हाल ही में ‘खाली पीली’ नाम की हिंदी फ़िल्म का एक गाना इंटरनेट पर वायरल हुआ है, जिसके बोलों पर खूब विवाद हो रहा है। निर्देशक मकबूल ख़ान की यह फ़िल्म 2 अक्टूबर को रिलीज़ होने जा रही है। फिल्म में मुख्य किरदार ईशान खट्टर और अनन्या पांडे ने निभाए हैं। इस फिल्म का एक गाना फिल्म रिलीज़ होने से पहले ही विवादों के घेरे में है। गाने के बोल में हॉलीवुड की पॉपस्टार बियॉन्से का नाम शामिल है, जिसके बोल कुछ ऐसे हैं:
“भड़कीली नखरीली
चमकीली लचकीली
तू जो कमर ये हिलाएगी
तुझे देख के गोरिया
बियॉन्से शर्मा जाएगी”
सोशल मीडिया पर इन बोलों की आलोचना उनके नस्लवादी और रंगभेदी नज़रिए की वजह से हो रही है। आप सोच रहे होंगे कि इस गाने में ग़लत क्या है? इसलिए सबसे पहले तो यह देखना ज़रूरी है कि गाने में जिस बियॉन्से का ज़िक्र है, वह कौन हैं? तो जिन्हें नहीं पता उनके लिए बता दें कि बियॉन्से नोल्स एक ब्लैक अमेरिकन पॉपस्टार और संगीतकार हैं। वह एक नारीवादी हैं जिनके कई गाने नारी सशक्तिकरण के मुद्दे पर बने हैं। वे दुनियाभर की कई औरतों की चहेती संगीतकार होने के साथ-साथ ब्लैक महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं क्योंकि उन्होंने साबित कर दिखाया है कि एक ब्लैक महिला पॉपस्टार किसी वाइट पॉपस्टार से कम नहीं है। वे ‘बॉडी पॉज़िटिव’ भी हैं और उन्होंने दिखा दिया है कि सुंदरता के लिए पतली कमर और गोरी त्वचा ज़रूरी नहीं हैं।
ऐसे में अगर किसी गाने के बोलों का यह कहना हो कि किसी ‘गोरिया’ की लचीली कमर देखकर बियॉन्से जैसी सशक्त और बागी औरत को खुद पर शर्म आनी चाहिए, तो वह ऐसी औरत और उसके सामाजिक संघर्ष का सरासर अपमान है। जो औरत ब्लैक महिलाओं के लिए आवाज़ उठाती है और हमेशा से यह दावा करती आई है कि हर औरत का शरीर सुंदर होता है, चाहे वह किसी भी रंग का हो और कितना भी मोटा या पतला हो, वह किसी गोरी औरत का पतला शरीर देखकर शर्मा क्यों जाएगी? क्या वह अपने शरीर से प्यार करते हुए किसी दूसरे की तारीफ़ नहीं कर सकती? सुंदरता के मापदंडों के अनुसार ‘गोरिया’ बियॉन्से से श्रेष्ठ क्यों है?
और पढ़ें : ‘फेयर एंड लवली’ सालों तक रेसिज़्म बेचने के बाद नाम बदलने से क्या होगा?
नस्लवाद और स्त्री-द्वेष बॉलीवुड की संस्कृति में कूट-कूटकर भरा हुआ है। बचपन से हमें फ़िल्मी गानों के ज़रिए इसी नस्लवाद की घुट्टी पिलाई गई है। लगभग हर फ़िल्मी गाने में सुंदर औरत को ‘गोरी’ या ‘गोरिया’ कहकर संबोधित किया जाता है। नायिका का ‘चांद सा रोशन चेहरा’ देखकर नायक उस पर फ़िदा होता है। वहीं ‘काले’ को नकारात्मकता की नज़र से देखा जाता है। उदाहरण के तौर पर एक बहुत पुराना गाना याद आता है, “धूप में निकला न करो रूप की रानी, गोरा रंग काला न पड़ जाए”। एक और गाना है “हम काले हैं तो क्या हुआ, दिलवाले हैं” जिससे यह संदेश मिलता है कि काला होना बुरी बात है और इसकी भरपाई बड़े दिल से करनी पड़ती है। फ़िल्म ‘सत्यम शिवम् सुंदरम’ के एक भक्तिगीत में तो खुद भगवान कृष्ण अपनी मां से पूछते हैं कि “राधा क्यों गोरी, मैं क्यों काला?”
जो औरत ब्लैक महिलाओं के लिए आवाज़ उठाती है और हमेशा से यह दावा करती आई है कि हर औरत का शरीर सुंदर होता है, चाहे वह किसी भी रंग का हो और कितना भी मोटा या पतला हो, वह किसी गोरी औरत का पतला शरीर देखकर शर्मा क्यों जाएगी?
रंगभेद और असमानता से ओतप्रोत ऐसी इंडस्ट्री बियॉन्से जैसी शख्सियत की तुलना किसी गोरी, पतली अभिनेत्री से करनेवाला गाना बनाएगी यह अपेक्षित ही है। पर जब किसी जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या होती है तब इसी इंडस्ट्री के बड़े-बड़े नाम सोशल मीडिया पर ‘ब्लैक लाईव्स मैटर’ हैशटैग ट्रेंड करते हैं और ‘सभी रंग समान हैं’ टाईप के प्रवचन सुनाने लग जाते हैं। यह घिनौनी हिपॉक्रिसी ही बॉलीवुड का असली चेहरा है। खुद को प्रगतिशील या ‘वोक’ दिखाने के लिए फ़िल्म इंडस्ट्री सामाजिक मुद्दों पर बड़े-बड़े बयान तो दे देती है, पर अपने अंदर के नस्लवाद, जातिवाद, स्त्री-द्वेष, होमोफोबिया को खत्म करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाती।
और पढ़ें : गोरेपन की क्रीम का असर चेहरे से ज्यादा हमारी रंगभेदी संकीर्ण सोच पर
बियॉन्से तो नहीं शर्माएगी, पर इस बात पर हमें ज़रूर शर्म आनी चाहिए कि बॉलीवुड जैसी इंडस्ट्री का समर्थन करके हम इस तरह की घटिया मानसिकता को समाज में आज भी पनपने दे रहे हैं। जिस पिछड़ी और गिरी हुई सोच के लिए एक सभ्य, प्रगतिशील समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए, उसे गानों और चुटकुलों के माध्यम से मनोरंजन के रूप में हमें परोसा जाता है और हम भी उसका मज़ा लेने से ज़रा भी झिझकते नहीं है।
बियॉन्से को शर्माने की कोई ज़रूरत नहीं है। किसी भी औरत को अपने शरीर, चेहरे या रंग की वजह से खुद के बारे में शर्म महसूस करने की कोई ज़रूरत नहीं है। न ही किसी दूसरी औरत को खुद से ज़्यादा ‘सुंदर’ होने की वजह से उसे अपनी दुश्मन समझने की ज़रूरत है। उम्मीद है ऐसी दुनिया की जहां शारीरिक सुंदरता के आधार पर औरतों की तुलना करना बंद हो। जहां हर औरत को अपनी सुंदरता और खासियत का एहसास हो और जहां औरतों को इस तरह से अपमान करने वाले फ़िल्मी गाने हमेशा के लिए बंद हो जाएं। एक आदर्श, प्रगतिशील और बेहतर दुनिया ऐसे ही बनेगी।
और पढ़ें : जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या और बॉलीवुड का दोहरापन
तस्वीर साभार : गूगल