4 जनवरी 2020 को पाकिस्तान के लाहौर उच्च न्यायालय ने रेप और यौन प्रताड़ना के मामलों में वहां किए जाने वाले टू फ़िंगर्स टेस्ट को अवैध और असंवैधानिक क़रार दिया है। जस्टिस आएशा ए. मालिक ने इसे पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 9 और अनुच्छेद 14 का हनन बताया है। लाहौर कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी लिखा कि टू फिंगर टेस्ट यौन हिंसा सर्वाइवर्स के प्रति एक तरह का लैंगिक भेदभाव है। जस्टिस आएशा ने चिकित्सा विधिक यानी मेडिको लीगल क्षेत्र में यौन उत्पीड़न के सर्वाइवर्स के प्रति व्यवहार में संवेदनशीलता रखना ज़रूरी बताया।
पाकिस्तान में 2020 मार्च में महिला विरोधी इस क़ानून के ख़िलाफ़ याचिका दाख़िल की गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट अवैज्ञानिक है लेकिन फिर भी इसे मेडिकल प्रोटोकॉल के नाम पर किया जाता है। इससे सर्वाइवर पर शक किया जाता है, यौन हिंसा के आरोपी पर ध्यान देने की जगह। लाहौर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भारत के ईलाहाबाद हाईकोर्ट और गुजरात हाईकोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया। साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि वर्जिनिटी टेस्टिंग एक बेहद ही अमानवीय, पीड़ादायक और आघातपूर्ण प्रक्रिया है और इसे जल्द से जल्द बंद होना चाहिए।
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क्या होता है टू फ़िंगर्स टेस्ट ?
टू फ़िंगर्स टेस्ट में महिला के योनि की प्रत्यक्ष शारीरिक जांच होती है। मकसद होता है योनि के मांशपेशियों के आकार, इलास्टिसिटी का पता लगाना। साथ ही हाइमन यानी योनि की झिल्ली की स्थिति का पता लगाना। डॉक्टर की दो उंगलियों महिला की योनि के अंदर प्रवेश करती हैं। महिला के यौन रूप से सक्रिय होने, उसके साथ हुई हिंसा के बारे में जानने का पैमाना उन दो उंगलियां का आसानी या मुश्किल से प्रवेश पाना होता है। पीड़िता के शरीर के माध्यम से यौन हिंसा के बारे में जानकारी लेने के किये ये टेस्ट वैज्ञानिक रूप से भी बेतुका है।
टू फिंगर्स टेस्ट की प्रक्रिया का हिस्सा बनना एक सर्वाइवर के लिए शारीरिक और मानसिक यातना दोबारा एक अलग कारण से जीने की तरह है।
हाइमन टेस्ट का कोई औचित्य नहीं है। योनि की इलास्टिसिटी और यौन सक्रियता के बीच संबंध देखना मात्र एक रूढ़िवादी सोच है। साथ ही उत्पीड़न से पहले यौन रूप से सक्रियता उत्पीड़न के बारे में केस में कोई मदद नहीं करती। बल्कि महिला के ऊपर सामाजिक और शारीरिक तथाकथित नैतिक दबाव थोपती है। महिला शरीर पर उनके अधिकारों के विरोधी किसी भी समाज में अविवाहित लड़कियों या महिलाओं की यौन सक्रियता उनके चरित्र पर प्रश्वाचक चिह्न लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हमारा समाज भी ऐसी ही सोच रखता है। यह टेस्ट भारत और बांग्लादेश समेत दुनिया के कई देशों में पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया था। पाकिस्तान में यह प्रतिबंध अब जाकर लागू हुआ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक टू फ़िंगर्स टेस्ट महिलाओं के प्रति बेहद अनैतिक है। इसे मानवाधिकारों के उल्लंघन के तौर पर देखा जा सकता है। इस टेस्ट की प्रक्रिया का हिस्सा बनना पीड़ित महिला के लिए शारीरिक और मानसिक यातना दोबारा एक अलग कारण से जीने की तरह है। इस प्रक्रिया में शामिल पुलिस, मेडिकल, क़ानूनी विभाग के लोगों का रवैया किसी भी बिंदु पर पीड़िता के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। ऐसा आसानी से होने का ख़तरा सबसे अधिक रहता है। चूंकि महिलाओं के शरीर को उनकी पवित्रता से जोड़ना एक सामाजिक सोच है, तमाम औपरकारिक ढांचों में कार्यरत लोगों का इससे बाहर होना कई बार ज़मीनी स्तर पर देखने नहीं मिलता।
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तस्वीर : सुश्रीता भट्टाचार्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए