स्वास्थ्य महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पितृसत्तात्मक समाज की चुप्पी

महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पितृसत्तात्मक समाज की चुप्पी

समाज के अनुसार महिलाओं को तो आदत ही है घर में रहने की, कुछ महीने महिलाओं का बाहर न जाना महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कैसे बुरा हो सकता है। भारतीय समाज के हिसाब से अगर यह महिलाओं को प्रभावित कर रहा है तो इसका मतलब है महिलाओं में ही कुछ दोष है क्योंकि घूमने-फिरने वाली महिलाएं और ज्यादा समय तक घर से बाहर रहने वाली महिलाएं हमारे समाज को पसंद नहीं हैं।

कोविड महामारी में ज्यादातर महिलाएं अपने घरों में रहने को मजबूर हैं। महिलाएं कमरों , रसोई घर के दरवाज़े और दीवारों के अंदर कैद हैं। स्कूल और यूनिवर्सिटी जाने वाली लड़कियां भी ऑनलाइन शिक्षा के कारण अभी घरों में ही रहकर पढ़ने-लिखने की कोशिश कर रही हैं। परिवार के सदस्यों ने एक धारणा बना ली है कि अगर स्कूल और कॉलेजों में लड़कियां पढ़ाई कर रही हैं या काम कर रही हैं, तो उनके लिए ऑनलाइन कक्षाएं काफ़ी हैं। उन्हें बाहर जाने, दोस्तों से मिलने या किसी भी विषय पर मिलकर चर्चा करने की ज़रूरत नहीं है। अभी तो लोगों को यह भी लगने लगा है जब घर में रहकर पढ़ाई की जा सकती है तो लड़कियों को घर से बाहर जा कर पढ़ाई करने की क्या ज़रूरत है? लेकिन लंबे समय तक घर के भीतर बंद लड़कियां अवसाद, मानसिक तनाव या अन्य मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से परेशान हो सकती हैं यह परिवार और समाज सोचने-समझने को तैयार नहीं है। अकेलेपन के कारण होने वाले लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य या तनाव पर तो कोई भी सोचना या बात करना नहीं चाहता।  

समाज और परिवार ने अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर महिलाओं के स्वास्थ्य के मुद्दे और उससे जुड़े सवालों के बारे में सोचना भी बंद कर दिया है। अक्सर यह भी सुनने को मिल जाता है कि फलां महिला बीमार नहीं है वह बस बीमारी का नाटक कर रही है। महिलाएं घर का काम नहीं करना चाहती इसलिए बीमार होने का नाटक करती हैं। जबकि देखा जाए तो महिलाएं ही हैं जो घर का काम पूरे साल, महीने लगातार सालों से करती आ रही है, उनको घर के काम से कोई छुट्टी नहीं है। स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण काम न कर पाना महिलाओं के लिए भी वैसा ही हैं जैसे सबके लिए , फिर भी महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर परिवार और समाज बिलकुल चिंतित नहीं है

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परिवार और समाज का महिलाओं के लिए जो रवैया है उसके अनुसार कोई महिला या लड़की घर पर रहकर बीमार नहीं हो सकती। महिलाओं का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहता है और रहना चाहिए। घर से बाहर न जाने पर पुरुष डिप्रेशन में जा सकते हैं, महिलाएं नहीं। समाज और परिवार के अनुसार घर में रहकर किसी महिला को मानसिक स्वास्थ्य की परेशानी कैसे हो सकती है। समाज के अनुसार महिलाओं को तो आदत ही है घर में रहने की, कुछ महीने महिलाओं का बाहर न जाना महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कैसे बुरा हो सकता है। भारतीय समाज के हिसाब से अगर यह महिलाओं को प्रभावित कर रहा है तो इसका मतलब है महिलाओं में ही कुछ दोष है क्योंकि घूमने-फिरने वाली महिलाएं और ज्यादा समय तक घर से बाहर रहने वाली महिलाएं हमारे समाज को पसंद नहीं हैं।

महिलाओं का घूमना फिरना , बाहर निकलना , लम्बे समय तक दोस्तों से बात करना या उनके साथ रहना यह सब परिवारों को खटकता आया है। महिलाओं के सामाजिक जीवन को परिवार तक समेटने की तैयारी में समाज ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित किया है। महिलाओं के पास अपनी बात करने के लिए कम से कम लोग हैं , साथ ही वो अपने परिवार से जुड़ी समस्याओं या अकेलेपन के बारे में बात करने के बारे में स्वतंत्र नहीं हैं। परिवार या समाज महिलाओं के मानसिक तनाव या अकेलेपन को पति और शादी के होने या न होने तक सीमित कर देते हैं। साथ ही यह भी सोचते हैं पति है या परिवार है तो कैसा अकेलापन। इस प्रकार महिलाओं के सामाजिक जीवन को परिवार और शादी तक सीमित कर दिया जाता है। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और उनके अकेलेपन या अवसाद के बारे में कोई बात नहीं करता।

  

“समाज के अनुसार महिलाओं को तो आदत ही है घर में रहने की, कुछ महीने महिलाओं का बाहर न जाना महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य के लिए कैसे बुरा हो सकता है। भारतीय समाज के हिसाब से अगर यह महिलाओं को प्रभावित कर रहा है तो इसका मतलब है महिलाओं में ही कुछ दोष है क्योंकि घूमने-फिरने वाली महिलाएं और ज्यादा समय तक घर से बाहर रहने वाली महिलाएं हमारे समाज को पसंद नहीं हैं।”

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समाज और परिवार को हमेशा यह लगता है लड़कियां घर में रहकर खुश भी हैं और सुरक्षित भी, जबकि वास्तव में लड़कियां घर में भी मानसिक और शारीरिक शोषण का सामना करती हैं। जो लड़कियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करता है। लड़कियों से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े हुए सवाल नहीं पूछे जाते और शोषण को तो लड़कियों का जीवन का हिस्सा ही मान लिया गया है। अक्सर घर की बड़ी महिलाएं और पुरुष लड़कियों के शारीरिक शोषण के बारे में जानते हुए भी कह देते हैं, “ऐसा तो होता ही रहता है, सबके साथ ऐसा होता है जीवन में, जैसा मेरे साथ हुआ तुम्हारे साथ होना कोई बड़ी बात नहीं हैं।” किसी भी प्रकार के शोषण का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। इसके बारे में परिवार और समाज ने पूरी तरह चुप्पी बांध ली है। साथ ही मैं यह मानती हूं की लड़कियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में समाज की प्रतिक्रिया या एक्शन ना के बराबर ही है।  

महिलाओं का घर में रहना, खुश रहना, परिवार और पति को खुश रखना -यह सब महिलाओं के व्यवहार में होना चाहिए।  घर में मन लगना या खुश न रहना, परिवार में अच्छा नहीं लगना या पति संग सुरक्षित नहीं महसूस होना और इन सब कारणों के कारण अवसाद में रहना यह महिलाओं को नहीं हो सकता है। इस प्रकार भारतीय परिवारों ने मानसिक तनाव में रहने वाली महिलाओं को बिना कुछ सोचे-समझे हाशिये पर खड़ा कर दिया है। समाज और परिवार एक तरफ ये तो मानता और सेलिब्रेट करता है कि महिलाओं की घर और समाज में मुख्य भूमिका है , परन्तु महिलाओं से जुड़े मुद्दे और उनके स्वास्थ्य के विषय में भी परिवार और समाज की चिंता ना के बराबर है। यदि हम वास्तव में महिलाओं की चिंता करते हैं तो जरुरी है कि हम अपने घर में रह रही महिलाओं और उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर उनसे खुलकर बात करें। उनकी चिंताओं, ख़ुशी और अकेलेपन के विषय में चर्चा करें और ये स्वीकारें कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानी किसी को भी हो सकती है।

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तस्वीर साभार : National Alliance on Mental Illness

Comments:

  1. Anwesha says:

    So contextual and relatable piece of writing. 👌👌

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