चेतावनी : यह लेख आत्महत्या के विषय पर मीडिया रिपोर्टिंग के संदर्भ में है।
अभी हाल ही में मशहूर अभिनेता सुशांत सिंह की आत्मयहत्या से मौत के बाद भारतीय मीडिया, समाज और सोशल मीडिया में आत्महत्या को लेकर कई तरह की चर्चा हो रही है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन से जुड़े आत्महत्या के बारे में मैंने खुद ट्विटर पर 5 अप्रैल से एक थ्रेड चलाया है, इस ब्लॉग पर भी नॉन-कोविड मौतों का एक डेटाबेस बनाया जा रहा है जिसमें अधिकतर आत्महत्याएं भी हैं। लेकिन ये बेहद दुःख और चिंता का विषय है कि जब तक किसी जाने माने व्यक्ति की आत्महत्या से मौत न हो समाज और संस्थाएं भी इसकी बात नहीं करती और जब बात की जाती है तो उसमें संवेदनशीलता की बेहद कमी रहती है। ऐसी दुर्घटना और दुःखद हादसे को भी एक मीडिया तमाशा या अटकलों भरा विवाद बना देना भी यहाँ आम है।
आइये पहले जानें की सुसाइड /आत्महत्या की रिपोर्टिंग करने में मीडिया को किन बातों का ख्याल रखना चाहिए :-
- सही भाषा का इस्तेमाल हो – ‘आत्महत्या/ख़ुदकुशी की’ नहीं बल्कि आत्महत्या/ख़ुदकुशी से मौत हुई लिखें।
- प्रिंट मीडिया में ऐसी ख़बरों को पहले पेज पर न प्रकाशित करें और ब्रॉडकास्ट मीडिया में इन्हें ध्यान का केंद्र न बनाएं।
- आत्महत्या से मौत या कोशिश के तरीके की जानकारी और स्थान की जानकारी न दें।
- सुसाइड नोट, मृतक के फ़ोन के मेसेज, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल इत्यादि, उनके करीबी लोगों के साथ उनकी तस्वीरों या ऐसी अन्य किसी जानकारी को साँझा न करें।
- अटकलें न लगाएं और मौत का कारण जाँच एजेंसी से निश्चित होने तक अफवाहें न फैलायें और तरह-तरह की भ्रामक जानकारी न फैलायें।
- मृतक से सम्बंधित कोई निजी जानकारी ( जैसे किसी बीमारी, रिश्ते आदि की बातें ) साझा न करें। ये उनसे जुड़े लोगों पर भी लागू रखें, किसी की मर्ज़ी के बिना उनके और मृतक के बारे में कोई निजी जानकारी साझा न करें।
- आत्महत्या की रिपोर्ट में अजीब रूपकों जैसे युद्ध, मैच, हार-जीत, कायरता/बहादुरी आदि का इस्तेमाल न करें।
- आत्महत्या को एक रोकी जा सकने वाली दुर्घटना की तरह तथ्यों के आधार पर पेश करें। हर रिपोर्ट में हेल्पलाइन नंबर इत्यादि ज़रूर जोड़ें।
ये बेहद दुःख और चिंता का विषय है कि जब तक किसी जाने माने व्यक्ति की आत्महत्या से मौत न हो समाज और संस्थाएं भी इसकी बात नहीं करती।
ये सभी बातें विश्व स्वास्थ्य संगठन, प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया और अनेक संस्थानों ने ज़ारी की हैं। लेकिन पालन अभी होता नहीं दिख रहा है। इसके कई कारण है जैसे कि समाज में मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या को लेकर जागरूकता की कमी और मीडिया में भी ऐसे मुद्दों को लेकर जागरूकता का अभाव। अधिकतर लोगों को ये न पता होना कि साल 2017 के बाद से अब आत्महत्या भारत में जुर्म नहीं है इसलिए मृतक/उत्तरजीवी को मुजरिम मानना सही नहीं।
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आमजन और सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले क्या सावधानियां बरतें ?
- मृतक के बारे में भावुक होकर असंवेदनशील भाषा न इस्तेमाल करें जैसे ‘तुम इतने कायर निकले!’
- मृतक की निजी ज़िन्दगी के बारे में अटकलें अफवाहें न फैलाएं।
- सही और तथ्यात्मक ख़बरें साझी करें।
- हमेशा उस पर ट्रिगर /कंटेंट वार्निंग लिखें।
- असंवेदनशील तस्वीरें जैसे कि शव की तस्वीरें, विलाप करते परिवार और दोस्तों की तस्वीरें न फॉरवर्ड करें।
- व्हाट्सप्प पर आ रही वायरल जानकारी बिना पुष्टि किये आगे न प्रेषित करें
मृतक कोई जानीमानी हस्ती हैं तो कुछ अतिरिक्त सावधानियाँ
अगर मृतक कोई जानीमानी हस्ती हैं तो कुछ अतिरिक्त सावधानियाँ बरतनी भी ज़रूरी है। क्यूंकि जैसा रिसर्च बताती है कि ‘सेलिब्रिटी’ के अपराध और आत्महत्या दोनों ही मामलों में अगर मीडिया रिपोर्टिंग संवेदनशील न हो तो दूसरे लोग भी ऐसे ही हादसों को अंजाम देने के रिस्क पर रहते हैं, जिन्हें “कोपीकैट” कहा जाता है। 4 अगस्त 1962 में मैरीलीन मुनरो की आत्महत्या से मृत्यु के बाद ऐसा देखा गया था और उसके बाद ये निरंतर होता आया है। साल 2014 में मशहूर हॉलीवुड अभिनेता रोबिन विलियम की आत्महत्या से मौत के बाद भी उनकी उम्र के आसपास के पुरुषों में आत्महत्या के केसों में वृद्धि हुई।
इसलिए ज़रूरी है कि मीडिया इसमें अतिरिक्त बातों पर ध्यान दे जैसे की :-
- उन्हें श्रद्धांजलि की भाषा में याद किया जाए।
- उनकी उपलब्धियों को गिना जाए और इसे उनकी आत्महत्या से न जोड़ा जाए।
- उनकी और उनके करीबी लोगों की निजता का सम्मान हो।
- इस मृत्यु को एक असफलता या सफलता के पैमाने में न नापें।
- बताएं कि अगर आपको भी ऐसे ख्याल आते हैं तो मदद मिल सकती है और मदद लेना कमज़ोरी या शर्म की बात नहीं है।
- इस घटना को उस व्यक्ति के धर्म, जाति , लिंग और काम से न जोड़ें।
अगर आप या कोई जिसे आप जानते हो तनाव या अवसाद से संघर्ष कर रहा है, उनके साथ ये हेल्पलाइन साझा करें :
- फ़ोर्टिस हॉस्पिटल नेशनल हेल्पलाइन : +91-8376804102
- वंदरेवाला फ़ाउंडेशन : 1800-233-3330/ 0261-2662700/ 1860-266-2345
- संजीवनी सोसायटी फ़ॉर मेंटल हेल्थ: 24311918, 243118883
- जीवन सुसाइड प्रेवेंशन हॉटलाइन : 044 2656 4444
संदर्भ के आधार पर हर बात के मायने बदल जाते है, इसलिए इस संवेदनशील विषय पर संवेदनशील भाषा और व्यव्हार ही उचित है।
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तस्वीर साभार : fit.thequint