समाजराजनीति क्या सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित हो गया है उत्तर प्रदेश ?

क्या सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित हो गया है उत्तर प्रदेश ?

सवाल यह है कि सरकार और उसकी एंजेसियां लगातार महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के कदम उठाने के बावजूद यौन हिंसा जैसी घटनाओं को रोकने में नाकाम साबित क्यों हो रही है। सरकार से सवाल यह भी है क्या सिर्फ महिलाओं के प्रति होनेवाली हिंसा के आधिकारिक आकंड़े कम हो जाने से एक राज्य को पूरी तरह सुरक्षित माना जा सकता है? 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के काम की प्रशंसा करते हुए अलीगढ़ में विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, ‘मैं पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के लोगों को विशेष तौर पर याद दिलाना चाहता हूं कि इसी क्षेत्र में चार-पांच साल पहले परिवार अपने ही घरों में डरकर जीते थे। बहन-बेटियों को घर से निकलने में स्कूल कॉलेज जाने में डर लगता था। जब तक बेटियां घर वापस न आएं तब तक माता-पिता की सांसे अटकी रहती थी। जो माहौल था, उसमें कितने ही लोगों को अपना पुश्तैनी घर छोड़ना पड़ा, पलायन करना पड़ा, आज यूपी में कोई भी अपराधी ऐसा करने से पहले सौ बार सोचता है।’ प्रधानमंत्री मोदी के इस भाषण से महज दो दिन पहले पश्चिमी उत्तर-प्रदेश के बिजनौर में राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के साथ दिन-दहाड़े हिंसा की वारदात हुई और उसकी हत्या कर दी गई।

इससे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने भाषणों में कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में अब हमारी बहनें और बेटियां सुरक्षित है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के इन दावों को हाल में ही हुई कई घटनाएं खारिज करती हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं। सूबे में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर एक ओर नेताओं की बयानबाजी हो रही है। वहीं, दूसरी ओर घटते आंकड़ों का हवाला देते हुए सत्ता उत्तर प्रदेश को महिलाओं के लिए पूरी तरह सुरक्षित घोषित करने में लगी हुई है।

द प्रिंट की खबर के मुताबिक बिजनौर की 24 वर्षीय राष्ट्रीय स्तर की खो-खो खिलाड़ी से उस वक्त हत्या कर दी गई जब वह पास के ही एक स्कूल में नौकरी के लिए आवदेन करने जा रही थी। एक रस्सी और उसके दुपट्टे से उसका गला घोंटकर हत्या के बाद उसके शव को रेलवे ट्रैक के पास रखी पटरियों के बीच छोड़ दिया। खो-खो की राष्ट्रीय खिलाड़ी के साथ जब यह घटना हुई तब वह अपने एक दोस्त से फोन पर बात कर रही थी, जिसका एक ऑडियो क्लिप भी सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल इस कथित ऑडियो क्लिप में महिला मदद की गुहार लगा रही है। हालांकि, पुलिस ने अपनी मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर महिला के साथ यौन हिंसा बलात्कार की बात से इनकार किया है।

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बीते साल इसी सितंबर में हाथरस में एक 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ उसी के गांव के कथित उच्च जाति के चार युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। बाद में अस्पताल में इस लड़की ने दम तोड़ दिया था। मृतक के शव और परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के शासन और प्रशासन ने जो व्यवहार किया था वह जातिवादी उत्पीड़न, असंवेदनशीलता और क्रूरता की पराकाष्ठा थी। इससे पहले इसी साल अगस्त में उत्तर प्रदेश की एक रेप सर्वाइवर ने दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के सामने आत्मदाह किया जिसमें उनकी जान चली गई। न्याय की गुहार करती सर्वाइवर का कहना था कि उत्तर प्रदेश की पुलिस प्रशासन आरोपी सांसद अतुल राय के बचाव में कारवाई कर रही है। उन्नाव, हाथरस, आजमगढ़ और बस्ती जैसी कई यौन हिंसा की घटनाएं लगातार राज्य में घटित हो रही हैं।

राज्य में विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं। सूबे में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध पर एक ओर नेताओं की बयानबाजी हो रही है। वहीं, दूसरी ओर घटते आंकड़ों का हवाला देते हुए सत्ता उत्तर प्रदेश को महिलाओं के लिए पूरी तरह सुरक्षित घोषित करने में लगी हुई है।

आंकड़े क्या कहते हैं

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ो के अनुसार उत्तर प्रदेश की स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि उस पर प्रशंसा की जाए और कहा जाए कि यहां अपराधी अपराध करने से पहले सोचता है। एनसीआरबी की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिला के खिलाफ होने वाले अपराध की दर 45.1 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में महिला हिंसा के ख़िलाफ़ कुल 49,385 मामले दर्ज हुए हैं। यह संख्या बीते दो साल से थोड़ी कम ज़रूर है लेकिन बेहतर तो किसी भी स्थिति में नहीं है। अखिलेश सरकार से लेकर वर्तमान सरकार के आंकड़ो के अनुसार ही स्थिति में कोई सुधार नहीं है। आंकड़ों के ही मुताबिक सभी राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में ही महिला हिंसा के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए हैं।

साभार: NCRB Report 2021

एनसीआरबी के जारी ताजा रिपोर्ट के नंबर भले ही कम हो लेकिन बीते सालों से संख्या लगातार बढ़ रही है। 2015 से वर्तमान तक उपलब्ध आंकड़ो पर नजर डालें तो 2015 में 35,908, 2016 में 49,262, 2017 में 56,011, 2018 में 59,445, 2019 में 59,853 मामले महिलाओं के खिलाफ़ हुए अपराधों की संख्या है। एनसीआरबी के ही अनुसार उत्तर प्रदेश में बीते सालों में दर्ज बलात्कार के मामलों में कमी देखने को मिली है। साल 2020 में उत्तर प्रदेश में बलात्कार के 2,769 मामले सामने आए हैं। दूसरी ओर राष्ट्रीय महिला आयोग के हालिया आंकड़ों के अनुसार उनके पास महिला हिंसा की दर्ज कुल शिकायतों की आधी संख्या उत्तर प्रदेश की है। महिला आयोग के पास इस वर्ष जनवरी से लेकर अगस्त तक कुल 19,553 शिकायत दर्ज हुई है, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश से 10,084 शिकायतें सामने आई हैं।                                                          

पुलिस की कार्रवाई है घेरे में

भारतीय पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था और पुलिस प्रशासन का व्यवहार भी एक कड़ी है जिसके कारण सर्वाइवर शिकायत दर्ज करने से भी कतराती है। उत्तर प्रदेश पुलिस का व्यवहार तो किसी से छिपा भी नहीं है। हाथरस, उन्नाव या हाल ही का सुप्रीम कोर्ट के सामने आत्मदाह का मामला, हर केस में पुलिस की कार्रवाई पर संदेह और आरोपी को बचाने का पक्ष लेने के आरोप लगते आए हैं। एफआईआर दर्ज कराने तक के लिए सर्वाइवर को बहुत संघर्ष करना पड़ता है। पुलिस जांच के दौरान विक्टिम ब्लेमिंग का व्यवहार करती है।

द हिंदू में प्रकाशित ‘कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशटिव’ की एक स्टडी पर आधारित खबर यह बताती है कि प्रदेश पुलिस रेप जैसी गंभीर हिंसा पर कितना संवेदनहीन व्यवहार करती है। इस स्टडी में यूपी के कुछ केसों की पड़ताल की गई जिसमें पाया गया कि रेप सर्वाइवर को पुलिस की जांच के दौरान क्या-क्या सामना करना पड़ा। यह स्टडी साफ दिखाती है कि पुलिस एफआईआर दर्ज करने में देरी, सर्वाइवर और उसके परिवार पर समझौते का दबाव, आरोपी से शादी का प्रस्ताव, सीधे रेप का केस दर्ज करने से मनाही, महिला से ही सबूत मांगना और पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यवहार करती है। स्टडी में यह बात भी सामने आई है कि पुलिस दलित महिलाओं के साथ उनकी सामाजिक स्थिति जानकर उनके साथ बहुत बुरी तरह पेश आती है।

सवाल यह है कि सरकार और उसकी एंजेसियां लगातार महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के कदम उठाने के बावजूद यौन हिंसा जैसी घटनाओं को रोकने में नाकाम साबित क्यों हो रही है। सरकार से सवाल यह भी है क्या सिर्फ महिलाओं के प्रति होनेवाली हिंसा के आधिकारिक आकंड़े कम हो जाने से एक राज्य को पूरी तरह सुरक्षित माना जा सकता है? 

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क्यों रुक नहीं रहे अपराध

उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के खिलाफ़ होनेवाले अपराध को रोकने के लिए जोर-शोर से कई कार्यक्रमों की शुरुआत की थी। इन कार्यक्रमों में मिशन शक्ति अभियान और एंटी रोमियो स्क्वॉड जैसे अभियान शामिल हैं। एंटी रोमियो अभियान सहायता कम परेशानी के रूप में ज्यादा चर्चा में रहा है। पुलिस की कार्रवाई से उपजी परेशानियों को दूर करने के लिए पुलिस विभाग अपने सिपाहिंयों को हिदायतें देता भी दिखा। पिछले साल महिला अपराध पर लगाम लगाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिशन शक्ति अभियान का शुभारंभ किया। वर्तमान में इस योजना के तीसरे फेज़ की घोषणा की गई है। मिशन शक्ति अभियान के तहत पुलिस थानों में एक अलग कमरे का प्रावधान किया गया जिसमें सर्वाइवर किसी महिला पुलिसकर्मी के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है। पुलिस की सक्रियता के बढ़ाने के लिए ‘पिंक पट्रोलिंग’ जैसी योजनाओं की भी घोषणा की गई। इसी अभियान के तहत पुलिस विभाग में बीस प्रतिशत अधिक महिला पुलिसकर्मी की तैनाती की भी घोषणा की गई थी। महिला सुरक्षा से जुड़ी राज्य सरकार की योजनाएं अधिकतर पितृसत्तात्मक नज़रिये से बनाई गईं। इन योजनाओं में हमेशा महिलाओं को ‘बचाने’ की प्रवृत्ति हावी नज़र आती है।

सवाल यह है कि सरकार और उसकी एंजेसियां लगातार महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के कदम उठाने के बावजूद यौन हिंसा जैसी घटनाओं को रोकने में नाकाम साबित क्यों हो रही है। सरकार से सवाल यह भी है क्या सिर्फ महिलाओं के प्रति होनेवाली हिंसा के आधिकारिक आकंड़े कम हो जाने से एक राज्य को पूरी तरह सुरक्षित माना जा सकता है? 

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तस्वीर साभार : The Guardian

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