“यमन में पीएचडी या पोस्ट ग्रैजुएशन या ग्रैजुएशन करने वाली महिलाओं की संख्या इतनी कम है कि आप उन्हें उंगली पर गिन सकते हैं लेकिन मैं अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती हूं। मैं ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद पीएचडी भी करना चाहती हूं।”
गृह-युद्ध झेल रहे देश, यमन से भारत आई एक लड़की का ख्वाब है यह। शिक्षा, जो किसी का मूलभूत अधिकार होना चाहिए उसकी अहमियत उन लोगों से पूछनी और जाननी चाहिए जिनके पास इस ‘अधिकार’ का कोई ज़रिया नहीं है। शिक्षा जहां हम जैसे कई लोगों के लिए एक ‘बोझ’ की तरह है, वहीं, इस दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिनके लिए शिक्षा एक ख्वाब ही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने विशेषाधिकारों को पहचानना और स्वीकार करना आज के समय की मांग है। यमन, दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, जो साल 2014 से गृह-युद्ध के कारण हाशिये पर जा चुका है। वह देश जो आज दुनिया का सबसे खराब मानवीय संकट झेल रहा है और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट्स के मुताबिक़, जिसके करीब 10 मिलियन लोग अकाल से सिर्फ एक कदम दूर हैं।
यमन में गृह युद्ध की शुरुआत तब हुई जब देश के राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह शासन का कार्यभार अब्द्रब्बुह मंसूर हादी को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन देश के नए राष्ट्रपति हादी देश में मौजूद कई तरीके की मुश्किलों से निपटने में असमर्थ थे और इसका फायदा उठाते हुए हूती विद्रोहियों ने साल 2014 में पहले सादा प्रांत और फिर पूर्व राष्ट्रपति, सालेह के प्रति वफ़ादार देश की सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर न सिर्फ यमन की राजधानी, साना पर बल्कि अन्य प्रान्तों पर भी कब्ज़ा कर लिया। ऐसा होना था कि सऊदी अरब, इरान, अमेरिका, फ्रांस जैस कई देश भी इस युद्ध में शामिल हो गए। संयुक्त राष्ट्र मार्च 2020 तक यमन के 7,700 आम नागरिकों की मौत सत्यापित कर चुका है। इस युद्ध के कारण आज हाल ये है कि खाना, पानी और ईंधन जैसी साधारण ज़रूरतों की कीमत दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही हैं जिस कारण बच्चे अपना खाना कूड़े में ढूंढने के लिए मजबूर हैं। अस्पतालों में भी कुपोषण के शिकार और हवाई हमलों से घायल लोगों का तांता लगा है। अगर संयुक्त राष्ट्र की मानें तो यमन 100 सालों में सबसे बुरी भुखमरी की तरफ बढ़ रहा है।
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आइए जानते हैं ऐसे हालात में यमन से भारत आई एक लड़की के सफर को और कोशिश करते हैं वहां के आम नागरिकों की मनोदशा समझने की। तसनीम (बदला हुआ नाम) यमन की राजधानी साना की रहने वाली हैं। वह महज़ 19 साल की थीं जब वह भारत आईं। उनके पिता नाते-रिश्तेदारों और धर्म के ठेकेदारों की बातों के डर से कभी नहीं चाहते थे कि तसनीम देश के बाहर जाकर पढ़ाई करें मगर उनकी मां और उनकी बड़ी बहन ने हमेशा उनका साथ दिया और तमाम मुश्किलों के बाद जब उन्हें साल 2018 में विश्व-विख्यात जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन में दाखिला मिला तब वह भारत आ गई। वह बताती हैं कि उनके परिवार में माता-पिता के अलावा उनकी दो छोटी बहनें, एक बड़ी बहन और दो भाई हैं। उनके पिता एक इंजीनियर हैं, जबकि मां कुरान पढ़ाती हैं। यह पूछने पर कि क्या उनके माता-पिता अभी भी नौकरी करते हैं तो वे इनकार करती हैं। जहां उनके दोनों भाइयों का परिवार को कोई सहारा नहीं है, वह अपनी बड़ी बहन को अपना प्रेरणास्त्रोत मानती हैं और अपनी दोनों छोटी बहनों को पढ़ाने का ‘ख्वाब’ देखती हैं।
यमन में पढ़ाई का हाल पूछे जाने पर तसनीम बताती हैं कि युद्ध के पहले पढ़ाई अच्छी थी मगर जबसे युद्ध शुरू हुआ तबसे पढ़ाई के स्तर में भारी गिरावट आई है। पाठ्यक्रम में कई सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ है और स्कूलों में वेतन न मिलने के कारण शिक्षक भी अब नहीं बचे हैं।
तसनीम के मुताबिक़ जब सब कुछ ठीक था तब वह एक बहुत बड़े घर और संपन्न परिवार में रहती थीं बल्कि वह कहती हैं कि अगर उनके देश में युद्ध के हाल ना बनाए गए होते तो वह अपना देश कभी ना छोड़तीं। एक समय में सबकुछ होने के बावजूद आज गृह-युद्ध ने उनके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा है। पिछले 6 सालों से घर में कमाई का एक भी पैसा न आने के कारण आज वह अपने घर की चीज़ें बेच-बेचकर अपना जीवन यापन करने के लिए मजबूर हैं। इसके अलावा उनका परिवार उनकी बड़ी बहन पर निर्भर है। वह बताती हैं, “मेरी मां मुझसे कभी यमन वापस न लौटने के लिए कहती हैं। वह कहती हैं कि तुम भारत में या किसी और देश में नौकरी खोज लो। यहां अगर वापस आओगी तो फंस जाओगी क्योंकि आज के समय में लड़कियों के लिए यहां जिंदा रहना बहुत मुश्किल है। मगर मेरे पास भारत में पढ़ाई पूरी करने के बाद यमन लौटने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मेरे वीज़ा की समय सीमा खत्म हो जाएगी।”
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यमन में पढ़ाई का हाल पूछे जाने पर तसनीम बताती हैं कि युद्ध के पहले पढ़ाई अच्छी थी मगर जबसे युद्ध शुरू हुआ तबसे पढ़ाई के स्तर में भारी गिरावट आई है। पाठ्यक्रम में कई सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ है और स्कूलों में वेतन न मिलने के कारण शिक्षक भी अब नहीं बचे हैं। यही कारण है कि यमन में अपनी छोटी बहनों की पढ़ाई को लेकर वह बहुत चिंतित रहती हैं। तसनीम आगे बताती हैं कि खासतौर पर लड़कियों के लिए पढ़ना अब यमन में ज्यादा मुश्किल हो गया है। हाई-स्कूल पास करने के बाद अमूमन उनकी शादी ही कर दी जाती है। जिसके बाद उन्हें सिर्फ घर के पुरुषों की बात माननी पड़ती है। घरेलू हिंसा का शिकार होने के बावजूद उनसे चुप रहने की ही अपेक्षा करी जाती है। मगर यह पूछने पर कि क्या उनके भी घरवालों ने उनसे हाई स्कूल के बाद शादी कर देने की बात कही थी, तो वह इनकार करती हैं। वह कहती हैं, “मेरे घरवालों ने मुझसे कभी शादी को लेकर ज़बरदस्ती नहीं की, मगर हां, शादी कर लेने को लेकर समझाने की कोशिश ज़रूर की।”
तसनीम के लिए भारत आने के बाद भी चीज़ें बहुत आसान नहीं रहीं। उन्होंने विदेशी ज़मीन पर खुद को संभाल तो लिया मगर अपने देश में युद्ध के कारण बिगड़ते हालातों के कारण वह अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं। उनके माता-पिता अक्सर उन्हें सऊदी द्वारा कराए जा रहे हवाई हमलों की तस्वीरें भेजकर उन्हें हमलों की जानकारी देते थे। तसनीम से पूछे जाने पर कि वह खुद को आने वाले 5-7 सालों में कहां देखती हैं तो वह बहुत आत्मविश्वास से कहती हैं, “मैं अगले 5-7 सालों में खुद को अपने करियर में बहुत अच्छा करते हुए किसी यूरोपीय देश में रहते हुए देखती हूं। ग्रेजुएशन के बाद मेरे कई सपने हैं जिन्हें मैं पूरा करना चाहती हूं। मैं अपनी सभी बहनों को यमन से निकालकर उन्हें अच्छी शिक्षा देना चाहती हूं।”
यमन के गृह युद्ध के कारण आज वहां के हालात बहुत चिंताजनक हैं। वहां के लोग अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं। तसनीम जैसे न जाने कितने लोग हैं जो अपना नसीब खुद लिखना चाहते हैं। पढ़ाई करना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं, मगर युद्ध उन सभी सपनों को कुचल देता है। तसनीम को जहां एक तरफ खुद पर यमन में बिगड़ते हालातों के बावजूद भारत आकर पढ़ाई करने का गर्व है वहीं वह जब अपने आस-पास मेहनती और जानकार लोगों को देखती हैं तो उन्हें इस बात का अंदाजा भी रहता है कि अभी उन्हें बहुत मेहनत करनी है। अमूमन लोगों के लिए विदेशी ज़मीन पर जाकर पढ़ाई करना आसान काम नहीं होता और जब यमन जैसे देश से बाहर निकलने की बात हो, तब तो और ज्यादा। ऐसे में तसनीम का हौसला तारीफ के काबिल है।
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तस्वीर साभार : UN