इंटरसेक्शनलजेंडर आज भी मर्दों के प्रॉडक्ट्स बेचने के लिए महिलाओं का ऑब्जेक्टिफिकेशन जारी है

आज भी मर्दों के प्रॉडक्ट्स बेचने के लिए महिलाओं का ऑब्जेक्टिफिकेशन जारी है

विज्ञापनों में स्त्री के ज़रिए सामान बेचना, स्त्री को भी एक सामान जैसा ही दिखाता है। विज्ञापनों में फीमेल मॉडल्स को सिर्फ सामान बेचते हुए चित्रित नहीं किया जाता। कई एड्स के उदाहरण मिल जाएंगे जहां औरतों को ऑब्जेक्टिफाई करते हुए प्रॉडक्ट को बेचा जाता है।

बाज़ारीकरण के दौर में कंपनियां अपने -अपने प्रॉडक्टस् को मार्केट में बेचने के लिए विज्ञापन की वह सारी तकनीक आज़माती हैं जिससे उनका उत्पाद बाजार में बिक सके। बीते कुछ समय से विज्ञापनों को जेंडर के लेंस से समझना बेहद जरूरी है। अक्सर विज्ञापन जेंडर विशेष को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। हालांकि, प्रॉडक्ट्स जैसे, फेस क्रीम ,फेस वॉश, परफ्यूम, शेविंग क्रीम, अंडर गारमेंट्स, वॉच आदि के विज्ञापनों में आज भी फीमेल मॉडल्स के ज़रिए ही प्रॉडक्ट बेचे जा रहे हैं। फिल्म, मनोरंजन, विज्ञापन आदि की दुनिया धीरे-धीरे ही सही पर जेंडर जैसे मुद्दों पर थोड़ी-बहुत ही सही पर संवेदनशील ज़रूरी हुई है। हालांकि, आज भी बड़ी संख्या में मर्दों के प्रॉडक्ट्स के विज्ञापन में महिलाओं को एक ‘बेट’ की तरह ही इस्तेमाल किया जा रहा है।

भारतीय पितृसत्तात्मक समाज की सोच वैसे भी महिलाओं को इंसान कम और सामान ज्यादा समझती है। ऐसे में विज्ञापनों में स्त्री के ज़रिए सामान बेचना, स्त्री को भी एक सामान जैसा ही दिखाता है। विज्ञापनों में फीमेल मॉडल्स को सिर्फ सामान बेचते हुए चित्रित नहीं किया जाता। कई ऐड्स के उदाहरण मिल जाएंगे जहां औरतों को ऑब्जेक्टिफाई करते हुए प्रॉडक्ट को बेचा जाता है।

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एक चर्चित मर्दों के प्रॉडक्ट वाइल्ड स्टोन परफ्यूम के कई विज्ञापन आए, जो बहुत लोकप्रिय रहें। इसका स्लोगन था, ‘वाइल्डस्टोन, लोग तो नोटिस करेंगे ही’ लेकिन प्रॉडक्ट के विज्ञापन में सभी लोग परफ्यूम को ‘नोटिस’ नहीं करते बल्कि सिर्फ औरतों को परफ्यूम को नोटिस करता दिखाया गया। इस प्रॉडक्ट के ज्यादातर ऐड्स में एक मर्द ने यह परफ्यूम लगाया होता है जिस की खुशबू से एक लड़की क्या उसकी मां भी आकर्षित होती है। आकर्षण परफ्यूम की खुशबू से नहीं बल्कि उस मर्द से होता है जिसने परफ्यूम लगा रखा होता है। ऐड में औरत की सोच को इस तरह दिखाना सवाल खड़ा करता है कि क्या सच में समाज में औरतें पुरुषों के शरीर से इस तरह आकर्षित होती हैं। जवाब है नहीं, बल्कि इस ऐड के जरिए झलक दिखाई देती है उस रूढ़िवादी सोच की जो महिलाओं को लेकर हमारे समाज में मौजूद है।

इसी कड़ी में आगे पितृसत्ता की तस्वीर दिखाता ऐड लक्स कोजी अंडरवियर का है जिसमें बॉलीवुड के मशहूर एक्टर वरुण धवन लक्स का अंडरवियर पहने छत पर खड़े हैं। उन्हें देखने के लिए महिलाएं बेताब हैं। मर्दों के अंडरवेयर के ऐड में औरतों पर बने स्लोगन के साथ अंडरवियर में खड़े मर्द को देखते हुए पेश करना। ये दोंनो चीज़ें ही इस प्रॉडक्ट को बेचने के लिए गैरज़रूरी हैं। आमतौर पर तो ऐसा पुरुष करते हैं, स्त्री की देन को निहारना या उन्हें उनके कपड़ों से जज करना।

ऐड के ज़रिए यह दिखाना कि औरतें भी ऐसा करती हैं यह दिखाता है कि पुरुष कैसे मेल गेज़ को सही ठहराने के लिए औरतों का इस्तेमाल कर रहे हैं। भेदभाव के मुद्दे को हटाकर यहां यह दिखाना कि शोषण सभी के साथ समान होता है पितृसत्तात्मक सोच ही है। इसका अनुसरण करते हुए अंडर वियर की तमाम कंपनियां अपने ऐड बनाती हैं। जैसे- डॉलर, अमूल, माचो, रूपा इन सभी प्रॉडक्ट्स के ऐड में अक्सर औरतों का चित्रण ऐसे ही किया जाता है। जैसे उनके लिए पुरुष की देह ही सब कुछ है।

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विज्ञापनों में स्त्री के ज़रिए सामान बेचना, स्त्री को भी एक सामान जैसा ही दिखाता है। विज्ञापनों में फीमेल मॉडल्स को सिर्फ सामान बेचते हुए चित्रित नहीं किया जाता। कई ऐड्स के उदाहरण मिल जाएंगे जहां औरतों को ऑब्जेक्टिफाई करते हुए प्रॉडक्ट को बेचा जाता है।

पुरुषों के इस्तेमाल की अलग-अलग चीजों के विज्ञापन के लिए महिलाओं का सहारा लिया जाता है। सामान बेचने की होड़ में महिलाओं को ही एक उत्पाद की तरह प्रस्तुत कर दिया जाता है। ऐसे कई ऐड्स के उदाहरण हैं जिसमें औरत को ऑब्जेक्टिफाई करते हुए उनके हाव-भाव ऐसे प्रस्तुत किए जाते हैं जो शायद ही कभी आम जिंदगी में देखे जाते हैं।

अगर हम यह समझने की कोशिश करें कि आखिर क्यों महिलाओं को मर्दों से जुड़े प्रॉडक्ट्स के विज्ञापनों में ऐसे चित्रित किया जाता है तो हम पाएंगे कि यह महज़ एक प्रॉडक्ट बेचने के उद्देश्य नहीं किया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि ये विज्ञापन पितृसत्ता का वह चेहरा दिखाते हैं जिसे हमने देखा और महसूस किया है। जिस तरह पुरुष स्त्री के शरीर को मात्र भोगने की दृष्टि से देखता है, स्त्री सिर्फ पुरुष के लिए अपनी वासना को संतुष्ट करने का जरिया मात्र मानी जाती है, उसी सोच को पुरुष समाज विज्ञापनों में दिखाता है। साथ ही इस सोच को वाजिब साबित करना चाहता है।

पितृसत्ता की सोच औरतों को पुरुषों के बराबर खड़े होने का हक नहीं देती। समाज में स्त्रियों के खिलाफ होने वाले अपराधों में पितृसत्तात्मक सोच की भूमिका मुख्य है। पितृसत्ता का वर्चस्व समाज के हर पहलू में नजर आता है। ऐसे में विज्ञापन कैसे पीछे रह सकते हैं। तमाम विज्ञापनों में महिलाओं को सामन की तरह दिखाकर, सामना बेचने का तरीका अब आम हो चला है। विज्ञापनों में स्त्रियों का प्रस्तुतीकरण का यह तरीका दिखाता है पितृसत्ता के वर्चस्व को। आधुनिकता के इस दौर में स्त्रियों का विज्ञापनों में एक आकर्षित वस्तु की तरह प्रस्तुतीकरण दर्शाता है पितृसत्ता के पैमाने को जिसने स्त्री के तन से परे अभी भी कुछ नहीं जाना।

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