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संस्कृतिमेरी कहानी अपनी विकलांगता से निराश होकर मैंने अपनी ज़िंदगी पर लॉकडाउन नहीं लगने दिया| #LockdownKeKisse

अपनी विकलांगता से निराश होकर मैंने अपनी ज़िंदगी पर लॉकडाउन नहीं लगने दिया| #LockdownKeKisse

इस लॉकडाउन को मुझे अपनी ज़िंदगी का लॉकडाउन नहीं बनने देना है। मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ कि अब अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर रही हूं। साइकिल की सवारी के सपने देख रही हूं। पहियों वाली कुर्सी मिल जाए तो यहां-वहां उड़ती फिरूंगी।

एडिटर्स नोट : यह लेख फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी के प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी लड़कियों द्वारा लिखे गए लेखों में से एक है। इन लेखों के ज़रिये बिहार और झारखंड के अलग-अलग इलाकों में रहने वाली लड़कियों ने कोविड-19 के दौरान अपने अनुभवों को दर्शाया है। फेमिनिज़म इन इंडिया और फेमिनिस्ट अप्रोच टू टेक्नॉलजी साथ मिलकर इन लेखों को आपसे सामने लेकर आए हैं अपने अभियान #LockdownKeKisse के तहत। इस अभियान के अंतर्गत यह लेख पुनीता कुमारी ने लिखा है जो बेतिया, बिहार से हैं।

मैं पुनीता कुमारी बेतिया, बिहार से हूं। मेरे गांव का नाम चैबरिया है और मेरी उम्र 17 साल है। मेरे पैर में तकलीफ है। जब चार साल की थी मैं तब छत पर से गिर गई थी तो मेरा पैर टूट गया था। उसके बाद मेरा पैर ठीक भी हुआ था लेकिन जब तीन साल के बाद मेरे पैर में अचानक दर्द होने लगा और मेरे मम्मी-पापा अस्पताल ले गए। उस वक्त डॉक्टर को मेरी बीमारी समझ में नहीं आई। उसने मेरे पैर में दो ईंटें बांधकर मेरे पैर में लटका दिया। उससे मेरा एक पैर बड़ा और एक पैर छोटा हो गया। इस गलत इलाज की वजह से मुझे चलने में बहुत दिक्कत होती है। स्कूल जाने का मन था तो मैं एक डंडे के सहारे मैं स्कूल पढ़ने जाती थी तो स्कूल के सारे बच्चे मुझको लंगड़ी कह कर चिढ़ाते थे।उस समय मैं बहुत रोती थी। एक ही जगह पर बैठी रहती थी। सोचती थी कि कुछ जादू हो जाए और मैं साइकिल चलाने लगूं।

मेरे पापा से यह सब देखा नहीं गया तो वह मुझे इलाज के लिए गोरखपुर ले गए। अपने हिस्से का खेत बेचकर उन्होंने मेरे पैर का ऑपरेशन करवाया। तब भी मेरा पैर ठीक नहीं हुआ है। एक बार की बात छोड़िए, मेरा तो 17 साल की उम्र में पांच-पांच बार ऑपरेशन हो गया है। पैसा लगा-लगा कर घरवाले थक चुके हैं। इस लॉकडाउन में उनकी मुसीबत बढ़ गई है। मेरा इलाज भी नहीं हो रहा है। एक बार तो मैंने ऑनलाइन डॉक्टर को भी दिखाने की कोशिश की थी तो वह भी नहीं हुआ। मेरी तबीयत और खराब हो गई। लॉकडाउन में कहीं आना जाना नहीं हो रहा था। गांव से दूर अस्पताल है जो कि बंद हो गया था और शुरू में गाड़ी भी नहीं चल रही थी। मेरे गांव में एक प्राथमिक केंद्र है। कोरोना के दौरान उसकी बहुत बुरी हालत हो गई है। फिर भी वहीं गांव में ही मेरा इलाज करवाया गया। हालांकि इस इलाज से फायदा हुआ है।  

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इलाज के अलावा हमारे घर में छह और लोगों का खर्च है। लॉकडाउन के दौरान हमें फैट संस्था से मदद मिली। इस मदद के तहत हमें पांच हज़ार रुपये मिले थे जिसमें हम चार-भाई बहन की पढ़ाई भी थी। लॉकडाउन के दौरान भी प्राइवेट स्कूल फीस मांग रहे हैं। सबकी पढ़ाई अभी रुक गई है। इस लॉकडाउन के ठीक पहले मैं एक संस्था में काम करने लगी थी। एक महीना पूरा नहीं हुआ था कि सब चीज़ों पर रोक लग गई। ज़रूरत पड़ने पर मैंने उनसे अपना मेहनताना मांगा तो वे टालने लगे। इस तरह दो महीने बीत गए। फिर मैंने फोन किया तो संस्था वालों ने कहा बोले कि तुम्ह पैसे की ज़रूरत है तो खुद आकर ले जाओ, हम तुम्हारे घर पर पैसा देने नहीं आएंगे। मेरी तकलीफ से उनको कोई मतलब नहीं है।

इस लॉकडाउन को मुझे अपनी ज़िंदगी का लॉकडाउन नहीं बनने देना है। मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ कि अब अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर रही हूं। साइकिल की सवारी के सपने देख रही हूं। पहियों वाली कुर्सी मिल जाए तो यहां-वहां उड़ती फिरूंगी।

जब मैं स्कूल में पढ़ा करती थी तब एक लड़के से बात करती थी। उसकी उम्र 17 साल थी। लॉकडाउन में जब पापा मेरी शादी की बात चलाने लगे तो मैंने उस लड़के से शादी के बारे में एक बार बात की। हम दोनों एक ही जाति के थे। उसने कहा कि ठीक है हम तुमसे शादी करेंगे। मुझे लगा कि चलो पापा जब शादी करवा रहे हैं तो कम से कम अपनी पसंद के लड़के से तो होगी। अभी मैंने उसके बारे में अपने मां-पापा को नहीं बताया था। तभी लड़के का फोन आया कि देखो शादी के लिए मेरे पापा नहीं मानेंगे। मैंने उससे सीधे कहा कि शादी तुम्हें करनी है, तुम्हारे पापा को नहीं। इस पर उसने कहा कि असल में जितना हमारे पापा दहेज मांगेंगे उतना तुम्हारे पापा तो देंगे नहीं और ऊपर से तुम विकलांग हो। इससे और भी हमारे पापा नहीं मानेंगे। इस पूरी बात में हमारे घर के लोगों ने कुछ नहीं कहा। मेरी विकलांगता की वजह से बात आगे नहीं बढ़ी। मुझे लगा था कि वह लड़का मुझे भी पसंद करता होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह मुझे पसंद नहीं करता था क्योंकि वह शरीर से अच्छा था और मैं विकलांग। इसलिए उसने हमें छोड़ दिया। मैं उससे शादी करना नहीं चाहती थे, मगर घर पर शादी के दबाव की वजह से मैंने सोचा था कि उसी से पूछते हैं जो पसंद है।

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पहले मेरे पापा सबसे ज्यादा मेरी पढ़ाई पर ध्यान देते थे। अब तो पढ़ाई का नाम भी नहीं सुनना चाहते हैं। सिर्फ एक गलती की वजह से जो मैंने नहीं की है। हमारे गांव में एक लड़की एक लड़के से प्यार करती थी। एक बार हमारे गांव के लोगों ने उसको लड़के के साथ देख लिया था। उस चक्कर में पापा मेरी भी शादी करवाने पर तुले हैं। समाज के लोग पापा को कहने लगे कि तुम अपनी बेटी की शादी करवा दो। एक तो तुम्हारी बेटी पहले से विकलांग है। अगर कुछ ग़लत काम कर बैठी तो जगहंसाई हो जाएगी। एक दिन मुझको पता चला कि पापा मेरे लिए लड़का देखने चले गए हैं, तब हमने पापा से बात की। वह बोलने लगे कि अब हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम तुम्हारी पढ़ाई और बीमारी दोंनो में पैसा लगा सकें। मैंने पापा से कहा, “हम ऐसा कोई भी काम नहीं करेंगे जिससे आपके मान-सम्मान पर कोई आँच आए। आप मेरी मैट्रिक की परीक्षा खत्म होने दीजिए। उसके बाद देखा जाएगा।:  

कैसे भी ैंने शादी को टाला है। अब उसके बाद का मुझे नहीं मालूम कि क्या होगा। लॉकडाउन में तो स्कूल बंद है। पढ़ाई घर पर कितनी होगी? स्कूल 2 किलोमीटर दूर था तो बाहर निकलना होता था। खुद से साइकिल नहीं चला पाती हूं तो पहले किसी की साइकिल पर बैठ के स्कूल चली जाती थी। अब तो वह भी नहीं। लेकिन हर वक्त दोस्त का साथ और साइकिल की सवारी की याद आती है, कितना अच्छा लगता था! मैं कभी घूमने-फिरने नहीं निकलती। कहीं अगर थोड़ी देर के लिए भी गई तो मेरे शरीर की बनावट देखकर लोग हंसते हैं। मुझे बहुत बुरा लगता है, इस लॉकडाउन को मुझे अपनी ज़िंदगी का लॉकडाउन नहीं बनने देना है। मैं बहुत ज्यादा खुश हूँ कि अब अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर रही हूं। साइकिल की सवारी के सपने देख रही हूं। पहियों वाली कुर्सी मिल जाए तो यहां-वहां उड़ती फिरूंगी।

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