मैं प्रशांत कनौजिया की साथी जगीशा आप सबसे कुछ कहना चाहती हूं। आपका ध्यान प्रशांत कनौजिया की तरफ मोड़ना चाहती हूं जो पिछले 50 दिनों से जेल में हैं। बात यहां से शुरू होती है कि 17 अगस्त की आधी रात को जब हम सब मेरे जन्मदिन की खुशी मना रहे थे। प्रशांत हम सबके लिए उनकी स्पेशल बिरयानी बना रहे थे। हम सब बहुत खुश थे। मैंने 18 अगस्त के लिए पूरी तैयारी कर रखी थी कि कैसे हम मेरा जन्मदिन खास तरीके से मनाएंगे। लेकिन ये सब तब फ़ीका पड़ गया जब 12 बजे दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी। मैंने दरवाज़ा खोला तो 6-7 आदमी थे। मैंने पूछा कि आप कौन हैं तो उन्होंने कहा कि आप प्रशांत को बुलाएं। प्रशांत हमें जानते हैं। प्रशांत उस वक्त सो रहे थे। उन्होंने कहा कि हम यूपी पुलिस से है, मैं डर गई। मेरे पूछने पर उन्होंने कहा कि ट्वीट का मामला है। हम पहले वसंत विहार पुलिस स्टेशन जाएंगे फिर प्रशांत को यूपी लेकर जाएंगे।
मैंने और हमारे दोस्तों ने कहा कि हम भी साथ आते हैं तो उन्होंने कहा कि नहीं आप आधे घंटे बाद आइएगा। इसके बाद हम अपने दोस्तों को फोन करने में लग गए। आधे घंटे बाद जब हम पुलिस स्टेशन पहुंचे तो हमने वहां पूछा कि क्या प्रशांत को लेकर कुछ पुलिस वाले आए थे? उन्होंने ना में जवाब दिया। अब मैं और ज्यादा डर गई। इसके बाद हमें एफआईआर की कॉपी मिली और पता चला प्रशांत पर किसी सब इंस्पेक्टर दिनेश कुमार शुक्ला ने एफआईआर दर्ज करवाई है। पुलिस का आरोप है कि प्रशांत कनौजिया ने एक बदली हुई तस्वीर को ट्वीट किया और उनके खिलाफ आईपीसी की नौ धाराएं लगाई गई हैं। इसमें आईपीसी की नौ धाराओं का जिक्र किया गया है, जिनमें 153 ए/बी (धर्म, भाषा, नस्ल वगैरह के आधार पर समूहों में नफरत फैलाने की कोशिश), 420 (धोखाधड़ी), 465 (धोखाधड़ी की सजा), 468 (बेईमानी के इरादे से धोखाधड़ी), 469 (प्रतिष्ठा धूमिल करने के उद्देश्य से धोखाधड़ी) 500 (मानहानि का दंड) 500 (1) (बी) 505(2) शामिल हैं।
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मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि प्रशांत को ऐसे अपराध की सजा मिल रही है जो उन्होंने किया ही नहीं है। तमाम वेरिफाइड अकाउंट से फेक न्यूज शेयर होती है और इसके अलावा बड़े-बड़े संस्थान में बैठे पत्रकारों से भी यह गलती होती है लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
यह एफआईआर किसी सुशील तिवारी की मानहानि को लेकर दर्ज करवाई गई थी जो कि ‘हिंदू आर्मी’ चलाते हैं। उनके ट्वीट से किसी ने छेड़छाड़ की और शेयर किया। उनका असल ट्वीट था कि यूपीएससी से इस्लामिक स्टडीज को हटा दिया जाए। इस्लाम को निशाना बनाने वाला सुशील तिवारी का मूल संदेश भी आईपीसी की धारा 153ए, 153बी और 505(2) के तहत आते हैं लेकिन पुलिस ने यह जानते हुए भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जिस ट्वीट से छेड़छाड़ हुई थी वह इस प्रकार थी कि एससी, एसटी, ओबीसी का मंदिर में प्रवेश निषेध रहेगा। इस ट्वीट के साथ प्रशांत ने छेड़छाड़ नहीं की थी। उनके पास यu ट्वीट आया और गलती से उन्होंने शेयर कर दिया। जब उन्हें पता चला कि ये ट्वीट गलत है तो उन्होंने डिलीट भी कर दिया।
मैंने सुशील तिवारी के सभी सोशल मीडिया हैंडल्स के पोस्ट देखें है। जो इस्लामोफोबिया से ग्रसित हैं। जो जातिवादी हैं, महिला विरोधी हैं और वह एक सांप्रदायिकता फैलाने वाला व्यक्ति है। सुशील तिवारी की मानहानि होती है और उनके लिए कोई अन्य व्यक्ति मुकदमा दर्ज करवाता है। ये बात हजम नहीं होती है। जो ट्वीट गलती से शेयर होता है उसके कारण प्रशांत को जेल जाना पड़ता है। इसके बाद मैंने हर संभव कोशिश की जिससे मैं प्रशांत को रिहा करवा सकूं। हमने सेशन कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन वहां से बेल खारिज कर दी गई। इसके बाद उच्च न्यायालय ने 4 हफ्ते तक मामले को लटका दिया। इस सबके बीच आर्थिक मदद की भी गुहार लगानी पड़ी। मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि प्रशांत को ऐसे अपराध की सजा मिल रही है जो उन्होंने किया ही नहीं है। तमाम वेरिफाइड अकाउंट से फेक न्यूज शेयर होती है और इसके अलावा बड़े-बड़े संस्थान में बैठे पत्रकारों से भी यह गलती होती है लेकिन उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती है।
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प्रशांत के साथ जो हो रहा है वह गलत है और असंवैधानिक है। अभिव्यक्ति की आज़ादी हर व्यक्ति का अधिकार है। प्रशांत के साथ ये दूसरी बार हुआ है। इससे पहले जून 2019 में भी प्रशांत को गिरफ्तार कर लिया गया था। प्रशांत की गिरफ़्तारी वजह उस वक़्त भी एक ट्वीट ही था। हम तब सुप्रीम कोर्ट गए थे और तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि इस तरह से किसी को जेल में रखना गलत है। अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का हनन है। मैं सिर्फ यह पूछना चाहती हूं वे लोग जो सोशल मीडिया पर दंगा भड़काने जैसे पोस्ट डालते हैं, सांप्रदायिकता फैलाते हैं और महिलाओं को बलात्कार कि धमकियां भी देते हैं उनपर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती। ये कैसा न्याय है? प्रशांत पोस्ट डिलीट कर देते हैं तब भी उन्हें जेल में लगभग 50 दिनों से ज्यादा जेल में रखा जा रहा है। क्यों? उनका जुर्म सिर्फ इतना था कि वो सत्ता से सवाल करते थे। मोदी सरकार की नीतियों पर अपनी राय रखते थे।
हमारे साथ कितनी बार ऐसा होता है कि कोई पोस्ट आती है और हम शेयर कर देते हैं, जैसे ही पता चलता है कि गलत है हम डिलीट कर देते हैं। लेकिन क्या इसपर हमें सजा मिलनी चाहिए? क्या एक ट्वीट के आधार पर किसी व्यक्ति को 50 दिन से ज्यादा जेल में रखना सही है? दरअसल प्रशांत को उनके बोलने की सजा मिल रही है प्रशांत लगातार सत्ता के खिलाफ बोलते आए हैं। वह हर हिंसा के खिलाफ बोलते आए हैं । मैं उनकी पत्नी बस यहीं कहना चाहूंगी कि उनकी जल्द से जल्द रिहाई हो। हम सब उनके लिए आवाज़ उठाए। मैं ये सब लिखते हुए अपने आंसुओ को पोछ रही हूं। जब से प्रशांत गए है तब से लेकर अब तक मैंने हिम्मत बनाकर रखी है। लेकिन भावुक हूं। मानसिक तनाव में हूं। लेकिन बाबासाहेब के संविधान पर भरोसा बना हुआ है। न्याय व्यवस्था में मेरा भरोसा अभी भी कायम है। मेरी सबसे अपील है कि उनका साथ दे। संविधान का साथ दे। जब सवाल पूछना देशद्रोह कहलाए,जब सत्ता पर बैठे तानाशाह आप पर जुल्म ढाए तो विश्व की सबसे जरूरी राजनैतिक कविताओं में से एक। जिसे लिखा है जर्मन कवि मार्टिन नीमोलर ने याद आती है :
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था
फिर वे आए ट्रेड यूनियन वालों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था
फिर वे यहूदियों के लिए आए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वे मेरे लिए आए
और तब तक कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता