इंटरसेक्शनलजेंडर फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट : आखिर क्यों कर रही हैं महिलाएं पीरियड उत्पादों का बहिष्कार

फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट : आखिर क्यों कर रही हैं महिलाएं पीरियड उत्पादों का बहिष्कार

इस आंदोलन में महिलाएं मासिकधर्म के वक़्त किसी भी प्रकार के पीरियड उत्पाद का बहिष्कार करते हुए खुलकर रक्त बहाने का चुनाव करते हैं।

“फ्री ब्लीडिंग” का मतलब है – स्वतंत्र रक्तस्त्राव। और यहीं से शुरुआत होती है ‘फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट’ यानी ‘स्वतंत्र रक्तस्त्राव आंदोलन’ की। इस आंदोलन में महिलाएं मासिकधर्म के वक़्त किसी भी प्रकार के पीरियड उत्पाद का बहिष्कार करते हुए खुलकर रक्त बहाने का चुनाव करते हैं। यह विषय विश्वस्तर पर काफी विवादों में घिरा हुआ है। जहां कुछ लोग इसे माहवारी से जुड़े लांछनों के खिलाफ एक नारीवादी कदम मानते हैं तो वहीं दूसरी ओर इसे बेशर्मी और गंदगी का नाम दिया जाता है। फिलहाल यह आंदोलन विदेशों में बड़ा मुद्दा है पर भारत में यह ज़्यादा चर्चित नहीं है। हालांकि हमें यह समझना ज़रूरी है कि हर मनुष्य को अपनी ज़िन्दगी के अहम फैसले लेने का पूरा अधिकार है। वे माहवारी के समय पीरियड प्रोडक्ट का उपयोग करना चाहते हैं या नहीं यह पूरी तरह उनपर निर्भर करता है।

इतिहास के पन्नों से निकला फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट

वैसे तो इस आंदोलन को धक्का साल 1970 में मिला| लेकिन देखा जाए तो यह सदियों से विश्व में चला आ रहा है। विकल्प के तौर पर नहीं बल्कि मजबूरी के रूप में| प्राचीन काल में जब महिलाओं के पास पैड,  टैंपोन और कप जैसी चीजें उपलब्ध नहीं थी, तब उन्हें खुलकर ही रक्तस्त्राव करना पड़ता था। यह बहुत ही सामान्य था। केवल उच्च श्रेणी की महिलाएं ही कपड़ों व अन्य चीजों का इस्तेमाल कर पाती थीं। लेकिन धीरे-धीरे समाज में पनपती कुप्रथाओं ने इस साधारण प्रक्रिया को भी अपने कब्जे़ में ले लिया।

सेनेटरी पैड और टेंपोंस से होने वाले घातक टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टीएसएस) के पुरज़ोर विरोध में साल 1970 में महिलाओं ने यह आंदोलन छेड़ा था। हांलाकि इसकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे घटती गई। साल 2014 में 4chan नामक वेबसाइट के लिंगभेद वाले प्रैंक से इस विषय को फिर से चिंगारी मिली। पर देखा जाये तो असली इतिहास तब रचा गया जब साल 2015 में भारतीय मूल की किरण गांधी बिना कोई पैड या टैंपोन पहने लंदन मैराथन में दौड़ी। यह फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट की ओर एक बहुत बड़ा कदम था। गौरतलब है कि उसी साल भारतीय मूल की कैनेडियन कवयित्री रूपी कौर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से एक पोस्ट जारी किया था जिसमें वे स्वतंत्र रक्तस्त्राव करती दिखाई दे रही थी। इस पोस्ट को इंस्टाग्राम द्वारा हटा दिया गया था। कारण- वही पुरानी दकियानूसी सोच।

जो लोग मासिकधर्म के समय खुलकर रक्त बहाने का चुनाव कर रहे हैं उन्हें ऐसा करने में अधिक सहूलियत लगती है।

आखिर क्यों कर रही हैं महिलाएं पीरियड उत्पादों का बहिष्कार

इसका सबसे पहला कारण है नॉन बायोडिग्रेडेबल उत्पादों का विरोध। चूंकि बायोडिग्रेडेबल पीरियड अधिकतर महिलाओं के लिए महंगा है, इसलिए उन्हें ना चाहते हुए भी सामान्य सैनिटरी पैड्स और टैंपोंस का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे उनका खर्च तो बढ़ता ही है, साथ में पर्यावरण भी प्रदूषित होता है। बहुत से देशों में मासिकधर्म जैसी बायोलॉजिकल प्रक्रिया के लिए बनाए गए उत्पादों पर अब भी टैक्स लगाया जाता है। इसका विरोध-प्रदर्शन करने के लिए फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट लोगों का सहारा बनता जा रहा है।

Image Source: Twitter

दूसरी वजह है फ्री ब्लीडिंग ज़्यादा सुविधाजनक होना। जो लोग मासिकधर्म के समय खुलकर रक्त बहाने का चुनाव कर रहे हैं उन्हें ऐसा करने में अधिक सहूलियत लगती है। उनका कहना है कि सेनेटरी पैड्स जैसे उत्पाद शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं और दैनिक जीवन में बाधा डालते हैं। ऐसे में आज़ादी से अपनी शर्तों पर जिंदगी बिताना एक बेहतर उपाय है। इसी विचार के साथ किरण गांधी ने भी मैराथन में स्वतंत्र रक्तस्त्राव कर भाग लिया था।

और पढ़ें : पीरियड में इन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल पर्यावरण को रखेगा सुरक्षित

फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट की जो तीसरी ख़ास वजह सामने आई वह है – माहवारी से जुड़ी कुरीतियों, कुप्रथाओं और निषेधों के प्रति समाज में जागरूकता लाना। जिस तरह से हमारे समाज में आज भी मासिकधर्म को शर्मनाक तरीके से देखा जाता है वह दुर्भाग्यपूर्ण है। परिवारों में अब भी बच्चियों को इस विषय पर कानाफूसी करना सिखाया जाता है। माहवारी से जुड़े बेतुके मिथ्यों को बढ़ावा दिया जाता है। इस सबके खिलाफ अगर कोई औरत स्वतंत्र रक्त स्त्राव करती है तो यह काफी चौंका देने वाली बात है। फ्री ब्लीडिंग मूवमेंट इसमें अहम भूमिका निभाता है। जब लोग कपड़ों पर खून को देखकर भी अनदेखा नहीं कर पाएंगे, तब उन्हें यह एहसास होगा कि माहवारी प्राकृतिक है।

भारत में इस आंदोलन का इतना ज़ोर नहीं है। बदकिस्मती से फ्री ब्लीडिंग हमारे लिए मजबूरी है क्योंकि गरीब और ग्रामीण तबके की महिलाएं पीरियड उत्पाद खरीदने में असमर्थ हैं। उनके लिए यह किसी विरोध का विषय नहीं बल्कि एक परेशानी का विषय है। सेनेटरी पैड ना खरीद पाना उनके लिए शारीरिक प्रताड़ना से ज़्यादा मानसिक प्रताड़ना है। समाज में खुलेआम रक्तस्त्राव करना उनका सिर वैसे ही शर्म से झुका देता है। ऊपर से लोगों के ताने, गंदी नज़रें, कुरीतियां और महंगाई। हमें उम्मीद है कि जल्द ही सबकी मानसिकता में बदलाव आएगा और फ्री ब्लीडिंग को हमारे सामने एक विकल्प के रूप में रखा जाएगा।

और पढ़ें : ‘पीरियड का खून नहीं समाज की सोच गंदी है|’ – एक वैज्ञानिक विश्लेषण


तस्वीर साभार : HelloClue.com

Comments:

  1. Amit Gupta says:

    जब 15 के पेड से काम चल जाता है तो 1000 का पेंट क्यों ख़र्च करती है 12 महीने में 12 हजार । गजब , अब ये सब काम तो वही कर सकती है जिनके यह मुफ्त का पैसा हो । मिडिल क्लास के बस की बात नही ।

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