क्या हम आज भी अपने बच्चों और उनकी सुरक्षा को लेकर लापरवाह हैं? क्या आज भी बच्चे यौन हिंसा का आसान निशाना बन रहे हैं? ताजा आंकड़े इस सवाल के पक्ष में प्रतीत होते हैं। हाल ही में गैर-सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्रस एंड यू’ (क्राय) ने पिछले साल के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया कि 2020 में पॉक्सो के तहत दर्ज 28,327 मामलों में से 28,058 में सर्वाइवर लड़कियां थीं। ‘क्राय’ के विश्लेषण से साफ ज़ाहिर होता है कि लड़कियां आज भी समाज के सबसे संवेदनशील तबकों में से एक का हिस्सा बनी हुई हैं।
क्यों फलता-फूलता है यौन शोषण ?
यौन शोषण की कोई सीमा नहीं होती। यह हर देश में समाज के हर हिस्से में होता है। एनसीआरबी के आंकडों के अनुसार 2018 में भारत में हर दिन 109 बच्चें यौन शोषण का शिकार हुए। यौन शोषण का संबंध किसी व्यक्ति पर नियंत्रण की भावना के बारे में है। अधिकांश सर्वाइवर्स को उनकी शक्तिहीनता के आधार पर चुना जाता है। शक्तिहीनता बाल यौन शोषण में वृद्धि के लिए मुख्य जिम्मेदार है क्योंकि बच्चों के साथ हिंसा करना शोषणकर्ता के लिए सबसे आसान होता है।
- बच्चों को बहुत आसानी से बहलाया जा सकता है।
- उन्हें डरा-धमकाकर चुप कराया जा सकता है।
- बच्चें अपने साथ हो रही हरकत को समझने में समर्थ नहीं होते।
सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि यौन हिंसा, उत्पीड़न, शोषण से संबंधित मुद्दों के बारे में बच्चों को कुछ खास ज्ञान नहीं होता है। इसलिए वे सही-गलत का भेद नहीं कर पाते।
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हाल ही में गैर-सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्रस एंड यू’ (क्राय) ने पिछले साल के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया कि 2020 में पॉक्सो के तहत दर्ज 28,327 मामलों में से 28,058 में सर्वाइवर लड़कियां थीं। ‘क्राय’ के विश्लेषण से साफ ज़ाहिर होता है कि लड़कियां आज भी समाज के सबसे संवेदनशील तबकों में से एक का हिस्सा बनी हुई हैं।
आँकड़ों के अनुसार लड़कियों की स्थिति
लगभग हर महिला अपने जीवन में किसी न किसी रूप से शोषण का सामना करती है। ‘यूनिसेफ’ 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक 20 साल से कम उम्र की लगभग 120 मिलियन लड़कियों को यौन संबंध बनाने या दूसरे यौनिकता से संबंधित कार्य करने के लिए मजबूर किया गया। चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राय) द्वारा पिछले साल के एनसीआरबी डाटा के विश्लेषण में पाया गया कि पॉक्सो के तहत दर्ज किए गए 28,327 मामलों में से 28,058 पीड़ित लड़कियां थीं। सबसे अधिक 14,092 अपराध 16 से 18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों के खिलाफ किए गए, इसके बाद 10,949 अपराधों को 12 से 16 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियों के साथ अंजाम दिया गया। बालिकाओं के मानवाधिकारों को भले ही कागज पर संरक्षित किया गया हो, लेकिन हकीकत में उन अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। हालांकि ये वे मामले हैं जो दर्ज होते हैं, जमीनी हकीकत इससे भी भयावह है।
यौन हिंसा की अधिक सर्वाइवर नाबालिग लड़कियां क्यों ?
लड़के और लड़कियां दोनों ही लगभग बाल यौन शोषण और हिंसा का सामना करते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि लड़कों के मुकाबले करीबन 90 से 95 फीसदी लड़कियां इससे पीड़ित होती हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार हर आयु वर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक यौन शोषण का सामना करती हैं। इसके कई कारण हैं :
- लिंग-पक्षपाती और भेदभावपूर्ण रवैया जो बालिकाओं को एक बोझ या दायित्व के रूप में और एक वस्तु के रूप में पहचानती है।
- लड़कियों को हमेशा प्रलोभन के रूप में देखा जाता है।
- बच्चियों का यौन तस्करी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
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ज्यादातर मामलों में अब्यूज़र कौन?
बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करनेवाले ज्यादातर लोग परिवार के अंदर या परिवार के बहुत करीब होते हैं जैसे शिक्षक, डॉक्टर, पड़ोसी आदि। अधिकांश आरोपी सर्वाइवर के जान-पहचान वाले होते हैं। आंकडों के अनुसार लगभग 55 प्रतिशत मामले ऐसे हैं जिनमें दोषी परिवार का सदस्य या बेहद करीबी रिश्तेदार हैं जैसे पिता, चाचा, दादा, भाई आदि।
क्या कर सकते हैं आप
- अपने बच्चों पर भरोसा करें। उन्हें यकीन दिलाए कि आप उनको समझते हैं।
- बच्चे की गतिविधियों पर ध्यान रखें। कई बार बच्चे डर के कारण बोल नही पाते लेकिन संकेत देते हैं।
- शारीरिक आघात के संकेतों को कभी भी नज़रअंदाज़ न करें। अगर बच्चा स्कूल जाने से बहुत डरता है या किसी विशेष व्यक्ति के साथ खेलने का विरोध करता है, उसे गंभीरता से लें।
- बच्चों को यौन उत्पीड़न से संबंधित ज्ञान दें।
- समय समय पर बच्चों से पूछते रहें कि वे जिन लोगों के साथ समय बिता रहे हैं उनके साथ उन्हें कैसा महसूस होता है।
- बच्चों को सेक्स एजुकेशन वर्कशॉप कराएं।
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तस्वीर साभार : Huff Post