इंटरसेक्शनलजेंडर सोनी सोरी : एक निर्भीक और साहसी आदिवासी एक्टिविस्ट

सोनी सोरी : एक निर्भीक और साहसी आदिवासी एक्टिविस्ट

जेल में रहते हुए सोनी सोरी ने देखा कि कैसे पुलिस वाले निर्दोष आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर गिरफ्तार कर जेल में कैद किए हुए हैं। ऐसी युवतियों को देखा जिनके साथ बलात्कार किया गया और नक्सली होने के नाम पर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।

सोनी सोरी सुर्ख़ियों में तब आई जब साल 2011 में दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच ने उन्हें नक्सली समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार कर छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया।छत्तीसगढ़ पुलिस की कस्टडी में सोनी सोरी को बहुत ही अमानवीय तरीके से प्रताड़ित किया गया था जिसके विरोध में पूरे देश में छत्तीसगढ़ पुलिस के खिलाफ और सोनी सोरी के समर्थन में जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन किए गए। प्रशांत भूषण, अरुधंति राय, महिला आयोग और तमाम मानवाधिकार संगठनों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर इस बारे में कड़ी कार्रवाई की मांग रखी थीं। बता दें कि सोनी सोरी का जन्म 15 अप्रैल 1975 में छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के एक छोटे से गांव बड़े बेड़मा के आदिवासी परिवार में जोगी सोरी और मुंडाराम सोरी के यहां हुआ। सोनी सोरी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव में ही हुई। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक स्वयंसेवी संस्थान का रुख किया जहां पर बारहवीं तक की शिक्षा हासिल करने में वह कामयाब रहीं।

संघर्ष की शुरुआत

शिक्षा पूरी होने के बाद सोनी सोरी प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका के तौर पर वह ग्रामीण इलाके में पढ़ाने लगीं। ग्रामीण बच्चे अपने बीच एक आदिवासी शिक्षिका को पाकर बहुत खुश थे और इनसे काफ़ी ज़्यादा जुड़ाव महसूस करते थे। यह इलाका नक्सलियों के प्रभाव क्षेत्र में आता है जब साल 2007–08 में गर्मी की छुट्टियों में सीआरपीएफ के जवान स्कूलों में ठहरने लगे तो उस दौरान बस्तर में स्कूल को नक्सलियों द्वारा ध्वस्त किया जा रहा था। वह आसपास के सभी शिक्षकों को जनसभा में बुलाकर सीआरपीएफ बटालियन का विरोध करने को कहते।

नैशनल दस्तक को दिए गए इंटरव्यू में सोनी सोरी बताती हैं कि उनकी मुलाकात इसी सिलसिले में जब पहली बार नक्सलियों से उनकी जनसभा में हुई तब उन्होंने नक्सलियों से पूछा कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं क्योंकि इससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। यह सवाल सोचनीय था। नक्सलियों ने कुछ देर सोचकर सोनी से कहा कि स्कूल तोड़ने की वजह सीआरपीएफ बटालियन है। वे गांव की महिला और पुरुषों के साथ हिंसा करते हैं लेकिन हम आपका स्कूल नहीं तोड़ेंगे। इस शर्त पर कि आप इस स्कूल में सीआरपीएफ बटालियन को ठहरने नहीं देगी, यदि गलती की गुंजाइश होगी तब सोनी सोरी को जन अदालत में सजा दी जाएगी। सोनी ने लगभग डेढ़ सौ बच्चों के लिए यह शर्त मान ली थी और इनके स्कूल, हॉस्टल को नक्सलियों ने छोड़ दिया। सोनी कहती हैं कि वह नक्सल से अपने विचारों से जीत गई लेकिन सरकार से नहीं जीत पाईं। सरकार उन पर ही शक करने लगी।

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गिरफ्तारी और सोनी सोरी के साथ हुई हिंसक और अमानवीय यातना

सरकार ने सोनी सोरी पर आरोप लगाया कि वह नक्सलियों के साथ मिलकर स्कूल चला रही हैं। इसके लिए पुलिस ने सोनी के खिलाफ अलग-अलग मामलों में चार वारंट निकाले और उन्हें पूछताछ के नाम पर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे। वह कहती रहीं कि वह एक शिक्षक हैं, शिक्षक के तौर पर उनका काम बच्चों को पढ़ाने का रहता है। साल 2010 में 15 अगस्त के दिन जब नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में सड़क निर्माण में लगी एस्सार कंपनी की गाड़ियों को आग के हवाले किया तब कहा गया कि इस नक्सली वारदात में सोनी सोरी की भूमिका भी संदिग्ध है और इन वारदातों के कुछ समय बाद कांग्रेस के एक स्थानीय नेता पर हमला हुआ जिसमें उनके बेटे घायल हुए तब शक के आधार पर सोनी सोरी और उनके भतीजे लिंगाराम कोड़ोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। कुछ महीने बाद उनके पति को भी माओवादी समर्थक कहकर गिरफ्तार कर लिया गया था।

जेल में रहते हुए सोनी सोरी ने देखा कि कैसे पुलिस वाले निर्दोष आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर गिरफ्तार कर जेल में कैद किए हुए हैं। ऐसी युवतियों को देखा जिनके साथ बलात्कार किया गया और नक्सली होने के नाम पर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।

जेल में सोनी को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया गया। जेल में सोनी सोरी उन महिलाओं से भी मिलीं जिनके साथ पुलिस द्वारा हिंसा और अत्याचार किया गया था। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में सोनी ने बताया कि उन्हें जेल में नंगा करके तत्कालीन एसपी अंकित गर्ग के कहने पर बिजली के झटके दिए गए। बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने यह भी बताया है कि उन्हें अक्सर अपने सेल में नंगा बिठाया जाता था। अगले दिन जब होश आया तब अगले दिन सुबह सुनवाई के लिए कोर्ट ले जाया जा रहा था तब हालात बिगड़ने की वजह से सोनी सोरी को रायपुर रेफर किया गया जहां हालात बेहद गंभीर होने पर उन्हें मेडिकल कॉलेज कोलकाता में इलाज के लिए भेज दिया गया। डॉक्टरों ने उनकी योनि से पत्थर के टुकड़े निकाले और यौन प्रताड़ना की पुष्टि भी कर दी।

सोनी सोरी के साथ हुई इस हिंसा की बात तब सामने आई जब उन्होंने एक मानवाधिकार कार्यकर्ता हिंमाशु कुमार को पत्र लिखकर अपनी आपबीती सुनाई। इस पत्र ने देश का ध्यान जेल में उनके साथ हुए अत्याचारों की ओर खींचा। सोनी ने इसी दौरान जेल में है भूख हड़ताल किया और पूरे देश में लोग सोनी सोरी के साथ आने लगे और पुलिसिया जुल्म के खिलाफ बोलने लगे। जेल में रहते हुए सोनी सोरी ने देखा कि कैसे पुलिस वाले निर्दोष आदिवासियों को नक्सलियों के नाम पर गिरफ्तार कर जेल में कैद किए हुए हैं। ऐसी युवतियों को देखा जिनके साथ बलात्कार किया गया और नक्सली होने के नाम पर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया।

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साल 2014 में आखिरकार सोनी सोरी को रिहा कर दिया गया। सोनी सोरी के ऊपर लगे आठ मामलों में से छह मामलों में इन्हें निर्दोष करार दिया गया था। जेल से बाहर आने के बाद सोनी ने अपने साथ हुए अत्याचार को आदिवासी महिलाओं के संघर्ष में बदलने का निश्चय किया वह दोगुनी हिम्मत के साथ गांव-गांव जाकर आदिवासी महिलाओं से बात करती। सोनी खुद का उदाहरण देते हुए उनका हिम्मत और हौसला बढ़ातीं और उन पर हुई हिंसा की शिकायत दर्ज़ करने को कहती। वह मुखर होकर बस्तर की इन खबरों को मुख्यधारा में लाने में कामयाब रही। जेल से आने के बाद भी उनके लिए जीवन आसान नहीं रहा। राह चलते लोग उन्हें ताने देते, उनके साथ जेल में हुई यौन हिंसा का बार-बार ज़िक्र करके उन्हें शर्मिंदा करते। ऐसे ही एक मामले में जब सोनी सोरी 11 फरवरी, 2016 के दिन जब जगदलपुर से अपने घर लौट रहीं थी तब तीन अज्ञात लोगों ने उन पर केमिकल अटैक कर दिया जिससे उनका चेहरा पूरी तरह झुलस गया। इस हमले में उनकी आंखों की रोशनी तक जा सकती थी।

सोनी सोरी संघर्षों की जीती-जागती मिसाल हैं। उन पर इतने अत्याचार हुए, उन्हें तोड़ने के लिए पितृसत्तात्मक हथकंडे अपनाए गए लेकिन इन्हीं अत्याचारों को सहते हुए उनमें हिम्मत आई। वह निडरता से अपनी बात कहती हैं। रिहा होने के बाद उन्हें विभिन्न सार्वजनिक मंचों पर अपने साथ हुई हिंसा को लोगों के साथ साझा करने का मौका मिला। उनके साहस को देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मानों से नवाज़ा गया और साल 2018 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व के पांच लोगों के साथ सोनी-सोरी को “फ्रंट लाइन डिफेंडर्स अवार्ड फॉर ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स ऐट रिस्क” अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। सोनी सोरी का संघर्ष बस्तर में आज भी जारी है। बस्तर के गांवों से सैकड़ों किलोमीटर दूर से सोनी के पास जब हिंसा और मानवाधिकार हनन की खबरें पहुंचती हैं तब वह तत्काल अपने घर से दिन हो या रात निकल पड़ती हैं। उन गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों को समर्थन देती हैं और इन्हीं की अगुआई में सरकार की गलत नीतियों और दमन को लेकर कई बार विरोध-प्रदर्शन भी किया गया है। सोनी सोरी का मानना है कि वह आज भी इस लोकतांत्रिक देश में संवैधानिक तरीके से लड़ रही हैं। सरकार पूंजीपतियों के साथ मिलकर आदिवासियों पर जुल्म करती है। जल,जंगल,जमीन उनके हैं और संविधान ने भी इन जंगलों का अधिकार आदिवासियों को ही दिया है।

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