बिलकिस, यह नाम बीते बुधवार से ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया पर प्लैटफॉर्म पर ट्रेंड कर रहा है। इससे पहले शायद बिलकिस को हम में से ज़्यादातर लोग शायद शाहीन बाग की दादी के नाम से जानते थे। अमेरिका की प्रतिष्ठित टाइम मैगज़ीन ने जब बिलकिस को अपनी साल 2020 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया तो शाहीन बाग के प्रतिरोध का चेहरा बनी इस दादी का नाम सबकी जुबान पर आया- बिलकिस। 82 साल की वह बिलकिस जो नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ शाहीन बाग में औरतों द्वारा शुरू किए गए सत्याग्रह का एक चेहरा बन चुकी हैं। टाइम मैगज़ीन के लिए बिलकिस का प्रोफाइल वरिष्ठ पत्रकार राणा अयूब ने लिखा है। उस प्रोफाइल में राणा अयूब लिखती हैं, “बिलिकस ने मुझसे कहा था मैं यहां तब तक बैठी रहूंगी जब तक मेरे शरीर में खून का आखिरी कतरा बचा रहेगा ताकि इस देश के बच्चे आज़ाद और न्याय की हवा में सांस ले सकें।”
पत्रकार राणा अयूब को बिलकिस द्वारा कहे गए ये शब्द सिर्फ बिलकिस के नहीं बल्कि शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ सत्याग्रह में शामिल हर औरत के हैं। शाहीन बाग में बतौर रिपोर्टर मैंने जितनी भी महिलाओं से बात की थी, उन सबने लगभग यही कहा था, “हिंदुस्तान हमारा मुल्क है, हम इस बात का सबूत क्यों पेश करें?” कई औरतों ने कहा था, “सिर्फ इसलिए कि हमारा धर्म अलग है, हमारे बच्चों पर हिंसा क्यों हो?” शाहीन बाग सत्याग्रह में शामिल हर औरत का सवाल जायज़ था और साथ ही साथ जायज़ था उनका डर। एक तरफ मेनस्ट्रीम मीडिया ने शाहीन बाग को देशद्रोहियों और आतंकियों का अड्डा घोषित कर रखा था। शाहीन बाग के प्रदर्शन को सड़क जाम करने की साजिश करार दे दिया गया था। सोशल मीडिया पर आईटी सेल ने प्रचार किया कि शाहीन बाग की औरतें 500-500 रुपये लेकर वहां बैठती हैं। प्रदर्शनकारी औरतों का सोशल मीडिया पर लगातार चरित्र-हनन किया गया। दूसरी तरफ़ बीजेपी के नेता दिल्ली चुनाव के दौरान नारे लगा रहे थे, “देश के गद्दारों को गोली मारों सालों को।” केंद्रीय गृह मंत्री तक ने दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि कमल का बटन इतनी ज़ोर से दबाओ कि करंट शाहीन बाग तक पहुंचे।
बिलकिस और शाहीन बाग की अन्य प्रदर्शनकारियों को ये हिंसा, नफ़रत, हमले आदि डरा न सकें। डराते भी कैसे क्योंकि इन प्रदर्शनों में शामिल औरतों के दिलों में अपने मुल्क के लिए मोहब्बत और ज़हन में आने वाली नस्लों के लिए एक आज़ाद माहौल का ख्वाब पल रहा था।
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खैर, दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजे जो रहे हो। सत्ता, मीडिया द्वारा फैलाई गई इस नफरत का भयावह नतीज़ा हमारे सामने आने लगा। जब जामिया और शाहीन बाग में गोलियां चली, जब दिल्ली में दंगे हुए। ये सब नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ देशभर में तेज़ होते प्रदर्शनों के बीच हुआ। इतने प्रौपगैंडा के बावजूद आज शाहीन बाग की बिलिकस टाइम मैगज़ीन के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल हैं। इसमें कोई शक नहीं कि बिलकिस का नाम टाइम मैगजीन में आना एक उपलब्धि है, लेकिन इस जश्न के बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह उपलब्धि किस कीमत पर मिली है और इस उपलब्धि के पीछे की कहानी क्या है।
शाहीन बाग ने सत्याग्रह का जो रास्ता दिखाया, विरोध का जो परचम लहराया वह दिल्ली से होते हुए मुंबई, पटना, लखनऊ, कोलकाता, इलाहाबाद, हैदराबाद और न जाने किन-किन शहरों तक जा पहुंचा। इन प्रदर्शनों को खत्म करने के लिए हर तरह के प्रौपगैंडा का इस्तेमाल किया गया, लेकिन शाहीन बाग टिका रहा। बिलकिस और शाहीन बाग की अन्य प्रदर्शनकारियों को ये हिंसा, नफ़रत, हमले आदि डरा न सकें। डराते भी कैसे क्योंकि इन प्रदर्शनों में शामिल औरतों के दिलों में अपने मुल्क के लिए मोहब्बत और ज़हन में आने वाली नस्लों के लिए एक आज़ाद माहौल का ख्वाब पल रहा था। यह सत्याग्रह 101 दिनों तक टिका रहा। अगर कोरोना महामारी न आती तो शायद यह प्रदर्शन आगे भी जारी रहता। मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया ने चाहे जितना भी प्रोपगैंडा फैलाया लेकिन शाहीन बाग की इन प्रदर्शनकारियों को उतनी ही मोहब्बत से भी नवाज़ा गया। न जाने कितने कलाकारों ने कितने शहरों की दीवारों और सड़कों पर अलग-अलग रंगों से शाहीन बाग के विरोध की इन तस्वीरों को उकेर दिया। नफ़रत और हिंसा के इस दौर में मोहब्बत की हर आवाज़, हर कलाकारी अपने-आप अहम हो जाती है।
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शाहीन बाग के ख़िलाफ थी देश को बांटने वाली ताकतें, वे ताकतें जिनके लिए भारत सिर्फ एक विशेष धर्म के लोगों का देश है। शाहीन बाग देशद्रोहियों का अड्डा था उस सोच के लिए जिनके दिमाग में भारत को हिंदु राष्ट्र बनाने की कवायदें चल रही थी। ऐसी सोच, ऐसी बहुसंख्यक विचारधारा के लिए देश में जगह-जगह खिलते शाहीन बाग उनके रास्ते की रुकावट ही तो थे। देश-विदेश में शाहीन बाग के समर्थन में तख्तियां लहरा रही थी, नारे लगाए जा रहे थे। ‘हम सब शाहीन बाग’ का नारा सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ लोगों को एकजुट कर रहा था। लेकिन जितनी तेज़ी से शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन अलग-अलग शहरों में शुरू हुए, उतनी ही तेज़ी से सत्ता का दमन भी प्रदर्शनकारियों पर तेज़ होता गया। कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के बाद जगह-जगह प्रदर्शन अपने-आप बंद होते चले गए लेकिन इसके साथ ही शुरू हुआ प्रदर्शनकारियों, खासकर मुसलमानों पर अत्यधिक दमन का चक्र।
अब तक न सफूरा जरगर, गुलफिशा फ़ातिमा, देवांगना कलिता, नताशा नरवाल, उमर खालिद, शरजील इमाम, अखिल गोगोई, शरीजल उस्मानी, खालिद सैफी, मीरान हैदर जैसे कई लोगों को दिल्ली दंगों से संबंधित अलग-अलग आरोपों में गिरफ्तार किया जा चुका है। ये सभी लोग नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ जारी प्रदर्शन में बेहद सक्रिय थे। शाहीन बाग का प्रदर्शन भले ही हमें अभी अपनी आंखों के सामने न नज़र आता हो लेकिन उनका संघर्ष अभी भी जारी है। प्रदर्शनकारियों की लगातार हो रही गिरफ्तारियां इस बात का जीता-जागता सबूत हैं। इसलिए टाइम मैगज़ीन के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में पहुंचने की राह बिलकिस और शाहीन बाग के लिए आसान नहीं रही है।
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तस्वीर साभार : TIME