“ज़रूरत पढ़ने पर यौन संबंध बनाने के लिए उपलब्ध रहे”, “अगर काम चाहती हो तो समझौता करना होगा” ये बातें जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट से सामने आई है। मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री में एक महिला अभिनेत्री को अगर काम करना है तो ऐसा करना होगा। भारत की तथाकथित सबसे प्रगतिशील फ़िल्म इंडस्ट्री की यह वास्तविकता है। दूसरी यह भी है कि भारत की फ़िल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े दिग्गज इस पर मौन है। हालांकि यह रवैया नया नहीं है लेकिन इस पर हर बार मजबूती से सवाल उठाना ज़रूरी है। हम उस देश में रहते हैं जहां फ़िल्मी अभिनेताओं को भगवान की तरह माना जाता है। लोग उनकी एक झलक पाने के लिए घंटों राह देखते हैं। उनके द्वारा कही एक बात को पहल बनाकर साबित करने पर लग जाते हैं। लेकिन असल और गंभीर मुद्दों की बात जब आती है तो इनकी चुप्पी सबसे बड़ा सवाल पैदा करती है। बीते महीने मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण के मामलों और कार्यस्थल पर महिला कलाकारों के उत्पीड़न पर जस्टिस हेमा कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई।
रिपोर्ट में महिला कलाकारों ने जाने-माने अभिनेताओं-निर्देशकों के बारे में कहा कि वे उनका यौन शोषण कर रहे थे। बता दें कि इस रिपोर्ट को जारी करने से पहले उन हिस्सों को हटा दिया गया था जिनमें उत्पीड़न करने वालों के नाम थे। हेमा कमेटी कि रिपोर्ट मलयालम सिनेमा में महिलाओं की खराब कामकाजी परिस्थितियों और बड़े पैमाने पर यौन उत्पीड़न का सामना करने की जानकारी देती है। भारत के मनोरंजन उद्योग और उससे जुड़े लोगों की उस वास्तविकता को भी सामने लाती है जो रील की चमक में बिल्कुल अलग है। हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद फ़िल्म उद्योग में महिलाओं की स्थिति में सुधार और समर्थन को लेकर बहुत बातें हो रही हैं लेकिन ज्यादातर महिलाओं के ही समर्थन और बयान सामने आए हैं। वहीं भारत के बड़े और प्रिय सितारों ख़ासतौर पर पुरुषों ने इस गंभीर मुद्दे मौन है।
हेमा कमेटी रिपोर्ट में गंभीर आरोप आए सामने
19 अगस्त को रिपोर्ट के जारी होने के बाद से कई महिलाओं ने सार्वजनिक रूप से अपने दर्दनाक अनुभवों को सबके सामने रखा है। एक दर्जन से अधिक पुलिस शिकायतें पुरुष अभिनेताओं, निर्माताओं, निर्देशकों और अन्य प्रभावशाली लोगों के खिलाफ दर्ज की गई हैं। राज्य सरकार ने आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया है। केरल हाई कोर्ट ने एसआईटी को रिपोर्ट में दर्ज मामलों की जांच करने का निर्देश दिया है। इसके बाद लगता है कि सर्वाइवर को न्याय मिलेगा लेकिन सवाल यह है कि मनोरंजन इंडस्ट्री का ढांचा कब बदलेगा। बड़े कलाकारों की चुप्पी बने रहना दिखाता है कि फ़िल्म इंडस्ट्री की सड़ांध बहुत गहरी है।
जिन अभिनेताओं के लिए लोग अपनी जान तक दांव पर लगा देते हैं। उनको भगवान का दर्जा देते हैं। करोड़ों की फैन फॉलोइंग वाले ये लोग वास्तव में कहां है? बात अगर दक्षिण के सिनेमा की ही बात करे तो सुपरस्टार जैसे रजनीकांत, कमल हासन, मोहनलाल, चिरंजीवी, महेश बाबू, यश और कई अन्यों की इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट पर चुप्पी हैं। इनका सामने आकर न बोलना कार्यस्थल पर अपनी सहयोगी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर इनके भीतर कोई गंभीरता नहीं है इसको जाहिर करता है। हर स्तर पर मुखर रहने वाले ये कलाकार कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विषय पर एकदम चुप है।
हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बाद एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स के अध्यक्ष मोहनलाल ने इस्तीफा दिया। एएमएमए के सभी पदाधिकारियों ने अपने पद से इस्तीफा दिया। एसोसिएशन की कार्यकारी समिति को भी भंग कर दिया गया लेकिन कोई बयान सामने नहीं आया। इस फैसले की इंडस्ट्री की महिलाओं द्वारा आलोचना की गई। इंडस्ट्री के इस मामले पर जब एसोसिएशन को जवाबदेही देनी थी वहां भी वह पीछे हटते नज़र आए। इस्तीफे के बाद मीडिया के सवालों के जवाब देते हुए मोहनलाल यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर कुछ भी स्पष्ट कहने से बचते नज़र आए। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के अनुसार मोहनलाल एएमएमए के बचाव में बोलते हुए कहा कि हमारी मलायलम इंडस्ट्री अन्य फिल्म इंडस्ट्री से बेहतर है। रिपोर्ट पर मीडिया के सवालों पर जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि मामला अदालत में है और वे जांच पर निर्भर करेंगे। साथ ही उन्होंने मीडिया के सवालों पर यह भी कहा कि वे किसी पॉवर ग्रुप का हिस्सा नहीं हैं। इस तरह से वे महिलाओं के साथ किसी तरह की एकजुटता दिखाने से बचें।
मलयालम सिनेमा का एक ओर बड़ा नाम ममूटी की चुप्पी पर भी सवाल उठता है। दक्षिण के सुपरस्टार रजनीकांत से जब हेमा कमेटी की रिपोर्ट के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि उन्हें इस रिपोर्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। रजनीकांत जैसे बड़े अभिनेता का यह बयान स्थिति क्या है यह साफ करता है। कमल हासन, विजय, सूर्या, चिरंजीवी, यश, अल्लू अर्जुन, महेश बाबू, शिवराजकुमार और कई अन्य जैसे बड़े नामों ने भी इस मामले में एक शब्द नहीं कहा है। जब इनकी असल में अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की बात आती है तो ये कैमरे पर आने से बचते हैं।
इसके अलावा कुछ अन्य कलाकारों ने अपनी बात सामने रखी है। हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर के अनुसार नानी, पृथ्वीराज सुकुमारन और विक्रम ने मौजूदा हालात पर अपनी राय दी है। 27 अगस्त को, नानी ने कहा कि रिपोर्ट के निष्कर्षों ने उन्हें “बेहद विचलित” कर दिया है। वहीं विक्रम ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसा माहौल तैयार करना ज़रूरी है जिसमें कोई भी महिला रात के तीन बजे भी सड़कों पर बिना अपनी जान का डर महसूस किए चल सके। वहीं पृथ्वीराज ने सीधे स्वीकार किया कि वास्तव में, मलयालम सिनेमा में संगठित शक्ति की एक व्यवस्था मौजूद है। जिन्होंने जो कहा वह सामने है लेकिन फ़िल्म उद्योग का बड़ा हिस्सा चुप है। जो भी कारण हो, लंबे समय तक बनी रहने वाली यह चुप्पी आखिर में सहमति की सीमा पर आ जाती है।
बॉलीवुड के सुपरस्टार्स गंभीर विषयों पर चुप्पी रखने में माहिर
फिल्म उद्योग की सबसे बड़ी इकाई बॉलीवुड की स्थिति के बारे में बात करनी भी यहां ज़रूरी है। बॉलीवुड के बड़े दिग्गजों का भी मनोरंजन जगत में यौन उत्पीड़न के मामलों पर कोई बयान नहीं आया है। कुछ अभिनेत्रियों ने अपनी सॉलिडेरिटी दर्ज की है। उन्होंने यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर हेमा कमेटी की रिपोर्ट पर बात कही है लेकिन महज गिनती के नाम इसमें शामिल हैं। बॉलीवुड में भी महिला कलाकारों के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के बड़े मामले सामने आने पर यही स्थिति हर बार दिखती है। महिलाओं ने बार-बार कास्टिंग काउच यानि रोल पाने के बदले यौन संबंध बनाने के लिए पुरुषों की मांग और यौन उत्पीड़न के बारे में बात की है। बॉलीवुड में मीटू अभियान के तहत अनेक अभिनेत्रियों ने इंडस्ट्री में यौन उत्पीड़न की बात को सामने रखा लेकिन इंडस्ट्री के बड़े सुपर स्टार्स और सदी के महानायकों की इस पर भी चुप्पी बनी रही। मीटू के बाद उन तमाम महिला कलाकारों को अपने करियर को काम न मिलने की वजह से छोड़ना पड़ा। वहीं पुरुषों का हर वो नाम जिस पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे वह पर्दे पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हुए दिखें। नये प्रोजेक्ट में काम करते नज़र आए। अन्य अभिनेता और अभिनेत्री भी आसानी से उनके साथ काम करते नज़र आए।
जिन सुपरस्टार्स को जनता पूजती हैं, वे अपने निजी संबंधों और व्यापार की अधिक परवाह करते हैं। जब अपने सह-कलाकारों के लिए आवाज़ उठाने की बात आती है तो उनके चेहरे पीले पड़ते नज़र आते हैं। केवल कुछ महिलाएं ही कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। हमारे सुपरस्टार्स ने इस पर चुप्पी साध रखी है। महत्वपूर्ण मुद्दे पर इस तरह की चुप्पी एक गलत उदाहरण पेश करती है। यह सभी को यह सिखाता है कि चुप रहना और गलत को बढ़ावा देना ठीक है। बजाय इसके कि अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज उठाएं और आप एक साथी के रूप में खड़े हों।
सिनेमा के क्षेत्र में तमाम यौन उत्पीड़न की ख़बरों, अभियान और रिपोर्ट के बाद अब इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। लैंगिक भेदभाव आधारित संरचनाओं को तोड़ना होगा। पर्दे पर दिखाने वाली प्रगतिशीलता कहीं ज्यादा व्यवहार में शामिल करना होगा। महिलाओं के लिए एक संवेदनशील और हर स्तर पर समानता से आगे बढ़ने वाले माहौल को बनाना होगा। चुप रहने का माहौल एक ऐसी संस्कृति को बढ़ावा देता है जहां शोषण को चुनौती नहीं दी जाती है। इस तरह का व्यवहार पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री और समाज के लिए एक खतरनाक मिसाल कायम करता है।