खुले गगन के लाल सितारे: स्त्री-विमर्श का एक नया संदर्भ खींचती किताबBy Rupam Mishra 6 min read | Jul 25, 2023
काला जल: बस्तर के निम्न मध्यवर्गीय मुस्लिम समाज के मूल्यों में घुटती-टूटती स्त्रियों की सिसकियांBy Rupam Mishra 6 min read | May 30, 2023
सलाख़ों के पीछे: दृश्य-अदृश्य जेलों में बंद औरतों के नाम एक दस्तावेजBy Rupam Mishra 6 min read | May 22, 2023
स्वदेस की गीता और इस देश की सभी लड़कियां चाहती हैं स्वाभिमान, आज़ादी और आत्मनिर्भरता से जीनाBy Rishu Kumari 4 min read | May 11, 2023
सुवर्णलताः समाज के बनाए संकीर्ण सामंती ढांचे में एक चेतनाशील स्त्री के जीवन की त्रासदी By Rupam Mishra 6 min read | Apr 21, 2023
जॉयलैंड: लैंगिक असमानता, पितृसत्ता, सेक्सुअलिटी की सच्चाई को सामने रखती एक उम्दा कहानीBy Aashika Shivangi Singh 6 min read | Mar 28, 2023
दो बीघा ज़मीन: आखिर फ़िल्म की प्रासंगिकता खत्म क्यों नहीं हो रही है?By Rupam Mishra 7 min read | Feb 28, 2023
छतरीवालीः महत्वपूर्ण मुद्दे पर कमजोर कहानी के साथ बनी एक औसत फिल्मBy Nootan Singh 5 min read | Feb 2, 2023
टिकटशुदा रुक्का: ब्राह्मणवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के भयावह स्वरूप का ज़रूरी दस्तावेज़By Rupam Mishra 8 min read | Nov 24, 2022
मौजूदा दौर में क्यों प्रासंगिक है जातिवादी समाज के चेहरे को उधेड़ती फ़िल्म ‘दामुल’By Aashika Shivangi Singh 6 min read | Nov 21, 2022
जाति और जेंडर की परतों को उकेरती उमा चक्रवर्ती की किताब ‘जेंडरिंग कास्ट: थ्रू ए फेमिनिस्ट लेंस’By Shweta Singh 5 min read | Nov 14, 2022