यह साल देश के विश्वविद्यालयों के लिए कई उतार-चढ़ाव लेकर आया। इस साल कहीं जेएनयू में अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बातें होती रहीं, तो कभी हैदराबाद की हरियाली को कंक्रीट के मैदान में तब्दील होने से बचाने के लिए विद्यार्थियों ने आंदोलन किए। विद्यार्थी सिर्फ अपने निजी जीवन में ही संघर्ष नहीं करते हैं, बल्कि वह कैंपस में कई तरह की अनियमितताओं का सामना करते हैं। कभी साफ पानी की लड़ाई, तो कभी बढ़ती हुई फीस का विरोध करते हुए, किसी न किसी गेट पर हफ्तों गुजार देते हैं। यह राजनीति भारत के लिए नई नहीं है, लेकिन हर साल यह एक नया चेहरा लेकर सामने आती है। अखबारों के पन्ने जहां एक तरफ 100 फीसदी प्लेसमेंट की चमक से भरे होते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हीं पन्नों के किसी कोने में दबी होती है, कैंपस में हुई यौन हिंसा की खबर, क्वीयर समुदाय के साथ हुई बुलिंग की टीस और जाति की वजह से भेदभाव का सामना करते हुए आत्महत्या से मौत की घटनाएं। इस लेख में हम साल 2025 की उन्हीं जरूरी सुर्खियों पर नजर डालेंगे, जिन्होंने न केवल मीडिया में जगह बनाई बल्कि हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारे संस्थान आज भी विद्यार्थियों के लिए एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण दुनिया गढ़ पा रहे हैं?
1- गुजरात यूनिवर्सिटी की सुरक्षा व्यवस्था आखिर क्यों सवालों के घेरे में है?
इस साल सितंबर में गुजरात यूनिवर्सिटी के बॉटनी विभाग में एक गंभीर घटना हुई। जिसने कैंपस की सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक पूर्व कर्मचारी डंडा लेकर बॉटनी विभाग में घुस गया। उसने विभागाध्यक्ष और प्रोफेसरों के केबिन में तोड़फोड़ की। इस हमले में कंप्यूटर, प्रिंटर और कांच के दरवाजों को भी नुकसान पहुंचा। यूनिवर्सिटी की करीब 2.4 लाख रुपये की संपत्ति प्रभावित हुई। हैरानी की बात यह है कि घटना दिन में हुई। जिससे सुरक्षा गार्डों की लापरवाही साफ नजर आती है। इस घटना के बाद विद्यार्थियों में डर और गुस्सा फैल गया। उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। विद्यार्थियों ने मांग रखी कि बिना आईडी कार्ड के कैंपस में एंट्री बैन कर दी जाए, और कैमरों की संख्या बढ़ाई जाए। बढ़ते दबाव को देख यूनिवर्सिटी प्रशासन ने सख्त कार्रवाई की। सुरक्षा में लापरवाही करने वाली तीन एजेंसियों का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया और घटना की जांच के लिए एक कमेटी भी बनाई गई। साथ ही साथ पूरे कैंपस में नो आईडी, नो एंट्री नियम को सख्ती से लागू कर दिया गया है।
2 -हैदराबाद यूनिवर्सिटी की जमीन की नीलामी के खिलाफ विद्यार्थियों का विरोध
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक, इस साल की शुरुआत में हैदराबाद विश्वविद्यालय के पास स्थित कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ जमीन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। जब तेलंगाना सरकार ने औद्योगिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए उस जमीन को नीलाम करने के बारे में सोचा। विद्यार्थियों ने इस फैसले का विरोध किया और नीलामी तुरंत रोकने की मांग की।
यह विवाद 30 मार्च को उस समय और गहरा गया, जब पुलिस बल की मौजूदगी में वहां बुलडोजर और मशीनें जमीन साफ करने पहुंच गईं, जैसे ही विद्यार्थियों को इसकी खबर मिली, वे बड़ी संख्या में विरोध करने पहुंच गए। उनका आरोप था कि प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना या बातचीत के अचानक यह कार्रवाई शुरू कर दी। विरोध प्रदर्शन के दौरान स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई, जब पुलिस ने कई छात्रों को हिरासत में ले लिया। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि पुलिस कैंपस के अंदर तक घुस आई और छात्राओं सहित कई छात्रों के साथ धक्का-मुक्की की गई। इस घटना के बाद पूरे विश्वविद्यालय परिसर में काफी अशांति और तनाव देखा गया।
3 – फीस बढ़ोतरी का विरोध करते छात्र
अगस्त के महीने में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एएमयू के विद्यार्थी हफ्तों तक गेट पर धरना देते रहे, ताकि 20 फीसदी से लेकर 42 फीसदी तक फीस बढ़ोतरी में कुछ कमी आए। उन्होंने तर्क दिया कि भारी मात्रा में फीस बढ़ोतरी आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद करेगी। ऐसा ही हाल जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी का भी रहा। जामिया में इस साल कई पाठ्यक्रमों की फीस 16 फीसदी से लेकर 41 फीसदी तक बढ़ाई गई है। दिल्ली विश्वविद्यालय जेएनयू और बीएचयू की स्थिति भी इससे अलग नहीं है। डीयू में विश्वविद्यालय विकास निधि और सेवा शुल्क में भारी वृद्धि की गई है। अगस्त 2025 में देशबंधु कॉलेज के छात्रों ने बुनियादी सुविधाओं की कमी और फीस बढ़ोतरी के खिलाफ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। शिक्षा धीरे-धीरे एक जरूरत के बजाय ‘लक्जरी‘ बनती जा रही है, जो सिर्फ उन लोगों की पहुंच में होगी जिनकी जेबे भरी हैं।
4- आई आई टी बॉम्बे और आई आई टी दिल्ली जातिगत भेदभाव
भारत के प्रतिष्ठित संस्थान आई आई टी बॉम्बे और आई आई टी दिल्ली हाल के सालों में अपनी प्लेसमेंट प्रक्रियाओं में कथित जातिगत भेदभाव को लेकर चर्चा में रहे। द हिन्दू में छपी खबर के मुताबिक, प्लेसमेंट के दौरान कंपनियां छात्रों के सामाजिक वर्ग और उनकी पुरानी रैंक का डेटा देखती हैं। इसे ‘डेटा प्रोफाइलिंग’ कहा जाता है। विद्यार्थियों का मानना है कि निजी कंपनियां इस डेटा का इस्तेमाल उन्हें शॉर्टलिस्टिंग प्रक्रिया से बाहर करने के लिए करती हैं। यानी छात्रों को उनके वर्तमान कौशल के बजाय उनकी जाति या पुरानी रैंक के आधार पर कम योग्य मान लिया जाता है, जिससे उन्हें बराबरी का मौका नहीं मिल पाता है।द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, आईआईटी बॉम्बे ने छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद सकारात्मक कदम उठाए। संस्थान ने अपने प्लेसमेंट पोर्टल से कैटेगरी और रैंक के कॉलम को पूरी तरह से हटा दिया है, ताकि चयन प्रक्रिया केवल स्किल के आधार पर हो। वहीं आईआईटी दिल्ली ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है। उनका कहना है कि वे यह डेटा केवल अपने रिकॉर्ड के लिए रखते हैं और नौकरी देने वाली कंपनियों को इसका एक्सेस नहीं दिया जाता है।
5 – लेडी श्री राम कॉलेज में अतिथि वक्ता का पितृसत्तात्मक भाषण और विवाद
दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज (एलएसआर) में आयोजित एक सत्र को लेकर साल 2025 में बड़ा विवाद सामने आया, जिसने कैंपस में लैंगिक संवेदनशीलता, अभिव्यक्ति की आज़ादी और जवाबदेही जैसे मुद्दों को फिर से चर्चा में ला दिया। 11 सितंबर को आयोजित ‘अजेय भारत 2047’ नाम का यह सत्र भारत के भविष्य, नीति और कूटनीति पर चर्चा के लिए रखा गया था। लेकिन वहां मौजूद छात्रों के अनुसार, यह कार्यक्रम जल्दी ही ऐसी बातों में बदल गया, जिन्हें कई छात्रों ने भेदभावपूर्ण और अपमानजनक माना। जैसे ही यह बात छात्रों के बीच फैली, एलएसआर की छात्राओं और छात्र संघ ने इसका कड़ा विरोध किया।
6 – के आई आई टी यूनिवर्सिटी में छात्रों की असुरक्षा के बढ़ते मामले
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, ओडिशा की कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी ( केआईआईटी) यूनिवर्सिटी में 20 साल की एक छात्रा की मौत के बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया। छात्रा अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पाई गई और इसे कथित तौर पर आत्महत्या से मौत बताया गया। वह लंबे समय से कैंपस में हिंसा और परेशानियों का सामना कर रही थी। इस घटना के बाद, नेपाली छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया और विश्वविद्यालय पर हिंसा की शिकायतों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। कैंपस गार्डों और विद्यार्थियों के बीच झड़प के वीडियो ऑनलाइन सामने आने के बाद तनाव और बढ़ गया। इसके तुरंत बाद, केआईआईटीयू केअधिकारियों ने नेपाल के सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए विश्वविद्यालय को तत्काल बंद करने की घोषणा की और उन्हें परिसर खाली करने का निर्देश दिया। छात्रों का आरोप था कि प्रशासन ने उनकी बात नहीं सुनी और बाद में कुछ नेपाली छात्रों को जबरन कैंपस से बाहर भी किया गया।
7 – मेस के खाने से वी आईटी के छात्रों की हालत बिगड़ी
मध्य प्रदेश के सीहोर में स्थित वीआईटी विश्वविद्यालय में नवंबर के आखिरी हफ्ते में भारी विवाद सामने आया। हॉस्टल केकरीब 4000 छात्रों ने कैंपस के अंदर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। विद्यार्थियों का आरोप था कि उन्हें मेस में गंदा खाना और दूषित पानी दिया जा रहा है। खराब पानी की वजह से कैंपस में पीलिया की बीमारी तेजी से फैल गई थी। दर्जनों छात्र बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जबकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने साफ तौर पर मानने से इंकार कर दिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिला प्रशासन की जांच में पानी के सैंपल असुरक्षित पाए गए। जांच में पानी के अंदर हानिकारक बैक्टीरिया की जानकारी मिली, जो पीलिया की मुख्य वजह था। हालांकि छात्रों ने पहले ही शिकायत की थी लेकिन यूनिवर्सिटी ने अनसुना कर दिया था। आखिरकार स्थिति को बिगड़ते देख यूनिवर्सिटी को कुछ समय के लिए बंद करना पड़ा।
8 – जम्मू-कश्मीर के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस चयन पर विवाद
इस साल जम्मू-कश्मीर के कटरा में स्थित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस बड़े विवाद के केंद्र में रहा। यह विवाद एमबीबीएस की पहली मेरिट लिस्ट आने के बाद शुरू हुआ। इस लिस्ट में कुल 50 सीटों में से 42 सीटों पर मुस्लिम समुदाय के छात्रों का चयन हुआ था। यह चयन पूरी तरह से एनइइटी या नीट परीक्षा के अंकों और जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ प्रोफेशनल एंट्रेंस एग्जामिनेशन की काउंसलिंग के आधार पर हुआ था। द हिन्दू में छपी खबर के अनुसार, इसके बाद विश्व हिंदू परिषद, बजरंगदल और कई नेताओं ने कड़ा विरोध प्रदर्शन किया। उनका तर्क यह था कि यह संस्थान माता वैष्णो देवी मंदिर के दान के पैसे से बना है, इसलिए यहां हिंदू छात्रों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इससे यह साफ़ तौर पर देखा जा सकता है कि धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव अभी भी बना हुआ है। चाहे वो गाँव हों या कैंपस कोई जगह अछूती नहीं बची है।
9 – फीस न जमा कर पाने पर छात्र ने गंवाई जान?
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का रहने वाला एक 24 वर्षीय छात्र, जो कॉलेज की फीस नहीं चुका पा रहा था, उसने अपने कॉलेज के प्रधानाचार्य के कथित तौर पर हिंसा का सामना करने के बाद कक्षा में आत्मदाह कर लिया। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, परिजनों ने बताया कि उसने फीस का एक हिस्सा जमा कर दिया था, लेकिन पूरी रकम न होने के कारण उसे परीक्षा फॉर्म भरने से रोक दिया गया। बताया जा रहा है कि इसी बात को लेकर कॉलेज में उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया और उसे सबके सामने अपमानित किया गया, जिससे वह मानसिक रूप से टूट गया। सोशल मीडिया में वायरल एक वीडियो में उसने प्रधानाचार्य पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपमानजनक शब्द कहे और उसके बाल खींचे।
घटना के बाद गंभीर रूप से झुलसे छात्र को पहले स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। हालत बिगड़ने पर उसे दिल्ली के अस्पताल रेफर किया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।साल 2025 के कैंपस आंदोलन यह दिखाते हैं कि छात्र आज भी सुरक्षा, समानता और न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। फीस बढ़ोतरी, भेदभाव, असुरक्षा और प्रशासनिक लापरवाही ने छात्रों को सड़कों पर उतरने को मजबूर किया। ये आंदोलन चेतावनी हैं कि जब तक विश्वविद्यालय छात्रों की आवाज़ को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक कैंपस सुरक्षित और समावेशी नहीं बन पाएंगे।

