बीते दिनों न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डन ने घोषणा करके ये बताया कि उनका देश कोरोना वायरस मुक्त हो चुका है। पूरी दुनिया न्यूजीलैंड के काम की सराहना कर रही है। ठीक उसी समय हमारे देश में किरीत खुराना का एक एनिमेशन सोशल मीडिया पर ख़ूब चर्चा में आया। पर दुर्भाग्यवश इस ऐतिहासिक विडियो की पेशकश जितनी सराहनीय है उसका विषय उतना ही शर्मिंदा कर देने वाला है। बेशक ये कोरोना महामारी से जुड़ा है, पर ये सरकार की सफलता का नहीं उसका घिनौना और अमानवीय चेहरा दिखाता है। वो चेहरा जिसे देश के लोगों ने अपनी आँखों से देखा और झेला है। किरीत खुराना की ये एनिमेटेड विडियो भारत में लॉकडाउन की वजह से हुए प्रवासी मज़दूरों के दर्दनाक विस्थापन पर केंद्रित है। चंद मिनट की इस विडियो में फ़िल्म अभिनेत्री तापसी पन्नू ने आवाज़ दी है।
आपने भी लॉकडाउन के दौरान सोशल मीडिया और न्यूज़ में प्रवासी मज़दूरों के दर्दनाक विस्थापन की तस्वीरें, विडियो और ख़बरें ज़रूर देखी होंगीं। कितना शर्मनाक है ये सब कुछ जब दुनिया के देश कोरोना महामारी से अपनी जनता को बचाने की जद्दोजहद में जुटे थे तब भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में बिना किसी तैयारी और योजना के एक तुग़लकी फ़रमान की तरह लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी। बिना ये सोचे इस देश की आधी से अधिक जनता बड़े शहरों में रोज़गार के लिए बसी है और ये रोज़गार सरकारी नहीं बल्कि बड़ी प्राइवेट कंपनियों का है, जहां काम के आधार पर दाम दिया जाता है। लॉकडाउन के फ़रमान के बाद सिरे से इन कंपनियों में काम रुक गया। शहरों म ढेले-खुमचे लगाने का काम बंद हो गया। वहीं दूसरी तरफ़ से सारे परिवहन संबंधित साधन बंद हो गए और गरीब प्रदेशों से रोज़गार के लिए शहरों में गया मज़दूर सड़कों पर आ गया। चंद दिनों में हालत यूँ बने कि मज़दूरों के लिए मौत तय सी लगने लगी। वे ये मान बैठे कि कोरोना से पहले भूख और ग़रीबी उन्हें मार डालेगी।
और पढ़ें : महामारी में भारतीय मज़दूर : रोज़गार के बाद अब छीने जा रहे है अधिकार !
लाखों-करोड़ों की संख्या में इन प्रवासियों को मीलों दूर पैदल, साइकिल या न जाने किन-किन साधनों में अपनी जमापूँजी झोंकनी पड़ी। न जाने कितनों की जान तक चली गयी। न जाने कितनों का परिवार ख़त्म हो गया। पर सोती सरकारों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। सरकारें वन्दे भारत की योजना से अमीरों को हवाई जहाज़ से वापस देश बुलाने और पीएम केयर फंड जुटाने में लगी रही। दूसरी तरफ़, वो सड़के जो इन मज़दूरों के हाथों बनी थी, उनके पैर में पड़े छालों तो कभी भूख, धूप और सड़क दुर्घटना से होती मौत की साक्षी बनते रहे।
शायद यही कड़वा सच है हमारे देश का, जहां गरीब लोगों की क़ीमत सिर्फ़ वोट की संख्या तक सीमित है। ऐसे में ये सवाल बड़ा वाज़िब है ‘हम तो प्रवासी है। क्या इस देश के वासी है?’
इस महामारी से भी ज़्यादा भयानक दृश्य को इस विडियो में बेहद संजीदगी से दिखाया है। ये विडियो हमें वो आइना दिखाती है, जिसे हम जुमलों की ख़बरों पर न्यूज़ चैनलों के शोर और अख़बारों की मोटी हेडिंग के बाद अक्सर नहीं देख पाते है। इसलिए इसे देखा जाना चाहिए –
और पढ़ें : मज़दूरों को कोरोना वायरस से ज़्यादा ग़रीबी और सरकारी उत्पीड़न से खतरा है
तस्वीर साभार : YouTube
Comments: