समाजख़बर कृषि कानून वापस होने तक जारी रहेगा हमारा विरोध – प्रदर्शन में शामिल महिला किसान

कृषि कानून वापस होने तक जारी रहेगा हमारा विरोध – प्रदर्शन में शामिल महिला किसान

नीलम ने समझाया कि कैसे यह कृषि कानून छोटे किसानों को नुकसान पहुंचाएगा और कहा कि कोई भी आंदोलन हो महिलाएं हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं।

नए कृषि कानून के खिलाफ़ किसानों का आंदोलन जारी है। इस आंदोलन में महिलाएं भी बराबरी का योगदान दे रही हैं। प्रदर्शन में शामिल अधिकतर महिलाओं का कहना है कि वे अपना हक लेने आई हैं और यह उनके हक की लड़ाई हैं और वे अपना हक मिलने पर ही अब लौटेंगी। महिलाओं के काम को नज़रअंदाज़ करने वाला समाज हमने ही बनाया है इसलिए हमें किसानों के रूप में महिलाएं कभी नज़र नहीं आती। 6 दौर की बातचीत के बाद भी किसानों और सरकार के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है। किसानों ने यह भी कहा कि जब तक उनकी मांगें नहीं मानी जाती वे रास्ते से नहीं हटने वाले। इस आंदोलन में सिर्फ किसान भाई ही नहीं, बल्कि महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है।

जालंधर की निवासी नीलम बीते 25 नंवबर से अपने घर से चली थी। वह अपने दो बच्चों को घर पर छोड़ कर आई हुई हैं। उन्होंने कहा कि पुलिस द्वारा बरसाए गए आंसू गैस से हमारे शरीर में एलर्जी हो गई है। वह अपने बच्चों को बहुत याद करती हैं। उन्होंने आगे कहा कि हमें शाहीन बाग़ की महिलाओं से बहुत प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि कोई भी आंदोलन हो महिलाएं हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। उन्होंने आगे हमें समझाया कि कैसे यह कृषि कानून छोटे किसानों को नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने हमें बताया कि छोटे किसानों को अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं मिला तो उसकी फसल बेकार चली जाएगी। अगर मंडी नहीं रही तो छोटा किसान अपनी फसल कहां बेचेगा? इसके अलावा वह कहती हैं कि किसान अगर अन्नदाता है तो वह उपभोक्ता भी हैं। वह आगे यह भी कहती हैं कि हम आंदोलन का हिस्सा इसीलिए हैं क्योंकि इस कृषि कानून से औरतों को भी हर तरह से फर्क पड़ता है। औरतें घर चलाती हैं और साथ ही खेत में काम भी करती हैं।

प्रदर्शन में शामिल जसबीर, तस्वीर- जगीषा अरोड़ा

और पढ़ें : ग्राउंड रिपोर्ट : जानिए क्या कहना है प्रदर्शन में शामिल महिला किसानों का

नीलम यह भी बताती हैं कि हमें तो समझ ही नहीं आता कि केंद्र सरकार क्या कर रही है? किसके भले के लिए कर रही है? अनुच्छेद 370 जब हटाया तो कहा गया था कि सरकार यह कश्मीरियों के भले के लिए कर रही है लेकिन उनका कोई भला हमें नहीं देखा। फिर जब जी एसटी लाई गई तो कहा कि व्यापारियों का भला होगा लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व्यापारियों का हुआ। नीलम बताती हैं कि प्रदर्शन स्थल पर महिलाओं के लिए विशेषरूप से कोई सुविधा नहीं है और शौचालय की समस्या है लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लोग हमारी हर तरह से मदद कर रहे हैं। महिलाओं का कहना था कि वे कपड़े और बिस्तर बांधकर लाई हैं। सरकार ने किसानों को बर्बाद करने के लिए जो तीन कृषि कानून बनाएं हैं, वे उसे वापस लेने के बाद ही लौटेंगी। उनका कहना था कि उनके पास छह महीने से भी अधिक का राशन है।सरकार उन्हें दिल्ली जाने से जहां रोकेगी, अब वह वहीं रुककर धरना-प्रदर्शन शुरू कर देंगे।

महिलाओं का कहना था कि वे कपड़े और बिस्तर बांधकर लाई हैं। सरकार ने किसानों को बर्बाद करने के लिए जो तीन कृषि कानून बनाएं हैं, वे उसे वापस लेने के बाद ही लौटेंगी।

इसके अलावा पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली महिला अध्यक्ष कनुप्रिया ने बातचीत के दौरान कहा कि यह एक ऐतिहासिक आंदोलन है जो निरस्त करने और ‘सुधार’ या कानून में संशोधन करने के लिए नहीं है। बीजेपी और आरएसएस की सरकार जो पहले एक इंच भी पीछे नहीं हटती थी, इन लोगों द्वारा मीलों दूर धकेल दी गई है। जिन महिला किसानों का काम अक्सर अदृश्य होता है, वे हज़ारों की संख्या में आंदोलन में शामिल हो गईं हैं। महिलाओं ने पंजाबी गीत गाए हैं और साथ ही ऊंची आवाज़ में नारे लगाए हैं। नारे और बोलियां सदियों से चले आ रहे हैं, जो प्रतिरोध की भावना को जीवित रखते हैं।

और पढ़ें : राष्ट्रीय महिला किसान दिवस : महिलाओं के पास क्यों नहीं है ज़मीन का मालिकाना हक़?   

साल 2018 में ऑक्सफैम के एक शोध के अनुसार, भारत में कृषि क्षेत्र में सभी महिलाएं 80 फ़ीसद काम करती है, उनमें से 33 फ़ीसद श्रम बल में और 48 फ़ीसद स्वनियोजित रूप से शामिल हैं। किसानों को उनकी सही आय से वंचित किया जा रहा है। महिला किसान आंदोलन में डटी हुई हैं और चाहे यह समाज उसके सहयोग को कितना भी नज़रअंदाज़ करे लेकिन उसका सहयोग सराहनीय है। जालंधर से आई नीलम की तरह हज़ारों महिलाएं आंदोलन में अपनी भूमिका निभा रही हैं। वे अपने अधिकार को भी समझती हैं और उसको कैसे इस सरकार से छीनना है, यह भी जानती हैं। वे घर संभालने से लेकर आंदोलन में भी मोर्चा संभाले हुए हैं। कभी रोजा लग्ज़मबर्ग ने कहा था, “जिस दिन औरतों के श्रम का हिसाब होगा, इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी पकड़ी जाएगी।” हजारों वर्षों का वह अवैतनिक श्रम, जिसका न कोई क्रेडिट मिला, न मूल्य। महिला के काम को अब शायद पहचान मिल जाये जो उससे छीन ली गई थी।

और पढ़ें : कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का विरोध बेबुनियाद या राजनीति से प्रेरित नहीं है


तस्वीर साभार : जगीषा अरोड़ा

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content