समाजकानून और नीति नागरिकता संशोधन क़ानून : विरोधों के इन स्वरों ने लोकतंत्र में नयी जान फूंक दी है…

नागरिकता संशोधन क़ानून : विरोधों के इन स्वरों ने लोकतंत्र में नयी जान फूंक दी है…

इस एक क़ानून ने भारतीय संविधान की आत्मा कहे जाने वाले मौलिक अधिकारों को ताक़ पर रखकर देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब में फ़ांक डालने की पहल की है।

‘नागरिकता संशोधन कानून’ भारतीय संविधान का वो नया पन्ना जिसने देश में इस क़दर बँटवारे जैसी आग लगायी है जिसमें मजहब की दीवारों में घिरकर इंसानियत सुलगने लगी और देश के हर कोने से लोग सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज करने लगे। क्योंकि इस एक क़ानून ने भारतीय संविधान की आत्मा कहे जाने वाले मौलिक अधिकारों को ताक़ पर रखकर देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब में फ़ांक डालने की शुरुआत की है।

इस क़ानून के विरोध में देश के युवा अपने-अपने शिक्षण संस्थानों से प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें जामिया मिलिया इस्लामिया, जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे ढेरों संस्थान शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि क़रीब हर प्रदेश में बड़े स्तर पर अहिंसात्मक विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। इसी तर्ज़ पर, जब बीते रविवार देर रात नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र प्रदर्शन के ख़िलाफ़ पुलिस ने छात्र-छात्राओं पर हिंसात्मक कार्यवाई करना शुरू किया।

संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ दिल्ली में जारी प्रदर्शन ने उस समय उग्र रूप ले लिया था जब रविवार को पुलिस ने जामिया मिल्लिया के पुस्तकालय के अंदर आंसू गैस के गोले का इस्तेमाल किया और विश्वविद्यालय की अनुमति के बिना परिसर में दाखिल हो गई। इतना ही नहीं, पुलिस ने लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहे छात्र-छात्राओं के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार किया।

वहीं दूसरी तरफ़, नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के विभिन्न हिस्सों में जारी प्रदर्शनों के बीच अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में भी रविवार देर रात छात्र और पुलिसकर्मी आमने-सामने आ गए। इसमें पथराव और लाठीचार्ज में कम से कम 60 छात्र जख्मी हो गए। जिले में एहतियात के तौर पर इंटरनेट सेवाएं सोमवार रात 12 बजे तक के लिए बंद कर दी गई हैं।

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आवाज़ दो….‘हम एक हैं।’

न्यू इंडिया का सपना देखने वाली सरकार को शायद ही इस बात का अंदाज़ा होगा कि इस न्यू इंडिया के युवा किसी मेक इन इंडिया के उत्पाद नहीं बल्कि देश का वो भविष्य है जिनके पास सोचने-समझने की क्षमता है। क्योंकि वो किताबों से उत्पाद बनने के नहीं बल्कि इंसान बनने के सिद्धांत पढ़ते है, उनपर जीते है।

इसीलिए तो वे बिना किसी भेदभाव के एकजुट होकर हिंसा के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद कर रहें हैं। हाँ, ये शर्मनाक है कि गांधी के देश में शासन करने वाली सत्ता ने उनके ‘अहिंसा’ के सिद्धांत को ताक़ पर रखकर ‘तानाशाही’ की पोषक पहन ली है। पर ध्यान रहे, देश सिर्फ़ आपसे नहीं बल्कि देश में रहने वाले हर इंसान से बनता है और इन्हें गांधी के ‘अहिंसा’ के मार्ग का ख़्याल है। इसीलिए तो बर्बरता का जवाब भी युवाओं ने ‘अहिंसा’ से देना शुरू किया। इसी तर्ज़ पर, जामिया के परिसर में छात्र-छात्राओं के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई से अन्य युवा छात्र-छात्राओं में तनाव बढ़ा और ये तनाव  सोमवार को हैदराबाद, लखनऊ, मुंबई और कोलकाता सहित देश के कई विश्वविद्यालय परिसरों में फैल गया।

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इस बीच जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर एक दिन पहले पुलिस कार्रवाई के खिलाफ विश्वविद्यालय के छात्रों ने सोमवार को कड़कड़ाती ठंड में जामिया के प्रवेश द्वार के बाहर कमीज उतारकर विरोध प्रदर्शन किया।इस पूरे प्रकरण की जांच की मांग करते हुए सोमवार को सैकड़ों छात्र दिल्ली की सड़कों पर उतर आए। दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों ने जामिया के छात्रों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए परीक्षाओं का बहिष्कार किया।

प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के खिलाफ नारे लगाए और विश्वविद्यालय में घुसने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। जेएनयू छात्रसंघ के इस प्रदर्शन में जामिया मिलिया इस्लमिया विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय के छात्र और अन्य छात्र भी शामिल हो गए।

सही मायनों में देखा जाए तो बेहद नकारात्मक स्थितियों में भी कुछ चीजें सकारात्मक होती है, जैसे सरकार के ख़िलाफ़ इस देशव्यापी विरोधों ने लोकतंत्र में एक नयी जान फूंक दी है।

हैदराबाद : परिक्षाओं का बहिष्कार

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद के मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (एमएएनयूयू) के छात्रों ने भी सोमवार को परीक्षाओं का बहिष्कार कर विरोध प्रदर्शन किया। एमएएनयूयू परिसर में रविवार रात से प्रदर्शन शुरू हो गए जो आधी रात के बाद तक भी चलते रहे। विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने कहा कि छात्रसंघों ने सोमवार से शुरू हो रही कई परीक्षाओं का बहिष्कार करने का आह्वान किया है।

बीएचयू, जाधवपुर विश्वविद्यालय और टिस में भी प्रदर्शन

वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) और कोलकाता में जाधवपुर विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन कर सरकार से पुलिस की ‘तानाशाही’ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। मुम्बई के ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज’ (टीआईएसएस- टिस) के छात्रों ने भी प्रदर्शन किया नारे लगाए।

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आईआईटी के छात्रों ने भी किया विरोध

तीन प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के छात्रों ने भी जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का सोमवार को विरोध किया। आईआईटी कानपुर, आईआईटी मद्रास और आईआईटी बॉम्बे ने छात्रों पर पुलिस कार्रवाई का विरोध किया है।

भारत में मौजूदा हालात भी कुछ इसी तरह के हैं, जहां हर स्तर पर दमननीति को लागू करने का काम किया जा रहा है।

सरकार हमसे डरती है, पुलिस को आगे करती है

कोई भी सरकार जब तानाशाह की विचारधारा से काम करती है तो ‘दमन’ उसका मूल चरित्र बन जाता है। ‘दमन’ – विचारों का, अधिकारों का, अभिव्यक्ति का और कई बार अस्तित्व का भी।

अपनी दमन नीति को लागू करने में इसे अगर कहीं भी विरोध की भनक लगती है तो किसी भी बर्बरता या हिंसा से पीछे नहीं हटती। पर अगर हम इस स्थिति का विश्लेषण करें तो यही पाएँगें कि इस हिंसा के पीछे सत्ता का डर होता है, जो इसबात को भाँप लेता है कि उसकी दमननीति थोड़ी भी ढील होने पर निश्चिततौर पर विफल होगी।

भारत में मौजूदा हालात भी कुछ इसी तरह के हैं, जहां हर स्तर पर दमननीति को लागू करने का काम किया जा रहा है। फिर वो जंगल की कटाई हो या पहाड़ों का नाश, शिक्षण संस्थान में फ़ीस वृद्धि हो या मौलिक अधिकारों का हनन करना नागरिकता संशोधन क़ानून।

पर इन सबके बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम उस देश में रहते हैं जहां की व्यवस्था लोकतांत्रिक है। माने जहां सरकार जनता बनाती है, न कि जनता को सरकार। इसलिए हमें अपने विरोध के स्वर को हक़ के साथ अहिंसा मार्ग से लगातार ज़ारी रखना होगा। बाक़ी ‘सरकार जब हमसे डरती है तब पुलिस को आगे करती है।’ सही मायनों में देखा जाए तो बेहद नकारात्मक स्थितियों में भी कुछ चीजें सकारात्मक होती है, जैसे सरकार के ख़िलाफ़ इस देशव्यापी विरोधों ने लोकतंत्र में एक नयी जान फूंक दी है।

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तस्वीर साभार : Newindianexpress

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