समाजख़बर महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर होने वाले लैंगिक भेदभाव में सबसे ऊपर भारत : लिंक्डइन रिपोर्ट

महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर होने वाले लैंगिक भेदभाव में सबसे ऊपर भारत : लिंक्डइन रिपोर्ट

लिंक्डइन सर्वे की रिपोर्ट में यह सामने आया कि भारत में 5 में 4 से ज्यादा लिंक्डइन सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 85 प्रतिशत महिलाओं को उनके जेंडर की वजह से सैलरी में बढ़ोत्तरी, प्रमोशन या वर्क ऑफर नहीं मिला।यानी 85 प्रतिशत महिलाओं का दावा था कि उन्हें उनके जेंडर की वजह से सैलरी में बढ़ोत्तरी, प्रमोशन, या वर्क ऑफर नहीं मिला।

भारतीय समाज में हर क्षेत्र में लैंगिक असमानता हावी है, फिर चाहे वह घर हो या ऑफिस, चाहे स्कूल हो या खेल के मैदान। लिंग के आधार पर भेदभाव करना हमारे पितृसत्तात्मक समाज की जड़ों में हैं। इस भेदभाव का असर हमें हाल ही में आई एक रिपोर्ट में भी देखने को मिला जिसमें भारत को सभी एशिया-पैसिफिक देशों में लैंगिक असमानता का सबसे बड़ा शिकार माना गया। दरअसल लिंक्डइन ने ‘जीएफके’ नाम की एक मार्केट शोध संस्था को इस रिसर्च का ज़िम्मा सौंपा था। यह सर्वे जीएफके ने 26 जनवरी से 31 जनवरी 2021 के बीच किया था। यह सर्वे 18 से 65 साल तक के लोगों के बीच किया गया था जिसमें ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, मलेशिया, फ़िलीपीन्स और सिंगापुर जैसे देशों से 10,000 से ज्यादा लोगों ने भाग लिया था। इस सर्वे में 2,285 लोग भारत से थे जिसमें 1,223 पुरुष और 1,053 महिलाएं शामिल थीं।

लिंक्डइन सर्वे की रिपोर्ट में यह सामने आया कि भारत में हर 5 में 4 से ज्यादा यानी 85 प्रतिशत महिलाओं का दावा था कि उन्हें उनके जेंडर की वजह से सैलरी में बढ़ोत्तरी, प्रमोशन, या वर्क ऑफर नहीं मिला। लिंक्डइन के अवसर सूचकांक 2021 के मुताबिक़ एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में बाकी देशों के मुकाबले भारत की महिलाओं ने अपने जेंडर का अपने करियर के विकास पर अधिक असर महसूस किया। पहले से मौजूद इस लैंगिक भेदभाव की समस्या ने कोरोना काल में और मुश्किलें बढ़ा दीं।लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा। सर्वे में शामिल हर 5 में 4 भारतीयों का कहना था कि उन पर कोविड का नकारात्मक प्रभाव पड़ा जबकि 10 में से 9 का कहना था कि वे कोविड के कारण अपनी नौकरी से हाथ धो बैठने, वेतन में कटौती और काम के घंटे कम होने के तौर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित थे। यह दर महिलाओं के मामले में और बढ़ जाती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कोविड काल ने अधिक मुश्किलों में डाला। साथ ही हर 5 में से 1 महिला ने यह माना कि जिस कंपनी में वह काम करती हैं वह कंपनी मर्दों के प्रति विशेष सहानुभूति रखती है। वहीं, 37 फीसद महिलाओं का मानना था कि उन्हें पुरुष सहकर्मियों के मुकाबले कम पैसे दिए जाते हैं।

और पढ़ें : कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव और यौन उत्पीड़न का सामना करती महिलाएं

यही प्रथा आज तक चली आ रही है। घर के काम करना या घर के काम में हाथ बंटाना पुरुषों की ‘जिम्मेदारियों’ के दायरे से बाहर समझा जाता है। सिर्फ महिलाओं पर ये जिम्मेदारियां डालने का ही कारण है कि उक्त रिपोर्ट में पाया गया कि लगभग दो तिहाई वर्किंग महिलाओं को (63 प्रतिशत) और वर्किंग मांओं (69 प्रतिशत) को पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों के चलते ऑफिस में भेदभाव का सामना करना पड़ा। लिंक्डइन की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि भले ही 66 प्रतिशत भारतीय लोगों का मानना था कि लैंगिक समानता उनके माता-पिता के समय से बढ़ी है लेकिन 10 में 7 महिलाओं का मानना था कि पारिवारिक और घरेलू जिम्मेदारियों का उनके करियर में आगे बढ़ने पर कई बार असर पड़ा।

रुची आनंद, डायरेक्टर, टैलेंट एंड लर्निंग सॉल्यूशन्स, लिंक्डइन इंडिया कहती हैं, “इस महामारी के दौरान कार्यस्थल पर लैंगिक असमानता और बढ़ती घरेलू जिम्मेदारियों ने मिलकर महिलाओं के काम को और मुश्किल बना दिया।” आनंद कार्यस्थल पर अधिक महिलाओं की प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए कहती हैं कि पहले से कम और लचीले शेड्यूल, ज्यादा छुट्टियां, स्किल्स को बढ़ावा और सीखने के नए अवसर संगठनों को अधिक महिला प्रतिभा को आकर्षित करने, काम पर रखने और बनाए रखने के लिए ज़रूरी है। ऐसे समय में जब देश गिरती अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है, सर्वे में शामिल लोगों का मानना था कि सीखना और अपने कौशल में इजाफा करना उनके करियर को सुरक्षित कर सकता है। यही कारण है कि रिपोर्ट में सामने आया कि लगभग 57 प्रतिशत भारतीय नई स्किल्स जैसे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, व्यापारिक विश्लेषण, रचनात्मक सोच, प्रॉब्लम सॉल्विंग और समय प्रबंधन सीख रहे हैं।   

हमारे देश में शादी के बाद काम करने या न करने को लेकर बहस आम है। बहस में तो दो लोगों के मत शामिल होते हैं पर हमारे पितृसत्तात्मक समाज में तो यह पहले से ही मान लिया जाता है कि औरत शादी के बाद काम करना छोड़ ही देगी। इस पितृसत्तात्मक समाज की कुंठित सोच एक महिला की शादी होने पर ‘घर कौन चलाएगा’, ‘घर के काम कौन करेगा’, ‘बच्चे कौन पालेगा’, ‘उन्हें पढ़ाएगा कौन’ जैसे तमाम लैंगिक असमानता और पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाले सवाल सोचने पर मजबूर कर देते हैं। शादी के बाद एक औरत का घर के बाहर जाकर पैसे न कमाना हमारे समाज में पहले से ही तय मान लिया जाता है। फिर उसकी हां या ना से कभी किसी को फ़र्क नहीं पड़ा। ऐसा इसीलिए क्योंकि इस पितृसत्तात्मक समाज ने घर और बच्चे संभालने जैसे काम हमेशा एक औरत के लिए ही निर्धारित किए हैं। उसे ही तमाम तरह के भेदभाव और अन्याय झेलने के नाम पर त्याग की मूर्ति बना दिया गया है।

और पढ़ें : मेरा अनुभव : महिला नेतृत्व वाले संवेदनशील कार्यस्थल में होना


तस्वीर साभार : The Wire

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content