संस्कृतिसिनेमा एनिमेशन फिल्मों में मज़बूत महिला किरदारों का उदय

एनिमेशन फिल्मों में मज़बूत महिला किरदारों का उदय

इसमें कोई शक नहीं कि एनिमेशन फिल्मों में भी महिला किरदारों को वही पितृसत्ता के घिसे-पिटे मापदंड़ों पर गढ़ा जाता था।

पिछले कुछ समय में नारीवाद के उदय के साथ ही स्त्री केंद्रित सिनेमा ने ज़ोर पकड़ा है और यह सब करके सिनेमा पितृसत्तात्मक व्यवस्था को चुनौती दे रहा है। औरतों और उनके मुद्दों को धीरे-धीरे वह स्पेस मिल रहा है जिसकी वे हकदार हैं। इस सबमें एनिमेशन फिल्मों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसमें कोई शक नहीं कि एनिमेशन फिल्मों में भी महिला किरदारों को वही पितृसत्ता के घिसे-पिटे मापदंड़ों पर गढ़ा जाता था। महिला की खूबसूरती का चित्रण उसके गोरे रंग, बड़ी-बड़ी आंखों, छोटी नाक, पतली कमर और गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों से किया जाता। महिला को सुंदरता का और पुरुष को शक्ति का प्रतीक दर्शाया जाता। अगर किरदार एक राजकुमारी है तो उसे एक रफल और पेपलम वाली तंग पोशाक पहननी पड़ती जिसमें वह आकर्षक दिखे और बस इंतज़ार करे कि बड़ी होने पर किसी राजकुमार से उसकी शादी करा दी जाए। वहीं, अगर किरदार एक सामान्य लड़की है तो उसे घर के कामों को करते दिखाया जाता।

साल 1937 के आस- पास बनी स्नो व्हाइट एंड सेवन ड्वार्फ्स और साल 1959 की स्लीपिंग ब्यूटी जैसी फिल्मों में ऐसी ही घिसी- पिटी कहानियां हैं जिसमें किसी सुदूर देश में एक सुंदर, बेचारी राजकुमारी है जो अपने राजकुमार का इंतज़ार करती है कि वह आए और उसे दुष्ट रानी से छुड़ाकर ले जाए। कुछ ऐसी ही कहानी फेमस कार्टून फीमेल कैरेक्टर सिन्ड्रेला की है जिसमें उसकी सौतेली मां उस पर अत्याचार करती है और उससे घर के कामों करवाती है। एक प्रिंस चार्मिंग उसकी ज़िंदगी में आता है और सिन्ड्रेला की सारी परेशानियां खत्म हो जाती हैं। जब बच्चे फिल्मों में ये सब देखते हैं तो उन पर इस सबका काफी असर पड़ता है। उनके दिल और दिमाग में यह बात घर कर जाती है कि एक महिला के जीवन में पुरुष के आने से सब ठीक हो जाता है या फिर एक लड़की का काम सिर्फ घर संभालना और अपनी सुंदरता बरकरार रखना ही होता है। ठीक ही कहा गया है कि हम जिस तरह की फिल्में देखते हैं, गाने सुनते हैं और जो किताबें हम पढ़ते हैं, हम पर भी उनका सीधा प्रभाव पड़ता है।

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लेकिन आज ब्रेव, मोआना, फाइंडिंग डोरी, ज़ुटोपिया, इनक्रेडिबल्स और मुलान जैसी महिला-केंद्रित फिल्मों का रिलीज होना अपने आप में एक बड़ा बदलाव है जिसकी तरफ डिज़नी और पिक्सर ने एक कदम बढ़ाया है। इन एनिमेशन फिल्मों में लैंगिक मानदंडों को चुनौती दी गई और मज़बूत महिला किरदारों को उभारा गया है। साल 1989 में आई द लिटिल मरमेड ऐसी पहली एनिमेशन फिल्म थी जिसमें महिला किरदार मरमेड एरियल अपने पिता के बनाए नियमों के खिलाफ जाकर अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ती है। हालांकि, ऐसी फिल्मों में महिला प्रतिनिधित्व को लेकर कई कमियां भी हैं। 90 के दशक की शुरुआत से एनिमेटेड फिल्मों की कहानियों में भी बदलाव आया। इन फिल्मों की किरदार आजाद ख़्याल हैं और घर के कामों से इतर कुछ करने की ललक रखती हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि एनिमेशन फिल्मों में भी महिला किरदारों को वही पितृसत्ता के घिसे-पिटे मापदंड़ों पर गढ़ा जाता था। महिला की खूबसूरती का चित्रण उसके गोरे रंग, बड़ी-बड़ी आंखों, छोटी नाक, पतली कमर और गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों से किया जाता।

साल 1991 में आई ब्यूटी एंड द बीस्ट मूवी की किरदार बैले एक आधुनिक महिला का प्रतिनिधित्व करती नज़र आती है। फिल्म के शुरुआती सीन में बैले अपनी बोरिंग और रिपीट होने वाली दिनचर्या को लेकर एक गाना गाती दिखाई पड़ती है जो कुछ इस प्रकार है, ‘एवरी मॉर्निंग जस्ट द सेम, सिन्स द मॉर्निंग दैट वी केम, टू दिस पूअर प्रॉविन्सियल टाउन।’ बैले को किताबें पढ़ने का शौक है जिनकी कहानियों की तरह वह भी अपनी जिंदगी में कुछ अलग करना चाहती है। वहीं 1998 में आई फिल्म ‘मुलान’ में मुलान एक मजबूत महिला किरदार है जो अपने पिता को बचाने के लिए लड़के के भेष में सेना में शामिल हो जाती है और प्रशिक्षण के दौरान सेना में सभी पुरुषों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती है। मुलान कोई राजकुमारी नहीं है, बल्कि वह एक सामान्य परिवार की लड़की है। फिल्म में वह पुरुष प्रधान चीनी समाज के महिला होने के मानदंड़ों को खारिज करती है जो कि उससे शालीन, शांत, सुंदर, विनम्र और नाजुक होने की अपेक्षा रखते हैं। वहीं, अलादीन में राजकुमारी जैसमिन एक मजबूत, साहसी और बुद्धिमान महिला किरदार है जो हर उस बाधा को पार करती है जो उसे फिल्म की नायिका बनने से रोकती है। वह अपने राज्य की रानी खुद बनना चाहती है क्योंकि वह नहीं चाहती कि बाहर से आया कोई दूसरा व्यक्ति उसके राज्य पर शासन करे जो उसके राज्य के लोगों को जानता भी न हो। 

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इसके बाद 2000 के दशक में रिलीज हुई फिल्मों के किरदार भी पितृसत्तात्मक अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरकर अपने सपनों को पूरा करती हैं। साल 2016 में रिलीज हुई फिल्म मोआना में एक बहादुर राजकुमारी अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ जाकर अपने राज्य पर मंडरा रहे खतरे को दूर करने के लिए समुद्र को पार कर एक पवित्र पत्थर लेकर आती है। वहीं, जूटोपिया की जूडी हॉप्स जिसके पिता उसे दूसरों की तरह एक किसान बनने का सुझाव देते हैं लेकिन वह पुरुषों के प्रभुत्व वाली पुलिस अकादमी से ग्रेजुएट होने वाली पहली फीमेल ऑफिसर बनती है। ब्रेव की मेरिडा शादी नहीं करना चाहती है और यह साबित कर देती है वह उन सभी पुरुषों से ज्यादा काबिल है जो उससे शादी करना चाहते हैं।

आज ब्रेव, मोआना, फाइंडिंग डोरी, ज़ुटोपिया, इनक्रेडिबल्स और मुलान जैसी महिला-केंद्रित फिल्मों का रिलीज होना अपने आप में एक बड़ा बदलाव है जिसकी तरफ डिज़नी और पिक्सर ने एक कदम बढ़ाया है।

इनक्रेडिबल्स की इलास्टिक गर्ल एक सुपरहीरो है। फिल्म में एक जगह वह कहती है, ”कम ऑन लड़कियों, दुनिया को बचाने का काम क्या हम केवल पुरुषों पर छोड़ दें? मैं ऐसा नहीं सोचती।” वहीं, रैटाटुई की कॉलेट रेस्त्रां में अकेली महिला शेफ है। वह अपने काम में कुशल है और अकेली महिला शेफ होने के नाते नौकरी बचाने के लिए उससे अपेक्षा की जाती है कि वह काम में गलतियां न करे। उसका मानना कि कोई भी खाना बना सकता है, उसके सहकर्मी लिंग्विनी के लिए प्रेरणा का काम करता है। वहीं हाल ही में रिलीज हुई राया एंड द लास्ट ड्रैगन एक राजकुमारी की रोमांचक यात्रा है जिसमें वह अपने राज्य के लोगों को बचाने के लिए लड़ती है। एक योद्धा के रूप में वह इस बात का खंडन करती है कि केवल एक बेटा ही उत्तराधिकारी हो सकता है।

महिला किरदारों में बदलाव के साथ ही एनिमेशन फिल्मों में सच्चे प्यार का मतलब भी कई मायनों में बदला गया है। एक तो मेरिडा, जैस्मीन और पोकाहोंटस जैसी किरदार उन पुरुषों को अस्वीकार कर देती हैं जो उनके लिए चुने जाते हैं और अपनी पसंद खुद तय करती हैं। दूसरे इन फिल्मों में राजकुमार-राजकुमारी के रोमांटिक प्रेम के परे बहनों, मां- बेटी और दोस्ती जैसे रिश्तों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। महिलाओं के ऐसे मजबूत और प्रेरणादायी रोल मॉ़डल होना हमारे समाज के लिए बहुत ही आवश्यक हैं। किरदारों का बेहतर चयन लड़कियों को मजबूत महिला बनने में और समाज की पितृसत्तात्मक कहानियों पर उनकी निर्भरता को खत्म करने में मदद करेगा।

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