इंटरसेक्शनलजाति ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती देने वाला आत्मसम्मान विवाह

ब्राह्मणवादी व्यवस्था को चुनौती देने वाला आत्मसम्मान विवाह

पेरियार के आत्मसम्मान विवाह संस्था जहां एक तरफ ब्राह्मणवादी विवाह संस्था को चुनौती दे रही थी जो मात्र दो व्यक्तियों की सहमति पर आधारित थी।

प्यार एक खूबसूरत भावना है जो दो लोगों को एक साथ लाता है, भले ही उनका रंग, लिंग, जाति, धर्म या वर्ग अलग-अलग हो। इसी तर्ज पर शुरू किया गया आत्म-सम्मान आंदोलन एक दक्षिण भारत में शुरू किया गया आंदोलन है, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय प्राप्त करना और एक एक ऐसे समाज की स्थापना करना है जहां पिछड़ी जातियों को समान मानवाधिकार प्राप्त हो सके। साथ ही पिछड़ी जातियों में स्वाभिमान जगाया जा सके। साल 1925 में ईवी रामासामी पेरियार ने कट्टरपंथी ब्राह्मणवादी और जाति विरोधी प्रथा के खिलाफ तमिलनाडु में आत्मसम्मान आंदोलन की स्थापना की थी। ब्राह्मणवाद विरोधी आत्मसम्मान आंदोलन बेहतर जीवन के लिए प्रयासरत है और एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जो प्रेम और विश्वास पर आधारित बन सके।

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दुर्भाग्य से पेरियार को बहुत कम ही लोग जानते हैं और उनके विचारों को तो और भी कम लोग लेकिन पेरियार ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने हमें न केवल ब्राह्मणवादी सोच से मुक्त होने का मार्ग दिखाया बल्कि वह लैंगिक समानता के भी बड़े पक्षधर थे। पेरियार अपने विचारों के चलते अपने समय के बहुत आगे के व्यक्ति थे जिन्होंने अपने विचारों से समाज में बुनियादी बदलाव की नींव डालने का काम किया। उन्हीं के प्रयासों द्वारा चलाया गया ‘सेल्फ रिस्पेक्ट मैरिज’ या ‘आत्मसम्मान विवाह’ एक ऐसी अवधारणा है जो परंपरागत या ब्राह्मणवादी विवाह संस्था को चुनौती देता है। आत्मसम्मान विवाह एक ऐसे विवाह संस्था की नींव रखते हैं जो समानता, प्रेम और विश्वास पर आधारित है। पेरियार ब्राह्मणवादी विवाह को देवीय विवाह की संज्ञा देते हैं जिसमें एक ब्राह्मण या पुरोहित विवाह को रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न कराता है और सात जन्मों के लिए वो बंध जाते है। वहीं दूसरी तरफ वह आत्मसम्मान विवाह को तार्किक विवाह कहते है क्योंकि यह विवाह तार्किकता पर आधारित है जिसमें दो बालिग आपसी सहमति से बिना किसी ब्राह्मण या पुरोहित के अपनी मातृभाषा में एक दूसरे को वचन देकर और फूल की माला एक दूसरे को पहनाकर ही संपन्न हो जाता है।

आत्मसम्मान विवाह समाज में सामाजिक संबंधों की पुनर्रचना करता है और वर्चस्ववादी ब्राह्मणवाद को चुनौती देता है साथ ही पितृसत्ता को भी चुनौती देता है। पेरियार का तर्क स्पष्ट है कि अगर महिलाएं खुद को शुद्धता के बोझ से मुक्त करना चाहती हैं तो मानक के रूप में पुरुषत्व को भी अस्वीकार करना होगा। इस प्रकार, स्त्रीत्व के दायरे में स्वायत्तता प्रदान करने के लिए अवधारणा और व्यवहार में पुरुषत्व महिलाओं को कमतर दिखा कर मानवता को भी प्रभावित करता है और महिलाओं को गुलाम बना देता है। पेरियार के विचार महिला शुद्धता पर उन लोगों को जवाब देने की कोशिश थी जिन्हें डर था कि प्यार के आधार पर विवाह के लिए ‘आत्मसम्मान’ का समर्थन युवाओं में यौन उत्साह को बढ़ावा देगा। 

पेरियार के आत्मसम्मान विवाह संस्था जहां एक तरफ ब्राह्मणवादी विवाह संस्था को चुनौती दे रही थी जो मात्र दो व्यक्तियों की सहमति पर आधारित थी।

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आत्मसम्मान विवाह शब्द से आत्मसम्मान का संबोधन इसलिए भी सार्थक हैं क्योंकि यह एक तरह का धर्मनिरपेक्ष विवाह संबंध भी है, जहां दो व्यक्तियों को बिना किसी धर्म, जाति, वर्ण, वर्ग, क्षेत्र और भाषा के भेदभाव के बिना समान मनुष्य का दर्जा देते हुए संबंध स्थापित किया जाता है। इस तरह पेरियार आत्मसम्मान विवाह के ज़रिये ब्राह्मणवादी विवाह जैसी संस्था के पुनर्गठन का काम भी कर रहे थे जो बहुत कठोर नियमों के साथ बंधा हुआ था। आत्मसम्मान विवाह के ज़रिये समाज में वर्चस्वशाली शक्ति संबंधों को भी चुनौती दी जा रही थी या उन्हें बदला जा रहा था। आत्मसम्मान विवाह में समाजिक स्वीकृति के साथ-साथ कानून के लिए भी कोई जगह नहीं है। अगर दो व्यक्ति आपस में संबंध विच्छेद भी करना चाहे तो भी आसानी से आपसी सहमति से संभव है। वर्तमान समय में हम लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा को देखते हैं जो अधिकतर शहरी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनता जा रहा है।

लोगों को शादी के अंदर बहुत सी जिम्मेदारियां निभानी पड़ती है, कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। जिसमें स्त्री की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है और उसी के कंधों पर यह सभी जिम्मेदारियां आ जाती हैं उससे बचने के लिए या उसके विकल्प खोजने के लिए लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा सामने आई है जो किसी भी तरह के विवाह को खारिज करती है। लिव-इन रिलेशनशिप वास्तव में जब दो प्रेम करने वाले बालिग आपसी सहमति से एक ही छत के नीचे बिना किसी धार्मिक या कानूनी विवाह के साथ रहते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि पेरियार के आत्मसम्मान विवाह संस्था जहां एक तरफ ब्राह्मणवादी विवाह संस्था को चुनौती दे रही थी बिना किसी कर्मकांड के, बिना किसी पुरोहित के मात्र दो व्यक्तियों की सहमति पर आधारित विवाह के लिए आंदोलन किया जा रहा था। वहीं, दूसरी तरफ लिव-इन रिलेशनशिप को भी हम आत्मसम्मान विवाह  के ज्यादा निकट देख सकते है। हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह शब्द से आपत्ति ज़रूर है लेकिन ध्यान से देखा जाए तो यह भी उसी तरह का एक तरह का संबंध है जिसमें दो व्यक्तियों की आपसी सहमति और प्रेम के आधार पर ही निर्णय लिया जाता है बिना किसी धर्म जाति भाषा या क्षेत्र के भेदभाव के बिना। दोनों ही तरह के संबंधों की अवधारणा में मूल बात लैंगिक समानता है जो परंपरागत विवाह ब्राह्मणवादी विवाह में देखने को नहीं मिलती जिसका चरम रूप हम कन्यादान के रूप में देख सकते हैं जबकि सेल्फ रिस्पेक्ट मैरिज या लिव इन रिलेशनशिप पुरुष और महिला दोनों को बराबर का दर्जा देता है साथ ही अलग होने के लिए भी आपसी सहमति पर आधारित है। 

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तस्वीर साभार : Homegrown

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