इंटरसेक्शनलहिंसा पॉर्न साइट्स की मौजूदगी के बीच क्यों ज़रूरी है सहमति की समझ और सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत

पॉर्न साइट्स की मौजूदगी के बीच क्यों ज़रूरी है सहमति की समझ और सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत

फर्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत साल 2018 में पॉर्न साइट्स का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था।

भारत एक ऐसा देश है जहां हर गली-मोहल्ले की दीवारों पर ‘मर्दानगी’ बढ़ाने वाले वैध-बाबा या किसी कंपनी का संपर्क लिखा होता है। रेल की पटरियों के बगल से लेकर महानगर के फ़ुटपाथ तक, तंबू लगाकर यौन शक्ति बढ़ाने की तथाकथित औषधि बेची जाती है। हर दिन हिंदी अख़बार का एक-आधा पन्ना ऐसी दवाइयों के विज्ञापन से भरा होता है। सेक्स के ऊपर इतने हो-हल्ले के बावजूद भारत में सेक्स-एजुकेशन नदारद है। स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में इसे शामिल तो किया गया है लेकिन ‘सेक्स’ शब्द घर से लेकर स्कूल के शिक्षक खुलकर बोलने में झिझक महसूस करते हैं। ऐसे में किशोरावस्था की तरफ़ बढ़ते युवाओं ख़ासकर लड़कों की सेक्स को लेकर जानकारी पॉर्न साइट्स से आती हैं। बहुत शिक्षित और प्रगतिशील कुछ सीमित संख्या के परिवारों में ही सेक्स और यौन स्वास्थ के शुरुआती पाठ किशोरों को अभिभावकों या स्कूलों के ज़रिये मिलता है।

अधिकतर घरों में कॉन्डम तक के विज्ञापन टीवी पर आए तो अभिभावक असहज होकर चैनल बदल देते हैं। लड़कियों की बात करें तो समाज ने औरतों के लिए सेक्स को प्रजनन की एक प्रक्रिया तक ही सीमित माना है। शारीरिक सुख या शारीरिक ज़रूरत के रूप में औरतों के लिए सेक्स को नहीं देखा जाता है। ऐसे में सेक्स को हौव्वा या पुरुषों को दिए गए सुख की तरह देखने वाली औरतें अपने शरीर के सुख की गुत्थी सुलझाने में परेशानियों का सामना करती हैं। हालांकि तकनीक जिन कुछ महिलाओं के हाथ में आई है और जो अपनी यौन जरूरतों को लेकर खुलने लगी हैं। ज्यादातर पुरुष पहली बार इन साइट्स पर सेक्स की प्रक्रिया जानने, अपने शारीरिक सुख की संतुष्टि और अन्य संभोग संबंधित जानकारी के लिए किशोरावस्था में जा चुके होते हैं। ऐसा करते समय उनके पास न तो जिम्मेदार स्रोत से मिला कोई सेक्स एजुकेशन होता है, न ही सेक्स से जुड़ी जरूरी बातें जैसे आपसी सहमति आदि के बारे में पता होता है। ऐसे में पॉर्न साइट्स क्या सामग्री कैसे पेश करते हैं उसपर चर्चा जरूरी हो जाती है।

फर्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत साल 2018 में पॉर्न साइट्स का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था। पॉर्नोग्राफी साइट पर बैन लगने के बावजूद ‘पॉर्नहब’ साइट के अनुसार बैन के बाद से भारतीय जनता द्वारा साइट पर बिताया गया समय कुछ सेकंड्स से बढ़ा ही है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना लॉकडाउन के पहले तीन सप्ताहों के दौरान पॉर्न ट्रैफिक में भारत में 95 फ़ीसद बढ़त पाई गई। कुछ टेलीकॉम कम्पनियों द्वारा इन साइट्स को ब्लॉक कर दिए जाने के बाद भी लोग माइनर डोमेन के जरिये इन साइट्स का प्रयोग करते रहे हैं। 

और पढ़ें: दोहरे मापदंडों के बीच हमारे शहर और सेक्स

फर्स्ट पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत साल 2018 में पॉर्न साइट्स का विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता था।

पॉर्न में यौन हिंसा

सेक्स या यौन संबंध स्थापित करते वक्त दोनों पक्षों की सहमति बेहद ज़रूरी है। सहमति यानि कि ‘कंसेंट’ को गंभीरता से समझा जाना चाहिए। रोमांस करते हुए या यौन क्रिया के किसी भी चरण पर अगर एक साथी उससे आगे नहीं बढ़ना चाहता हो तो उसपर किसी तरह के भावनात्मक उलझाव में डालकर “हां” कहलवाना, जबरदस्ती “हां” कहलवाना, शारीरिक बल का प्रयोग करना, बिना रज़ामंदी पूछे अपने मन में जवाब “हां” मान लेना सहमति नहीं है। सहमति या ‘कंसेंट’ समझने का सीधा सरल तरीक़ा है अंतरंग पलों में हर कदम के लिए साफ़ पूछना। सहमति लेने में पुरुषों की समझ और तरीक़ा कमज़ोर होने के कारण कई बार महिलाएं बिना अपनी सहमति के सेक्स करती हैं। ऐसे सेक्स को सेक्स की श्रेणी में रखकर रेप की श्रेणी में नहीं रखा जाना भी अपनेआप में एक सवाल है। चूंकि महिला की सहमति के बिना की गई कोई भी यौन क्रिया रेप की परिभाषा में ही आती है। मैरिटल रेप इसका एक उदाहरण है। मैरिटल रेप यानी शादीशुदा औरतों की सहमति के बिना उसके साथ पति द्वारा स्थापित किया गया यौन संबंध। ज्यादातर शादियों में पुरुष पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने के लिए शादी को लाइसेंस के तौर पर देखता है। वैवाहिक रिश्ते में भी सहमति उतनी ही जरूरी जितनी अन्य किसी संभोग के रिश्ते में।

और पढ़ें : मैरिटल रेप सर्वाइवर की ‘क्रिमिनल जस्टिस’| नारीवादी चश्मा

कई पॉर्न वेबसाइट्स में ‘रेप पॉर्न’ नाम का एक पूरा सेक्शन होता है। इनके शीर्षक में किसी लड़की के साथ उसके पुरुष मित्र, शिक्षक, घर के किसी सदस्य, ऑफिस के सहकर्मी/बॉस द्वारा जबदस्ती सेक्स किए जाने की बात लिखी होती है। वीडियो का चित्रण भी वैसा ही होता है। रिवेंज पॉर्न श्रेणी के अंदर किसी की निजी बातों जैसे चैट्स, तस्वीरें, वीडियो को सार्वजनिक करने की धमकी देते हुए कोई पुरुष सदस्य किसी महिला के साथ संबंध बनाता है। ऑफिस में प्रमोशन के बदले में यौन संबंध बनाने के दवाब पर भी पॉर्न वीडियो मौजूद हैं। ‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की सबसे बड़ी पॉर्न साइट है ‘पॉर्नहब’, जिसे साल में 42 बिलियन बार देखा जाता है।

‘एक्सओड्स क्राय इन द यूएस‘ नामक एक समूह ने पॉर्नहब के ख़िलाफ़ एक पीटिशन निकाला जिसे लगभग 3,50,000 हस्ताक्षर मिले थे। यह पीटिशन ‘पॉर्नहब’ पर रेप वीडियो डाले जाने के ख़िलाफ़ थी। इस समूह के मुताबिक, साइट वीडियो के व्यू के आंकड़ों से कमाई करता है लेकिन साइट पर प्रकाशित वीडियो के प्रति जिम्मेदारी नहीं लेता। कई ऐसे वीडियो हैं जिनमें 18 साल से कम के लोगों ने काम किया है, ऐसे में उनकी सहमति से वीडियो के बनने और डाले जाने को लेकर बड़ा सवाल खड़ा होता है। 2019 अक्टूबर में फ्लोरिडा की एक 15 वर्षीय लड़की लापता थी, लड़की के रेप वीडियो ‘पॉर्नहब’ समेत अन्य कई पॉर्नोग्राफी साइट्स पर पाए गए थे। ‘पॉर्नहब’ और कई अन्य पॉर्न साइट्स पर असल यौन हिंसा की घटना पॉर्न विडियो के रूप में कई बार पाई गई हैं। इन सामग्री को किसी भी आयु वर्ग का पुरुष दर्शक जब देखता है तो उसे सेक्स को लेकर नई भ्रांतियां मिलती हैं या समाज द्वारा दी गईं भ्रांतियों को ये विडियो उसके मन में पोषित करते हैं। महिलाओं के साथ हुई कई गंभीर घटनाएं जैसे कार्यस्थल पर होने वाली यौन हिंसा, घरेलू यौन हिंसा, शिक्षण सस्थानों में यौन हिंसा को ऐसे पॉर्न साइट्स अपने उपभोक्ताओं को फैंटेसी यानी यौन काल्पनिक सुख की तरह परोसते हैं।

और पढ़ें : ऐसी है ‘पितृसत्ता’ : सेक्स के साथ जुड़े कलंक और महिलाओं के कामकाजी होने का दर्जा न देना

पॉर्न वेबसाइट पर महिलाओं के साथ यौन हिंसा का चित्रण पॉर्न साइट्स की सीमित महिला दर्शकों को और सीमित संख्या में कर देती है। ‘फ़ॉर वूमन’ की श्रेणी के पॉर्न का स्तर इतना न्यूनतम है कि उसे असल में स्त्री यौन सुख के लिए बनाए गए वीडियो की श्रेणी में रखना नामुमकिन लगता है। कई सारे वीडियो देखने में महिलाएं इसलिए असहज नहीं हैं क्योंकि उन्हें पॉर्न से कोई बुनियादी दिक़्क़त है बल्कि पॉर्न में दिखाई सामग्री, सेक्स के पहले या/और दौरान महिला के प्रति उसके साथी पुरुष के बर्ताव से परेशानी है। कुछ गिने-चुने पॉर्न साइट्स महिला अनुकूल हैं जैसे बेलसा, आर्ट पॉर्न फ़ॉर वुमन। ये साइट्स उपभोक्ताओं के लिए फ़्री में उपलब्ध हैं। वहीं, कुछ अन्य साइट्स जैसे द क्रैश पैड, लस्ट सिनेमा, देन जोन्स भी हैं लेकिन इन्हें इस्तेमाल करने के लिए मेंबरशिप के पैसे लगते हैं। भारत जैसे देश में जहां एक आम महिला को आर्थिक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए कई अन्य आज़ादियों से समझौता करना पड़ता है वहां पॉर्न देखने के लिए पैसे खर्चना एक विशेष आर्थिक तबके की महिला तक सीमित रह जाता है। वहीं, कई पॉर्न साइट्स क्वीयर-अनुकूल नहीं होते हैं। इसका कारण है, होमोसेक्सुअल रिश्ते को समझने और उसे शारीरिक सुख के पैमाने पर पॉर्न में ढालकर दिखाने की समझ और संदेहशीलता की कमी। ‘ग्लेमर’ वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक द क्रश पैड एक क्वीयर अनुकूल लेकिन पैसे देकर देखे जाने वाली उन गिनी-चुनी साइट्स में से एक है।

अक्सर पॉर्न साइट्स में एक विशेष शारीरिक बनावट प्रचारित की जाती है। एक विशेष देश में सुंदरता की तथाकथित परिभाषा में जैसी शारीरिक बनावट फिट बैठती है उसे पॉर्न साइट्स अपने वीडियो में दिखाता है। महिला की योनि को एक विशेष तरह का दिखाया जाता है। पुरुषों के लिंग का एक विशेष आकार देखने मिलता है। सारी पॉर्न साइट्स द्वारा प्रदर्शित यौन सुन्दता में एकरूपता दिखती है। ऐसे में लोग असल जीवन में बनाए गए यौन संबंधों की तुलना पॉर्न वीडियो से करने लग जाते हैं। ऐसी स्थितियां असल जीवन के यौन अनुभवों में असहजता लाती हैं। बहुत जरूरी है कि किशोरों को सेक्स एजुकेशन अभिभावकों या अन्य किसी ज़िम्मेदार स्त्रोत से मिले न कि ऐसे किसी पॉर्न साइट से जो अपने प्रकाशित वीडियो के दृश्यों और उसे बनाने की प्रक्रिया को लेकर जवाबदेही नहीं रखती। पॉर्नोग्राफी में महिलाओं और क्वीयर समुदाय का चित्रण उनके नज़रिए से हो। पॉर्न द्वारा शारीरिक सुख बिना कुंठित सोच, किसी जेंडर के प्रति हिंसात्मक या असंवेदनशील हुए दिखाना जरूरी है क्योंकि इससे मानसिक रूप से प्रभावित होने की संभावना में एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है।

और पढ़ें : युवा, सेक्स और संबंध’ से जुड़ी दूरियां जिन्हें पूरा करना बाकी है


तस्वीर : फेमिनिज़म इन इंडिया

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content