यौनिकता एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही अधिकाँश लोगों के मन में पहला शब्द आता है ‘सेक्स|’ इसके कई कारण हो सकते है| पर मुख्य यह है कि कई बार इसे योनि शब्द में सीमित करके समझा जाता है जो इसे सेक्स का समानार्थी जैसा बनाता है और इसके चलते अक्सर यौनिकता सुनते ही लोग अपना मुंह चुराने लगते है| पर आपको बता दूँ अगर आप भी यौनिकता को लेकर ऐसे ही विचार रखते हैं तो ये लेख ख़ास आपके लिए है क्योंकि यौनिकता के मायने योनि से कहीं ज्यादा है| कैसे? आइये जाने|
किसी शब्द को लेकर हम जब चुप्पी साधना शुरू करते है तो उसी शब्द के तले सड़े और संकीर्ण शब्द उसके पर्यायवाची बनते जाते है| आपको बता दें कि यहाँ शब्द का मतलब सिर्फ अक्षरों के समन्यव की बजाय उसके पीछे के विचारों से है, जिससे हमारे शब्द बनाए जाते है| ऐसे में जब हम किसी स्वस्थ समाज की कल्पना करते है तो यह बेहद ज़रूरी होता है कि हम अपने विचारों और उससे बनने वाली भाषा को भी स्वस्थ रखें| क्योंकि यही वह माध्यम है जिससे हम किसी भी समस्या की तह तक पहुंच सकते हैं| मौजूदा समय में ऐसे शब्दों की कमी नहीं है जिनके पहलुओं पर चर्चा ज़रूरी है, इसी कड़ी में जेंडर, महिला, समानता और अधिकार जैसे अहम मुद्दों से जुड़ा विषय है यह जिसपर अपनी समझ बढ़ाना न केवल हमारे जीवन की बल्कि समय की भी मांग है|
क्या है यौनिकता?
यौनिकता सिर्फ शारीरिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक राजनीतिक, सामाजिक, क़ानूनी और धार्मिक संघर्ष है| वैसे तो यौनिकता में सेक्स शामिल है, पर इसका दायरा सेक्स से कहीं ज्यादा बड़ा है| यह सेक्स से ज्यादा अंतरसंबंध (कई मुद्दों से जुड़ी हुई) की अवधारणा है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा के अनुसार यौनिकता मनुष्य होने का एक केन्द्रीय आयाम है जो जीवनभर मौजूद रहता है| सेक्स और जेंडर आधारित पहचान व भूमिकाएं, यौनिक रुझान, कामुकता, आनन्द, अंतरंगता व प्रजनन आदि सभी इसमें शामिल है| यौनिकता को विचारों, कल्पनाओं, कामनाओं, विश्वासों, रैवैयों, मूल्यों, व्यवहारों, तौर-तरीकों, भूमिकाओं और संबंधों में अनुभव से अभिव्यक्त किया जाता है| यों तो ये सभी आयाम यौनिकता का हिस्सा हो सकते हैं पर इन सभी को हमेशा अनुभव या अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता| यौनिकता शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, कानूनी, ऐतिहासिक, धार्मिक और आध्यात्मिक कारकों से प्रभावित होती है|’
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यह परिभाषा यौनिकता के कई पहलुओं को समेट पाती है| फिर भी यह ज़रूरी है कि हम किसी एक परिभाषा में बंध न जाए| वास्तव में यौनिकता को चंद वाक्यों में परिभाषित करना इतना आसान नहीं है| क्योंकि हम जितना इसकी गहराइयों में जायेंगें इसकी तहे उतनी खुलती जाएंगीं और इसकी मजबूत जड़ें सामने आती जाएंगीं| सरल शब्दों में कहें तो यौनिकता की ही तरह इसकी परिभाषाएं भी जीवंत और लचीली है|‘यौनिकता’ सेक्स से ज्यादा अंतरसंबंध (अन्य मुद्दों से जुड़ी) एक अवधारणा है|
क्या है यौनिकता की खासियत
यौनिकता किसी के भी चरित्र पर ठप्पा लगाने के काम तो आती है| लेकिन यहाँ हम इसके चरित्र पर बात करेंगें जो हमें इसकी अवधारणा को समझने में मदद करेगा|
अनेकताओं में एक ‘यौनिकता’
जिस तरह हर इंसान एक-दूसरे से अलग होता है| ठीक उसी तरह उसकी पसंद भी एक-दूसरे से अलग होती है| ऐसे में हमारी यौनिक चाहत क्या है| आने वाले समय यह क्या रूप लेगी या हम किसकी तरफ आकर्षित होंगें| – इन सभी में स्थिरता और समानता नहीं है| इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यौनिकता में विविधता होती है|
बदलती रहती है हमारी ‘यौनिकता’
आज हमें खाने में क्या पसंद है? या किस रंग के कपड़े पसंद है| इन सभी में समय के साथ बदलाव आता रहता है| ठीक इसी तरह हमारी यौनिक चाहतों में भी समय के साथ बदलाव आता है| उल्लेखनीय है कि यौनिकता में हमारी हर पसंद को शामिल किया जाता है| इसलिए समय के साथ हमारी बदलती पसंद यौनिकता को भी परिवर्तनशील बनाती है|
यौनिकता सिर्फ हमारी महसूस की गयी चाहतें या इच्छाएं ही नहीं, हमारी ज़िन्दगी का विशेष आयाम है|
प्राकृतिक नहीं सामाजिक होती है यौनिकता
जिस तरह हमारी अन्य इच्छाओं पर सामाजिक कायदों का गहरा प्रभाव पड़ता है| ठीक उसी तरह हमारी यौनिक इच्छाओं पर भी सामाजिक कायदों का प्रभाव पड़ता है| सामाजिक कायदे ये तय करने की कोशिश करते हैं कि कौन, कब, कैसे और क्यों यौनिक रिश्ते रख सकता है| जो ये कायदे मानते हैं उन्हें फायदे मिलते हैं और जो उन्हें चुनौती देते है उनको दंडित किया जाता है| लेकिन यहाँ मामला सिर्फ बाहरी नियमों का नहीं है| यौनिकता से जुड़े सामाजिक कायदे हमारे अंदर इस तरह घर कर जाते हैं कि कभी-कभी इच्छाएं पनपने से पहले ही अपना दम तोड़ देती हैं या हम उन्हें दबा देते हैं| ये भी सामाजीकरण का हिस्सा है| यौनिकता ये जुड़े ये कायदे और प्रक्रियाएं गहरे रूप से जेंडर, जाति, वर्ग, और धर्म से जुड़ी हुई है|
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सकारात्मक और नकारात्मक भी होती है ‘यौनिकता’
यह कतई ज़रूरी नहीं है कि यौनिकता हमेशा सकारात्मक ही हो| यह नकारात्मक भी हो सकती है| क्योंकि यौनिकता का सामाजिक कायदों से गहरा ताल्लुक है, ऐसे में यह संभव है कि समाज को जब भी अपने बने बनाये यौनिकता के नियम टूटते दिखेंगें वो उसे दंडित करेगा और वो यौनिकता समाज के लिए नकारात्मक होगी|
सरल शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि यौनिकता मानव व्यक्तित्व और उसकी पहचान का केंद्र बिंदु है| वैसे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से यौनिकता की दी गयी परिभाषा बहुत विस्तृत है, पर इसमें अभी एक चीज़ जोड़ने की ज़रूरत है कि यौनिकता सिर्फ हमारी महसूस की गयी चाहतें या इच्छाएं ही नहीं, हमारी ज़िन्दगी का एक आयाम है| एक ऐसा आयाम जो ज़िन्दगी के हर पहलू में मौजूद है और उसे प्रभावित भी करता है| अगर हम अपने जीवन के किसी भी पहलू को गौर से देखें तो यही नज़र आएगा| इसलिए ज़रूरी है कि हम यौनिकता के मुद्दे पर स्वस्थ चर्चा करें और इसकी परतों को और खोलने, समझने और इसके सकारात्मक पहलुओं को लागू करने का प्रयास करें|
यह लेख क्रिया संस्था के वार्षिक पत्रिका यौनिकता एवं अधिकार (2006 एवं 2017) से प्रेरित है| इसका मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें|
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तस्वीर साभार : osv.com
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