कोविड-19 से जूझते हुए दो सालों का वक्त बीत चुका है। भारत समेत दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत और करोड़ों लोगों के संक्रमित होने के बीच धीरे-धीरे ही सही पर हम वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तक आ पहुंचे हैं। दुनियाभर में लोग न सिर्फ इस वायरस से प्रभावित हुए बल्कि संक्रमण के कारण लगा लॉकडाउन दोहरी मार बनकर उभरा। स्वास्थ्य सेवाएं, रोज़गार, शिक्षा अलग-अलग स्तरों पर प्रभावित रहीं। कोविड-19 लॉकडाउन ने हाशिये पर गए लोगों को, ख़ासकर जेंडर, वर्ग, जाति, विकलांगता, यौनिकता के आधार पर कैसे अलग-अलग स्तर पर प्रभावित किया इसका आंकलन जारी है।
महज़ चार घंटों की मोहलत देकर केंद्र सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया। लॉकडाउन के कारण स्वास्थ्य सेवाएं शुरुआती दौर में सबसे अधिक प्रभावित रहीं। उदाहरण के तौर पर पहले चरण के लॉकडाउन के दौरान अस्पतालों के ओपीडी बंद रहे, सभी अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ों को प्राथमिकता दी जा रही थी। निजी से लेकर सरकारी सभी अस्पतालों में लगभग एक जैसी ही स्थितियां थीं। ऐसे में अन्य बीमारियों से प्रभावित मरीज़ों ने कई गंभीर परेशानियां झेलीं, कई लोगों की मौत हुई और कई लोग ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहे। यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी दवाइयां और मेडिकल सेवाएं पूरी तरह नदारद दिखीं। इस बात की तस्दीक कई रिपोर्ट्स करती हैं।
सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी ख़ासकर आशा वर्कर्स जो प्रजनन स्वास्थ्य, गर्भनिरोध, गर्भसमापन जैसे मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने में, इस पूरी प्रक्रिया को बनाए रखने जिनकी अहम भूमिका होती है, उन पर भी कोविड से जुड़ी जिम्मेदारियां डाल दी गईं। ऐसे में छोटे शहरों, ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में बाधित हुई सेवाओं का आंकड़ा तो शायद पूरी तरह हमारे पास आ भी नहीं सका है।
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लॉकडाउन में अबॉर्शन सेवाओं को ज़रूरी सेवाओं की सूची में डालना क्या काफी रहा?
लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार ने अबॉर्शन सेवाओं को ज़रूरी सेवाओं की सूची में ज़रूर रखा। यह ऐलान केंद्र ने 14 अप्रैल को किया। सरकार ने यह ऐलान तो ज़रूरी किया कि अबॉर्शन सेवाएं जारी रहेंगी लेकिन यह सेवा ज़रूरतमंदों तक कैसे पहुंचेगी इसके बारे में कोई ठोस रोडमैप नहीं पेश किया गया। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सामने आई रिपोर्ट्स और आंकड़े बताते हैं कि कैसे हमारे देश की सरकारी स्वास्थ्य नीतियों के लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं आखिरी प्राथमिकता होती हैं।
यह एक महत्वपूर्ण पक्ष ज़रूर है कि सुरक्षित अबॉर्शन सेवाओं तक पहुंच सिर्फ नीतिगत समस्या नहीं है। इसमें अलग-अलग स्तरों पर चुनौतियां बरकरार हैं। कोविड-19 महामारी ने इस बात पर ज़ोर डाला कि सरकारें, स्वयं-सेवी संगठन, सरकारी व निजी हेल्थ सेक्टर सेल्फ मैनेज्ड मेडिकल अबॉर्शन के मुद्दे पर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाएं।
इपस (Ipas) डेवलपमेंट फाउंडेश द्वारा की गई एक स्टडी बताती है कि बीते साल लगे लॉकडाउन के शुरुआती तीन महीनों (25 मार्च से 24 जून) के दौरान करीब 1.85 मिलियन महिलाओं की पहुंच से अबॉर्शन सेवाएं दूर रहीं। इसमें सरकारी, निजी सेक्टर और केमिस्ट की दुकानों पर मिलनेवाली मेडिकल अबॉर्शन पिल्स से जैसी सेवाएं शामिल थीं। स्टडी बताती है कि इसके पीछे ट्रांसपोर्ट सेवाओं का बाधित होना, निजी और सरकारी दोंनो ही क्षेत्रों में अस्पतालों पर कोविड मामलों का क्षमता से अधिक बोझ होना जैसे कारण प्रमुख थे।
अबॉर्शन के मामलों में समय का बहुत महत्व होता है। सही समय पर सही,सुरक्षित और उचित अबॉर्शन सुविधा मिलना लोगों का मूलभूत अधिकार होना चाहिए। कोविड-19 के दौरान अबॉर्शन सेवाओं के बाधित होने के परिणामस्वरूप इन लाखों लोगों को या तो अपनी गर्भावस्था जारी रखनी पड़ी होगी या उन्हें असुरक्षित गर्भसमापन के विकल्प चुने होंगे।
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ये हालात सिर्फ कोविड-19 से ही नहीं उपजे। भारत में सेल्फ मैनेज्ड मेडिकल अबॉर्शन के लिए इस्तेमाल की जानेवाली गोलियों की कमी इस महामारी के आने से पहले से भी देखी गई। फाउंडेशन ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ सर्विसेज़ इन इंडिया द्वारा भारत के छह राज्यों-मध्य प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा और नई दिल्ली पर जनवरी 2020 से मार्च 2020 तक किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि इन शहरों में दवा दुकानदारों के पास इन अबॉर्शन की गोलियों (माइफप्रिस्टॉन और मिसोप्रॉस्टल) की भारी कमी देखी गई। इस अध्ययन के आंकड़ों के मुताबिक 79 फ़ीसद दवा दुकानदारों के पास ये दवाएं थी ही नहीं। साथ ही 54.8 फीसद दवा दुकानदारों के मुताबिक मेडिकल अबॉर्शन की गोलियां प्रिस्क्रिप्शन देखकर दी जाने वाली दवाइयों के मुकाबले अधिक विनियमित होती हैं।
कोविड-19 और सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन की अहमियत
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण अबॉर्शन से जुड़ी सेवाएं केवल भारत में बाधित नहीं रहीं। लेकिन कई अन्य देशों ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए अबॉर्शन से संबंधित अपने कानून में बदलाव भी किए। उदाहरण के तौर पर फ्रांस ने अप्रैल 2020 में टेलिकंसल्टेशन के ज़रिए मेडिकल प्रोफेशन की मदद से अबॉर्शन की गोलियों का इस्तेमाल करते हुए नौ हफ्ते के भ्रूण तक के अबॉर्शन की इजाज़त दी। यूके ने भी कोविड-19 महामारी के दौरान टेलिकम्यूनिकेशन के माध्यम से सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए। फ्रांस और यूके जैसे देशों द्वारा लिया गया यह फैसला यह दिखाता है कि विशेष परिस्थितियों में विशेष नीतियों की ज़रूरत होती है।
वॉशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट बताती है कि गर्भनिरोधक बनानेवाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक डीकेटी इंटरनैशनल के मुताबिक दुनियाभर में अबॉर्शन की गोलियों की बिक्री बढ़ रही है। साथ ही मेडिकल अबॉर्शन पिल्स के ज़रिये गर्भसमापन का विकल्प उन देशों में लोग अधिक चुन रहे हैं जहां अबॉर्शन को लेकर सख्त कानून मौजूद हैं।
उदाहरण के तौर पर हाल ही में अमेरिकी राज्य टेक्सस में जहां अबॉर्शन की समय सीमा छह हफ्तों तक सीमित कर दी गई है वहां लोग इन मेडिकल अबॉर्शन पिल्स का सहारा ले रहे हैं। ये दवाइयां उन लोगों के लिए भी मददगार साबित हो रही हैं जो आर्थिक कारणों से राज्य के बाहर अबॉर्शन की सुविधा के लिए नहीं जा सकते या इस पूरी प्रक्रिया का खर्च वहन नहीं कर सकते।
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एनबीसी न्यूज़ के मुताबिक लोग द्वारा इन दवाइयों को ऑनलाइन मंगाने का चलन बढ़ रहा है। एक अन्य वेबसाइट एमएस मैगज़ीन के मुताबिक इस नये कानून के लागू होने के बाद प्लान C वेबसाइट पर जाने वाले लोगों की संख्या में 15 गुना बढ़त देखी गई। इस वेबसाइट पर अबॉर्शन पिल्स, उनके इस्तेमाल से जुड़ी जानकारियां मौजूद होती हैं। टेक्सस के नए कानून के मुताबिक डॉक्टरों द्वारा लोगों को अबॉर्शन की गोलियां तय सीमा के बाद भेजना भी अपराध की श्रेणी में आएगा। हालांकि जानकारों का मानना है कि इस सख्त कानून के बावजूद सरकार द्वारा यह पता लगाना मुश्किल होगा कि कौन से लोग अबॉर्शन पिल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि ऐसा करने के लिए लोग कौन सी दवाइयां मंगवा रहे हैं इसकी जांच करनी होगी।
यह एक महत्वपूर्ण पक्ष ज़रूर है कि सुरक्षित अबॉर्शन सेवाओं तक पहुंच सिर्फ नीतिगत समस्या नहीं है। इसमें अलग-अलग स्तरों पर चुनौतियां बरकरार हैं। कोविड-19 महामारी ने इस बात पर ज़ोर डाला कि सरकारें, स्वयं-सेवी संगठन, सरकारी व निजी हेल्थ सेक्टर सेल्फ मैनेज्ड मेडिकल अबॉर्शन के मुद्दे पर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाएं। यह सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह मेडिकल अबॉर्शन की गोलियां सबकी पहुंच में हो यह सुनिश्चित करे। साथ ही ज़रूरत है नीति निर्माताओं और स्टेक होल्डर्स को यह समझने की कि उचित संसाधनों के साथ सेल्फ मैनेज्ड अबॉर्शन एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
(यह लेख HowToUse Abortion Pill और फेमिनिज़म इन इंडिया की पार्टनशिप के तहत लिखा गया है। HTU अबॉर्शन पिल्स से जुड़े तथ्य, रिसोर्स जैसे अबॉर्शन पिल्स लेने से पहले किन बातों का ख्याल रखना चाहिए, ये पिल्स कहां उपलब्ध हो सकती हैं, इनका इस्तेमाल कैसे किया जाए और कब चिकित्सक की ज़रूरत पड़ सकती है, जैसी जानकारियां साझा करने का काम करता है। HTU का सेफ़ अबॉर्शन असिस्टेंट Ally अबॉर्शन पिल्स से जुड़ी सभी जानकारियों पर आपकी मदद के लिए 24/7 उपलब्ध है। आप Ally से हिंदी और अंग्रेज़ी दो भाषाओं में बात कर सकते हैं। साथ ही फ्री वॉट्सऐप नंबर +1 (833) 221-255 और http://www.howtouseabortionpill.org/ के ज़रिये भी आप मदद ले सकते हैं)
तस्वीर साभार: Scroll/Tauseef Mustafa/AFP