बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत को अब दो महीने बीत चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच की ज़िम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी है। इस बीच इस मामले को लेकर काफ़ी हंगामा हो चुका है। न्यूज चैनलों ने जमकर इसका फ़ायदा उठाया है और प्राइम टाइम पर एक व्यक्ति की अप्रत्याशित मौत का तमाशा बनाकर दर्शकों को परोसा है। बिना किसी सबूत के इस केस के बारे में रोज़ नई-नई कहानियां रची जा रही हैं। हर दूसरे दिन किसी नए इंसान पर उंगली उठाई जा रही है यह कहकर कि सुशांत की मौत में उसका हाथ था। पुलिस या अदालतों की तरफ़ से किसी ठोस बयान के बिना ही मीडिया और जनता की अदालत ने यह राय दे दी है कि सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु हत्या से ही हुई थी, आत्महत्या से नहीं।
हर रोज़ सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर टेढ़ी-मेड़ी ‘कॉन्स्पिरेसी थ्योरीज़’ सुनने को मिलती हैं। “सुशांत पर काला जादू किया गया था”, ‘सुशांत को फ़लाने ने इस तरह मारा था’, ‘सुशांत को फ़लानी दवा दी जाती थी’ वगैरह। फ़ेसबुक और ट्विटर पर #JusticeForSushant हैशटैग वाले पोस्ट्स पढ़कर ऐसा लगता है मानो देश की जनता ने घर बैठे-बैठे जासूसी का ऑनलाइन कोर्स कर लिया हो। सुशांत की मृत्यु के पीछे ऐसे-ऐसे कारण बताए जा रहे हैं जो किसी सस्ती बॉलीवुड फ़िल्म या उपन्यास की कहानी से कम नहीं हैं। ऐसी कहानियों को लोग हकीकत मानकर बैठ गए हैं पर कोई यह मानने को तैयार नहीं है कि सुशांत की मृत्यु मानसिक रोग के कारण आत्महत्या से हो सकती है।
यह पूरा मामला इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक रोग के बारे में अभी भी कितनी अज्ञानता है। जहां दूसरे देशों में मानसिक स्वास्थ्य के सुधार और देखभाल के लिए कदम उठाए जा रहे हैं, हम तो यह भी नहीं जानते कि मानसिक स्वास्थ्य आखिर है क्या। हम यह यकीन करने से बिल्कुल नहीं हिचकिचाते कि किसी इंसान को काले जादू से वश में किया गया था, मगर उसकी मृत्यु का कारण डिप्रेशन की वजह से आत्महत्या हो सकती है यह बात हमें अविश्वसनीय लगती है।
जब हम कहते हैं कि कोई इंसान मानसिक रोग से पीड़ित है, मकसद उसका अपमान करना या उस पर किसी गुनाह का इल्ज़ाम लगाना नहीं है।
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टीवी पर ‘डिबेट’ के नामपर शोर मचानेवालों के मुताबिक सुशांत सिंह राजपूत की मानसिक समस्याओं की बात महज़ एक ‘थ्योरी’ है, जबकि यह सामने आया है कि वे ‘बाईपोलर मूड डिसॉर्डर’ का इलाज करवा रहे थे। एक तथाकथित पत्रकार ने तो अपने चैनल पर यह भी कहा कि सुशांत को कोई मानसिक बीमारी हो ही नहीं सकती क्योंकि एक वीडियो में वे बहुत खुश नज़र आ रहे हैं। उनकी निजी डायरी और सोशल मीडिया पोस्ट सरेआम टीवी पर पढ़े जा रहे हैं यह साबित करने के लिए कि उनके ख्याल बहुत ‘सकारात्मक’ थे जिसकी वजह से डिप्रेशन या किसी मानसिक बीमारी होने का सवाल ही नहीं उठता। सिर्फ़ टीवी पत्रकार ही नहीं, सुशांत के फैन्स भी इसी ख्याल के लगते हैं कि क्योंकि वे एक प्रतिभाशाली कलाकार के साथ-साथ एक बुद्धिमान इंसान भी थे और क्योंकि वे वो सभी चीजें करते थे जो एक ‘नॉर्मल’ इंसान करता है। इसलिए उन्हें कोई मानसिक बीमारी नहीं हो सकती और उन्हें मानसिक रोग से पीड़ित बताना उन पर कोई ‘आरोप’ लगाने और उनका अपमान करने के बराबर है।
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हाल ही में अभिनेत्री कंगना रनौत इस मामले को लेकर ट्विटर पर मुखर हुई हैं। एक वीडियो में वे अभिनेत्री दीपिका पादुकोण पर ‘डिप्रेशन का धंधा’ करने का आरोप लगाती हैं, क्योंकि सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु के कुछ ही समय बाद दीपिका ने डिप्रेशन के बारे में ट्वीट किया था। कंगना का दावा यह है कि सुशांत को ज़लील करने के लिए उन्हें मानसिक रूप से बीमार बताया जा रहा है और अगर वे सचमुच डिप्रेशन में होते तो वे अपना काम ठीक तरह से नहीं कर पाते। इस बात पर बहुत लोगों ने उनसे सहमति जताई और अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भी जब कहा कि सुशांत की मानसिक स्थिति के बारे में बात होनी चाहिए, उन्हें हर तरफ़ से गालियां पड़ीं।
देखकर दुख होता है कि हमारे देश में मानसिक बीमारी को अभी भी एक गाली के समान समझा जाता है। जबकि हकीकत यही है कि जब हम कहते हैं कि कोई इंसान मानसिक रोग से पीड़ित है, मकसद उसका अपमान करना या उस पर किसी गुनाह का इल्ज़ाम लगाना नहीं है। मानसिक बीमारियां आज के समय में बहुत ही आम हो गई हैं और इनसे पीड़ित व्यक्तियों को ‘पागल’ या ‘अबनॉर्मल’ समझने का कोई मतलब नहीं होता। हम नहीं जानते हमारे आसपास कितने लोग मानसिक रोग से गुज़र रहे हैं, क्योंकि वे हमसे अलग नहीं दिखते।
कोई होनहार, प्रतिभावान, सफल और शारीरिक रूप से स्वस्थ है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे मानसिक रोग नहीं हो सकते। आप सिर्फ़ उसके व्यवहार, रोज़मर्रा की ज़िंदगी और सफलताओं से यह अंदाज़ा नहीं लगा सकते कि उसके अंदर क्या चल रहा है। कई बार लोग बाहर से जितने स्वाभाविक दिखते हैं, अंदर-अंदर उतनी ही तकलीफ़ सह रहे होते हैं।
सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु का कारण अब तक पता नहीं चला है। पर इस केस ने देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी समस्या को उजागर किया है। मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों के बारे में हमारी अज्ञानता और इनसे संबंधित समस्याओं से जूझने में हमारी नाकामयाबी। हम चाहें तो अभी भी सुधर सकते हैं। अभी भी स्वीकार कर सकते हैं कि मानसिक रोग मृत्यु का एक बहुत बड़ा कारण है, पर शायद हम ऐसा नहीं करेंगे।
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