हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए रिश्तों में सहमति पर कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण बात कोर्ट ने यह कही कि प्यार या किसी के साथ रिश्ते में होने का मतलब सेक्स के लिए भी सहमति देना नहीं होता है। इसके लिए दोनों साथियों की सहमति मायने रखती है। लाइव लॉ के अनुसार केरल हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है किसी के साथ प्यार में होने को शारीरिक संबंध के लिए सहमति के रूप में नहीं माना जा सकता है। न्यायमूर्ति आर. नारायण पिशारदी ने अपने आदेश में कहा कि लाचारी में दी गई हां को किसी भी रूप में सहमति नहीं कहा जा सकता है। साथ ही यह भी कहा कि सहमति और सबमिशन के बीच काफी अंतर होता है। हर सहमति में एक सबमिशन शामिल होता है लेकिन हर सबमिशन में सहमति नहीं शामिल होती है। किसी मजबूरी के सामने आत्मसमर्पण करने को सहमति नहीं माना जा सकता है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सेक्स के लिए सहमति सिर्फ इसलिए नहीं मानी जा सकती क्योंकि लड़की या महिला किसी पुरुष से प्यार करती है। अदालत ने सहमति और सबमिशन के बीच अंतर बताते हुए कहा कि मजबूरी या लाचारी में की गई हां को सहमति नहीं माना जा सकता है। महिला या लड़की किसी से प्यार करती थी, यह नहीं मान सकते कि उसने सेक्स के लिए भी हां कर दी है। सहमति के लिए किसी प्रकार का दबाव मान्य नहीं होता है, ऐसी स्थिति में बना संबंध बलात्कार ही कहा जाएगा। निचली अदालत के द्वारा बलात्कार के आरोपी ठहराए जाने वाले 26 वर्षीय श्याम सिवन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है।
दरअसल साल 2013 में आरोपी श्याम सिवन जिस लड़की के साथ रिश्ते में था उसे मैसूर ले गया। वहां आरोपी ने लड़की का बलात्कार किया। इसके बाद आरोपी ने उसके सोने के गहने बेचकर उस से गोवा जाने की ज़िद की थी, जहां आरोपी ने उसके साथ दोबारा बलात्कार किया था। उसने लड़की को धमकी दी कि यदि वह उसके साथ नहीं गई तो वह उसके घर के सामने आत्महत्या कर लेगा। सर्वाइवर ने यह भी गवाही दी कि इस घटना के बाद वह आरोपी से कोई संपर्क नहीं कर पाई थी। इसी दौरान उसके पिता ने यह केस दर्ज कराया था। जांच के बाद निचली अदालत ने उसे दोषी पाया और दस साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील के साथ यह दलील भी दी कि वह अपराध के समय नाबालिग था।
और पढ़ेंः ‘मैरिटल रेप है तलाक का वैध आधार’ केरल हाईकोर्ट का यह फै़सला क्यों मायने रखता है
हाल ही में केरल हाईकोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए रिश्तों में सहमति पर कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण बात कोर्ट ने यह कही कि प्यार या किसी के साथ रिश्ते में होने का मतलब सेक्स के लिए भी सहमति देना नहीं होता है।
अदालत का फैसला क्यों है अहम
अदालत ने कहा है कि भले ही कुछ स्थितियों में सर्वाइवर ने आरोपी को मना नहीं किया है, उसका विरोध नहीं जताया है। इसका मतलब यह नहीं है कि उसे सेक्स के लिए अनुमति मिली गई। विषम परिस्थितियों और मजबूरी में निष्क्रिय समर्पण और कोई दूसरा विकल्प न होने के कारण खुद को प्रस्तुत करना किसी प्रकार की सहमति नहीं मानी जा सकती है।
अदालत ने यह भी कहा कि घटना के संबंध में सर्वाइवर की ओर से पेश किए गए सबूत अपरिवर्तित रहे है, सबूतों पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं मिला है इसलिए उनकी गवाही की पुष्टि करने की कोई जरूरत नहीं है। अदालत ने यह भी नोट किया है कि यदि सर्वाइवर के शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं हैं तो यह उसकी ओर से सहमति का अनुमान और झूठा आरोप लगाना नहीं है। यह नहीं कहा जा सकता है कि जब भी प्रतिरोध किया जाए तो सर्वाइवर के शरीर पर कुछ चोट के निशान होते ही हैं। अदालत ने आगे यह कहा है कि यह आरोपी की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह साबित करे कि सेक्स सहमति से हुआ था। वर्तमान केस में आरोपी यह साबित करने में नाकाम हुआ है।
अदालत ने सर्वाइवर की उम्र के मामले में बोलते हुए कहा है कि यदि आरोपी ने सर्वाइवर की उम्र पर कोई सवाल नहीं किया है तो अभियोजन पक्ष का कर्तव्य है कि वह इसे सबूत के तौर पर पेश करें। कोर्ट ने कहा है कि सर्वाइवर की उम्र का पता नहीं लगाया जा सका तो ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को पॉक्सो अधिनियम के तहत कैसे आरोप तय किए है। न्यायमूर्ति पिशारदी ने कहा है कि आरोपी साफ तौर पर आईपीसी की धारा 366 और 376 (अपरहण और बलात्कार) के तहत दंडनीय अपराध में शामिल है।
और पढ़ेः सुप्रीम कोर्ट का अदालतों को महिला-विरोधी ना होने का निर्देश देना एक अच्छी पहल
साथी से हिंसा का सामना करती महिलाएं
पितृसत्ता वाले समाज में एक महिला की स्वायत्ता का कोई महत्व नहीं होता है। यहां महिला हर स्थिति में पुरुषों से कम मानी जाती है। महिला को केवल पुरुष को दिए जाने वाले शारीरिक सुख और शारीरिक जरूरत पूरी करने का एक ज़रिया माना जाता है। अंतरंग रिश्तों में पुरुष महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाना अपना अधिकार समझता है। ऐसे अंतरंग संबंधों में यदि महिला की शारीरिक स्वतंत्रता को खत्म किया जाता है, उसके साथ जबरदस्ती करना और मजबूरी या डराकर साथी को सेक्स करने के लिए कहा जाता है तो वह इंटिमेट पार्टनर वायलेंस कहलाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में हर तीन में से एक महिला अपने जीवनकाल में अपने साथी या पति से शारीरिक संबंध बनाते हुए अंतरंग साथी हिंसा का सामना करती है।
दोनों साथी की सहमति होना बेहद आवश्यक
सहमति केवल एक शब्द तक सीमित नहीं है, यह किसी रिश्ते में एक साथी का दूसरे साथी की भावनाओं और शारीरिक सीमाओं का सम्मान करना है। किसी प्रकार का दबाव या अनिच्छा से की गई हां अधूरी सहमति है। अंतरंग संबंध बनाते समय दोनों साथी की स्वतंत्र सहमति होना बहुत आवश्यक है। इसी महीने की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि अतीत में सेक्स के लिए सहमति देना भविष्य के लिए सहमति नहीं है। हाईकोर्ट ने एक जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा था कि यदि दो व्यक्तियों के बीच पहले किसी भी कारण सहमति से यौन संबंध थे, तो पहले यौन संबंध के आधार पर भविष्य के लिए सहमति नहीं माना जा सकता है। हर बार सहमति की आवश्यकता होती है, बिना सहमति के सेक्स करना आईपीसी की धारा 376 का उल्लघंन है।
और पढ़ेंः केरल हाईकोर्ट के फैसले के बहाने बात मेडिकल विज्ञान में मौजूद होमोफोबिया की
तस्वीर साभारः The New Indian Express