समाजख़बर कोविड-19 : लापरवाह सरकार से उपजे गंभीर हालात ने विद्यार्थियों से सुनहरा दौर छीन लिया

कोविड-19 : लापरवाह सरकार से उपजे गंभीर हालात ने विद्यार्थियों से सुनहरा दौर छीन लिया

पूरी दुनिया में जो कोरोना महामारी बनकर तांडव कर रहा है उसे हमने कमज़ोर पिद्दी समझ लिया। मास्क नाक से नीचे और अक्सर चेहरे से हटाए जाने लगे, बाज़ारों में भीड़भाड़ रहने लगी, लोग सटकर चलने लगे। आख़िर एक तरफ धुंआधार रैलियां कर हमारे नेता भी यहीं संदेश दे रहे थे कि देखिए कोरोना हमसे डरकर भाग गया है।

साल 2020 के मार्च से लेकर अब तक का वक़्त सबसे ज़्यादा जिन लोगों और जिन वर्गों के लिए नुकसानदेह रहा है वे हैं- विद्यार्थी और मज़दूर। कोरोना संकट ने इन दोनों वर्गों को भयंकर तौर से प्रभावित किया है। अनौपचारिक रोज़गार के क्षेत्र से जुड़े 12 करोड़ से अधिक लोगों ने अपना रोज़गार गंवा दिया है। इसी बीच पेट्रोल-डीज़ल के आसमानी भाव और खाद्य महंगाई से देश में अभी तक स्टैगफ्लेशन की स्थिति पसरी है जिसके चलते करोड़ों परिवार ग़रीबी रेखा के नीचे चले गए हैं। कोविड-19 के चलते प्रभावित हुए दूसरे वर्ग की बात करें तो देशभर के विद्यार्थियों ने इस समय में बहुत कुछ गंवा दिया है। तमाम सरकारों ने इस अवधि में प्रतियोगी परीक्षाओं को आगे टाला। परीक्षा न दे पाने और बेरोज़गारी की चुभन में बहुत से छात्र अवसाद में चले गए। पढ़ाई का पैटर्न क्या होगा, परीक्षाएं होंगी या नहीं, कक्षाएं किस तरह चलेंगी, प्रैक्टिकल रदद् किए जाएंगे या नहीं, इन सामान्य विषयों पर कभी UGC का सर्कुलर, कभी राज्य, कभी केंद्र सरकार तो कभी अपने कॉलेज-यूनिवर्सिटी का नोटिस, इन सबके कारण छात्र सालभर से अधिक समय से संशय में रहे।

कैंपस से दूर रहे छात्र

बीते वर्ष मध्य मार्च 2020 से ही देश मे तमाम स्कूल-कॉलेज बंद हो गए थे। 130 करोड़ की आबादी वाले देश के स्कूली बच्चों ने इस दौरान भारी विषमता का सामना किया। एक तरफ़ वे छात्र थे जिनके पास ऑनलाइन क्लास, अत्याधुनिक गैजेट, इंटरनेट, ट्यूशन क्लास की सभी सुविधा थी। वहीं देश का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो तकनीक के इस दौर से ख़ासा पिछड़ा हुआ है। गांव, छोटे कस्बों में रहने वाले, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले, कुल मिलाकर देश के दो तिहाई से अधिक स्कूली छात्र आज के ज़माने की मौलिक सुविधाओं जैसे स्मार्टफोन, लैपटॉप, इंटरनेट, ऑनलाइन स्टडी से मोहताज रहे। बात करें उच्च शिक्षा में अध्ययनरत विद्यार्थियों की तो अपना गांव-कस्बा छोड़कर शहर-महानगरों के बड़े संस्थान में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए ये समय अधिक दुर्गम साबित हुआ। शिक्षण संस्थानों ने विद्यार्थियों की फ़ीस माफ़ नहीं की। विद्यार्थियों को हॉस्टल और किराए के कमरे का किराया भी पूरा देना पड़ा। कैंपस न जा सकने के कारण बड़ी संख्या में विद्यार्थी बेहतरीन शिक्षकों, विशेषज्ञों के सानिध्य में बैठकर पढ़ नहीं पाए, साथियों से मिल नहीं पाए, मेल-जोल नहीं बढ़ा पाए, गलतियां नहीं कर पाए, नया सीख नहीं पाए। इस तरह कोरोना के डर और पाबंदी ने छात्रों से एक सुनहरा दौर छीन लिया, जो शायद ही फिर कभी लौट पाए।

पढ़ाई का पैटर्न क्या होगा, परीक्षाएं होंगी या नहीं, कक्षाएं किस तरह चलेंगी, प्रैक्टिकल रदद् किए जाएंगे या नहीं, इन सामान्य विषयों पर कभी UGC का सर्कुलर, कभी राज्य, कभी केंद्र सरकार तो कभी अपने कॉलेज-यूनिवर्सिटी का नोटिस, इन सबके कारण छात्र सालभर से अधिक समय से संशय में रहे।

गलती किसकी है कि कोरोना दूसरी लहर के रूप में इतना भयावह बनकर हमारे सामने आया? इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं। नेशनल कोविड टास्क फोर्स अपने काम में बुरी तरह नाकाम रही। तैयारी तो छोड़िए, यहां तक कि इस आने वाले संकट का अंदाज़ा भी नहीं लगा पाई। इसी के साथ केंद्र और राज्य की सरकारों ने जो लापरवाही बरतीं वे अक्षम्य हैं। सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने खुलेआम कोविड प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाई। चुनावों में भीड़ जुटाकर रैलियां की, सभाओं में लोग इकट्ठे किए, राज्यों द्वारा धार्मिक आयोजन करवाए गए। इससे प्रेरणा पाकर आम जनता ने भी कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर का पालन नहीं किया। इस सामुहिक बेपरवाही का परिणाम है कि हमारे आसपास से ही कई लोग इस महामारी के कारण अपनी जान गंवा बैठे।

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प्राथमिकताएं तय करने में नाकाम रहा शासन

जब कोरोना की दूसरी लहर विकरालता दर्शाने लगी तब तमाम सरकारों ने शिक्षण संस्थानों को फिर से बंद करवा दिया। कर्फ़्यू लगाए गए, हालांकि इन सबके बीच चुनाव नहीं रोके गए। महामारी अपने पैर पसार रही थी मगर पूरे जोश के साथ देश के कई राज्यों में विधानसभा, पंचायती राज और नगर निकायों के चुनाव करवाए गए। देश में अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्रों की हालत जो शायद ही कभी ठीक रही हो, आज बद से बदतर हो चुकी है। डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, चिकित्सालय, ऑक्सीजन ,दवा, वेंटिलेटर की भारी कमी के बावजूद केंद्र सरकार अपने लिए दिल्ली में आरामगाह बनवा रही है। हमने छह करोड़ से अधिक वैक्सीन विदेशों तक पहुंचाकर अपनी वैक्सीन नीति पर काम किया पर शायद देशवासियों के वैक्सीनेशन की ज़रूरत को नजरअंदाज कर। युद्ध के बीच में ही अपने आप को विजेता मान बैठना सबसे बड़ी गलती:कोरोना संकट से मुक़ाबले के बीच हमारी सबसे बड़ी गलती यह रही कि हमने युद्ध के बीच में ही अपने आप को विजेता घोषित कर दिया। बीते साल पहली लहर के उतार पर ही हमारी सरकारें और नागरिक मान बैठे कि हमने कोरोना को हरा दिया है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों से घोषणाएं कर दी गई कि भारत अब दुनिया को कोविड से निपटने का रास्ता दिखाएगा। हमारे नेता और आम जनता अतिआत्मविश्वास के शिकार हो गए।

पूरी दुनिया में जो कोरोना महामारी बनकर तांडव कर रहा है उसे हमने कमज़ोर पिद्दी समझ लिया। मास्क नाक से नीचे और अक्सर चेहरे से हटाए जाने लगे, बाज़ारों में भीड़भाड़ रहने लगी, लोग सटकर चलने लगे। आख़िर एक तरफ धुंआधार रैलियां कर हमारे नेता भी यहीं संदेश दे रहे थे कि देखिए कोरोना हमसे डरकर भाग गया है।

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पूरी दुनिया में जो कोरोना महामारी बनकर तांडव कर रहा है उसे हमने कमज़ोर पिद्दी समझ लिया। मास्क नाक से नीचे और अक्सर चेहरे से हटाए जाने लगे, बाज़ारों में भीड़भाड़ रहने लगी, लोग सटकर चलने लगे। आख़िर एक तरफ धुंआधार रैलियां कर हमारे नेता भी यहीं संदेश दे रहे थे कि देखिए कोरोना हमसे डरकर भाग गया है। भारत ने दुनिया के बहुत से देशों को ऑक्सीजन की मदद पहुंचाई, वैक्सीन बांटकर सहायता की। कोरोना की जिस दूसरी लहर और म्यूटेंट स्ट्रेन से लड़ने के लिए हमने दुनियाभर के देशों की सहायता की, उस लहर से बचने की कोई तैयारी, कोई इंतजाम अफसोस और शर्मनाक कि हम खुद नहीं कर पाए। आज हर दिन संक्रमित होते लाखों लोग, अव्यवस्था की भेंट चढ़कर दम तोड़ते हज़ारों लोग हमारी लापरवाही का नतीजा है।

कोविड-19 से जुड़ा ही एक छोटा किस्सा साझा कर रहा हूं। इन्हीं दिनों एक दोस्त ने बताया कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया है। मैंने चिंतित होकर उसकी तबीयत जाननी चाही तब उसने कहा, “मैं एकदम स्वस्थ हूं। पंजाब से दिल्ली जाने के दौरान जांच करवाई तब पता चला कोविड पॉजिटिव हूं। इतने दिनों से तो मुझे भी पता नहीं था कि मुझे कोरोना भी है।” देश के गांव-कस्बों तक कोरोना फैल चुका है मगर हम उहापोह में फंसे हैं और फिर से लॉकडाउन के अलावा कोई विकल्प किसी विशेषज्ञ को नज़र नहीं आता। स्थिति सच में गंभीर है मग़र ऐसी नहीं कि निपटा न जा सके। शासन-प्रशासन को युद्ध स्तर पर जुटना होगा। वैक्सीन उत्पादन, ऑक्सीजन, आवश्यक दवाओं का निर्माण कर हेल्थ सेक्टर को मजबूती देनी होगी। सभी देशवासियों को कोविड एप्रोप्रिएट बिहेवियर का पालन कर ज़िम्मेदारी दिखानी होगी। तब निश्चित ही हम इस लड़ाई को आखिर तक अच्छी तरह जीत पाएंगे।

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यह लेख कृष्ण जांगिड़ ने लिखा है जो स्वतंत्र लेखक और समसामयिक राजनीतिक विश्लेषक हैं। इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से राजनीति विज्ञान में परास्नातक/PG डिग्री एवं विधि स्नातक की डिग्री हासिल की है। पिछले चार वर्षों से राजनीतिक विषयों एवं समसामयिक संवैधानिक मुद्दों पर निरंतर लेखन। दैनिक भास्कर, जनसत्ता जैसे समाचार समूहों में संपादकीय पृष्ठ पर विभिन्न आलेख प्रकाशित हुए हैं।

तस्वीर साभार : Indian Express

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