संस्कृतिसिनेमा सेवियर कॉम्पलेक्स से ग्रसित बॉलीवुड की पांच फिल्में

सेवियर कॉम्पलेक्स से ग्रसित बॉलीवुड की पांच फिल्में

सेवियर कॉम्प्लेक्स’ का मतलब होता है खुद को रक्षक समझना। सेवियर कॉम्प्लेक्स तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी की मदद करने के बाद खुद के बारे में ही अच्छा महसूस करता है।

अक्सर हम बॉलीवुड की फिल्मों में हीरो को अपनी हीरोइन को गुंडों से बचाते हुए या फिर एक औरत की सुरक्षा और उसकी कामयाबी पर भाषण देते हुए देखते हैं। घर, समाज और हिंदी फिल्मों में एक लड़की की सुरक्षा के लिए एक लड़के का होना या फिर हाशिये पर गए समुदायों को हमेशा पीड़ित की तरह देखना एक आम बात है। हमारा समाज और हिंदी फिल्म इंड्रस्टी पूरी तरह से सेवियर कॉम्प्लेक्स से ग्रसित है।

क्या होता है सेवियर कॉम्प्लेक्स ?

सेवियर कॉम्प्लेक्स’ का मतलब होता है खुद को रक्षक समझना। सेवियर कॉम्प्लेक्स तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी की मदद करने के बाद खुद के बारे में ही अच्छा महसूस करता है। वह व्यक्ति मानता है कि अपने आस-पास के लोगों की मदद करना ही उसका काम या उद्देश्य है। जैसे भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों को लगता है कि महिलाओं की रक्षा करना उनका काम है। अगर हम हिंदी फिल्म इंड्रस्टी की बात करें तो हमारी फिल्मों के हीरो का एकमात्र कर्त्तव्य होता है, हीरोइन और अपनी बहन की रक्षा करना। आइए जानते हैं सेवियर कॉम्प्लेक्स से ग्रसित बॉलीवुड की 5 फिल्में के बारे में।

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मिशन मंगल

साल 2013 में भारतीय महिलाओं ने मंगल तक की दूरी तो तय कर ली लेकिन अभी भी बॉलीवुड की महिला केंद्रित फिल्मों में एक अभिनेता ही उस फिल्म का कर्ता-धर्ता होता है। मंगलयान की सफलता के पीछे कई महिला वैज्ञानिकों की टीम थी, लेकिन जब बॉलीवुड ने इस पर फिल्म बनाई तो उस पूरी फिल्म का मुख्य किरदार एक सिस-जेंडर मर्द था जिसका रोल हमेशा की तरह बॉलीवुड के सुपर सेवियर एक्टर अक्षय कुमार ने निभाया था जबकि इस मिशन को मॉम नाम तक दिया गया था।

फिल्म मिशन मंगल का पोस्टर

अब आप मंगलयान फिल्म के इस पोस्टर को ही देख लीजिए, इस फिल्म के महिला केंद्रित होने पर भी फिल्म की सारी महिला एक्टर को पोस्टर के एक तरफ रखा है और वहीं पोस्टर का एक पूरा हिस्सा अभिनेता अक्षय कुमार को समर्पित किया गया है।

पिंक

फिल्म पिंक में तीन लड़कियों के चरित्र पर उंगली उठाई जाती हैं क्योंकि वे अकेली रहती थीं, नौकरी करती थीं और लड़कों से दोस्ती रखती थीं। उनकी आवाज़ तब तक सुनी नहीं जाती जब तक कि उनके वकील का किरदार निभा रहे अमिताभ बच्चन उनके रक्षक बनकर उनका केस नहीं लड़ते। यह सब यहीं साबित करता है कि आज भी समाज में औरतों की तभी सुनी जाएगी, जब तक कि कोई पुरुष महिला के अधिकारों या उसके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ वकालत नहीं करता है।

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चक दे इंडिया और दंगल

अब चक दे इंडिया का ही उदाहरण देख लीजिए। वैसे तो ये पूरी फिल्म महिला हॉकी टीम के संघर्षों से लेकर उनकी जीत पर आधारित होनी चाहिए पर ये फिल्म भी एक पुरुष कोच के इंडिया को जीताने के सपने के ही इर्द-गिर्द घूमती-रहती है। वहीं, दंगल में आमिर खान का सख्त पिता का रोल जिसका सपना भी सिर्फ देश के लिए गोल्ड लाना होता है और जिसके लिए वह सब छोड़ अपनी बेटियों को कुश्ती सिखाने लगते हैं और फिर एक बार बेटियों की जीत का सारा श्रेय उनके ‘बापू’ को चला जाता है।

सवर्ण सेवियर कॉम्प्लेक्स को दिखाती आर्टिकल 15 

आर्टिकल 15 फिल्म वैसे तो संविधान के आर्टिकल 15 के मौलिक अधिकार पर बनाई गई है पर इस फिल्म में आयुष्मान द्वारा निभाए गए किरदार को एक सवर्ण रक्षक के तौर पर दिखाया गया है। वह रक्षक जो अपने ही शोषक समुदाय के लोगों द्वारा शोषित समुदाय की रक्षा करता है। इस फिल्म में शोषित समुदाय को हमेशा की तरह एक विक्टिम के तौर पर दिखाया गया है और शोषण करने वाले समुदाय को ही रक्षक बना दिया गया है। भले ही फिल्म महिला या शोषित वर्ग पर केंद्रित हो पर उस फिल्म में भी सारा फोकस सवर्ण और सिस-जेंडर मर्द पर ही होता है। सवर्ण और सिस-जेंडर मर्द के बिना बॉलीवुड की हर फिल्म अधूरी ही रहती है।

फिल्म आर्टिकल 15 का एक दृश्य

बॉलीवुड फिल्मों के सेवियर कॉम्प्लेक्स को कम करने के लिए हमें थप्पड़, छपाक, इंग्लिश विंग्लिश, लिपस्टिक अंडर माय बुर्का, नो वन किल्ड जेसिका और कर्णन जैसी फिल्मों की जरूरत है जहां औरतें और शोषित वर्ग अपनी जिंदगी के फैसला खुद ले सकें। 

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