इंटरसेक्शनलहिंसा मुंबई रेप केस पर समाज की चुप्पी कहीं महिला हिंसा को लेकर हमारे अभ्यस्त होने का संकेत तो नहीं?

मुंबई रेप केस पर समाज की चुप्पी कहीं महिला हिंसा को लेकर हमारे अभ्यस्त होने का संकेत तो नहीं?

महिला हिंसा के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्ज़ करवाना बेहद ज़रूरी है क्योंकि हमारी असहमति ही समाज में जनचेतना लाने और ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए मजबूर करती है।

साल 2012 में दिल्ली गैंगरेप केस ने दिल्ली की दौड़ती-भागती जिंदगियों के बीच उस वक्त न केवल दिल्ली शहर को बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था। इस घटना से आक्रोशित जनता ने सड़कों पर उतरकर न्याय की मांग की थी, जिसके बाद भारतीय क़ानून में कई बुनियादी बदलाव भी किए गए। समय बदलता रहा पर ऐसा नहीं कि इस घटना के बाद देश में बलात्कार की घटनाएं बंद हो गई। गांव हो या शहर आए दिन अख़बारों में हम महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाओं के बारे में पढ़ते हैं लेकिन कई बार जब कुछ घटनाएं वीभत्स रूप लेने लगे तो ये किसी भी समाज के लिए अलार्मिंग स्थिति हो जाती है, जिसके ख़िलाफ़ आम लोगों का एकजुट होकर आवाज़ उठाना ज़रूरी हो जाता है।

बीते 9 सितंबर को देश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुंबई से भी ऐसी ही एक घटना सामने आई, जिसमें 34 वर्षीय एक महिला का गैंगरेप किया गया। मुंबई के अंधेरी में स्थित साकीनाका में मोहन चौहान नाम के शख़्स ने आधी रात को महिला का बलात्कार कर उसके गुप्तांग में लोहे की रॉड डाल दी थी। इस हिंसा की वजह से महिला के शरीर से अधिक खून बहने लगा। इलाज के दौरान बीते 11 सितंबर को सर्वाइवर की मौत हो गई। मुंबई पुलिस के मुताबिक आरोपी ने अपना अपराध कबूल लिया है और पुलिस ने अपराध में इस्तेमाल किए गए हथियार को भी जब्त कर लिया है।

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टीवी9 भारतवर्ष में प्रकाशित खबर के अनुसार मुंबई के पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले ने इस घटना पर एक प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाई। उन्होंने बताया, “10 तारीख (शुक्रवार) की रात 3 बजकर 20 मिनट पर एक इमारत के वॉचमैन ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर सूचना दी कि एक शख्स अंधेरी के साकीनाका के पास खैरानी रोड पर एक महिला को रॉड से मार रहा है। खबर मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और खून से लथपथ और बेहोशी की हालत में महिला को पाया। महिला को लेकर पुलिस ने राजावाडी अस्पताल में भर्ती करवाया।” वहीं, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इस जघन्य घटना को अत्यंत ही निंदनीय बताया। उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए तुरंत गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटील से बात की और केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलवाने का आदेश दिया। इस मुद्दे पर गृहमंत्री दिलीप वलसे पाटील ने ने कहा कि वह पुलिस से पल-पल की खबर ले रहे हैं और केस में कड़ी से कड़ी कार्रवाई का आदेश दे चुके हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने भी इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस से संपर्क कर चर्चा की है।

“क्या हम ऐसी घटनाओं के लिए अभ्यस्त हो रहे हैं? क्या वाक़ई में अब हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता?”

मुंबई को महिलाओं के लिए देश के सुरक्षित राज्यों में एक माना जाता है। कहते हैं कि यह शहर कभी सोता नहीं है। अगर ऐसा है तो जागते हुए शहर में किसी महिला के साथ ऐसा अपराध हमारे समाज के लिए एक चेतावनी की तरह होना चाहिए। दिल्ली में हुए गैंगरेप पर आक्रोशित समाजसेवी, डॉक्टर और आमजनों ने यह कहा था कि बलात्कार का ये सबसे वीभत्स रूप है, जो किसी जानवर के व्यवहार के भी बुरा है। दिल्ली गैंगरेप केस की इस वीभत्सता ने पूरे देश को एकजुट होकर सड़कों पर आने के लिए मजबूर कर दिया था और इस एकजुटता का प्रभाव भी क़ानूनी बदलाव और आरोपियों के सजा के रूप में देखने को मिला। इस विरोध-प्रदर्शन के बाद भी बलात्कार और यौन-हिंसा की घटनाओं पर कोई ख़ास कमी नहीं आई। बीते साल ही उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक युवती की बलात्कार के बाद हत्या और कथित रूप से जबरन अंतिम संस्कार किए जाने के मामले में आज भी परिजन न्याय की आस देख रहे हैं।

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महिला हिंसा के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्ज़ करवाना बेहद ज़रूरी है क्योंकि हमारी असहमति ही समाज में जनचेतना लाने और ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए मजबूर करती है।

दिल्ली के गैंगरेप केस के क़रीब 11 साल बाद मुंबई में हुए इस गैंगरेप पर न तो कहीं न्याय की मांग के लिए आवाज़ उठ रही है और न कोई सड़कों पर है। मीडिया में भी इस खबर को लेकर कोई ख़ास कवरेज नहीं जा रही। महिलाओं के साथ बढ़ती यौनिक हिंसाओं के वीभत्स रूप पर अपने सभ्य समाज की चुप्पी अपने आप में एक ख़तरे की घंटी है। जिस भारतीय समाज के लोग किसी एक केस पर एकजुट होकर सड़कों पर अपना ग़ुस्सा प्रकट किया हो, 11 साल बाद उसी तरह की घटना पर लोगों की चुप्पी कहे-अनकहे इस बात की ओर संकेत करने लगी है कि क्या हम ऐसी घटनाओं के लिए अभ्यस्त हो रहे हैं? क्या वाक़ई में अब हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता? महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। कोरोना महामारी के दौर में जब एक तरफ़ घरों में घरेलू हिंसा के मामले दर्ज़ किए गए। वहीं महामारी का असर कम होते ही महिला हिंसा का भयानक चेहरा सड़कों पर देखने को मिल रहा है।

महिला सुरक्षा हमेशा से हमारे समाज के लिए एक बड़ा सवाल रहा है। इसका दावा नहीं किया जा सकता कि सिर्फ सड़कों पर उतरने से हालात बदल जाएंगे लेकिन इतना ज़रूर है कि अपने ग़ुस्से का प्रदर्शन और महिला हिंसा के प्रति अपनी अस्वीकृति दर्ज़ करवाना बेहद ज़रूरी है क्योंकि हमारी असहमति ही समाज में जनचेतना लाने और ग़लत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए मजबूर करती है। अब हमें महिला-हिंसा की इन घटनाओं की आदत नहीं बल्कि इसके ख़िलाफ़ बोलने की ज़रूरत है, वरना हमारी चुप्पी तेज आवाज़ में समाज को हमारे अभ्यस्त होने का प्रमाण देती रहेगी।     

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तस्वीर साभार : Faze magazine

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