अर्जेंटीना में लंबे संघर्ष के बाद गर्भसमापन को मिली क़ानूनी वैधता एक ऐतिहासिक कदम है। ऐसा करने वाला अर्जेंटीना सबसे बड़ा लातिनी अमरीका देश बना। अर्जेंटीना की सीनेट ने गर्भसमापन को वैध बनाने वाले बिल को बीते 30 दिसंबर 2020 को पारित किया। इस बिल के पक्ष में 38 वोट और बिल के ख़िलाफ़ में 29 वोट पड़े थे। इससे पहले अर्जेंटीना में केवल दो स्थितियों में गर्भसमापन कानूनी रूप से वैध था। पहला- यौन हिंसा में मामले में या जब गर्भवती औरत का जीवन ख़तरे में हो। इस बिल के पारित होने के बाद अब चौदह सप्ताह तक अपनी मर्जी से एक औरत को गर्भसमापन की अनुमति होगी। साल 1921 से यह बिल महिला अधिकारों के सक्रिय और मुखर रहने वाली कार्यकर्ताओं की मांग रही है। दक्षिणपंथी राष्ट्रपति अल्बर्ट ने कहा था कि 1983 में लोकतंत्र आने के बाद से 3000 औरतों की जानें असुरक्षित गर्भसमापन के कारण गई। वहीं, अर्जेंटीना मूल के पोप और उनके समर्थकों ने गर्भसमापन वैध करने के प्रति विरोध जताया था।
इस बिल का पारित होना कई मायनों में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक घटना है। यह बिल महिलाओं का अपने शरीर पर एकाधिकार क़ायम करता है। महिलाओं के अहम अधिकारियों में से है उनका प्रजनन अधिकार। चूंकि प्रजनन क्रिया शरीर से जुड़ी है, इस अधिकार को किसी भी तरह से ख़त्म किया जाना महिला अधिकारों पर अंकुश लगाने जैसा है। इस कानून के पारित होने से पहले अर्जेंटिना में महिलाएं, लड़कियां गैरकानूनी और असुक्षित तरीक़े से गर्भसमापन करवाने के लिए मजबूर होती थीं क्योंकि दो कारणों के अलावा किसी अन्य स्थिति में ऐसा करना क़ानूनी जुर्म था।
और पढ़ें : गर्भनिरोध की ज़िम्मेदारी हमेशा औरतों पर क्यों डाल दी जाती है?
सुरक्षित गर्भसमापन सामाजिक, आर्थिक रूप से वंचित तबक़ों से आने वाली महिलाओं के पहुंच से बाहर था। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार अर्जेंटीना में मातृ-मृत्यु दर की वृद्धि का कारण असुक्षित गर्भसमापन है। गिसेल कैरिनो, अर्जेंटीना की एक नारीवादी कार्यकर्ता ने ‘द गार्डियन’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि पोप फ्रांसिस के देश में जहां कैथोलिक चर्च की इतनी मजबूत पकड़ है, वहां ऐसा फैसला एक बड़े संदेश की तरह दुनिया में जाएगा। इस ऐतिहासिक घटना को पिछले पांच सालों से वहां काम कर रहे ज़मीनी नारीवादी कार्यकर्ताओं की जीत की तरह भी देखा जा रहा है। ट्विटर पर #NiUnaMenos का हैशटैग चलाया गया। #NiUnaMenos का अर्थ है लैंगिक हिंसा की शिकार नहीं होंगी औरतें।
इस बिल का पारित होना कई मायनों में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक घटना है। यह बिल महिलाओं का अपने शरीर पर एकाधिकार क़ायम करता है।
#NiUnaMenos मार्च महिलाओं के अधिकार के समर्थकों द्वारा साल 2015 में शुरू किया गया था। उन्होंने तब यह बात ज़ाहिर की थी कि फेमिसाइड के ख़िलाफ़ लड़ाई में गर्भसमापन को क़ानूनी वैधता दिलवाना ज़रूरी है। इन समर्थकों ने हरा स्कार्फ़ पहनना शुरू किया था। यह स्कार्फ़ वे सिर पर पहनतीं या हांथों में बांधतीं। ये ट्रेंड बहुत जल्द प्रसिद्ध होने लगा। कई लातिन अमरीकी देशों ने इस ट्रेंड को महिला अधिकारों के प्रतीक के रूप में देखा जाने लगा। इस हरे स्कार्फ़ का यह चिन्ह मदर्स ऑफ़ प्लाज़ा डी मायो के कार्यकर्ताओं द्वारा पहने गए सफ़ेद स्कार्फ़ से प्रेरित है। सफ़ेद स्कार्फ़ पहनने वाली इन औरतों ने अर्जेंटीना में 1976-83 के तानाशाही द्वारा अपने घर के बच्चों के ग़ायब होने के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी। तभी अर्जेंटीना की सड़कें महिलाओं के क्रांति का गवाह रहा है।
साल 1990 के बाद से कई कार्यकर्ताओं ने, वकीलों ने, डॉक्टरों ने अर्जेंटीना की गलियों में महिला अधिकारों के लिए संघर्ष किया है। उन्हें ‘लैस हिस्टेरिया’ के नाम से पुकारा जाता है। डोरा कॉलेडस्की जैसी वकील और कार्यकता जो लंबे समय से इस लड़ाई का हिस्सा थीं, उस आंदोलन की अगुआई करती थी। इस जीत के दिन को देखने से वह चूक गईं। उनकी पोती रोज़ाना फैंजुल इस अभियान की मुख्य सदस्यों में से थी। ग्रीन वेव या ‘मारिया वरड्रे’ के नाम से आज जानी जाने वाली ये प्रो-चॉइस कार्यकर्ता अपनी पुरखिनों के इस कठिन संघर्ष के ऐतिहासिक परिणाम की साक्षी रही। यह साझा संघर्ष महिलाओं के लिए ख़ुशी की लहर बनकर आया। फैसला आने के बाद अर्जेंटिना का आकाष हरे धुएं से भर उठा था। बड़े स्क्रीन पर “हमने कर दिखाया” और “ये अब एक क़ानून है” उग आया।
और पढ़ें : गर्भनिरोध के लिए घरेलू हिंसा का सामना करती महिलाएं
तस्वीर साभार : NBC NEWS