हार्ट अटैक आने की वजह से भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बीते मंगलवार को अपना देह त्याग दिया। अब वे शारीरिक रूप से हमारे साथ नहीं हैं पर उनका शानदार व्यक्तित्व हमेशा हमारे साथ रहेगा। सुषमा स्वराज ना केवल भाजपा की एक सफल नेता के तौर पर लोकप्रिय थी, बल्कि एक हरफनमौला होने के कारण भी खासी मशहूर थीं। कुछ लोग उन्हें कूटनीति का विशेषज्ञ भी कहते हैं। ना जाने कितने ही राजनेता आये और गए लेकिन स्वराज के ऊपर आज तक कोई ऊँगली नहीं उठा पाया। चाहे वे विपक्ष में रहीं या फिर सरकार में, उनकी सादगी और उदारता ने हमेशा सबकी वाहवाही बटोरी। निश्चित रूप से वे उन राजनेताओं में से हैं जिन्होंने भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से अपनी छाप छोड़ी है।
सुषमा स्वराज का जन्म हरियाणा की अम्बाला छावनी में 14 फरवरी 1952 में हुआ था। उन्होंने संस्कृत और राजनीति विज्ञान में स्नातक किया| उन्हें अम्बाला के सनातन धर्म कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ छात्रा के सम्मान से सम्मानित भी किया गया था| केवल पढ़ाई ही नहीं बल्कि दूसरे कार्यक्रमों में भी वे अव्वल नंबर पर थीं। उन्हें संगीत, ड्रामा और फाइन आर्ट्स भी बेहद पसंद था। स्नातक के दौरान उन्हें एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट का दर्जा मिला और तीनों साल राज्य की श्रेष्ठ वक्ता के रूप में सम्मानित किया गया। इसके बाद स्वराज ने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से विधि की पढ़ाई करते हुए सर्वोच्च वक्ता का सम्मान प्राप्त किया। पढ़ाई पूरी होने के बाद वे भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हुईं जहाँ उनकी मुलाक़ात स्वराज कौशल से हुई। 23 जुलाई 1975 में दोनों का विवाह हुआ और उनके दाम्पत्य जीवन की शुरुआत हुई।
सुषमा स्वराज का राजनीतिक सफरनामा
सुषमा स्वराज ने आपातकाल के बाद जनता पार्टी में शामिल होने का फैसला लिया। साल 1977 में उन्होंने अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से हरियाणा विधानसभा के लिए चुनाव जीता और महज़ 25 साल की उम्र में श्रम मंत्री बनीं। इसी के साथ उन्होंने देश की सबसे कम उम्र की महिला कैबिनेट मंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद साल 1979 में स्वराज हरियाणा में जनता पार्टी की राज्य अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हुईं। कुछ समय बाद ही वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुईं और अपने राजनीतिक जीवन की गाड़ी आगे बढ़ायी।
सुषमा स्वराज की बहुमूल्य राजनीति का कोई तोड़ नहीं है।
सुषमा स्वराज का सबसे बड़ा कदम वाजपेयी सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री के तौर पर माना जाता है जब उन्होंने फिल्म व्यापार को उद्योग घोषित किया था। उनके इस निर्णय से भारतीय सिनेमा को भी बैंक से कर्ज़ा मिल सकता था। 12 अक्टूबर 1998 को स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। स्वराज के नामपर बहुत से रिकॉर्ड दर्ज हैं जो महिलाओं के लिए प्रोत्साहन का केंद्र हैं। उन्होंने भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता बनने के साथ देश में किसी भी राजनीतिक पार्टी की पहली महिला प्रवक्ता बनने का रिकॉर्ड बनाया।
साल 2009 में मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट जीतकर वे लोकसभा में पहली महिला विपक्षी नेता बनीं। इसके बाद साल 2014 में विदिशा से ही दोबारा सांसद बनकर लौटीं और केंद्र सरकार में पहली महिला विदेश मंत्री बनने का रिकॉर्ड दर्ज किया। वे देश की प्रथम व एकलौती महिला सांसद हैं जिसे साल 2004 में आउटस्टैंडिंग पार्लिअमेंटरियन सम्मान प्राप्त हुआ है। स्वराज अपने पूर्ण राजनीतिक करियर में सात बार सांसद और तीन बार विधायक बनीं।
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स्वर्णिम उपलब्धियां
उपलब्धियों में केवल स्वराज के रिकॉर्ड और कीर्तिमान गिने जाएं तो यह नाइंसाफी होगी। उनके एक महिला और राजनीतिज्ञ के तौर पर किये गए कार्यों की ओर ध्यान देना भी ज़रूरी है। स्वराज की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं उनका प्रखर वक्तव्य। जिस तरह से वे लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए संसद में अपनी बात पेश करती थीं, उसकी कोई तुलना नहीं है। किसी भी अपशब्द, दुराचार और अपमान किये बगैर अपने विचार साझा करना उन्होंने अच्छे से सीख लिया था। वे ज़मीनी स्तर पर काम करते हुए आम जनता की आवाज़ बन गयी थीं|
साल 2003-04 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए स्वराज ने भारत में छह एम्स अस्पताल का निर्माण करवाया। साल 2015 में यमन संकट के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में “ऑपरेशन राहत” चलाया गया। ग्यारह दिन के इस ऑपरेशन में भारत समेत कई देशों के तकरीबन सात हज़ार नागरिकों को त्रासदी से बचाया गया। गौरतलब है कि इसी साल उन्होंने ईरान में फंसे 168 भारतीयों को भी बाहर निकाला था|
ना जाने कितने ही राजनेता आये और गए लेकिन स्वराज के ऊपर आज तक कोई ऊँगली नहीं उठा पाया।
साथ ही उन्होंने सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल किया। ट्विटर को एक “निरंतर हेल्पलाइन” के रूप में इस्तेमाल किया और लोगों तक मदद पहुंचाई। उन्होंने साल 2017 में एक साल की आयु वाली पाकिस्तानी बच्ची को मेडिकल वीज़ा देकर सबका दिल जीत लिया था। वे हामिद अंसारी को भी वापस भारत लेकर आयी थीं जिसे पाकिस्तान की जेल में कैद कर लिया गया था। इसी के साथ ना जाने कितने ही लोगों के लिए स्वराज ने “आपातकालीन मंत्री” की भूमिका निभाई।
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जब सुषमा स्वराज रही कॉन्ट्रोवर्सी में
वैसे तो स्वराज सबकी पसंदीदा थीं| लेकिन प्रसिद्धि का चरम छूते ही आलोचनाएं अपने आप पीछा करती हैं। सुषमा स्वराज और सोनिया गाँधी की प्रतिद्वंदिता तो जग ज़ाहिर है। साल 1999 में जब कर्नाटक की बेल्लारी सीट से उन्होंने सोनिया गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ा तब वे काफी चर्चा में आयी थीं। हालांकि कम अंतर से ही सही पर स्वराज को हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद साल 2004 में जब पूरे देश को लग रहा था कि गाँधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी, तब स्वराज ने यह घोषणा कर दी थी कि वे अपना सर मुंडवा लेंगी।
इसके बाद जब विदेश मंत्रालय सँभालते हुए उन्होंने ट्विटर का सहारा लेना चालू किया तो उनकी ट्रोलिंग भी की गयी। इसके साथ ही साल 2018 में जब एक हिन्दू मुस्लिम जोड़े ने पासपोर्ट ना मिलने की शिकायत स्वराज से की, तब मामला बढ़ गया। उनपर ये आरोप लगा कि बिना पुलिस वेरिफिकेशन के धर्म के नामपर अफरातफरी में ही जोड़े को पासपोर्ट दे दिया गया। इससे स्वराज के फेसबुक और ट्विटर दोनों की रेटिंग में भारी गिरावट आयी थी।
इस सबके बावजूद सुषमा स्वराज की बहुमूल्य राजनीति का कोई तोड़ नहीं है। उन्होंने महिलाओं को आगे बढ़ने की जो राह और उम्मीद दिखाई है वह कीमती है। जायज़ है कि उनकी ममतायी और सौम्य छवि ने करोड़ों दिलों पर राज किया है और हमेशा करती रहेगी। हम सबकी ओर से सुषमा स्वराज को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
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तस्वीर साभार : economictimes
Ayushi is a student of B. A. (Hons.) Mass Communication and a social worker who is highly interested in positively changing the social, political, economic and environmental scenarios. She strictly believes that "breaking the shush" is the primary step towards transforming society.
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