता है। अगर पुलिस ने परिवार की शिकायत पर समय रहते कार्रवाई की होती, तो शायद यह घटना टाली जा सकती थी। लेकिन अक्सर देखा गया है कि जब कोई महिला लापता होती है, तो उसे भाग जाना या किसी के साथ चली गई होगी, कहकर गंभीरता से नहीं लिया जाता। यही रवैया महिलाओं के खिलाफ हिंसा को और बढ़ावा देता है। 

हरियाणा के भिवानी जिले में 19 साल की शिक्षिका की कथित हत्या ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया है। उनकी कथित हत्या यह दिखाती है कि आज भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत दुख की बात नहीं है। यह समाज और प्रशासन में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कमज़ोरियों को भी उजागर करता है।

क्या है पूरा मामला?

तस्वीर साभार : India Today

इण्डिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षिका 11 अगस्त को अपने स्कूल से पास के एक निजी संस्थान में बी.एससी नर्सिंग कोर्स के बारे में जानकारी लेने के लिए निकली थी, जिस दौरान वह लापता हो गई। उसके पिता ने उसी शाम उसके लापता होने की सूचना वहां के स्थानीय पुलिस स्टेशन में दी, लेकिन पुलिस ने कथित तौर पर शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह भाग गई है और जल्द ही वापस आ जाएगी। मामला औपचारिक रूप से 12 अगस्त को दर्ज किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक परिवार का कहना है कि इसके बाद पुलिस उनके साथ कॉलेज गई और वहां तीन युवकों से पूछताछ हुई जो उस समय नशे की हालत में थे। युवकों ने दावा किया कि उन्होंने उसे नहीं देखा है, और कॉलेज दोपहर 1 बजे बंद हो गया था । दुखद रूप से, युवती का शव 13 अगस्त को सिंघानी गांव में एक खेत में मिला। इसके बाद, उसका दो बार पोस्टमार्टम किया गया। लेकिन उसके परिवार ने शव लेने से इनकार कर दिया और मांग की कि इस अपराध के पीछे जो लोग हैं, उन्हें पहले गिरफ्तार किया जाए। चिकित्सा अधिकारियों ने पुष्टि की कि उसका गला रेता गया था।

 द सीएसआर जर्नल के मुताबिक, पोस्टमार्टम टीम के सदस्य डॉ. बलवान सिंह के अनुसार, उसके शरीर पर तेज़ाब के संपर्क में आने और जानवरों के हमले की संभावना के निशान थे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “शिक्षिका का शव बिना गर्दन के मिला था, और डॉक्टरों का अनुमान है कि घाव जानवरों ने कुतर दिया था।” उन्होंने आगे बताया कि तेज़ाब से हुए ज़ख्मों की भी जांच की जा रही है। यह भी बताया जा रहा है कि फोरेंसिक लैब से विसरा रिपोर्ट आने के बाद मौत का कारण पता चल सकेगा। हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक लोगों के बढ़ते गुस्से और माहौल को देखते हुए अधिकारियों ने मोबाइल इंटरनेट, बल्क एसएमएस और डोंगल सेवाएं बंद कर दी हैं। लड़की के परिवार ने जांच रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है, जिसमे कहा गया है कि उसकी आत्महत्या से मौत हुई है। सोमबार को कथित सुसाइड नोट सामने आया, जिससे मामले का रुख बदल गया। हालांकि, पुलिस ने कहा कि यह नोट उसी दिन मिला था जिस दिन शव मिला था। लेकिन यह सवाल भी उठ रहे हैं कि पुलिस ने पांच दिनों तक सुसाइड नोट का जिक्र क्यों नहींं किया।

उसके पिता ने उसी शाम उसके लापता होने की सूचना वहां के स्थानीय पुलिस स्टेशन में दी, लेकिन पुलिस ने कथित तौर पर शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह भाग गई है और जल्द ही वापस आ जाएगी। मामला औपचारिक रूप से 12 अगस्त को दर्ज किया गया।

प्रशासन और समाज की पितृसत्तात्मक प्रतिक्रिया

तस्वीर साभार : The Logical Indian

इस घटना ने यह साफ़ कर दिया है कि प्रशासन और समाज, दोनों ही स्तरों पर महिलाओं की सुरक्षा को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। इस मामले में लड़की की हत्या से मौत हुई है या फिर आत्महत्या से मौत इसमें कहीं न कहीं समाज और प्रसाशन दोनों ज़िम्मेदार हैं। प्रसाशन की कार्रवाई में देरी ने परिवार के आरोपों को और मज़बूत किया। परिजनों का कहना है कि जब वह लापता हुई, तब तुरंत कार्रवाई की जाती तो शायद उसकी जान बच सकती थी। लेकिन गुमशुदगी की शिकायत पर भी पुलिस ने वही रवैया अपनाया जो अक्सर महिलाओं के मामलों में देखा जाता है, लड़की खुद कहीं चली गई होगी,  घर से भाग गई होगी जैसी धारणाएं। यही सोच कानून-व्यवस्था को कमजोर करती है और अपराधियों को और अधिक साहसी बनाती है। आखिर पुलिस महिलाओं की शिकायतों को गंभीरता से क्यों नहीं लेती? क्यों हर बार परिवार और समाज को सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करना पड़ता है, तब जाकर प्रशासन करवाई आगे बढ़ाता है?

प्रशासन ने बाद में एसपी का तबादला किया और कुछ पुलिसकर्मियों को निलंबित किया, लेकिन यह कदम सतही और प्रतीकात्मक ही हैं। इनेलो अध्यक्ष अभय सिंह चौटाला ने इस मामले को सरकार पर एक ‘काला धब्बा’ बताया और कहा कि इसने भाजपा के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारे के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। उन्होंने कहा कि आज राज्य में हालात ऐसे हैं कि हरियाणा में  महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक बन गया है। सरकार से  बेटियों की सुरक्षा की उम्मीद करना बेकार है। राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी अनुराग ढांडा ने आरोप लगाया कि अपराधी बेखौफ होकर अपनी गतिविधियां चला रहे हैं, जबकि सरकार उदासीन बनी हुई है। द सीएसआर जर्नल के मुताबिक,  जेजेपी के दिग्विजय चौटाला ने कार्रवाई में देरी पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि पुलिस आरोपियों की पहचान करने में भी नाकाम रही है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी दिल्ली से प्रभावित हैं और पुलिस को कार्रवाई करने की पूरी छूट नहीं दे रहे हैं।

आखिर पुलिस महिलाओं की शिकायतों को गंभीरता से क्यों नहीं लेती? क्यों हर बार परिवार और समाज को सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन करना पड़ता है, तब जाकर प्रशासन हरकत में आता है?

महिलाओं के सुरक्षा पर सवाल

तस्वीर साभार : फेमिनिज़म इन इंडिया

यह मामला सिर्फ अपराध और पुलिस की लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात को सामने लाता है कि समाज ने महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा और अधिकारों को कितनी प्राथमिकता दी है। जब भी इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो अक्सर ज़िम्मेदारी केवल परिवार या प्रशासन पर डाल दी जाती है। लेकिन सच्चाई यह है कि महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ पुलिस या सरकार का कर्तव्य नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक ज़िम्मेदारी है। भिवानी का यह मामला कोई अलग-थलग घटना नहीं है। हाल ही में देशभर से कई ऐसी खबरें सामने आई हैं जिन्होंने समाज की संवेदनहीनता और प्रशासन की नाकामी को उजागर किया है। हाथरस (उत्तर प्रदेश) में साल 2020 का दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार और उसकी मौत का मामला आज भी लोगों की यादों में है, जहां  पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल उठे थे।

इसी तरह साल 2012 का दिल्ली निर्भया केस देश की आत्मा को झकझोर देने वाला मामला था। लेकिन इतने साल बाद भी हालातों में ज़्यादा बदलाव नहीं आया है। इण्डिया टुडे के मुताबिक, पुलिस के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि 2025 की पहली छमाही में 4,100 से अधिक लोग लापता हो गए, यानी औसतन प्रतिदिन 45 लोग, और  अपहरण के मामले 1,000 का आंकड़ा पार कर गए । जींद में सिर्फ एक ही महीने में 17 हत्याएं हो चुकी हैं। वहीं हिसार और रोहतक जैसे जिलों में महिलाओं के खिलाफ लगातार अपराध हो रहे हैं। यह सब दिखाता है कि प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह निष्क्रिय बना हुआ है। इन सभी मामलों में एक समानता है, प्रशासन की शुरुआती लापरवाही, समाज की चुप्पी और महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठाना। इस घटना ने यह भी साबित कर दिया है कि जब तक समाज अपने सोचने का तरीका नहीं बदलेगा, तब तक कोई भी कानून या अभियान कारगर नहीं हो पाएगा। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे तभी सार्थक होंगे जब हर नागरिक यह समझे कि महिलाओं के प्रति सम्मान और बराबरी का व्यवहार केवल घर तक सीमित नहीं है , बल्कि सार्वजनिक जीवन और संस्थाओं में भी ज़रूरी है।

2025 की पहली छमाही में 4,100 से अधिक लोग लापता हो गए, यानी औसतन प्रतिदिन 45 लोग, और  अपहरण के मामले 1,000 का आंकड़ा पार कर गए । जींद में सिर्फ एक ही महीने में 17 हत्याएं हो चुकी हैं। वहीं हिसार और रोहतक जैसे जिलों में महिलाओं के खिलाफ लगातार अपराध हो रहे हैं।

भविष्य की दिशा और न्याय की उम्मीद

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसी घटनाओं को भविष्य में रोका जा सकेगा? सिर्फ पुलिसकर्मियों का निलंबन या अधिकारियों का तबादला कर देना समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक कदम भर है। न्याय तभी पूरा होगा जब दोषियों को बिना किसी राजनीतिक या सामाजिक दबाव के सख्त सज़ा मिले और ऐसी घटनाओं के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए। दूसरी ओर, यह समाज के लिए भी आत्ममंथन का समय है। जब भी कोई लड़की या महिला लापता होती है तो उसके चरित्र पर सवाल उठाये बिना, उसकी सुरक्षा सुनश्चित करने में ध्यान दें ताकि उस महिला को सहायता मिल सके।

 महिला सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाने ज़रूरी हैं। केवल कानून बनाना ही काफी नहीं हैं, बल्कि उनका सही ढंग से पालन करना भी ज़रूरी है। स्कूल और कॉलेज स्तर पर युवाओं को लैंगिक समानता, सम्मान और संवेदनशीलता की शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि युवाओं में जागरूकता बढ़ सके। अगर अब भी प्रशासन और समाज पितृसत्तात्मक सोच को पीछे करके आगे नहीं बढ़े, तो ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी। शिक्षिका की हत्या ने साफ़ कर दिया है कि महिलाओं की सुरक्षा पर सरकार और समाज दोनों ही विफल हैं। पुलिस की लापरवाही और पितृसत्तात्मक सोच अपराधियों को और बेखौफ़ बनाती है। महिलाओं की सुरक्षा केवल कानून बनाने से नहीं, बल्कि समय पर कार्रवाई, सख्त सज़ा और समाज की सोच बदलने से ही संभव है। उसे  न्याय तभी मिलेगा जब यह घटना बदलाव की शुरुआत बने।

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