संस्कृतिकिताबें बेहयाः पितृसत्ता की रुकावटों को पार करती एक स्त्री की दास्तां

बेहयाः पितृसत्ता की रुकावटों को पार करती एक स्त्री की दास्तां

किताब में एक बेहद संवेदनशील मुद्दे को छुआ है जिसके बारे में समाज में तो बहुत दूर हमारे घरों तक में महिलाओं तक के बीच में बात नहीं की जाती है। वह मुद्दा है मैरिटल रेप का।

‘बेहया’ उपन्यास भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति को चित्रित करता है। इस किताब में बताया गया है कि बेहया होना गाली नहीं बल्कि कई महिलाओं के लिए अपनी शर्तों पर जीवन जीने का रास्ता है। अक्सर समाज के ढांचे से इतर चलनेवाली महिलाओं को बेहया का लक़ब दे दिया जाता है। वे इतनी बेहया होती हैं कि उनके घर की इज़्ज़त उनकी योनि से जुड़ी होती है और वे उसका ख़्याल नहीं रखती हैं। न उन्हें कपड़ों का ख़्याल है, न चाल-ढाल का है। अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी जीते वक़्त ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के बनाए गए नियमों को ताक पर रखकर चलती हैं। 

ऐसी ही एक किताब है ‘बेहया।’ इसका शीर्षक ही आपको सोचने पर मजबूर कर देगा और आपको अपनी ओर ज़रूर खींचेगा। हर इंसान का देखने का नज़रिया अलग होता है। इस वजह से किताब पढ़नेवाले को इसके शीर्षक और कवर की वजह से बखूबी जज भी किया जा सकता है। किताब में एक बेहद संवेदनशील मुद्दे को छुआ है जिसके बारे में समाज में तो बहुत दूर हमारे घरों तक में महिलाओं तक के बीच में बात नहीं की जाती है। वह मुद्दा है मैरिटल रेप का।

किताब में एक मर्द किस तरह से अपने अंहकार, मर्दानगी और सामाजिक स्थिति को बरकरार रखने के लिए एक बेहद होनहार लड़की के जीवन को तबाह कर देता है। लेखिका विनीता अस्थाना की यह पहली किताब है। उन्होंने लंबा अरसे तक पत्रकारिता के क्षेत्र में काम किया है और फ़िलहाल वह अकादमिक दुनिया में कदम रख चुकी हैं।

 

बेहया की मुख्य पात्र सिया है। इसके अलावा यश (सिया का पति) और अभिज्ञान (सिया का दोस्त) है। यह पूरा उपन्यास इन तीनों किरदारों के इर्द-गिर्द है। सिया एक आधुनिक महिला है जो शिक्षित और आत्मनिर्भर है। वह अपने करियर में सफल है और आजाद ख्यालों वाली खुद के महत्व को समझने वाली महिला है। सफल और आत्मनिर्भर होने के बावजूद सिया रिश्तों की गरिमा और सामाजिक मान-मर्यादा की वजह से घरेलू हिंसा को सहती है। अपने वैवाहिक रिश्ते में पति उसका यौन उत्पीड़न करता है लेकिन वह सहती रहती है। 

उपन्यास में हिंसक रिश्ते की रोजमर्रा की ज़्यादतियों को दर्ज किया गया है। उसके संवादों में वास्तविकता का दूसरा पहलू दिखाया गया है। जैसे यह है कि सामाजिक आइना में जिस परवाह को महिलाएं मुहब्बत और ख़्याल रखना समझ लेती हैं वो असल में हिंसा से भरे रिश्ते में एक रेड फ़्लैग भी होता है।

सिया का पति यश उसके बाहर जाकर काम करने पर उसके चरित्र पर शक करता है। उसको मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है। उनका शादी का रिश्ता हिंसक था, वह आदमी ये नहीं झेल पाता था कि उसकी पत्नी इतनी क़ामयाब और इतने लोगों का नेतृत्व करने वाली महिला है। वह सिया पर पाबंदियां लगता है। उसको किसी से न मिलने देता, न बात करने देता है। अगर कभी सिया के पास किसी का फोन आ जाता है तो सज़ा के तौर पर उसका बलात्कार करता है। उसे तरह-तरह की प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है जिसमें कभी सिगरेट से जला देना और कभी तेज़ाब की बूंदों से उसके शरीर को जलाना तक शामिल होता है। 

उपन्यास में हिंसक रिश्ते की रोजमर्रा की ज़्यादतियों को दर्ज किया गया है। उसके संवादों में वास्तविकता का दूसरा पहलू दिखाया गया है। जैसे यह है कि सामाजिक आइना में जिस परवाह को महिलाएं मुहब्बत और ख़्याल रखना समझ लेती हैं वह असल में हिंसा से भरे रिश्ते में एक रेड फ़्लैग भी होता है। कामकाजी महिलाओं के लिए किस तरह के पूर्वाग्रह होते हैं उनको दर्शाया गया है। उनकी काम और कामयाबी को उनके चरित्र तक से कैसे जोड़ा जाता है इस पर बात की गई है। 

हमारे समाज में एक कामकाजी महिला को इस तरह से तरह देखा जाता है कि उसके जाने कितने मर्द दोस्त होंगे। इतना ही नहीं शराब और सिगरेट के नाम पर तक उसके चरित्र को मापा जाता है। पितृसत्ता की इस सोच को लेखिका ने बहुत शालीनता से इस किताब में पिरोया है। उपन्यास में विनीता की लेखनी की सबसे अच्छी बात यही लगी कि उन्होंने पति द्वारा हिंसा का सामना कर रही महिला की कहानी ज़रूर लिखी है लेकिन साथ ही उन्होंने बिना किसी को कटघरे में खड़ा किए हिंसा, असमानता की जड़ पितृसत्ता पर सवाल उठाए।

महिलाएं निडरता से डर की ओर कैसे बढ़ती हैं

लेखिका विनीता ने एक इंटरव्यू में बताया था कि सिया की कहानी एक वास्तविक कहानी से प्रेरित है। दरअसल वह लड़की एक प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान से पढ़ी हैं। वह अपने कॉलेज के दिनों में बहुत निडर हुआ करती थी और अपनी विचारधारा को लेकर बेहद मुखर थी। अपनी हर बात रखने के तरीक़े में बेहद निपुण थी। लेकिन जब ऐसी ही लड़कियां मर्दों से ख़ासकर अपने पति से हर उस हिंसा का सामान करती हैं जिसके ख़िलाफ़ वह कभी बोलती रही हैं, कैसे ये समाज एक महिला को यहां तक पहुंचा देता है?

विनीता ने ये भी बताया कि काफ़ी सालों तक सिया कई प्रतिष्ठित न्यूज़ चैनलों में बतौर एंकर काम करती रही और हर दिन पति के द्वारा दिए गए ज़ख्मों को मेकअप से छिपाकर स्क्रीन पर खबरें पढ़ती रहीं। वह आगे कहती हैं कि इससे अफ़सोसनाक कुछ नहीं हो सकता, अगर इतनी सशक्त महिलाएं खुद के लिए आवाज़ उठा कर हिंसक रिश्ते से बाहर आने में असमर्थ होती हैं तो मैं सोचती हूं उन छोटे शहरों में रहनेवाली महिलाओं के बारे में जिनको अपने अधिकार तक नहीं पता वे कैसे बाहर आएंगी। वे फिर हिंसा को औरत की नियति समझ बैठ जाती हैं।

हमारे समाज में एक कामकाजी महिला को इस तरह से तरह देखा जाता है कि वो तो किसी के साथ भी सोने को तैयार है और सो चुकी होगी। इसके ना जाने कितने मर्द दोस्त होंगे। इतना ही नहीं शराब और सिगरेट के नाम पर तक उसके चरित्र को मापा जाता है।

किताब का अंत सुखद है लेकिन असल ज़िंदगी सुखद नहीं है

इस किताब का अंत बहुत सकारात्मक नोट पर हुआ है जिसमें सिया हिंसक शादी के रिश्ते से बाहर आने की हिम्मत कर पाती है। यौन उत्पीड़न और असमानता को समझ कर सिया समझौता करने के बजाय लड़ना चुनती है। इज्ज़त और चरित्र की बनाई कैद को लांघकर वह अपने रास्ते पर आगे बढ़ती है जिससे उसकी जिंदगी बदलने लगती है।

साथ ही यह उपन्यास शादी के रिश्ते के हिंसक रूप को सामने रखता है। उस वास्तविकता को उजागर करता है जिसे हमारे समाज में कई तरह की परतों के नीचे दबा दिया जाता है। हिंसा, यौन उत्पीड़न को पति की परवाह बताकर नज़रअंदाज करने के लिए कह दिया जाता है। लेखिका ने उम्मीद का दामन थामते हुए इस किताब के अंत को ठंडी हवा जैसा बनाया है जो सुकून और आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करता है। 


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