पिछले कई दिनों से सीएबी और एनआरसी के विरोध में जनता सड़कों पर आंदोलन कर रही है, मार्च निकाले जा रहे हैं लेकिन इस बीच शायद ऐसे बहुत से लोग हैं, जो इन आंदोलनों का समर्थन तो करना चाहते हैं लेकिन सड़कों पर आकर नहीं, क्योंकि वे अस्वस्थ हैं, विकलांग हैं, वे अन्य निजी समस्याओं में उलझे हुए हैं, नौकरी का दबाव है या फिर कुछ और वजहें है। कारण चाहे कोई भी हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि विरोध का तरीक़ा सिर्फ़ एक है। क्योंकि संवाद के ढेरों ज़रिए हैं, बस संवाद के लिए विचार-इरादे होने चाहिए।
अब सवाल ये कि बिना सड़क पर उतरे हम किन माध्यमों से अपने विरोधों को दर्ज़ कर सकतें हैं? आइए जानते हैं कि वे माध्यम कौन से हैं?
इंटरनेट के ज़रिए हों कनेक्ट
इस विरोध-आंदोलन के बीच कई बार इंटरनेट सुविधाएँ बंद की जा रहीं हैं, क्योंकि शायद इंटरनेट की ताक़त ही यही है कि उसके ज़रिए अधिक से अधिक लोग आपस में जुड़ सकते हैं। इसी ताक़त को पहचानते हुए, इसका उपयोग करें, लेकिन सही तरीके से !
क्या है सही तरीका?
- फ़र्जी खबरों की जाँच करें! – किसी भी ऐसी खबर को, चाहे वह आंदोलन के विरोध में हो या समर्थन में, उसका सही स्त्रोत जाने बिना, उसकी सच्चाई जाने बिना, शेयर न करें। अगर आपका कोई परिचित फेसबुक या वाट्सएप पर ऐसी किसी खबर को शेयर करे जिसके बारे में कोई ठोस प्रमाण या तथ्य उपलब्ध नहीं हैं, तो आप अपने परिचित को ऐसा करने से रोकें।
- हेट स्पीच का विरोध करें।- हो सकता है कि आपकी फ़्रेंडलिस्ट में या आपके वाट्सएप ग्रुप में कुछ लोग आधी – अधूरी जानकारी के आधार पर आंदोलन में शामिल लोगों के लिए अपशब्दों और नफ़रत से भरी पोस्ट लिख रहें हों। ऐसे में उन्हें समझाएँ कि यह कितना अनुचित है। उन्हें समझाने की कोशिश में कभी भी आक्रामक न हों। हमेशा ध्यान रखें कि नफ़रत का जवाब नफ़रत ही नहीं हो सकती, क्योंकि इससे हर हाल में नफ़रत की ही जीत होगी। नफ़रत का जवाब हमेशा प्यार, शांति और सद्भावना होनी चाहिए।
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- सही और तथ्यात्मक जानकारी लिखें। – सोशल मीडिया साइट्स और अन्य ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म्स के ज़रिए उन्हें अधिक से अधिक शेयर करें। अगर आप लिखने में रुचि न रखते हों, तो तथ्यात्मक जानकारी को पढ़ें और अन्य लोगों को पढ़ाएँ, इस तरह से आप जागरूकता फैलाने में मदद कर पाएँगे।
- डिजिटल कला के ज़रिए अपना विरोध दर्ज करें! – अगर आप कविता, कहानी, चित्र आदि बनाने में रुचि रखते हैं तो उनके ज़रिए आंदोलन में अपनी आवाज़ शामिल करें। ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म्स पर ऑडीओ, वीडियो और ग्राफ़िक्स टेक्स्ट से ज़्यादा प्रभावशाली होते हैं और इनकी पहुँच भी अधिक होती है।
हमारे समय के सारे संघर्ष इंसानी अधिकार बचाए रखने के लिए ही हैं, और इंसानी हक़ बचाए रखने के लिए ज़रूरी है इंसानियत बचाए रखना।
ऑफलाइन दुनिया में स्टैंड लें !
कई बार हमारे अपने दोस्त, सहकर्मी, रिश्तेदार, परिवार ग़लत बातों का समर्थन करते हैं और हम उन्हें समझाना चाहते हैं, लेकिन यह सोचकर कि वे बुरा न मान जाएँ, हम चुप रह जाते हैं और उनके ग़लत स्टैंड्स को इग्नोर कर देते हैं। लेकिन सच तो यह है कि ऐसा करके हम न सिर्फ़ उस ‘ग़लत’ को अपना मौन समर्थन दे देते हैं, बल्कि हम ग़लत करने या कहने वाले अपने उस परिचित से भी बेहतर इंसान बनने का मौका छीन लेते हैं !
जब तक हम उन्हें बताएँगे नहीं कि वे क्यों और कैसे ग़लत हैं, तब तक उन्हें पता नहीं चलेगा कि आख़िर ‘सही’ क्या है? और जैसा कि ऊपर बताया गया है, प्यार से अपनी बात समझाएँ ! भले ही आज उन्हें आपकी बात बुरी लगे या आप ही बुरे लगें, लेकिन आपके और उनके लिए भविष्य में यह याद रह जाएगी कि ‘आपने सही का पक्ष लिया था’ !
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योगदान दें !
आप अगर आर्थिक रूप से सक्षम हैं, तो आर्थिक सहायता कर सकते हैं। लेकिन ज़रूरी नहीं कि सिर्फ फंड ही डोनेट किए जाएँ। हर आंदोलन की अपनी ज़रूरतें होंगी, मार्च करने निकले लोगों के लिए जलपान व्यवस्था कराई जा सकती है। छात्रों के लिए किताबें दी जा सकती हैं। रात में धरने पर बैठे लोगों के लिए गर्म कपड़ों/रजाई आदि की व्यवस्था कराई जा सकती है। बस इतना याद रखने की ज़रूरत है कि जो लोग शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं, वे सभी ‘सुपर ह्यूमन’ नहीं हैं। वे आपकी और हमारी तरह ही आम इंसान हैं, वे जागरूक हैं और उनमें जज़्बा है लेकिन सामान्य सुविधाओं की कमी के कारण वे भी कमज़ोर पड़ सकते हैं। तो भले ही आप उनके साथ प्रदर्शन में शामिल नहीं हो पाएँ, लेकिन इन सामान्य सुविधाओं को उपलब्ध कराकर आप बहुत बड़ा सहयोग देंगे !
‘बेसिक्स’ याद रखें !
देश के हालात मुश्किल हैं, समाज में और समाज से हम सबकी अपनी – अपनी लड़ाइयाँ हैं, निजी मसले भी हैं। लेकिन इन हालात में कुछ बुनियादी बातों को याद रखना, उनका ‘रिवीज़न’ करते रहना बहुत ज़रूरी है। जैसे कि :
अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। अपनी बात रखें लेकिन किसी से बहस न करें। गुस्सा करने में अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें। किसी भी तरह के ऑनलाइन अब्यूज़ को न सहें, न ही इग्नोर करें। ‘ट्रोल्स’ को पहचानें, ऑनलाइन उनकी प्रोफाइल रिपोर्ट करें, उन्हें ब्लॉक करें। अपने आसपास के लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में उनकी मदद करें। ऐसे हालात में आपके आसपास ऐसे लोग हो सकते हैं जो परेशान हों, किसी से बात करना चाहते हों। तो उनसे बात करें, उनकी बात सुनें।
हिंसा और हिंसक भाषा का समर्थन न करें। ख़ासकर स्त्री – द्वेषी, जातिवादी भाषा का इस्तेमाल न करें और कोई कर रहा हो तो उसे टोकें। हमारे समय के सारे संघर्ष इंसानी अधिकार बचाए रखने के लिए ही हैं, और इंसानी हक़ बचाए रखने के लिए ज़रूरी है इंसानियत बचाए रखना। इसीलिए, कोई कितना भी बुरा या ग़लत क्यों न हों, उसकी बुराई को अपने ऊपर हावी न होने दें। हर हाल में यही सोचें कि इंसानियत के नज़रिए से क्या सही है ?
जो सही है, वही करें !
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तस्वीर साभार : theweek
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